रविवार, 3 जनवरी 2016

Curly Brackets - 19

23.16
           
इसके बाद वह “कपितोनोव!” कहकर नहीं चीख़ी, और चीखती ही नहीं है.         
और फिर

23.28

वह कहती है (क्योंकि कॉरीडोर में कुछ लोग शोर मचा रहे हैं):  
 “ये ‘हमारे लोग’ बैन्क्वेट से लौट रहे हैं.”
 ‘हमारे लोग बैन्क्वेट से’ चलते हुए किसी महत्वपूर्ण बात पर बहस कर रहे हैं – किसे चुना गया और खाने के बारे में... 
वह टैक्सी बुलाती है.
 “आर यू श्युअर?”
 “बिल्कुल. मैं सिर्फ घर में ही रात बिताती हूँ.”

तभी
23.32

दीवार के उस ओर वाला पड़ोसी – वह भी बैन्क्वेट से लौटा है.
 “काल-भक्षक, वह पूरे समय उल्टियाँ निकालता रहता है,” कपितोनोव कहता है.
 “पता है, पता है... प्लीज़ मेहेरबानी करो, मेरे टाइट्स फ़ट गए हैं.”
कपितोनोव ने भी कपड़े पहन लिए, कपितोनोव उसे छोड़ने जाना चाहता है.
 “मुझे यहाँ किसी ने थर्मल्स बेचे, बेलारूसी-रूसी प्रॉडक्शन. इस बात की गारंटी देते हैं कि चलते समय ये घर्षण को कम करते हैं. मैंने तो जाँच तो नहीं की.”
 “क्या यादगार के तौर पर दोगे?”
“ओके, गुड लक. चलते समय घर्षण कम करते हैं – ये तो अच्छी बात है.”
 “मर्दाना. मतलब, यादगार के तौर पे... दो.”

23.56

सीढ़ियों से नीचे उतरते हुए वह उससे कहती है:
 “क्या तुम्हें कभी ऐसा नहीं लगता, कि वाक़ई में कोई उसे खा रहा है, या, पता नहीं, पूरा खाए जा रहा है?”
 “क्या तुम समय के बारे में कह रही हो?”
 “हाँ, व्यक्तिगत समय के बारे में, जो हम सबको दिया गया है. कोई उसका पूरा गूदा खा रहा है, पूरा रसभरा गूदा, और बच रहता है भूसा. सिर्फ भूसा, घटनाओं का भूसा. और बस.”
 “अगर तुम उसके बारे में कह रही हो, जो मेरी दीवार के परे है, तो मुझे डर है कि उसके साथ ऐसा नहीं है. ऐसा नहीं लगता कि वह स्वादिष्ट चीज़ें खाता होगा. तुमने तो सुना कि वह कैसे उल्टियाँ निकालता है...”
 “नहीं - मैं आम तौर पे कह रही थी.”
 “और मेरे लिए ये दो दिन अंतहीन थे. वो इसलिए कि, शायद, मैं सोता नहीं हूँ. या, किसे पता, हो सकता है, कि ये उसने मेरी आंतों को इस क़दर बेहाल कर दिया हो...”
 “माफ़ करना, कपितोनोव, मगर तुम्हारे चेहरे पर बेहद थकावट दिखाई दे रही है.”
 “बस, एक दिन और, हो सकता है, सब ख़त्म न हो.”
 “सब ख़त्म हो जाएगा, परेशान मत हो. “
और ये वाक़ई में उस दिन के अंतिम शब्द थे.
आगमन हुआ

सोमवार का.
00.00         
  
बर्फ गिरना शुरू हो गई थी. टैक्सी वाला इंतज़ार कर रहा है, इंजिन बिना बन्द किए, और विंडस्क्रीन पर वाइपर्स घूम रहे हैं.
 “तुम्हारे सामने स्वीकार करती हूँ, मैं, हो सकता है, तुम पर बिल्कुल हावी न होती, अगर तुमने ये न किया होता. सिर्फ मैं ठीक से तुम्हें देख नहीं पाई. हालाँकि ये तुम्हारा ‘गेम’ नहीं था, मगर उसके नियमों पर भी तुमने उसे बख़ूबी खेला. तुम ‘तालाब’ को अभी भी नहीं पहचान पाए? यह सब उसी का किया-धरा  था. ‘तालाब’ सिर्फ मिलनसार दिखना चाहता था, असल में तो वह बेहद बुरा इन्सान था, एकदम ख़ाली, दुष्ट, असहनीय. मैं यह बात औरों से ज़्यादा अच्छी तरह जानती हूँ. उसने तुम्हें भी इस्तेमाल किया. तुम्हारा पता लगाया, मॉस्को से खींचकर लाया, उस स्टोर-रूम में खींच कर ले गया. क्या तुम सचमुच में कुछ नहीं समझते? ये आत्महत्या थी! तुम उसके लिए थे...किसी सोने की पिस्तौल के समान! तुम्हें अपने आप को ज़रा भी दोष नहीं देना चाहिए. तुम किसी भी सोने की पिस्तौल से बेहतर हो! तुम लाजवाब थे, सिर्फ लाजवाब! इन्सानियत की दृष्टि से मुझे ‘तालाब’ का अफ़सोस है, मगर एक औरत की दृष्टि से – ज़रा भी नहीं. अपनी हिफ़ाज़त करना, कपितोनोव. नीनेल को याद रखना. बाय, कॉम्रेड! मैं कभी भी हत्यारों के साथ नहीं सोई.”
कपितोनोव नज़रों से जाती हुई कार को देखता रहा. उसका हॉटेल में लौटने का मन नहीं है. वह बेचैन है, जैसे उसने कोई भारी स्क्रू निगल लिया हो. वह लैम्प के नीचे बेंच पर बैठा रहता, मगर वह भुरभुरी बर्फ़ से ढँक गया था.                
उस पर नज़र रखी जा रही है.
वह तेज़ी से पलटता है – धीरे-धीरे आती हुई कार की ओर: ये पुरानी ‘झिगूली’ थे, हेडलैम्प टूटा हुआ था. उसने उन्हें तभी देख लिया था, जब नीनेल बिदा होते समय ‘तालाब’ की नीचता के बारे में अपना स्वगत भाषण दे रही थी, - उस समय कार यहाँ से उतने ही धीमे गुज़री थी, जैसी अब जा रही है, मगर विपरीत दिशा में, और चौराहे पर ‘झिगूली’ वापस मुड़ गई.
कपितोनोव के क़रीब आकर कार रुक जाती है, और ड्राइवर, झुक कर कपितोनोव के लिए दरवाज़ा खोलता है.
 “मालिक, चलें! कहाँ?”
ये है मिसाल असंगठित कैब्स पर टैक्सी नामक संस्था की विजय की.
कपितोनोव सिर्फ बैठना चाहता है.
दरवाज़ा पहली बार में बन्द नहीं होता – और ज़ोर से बन्द करना पड़ता है.
पूरबी आदमी कपितोनोव की ओर देखकर मुस्कुराता है, इंतज़ार कर रहा है.
 “एक मिनट,” कपितोनोव कहता है. “अभी सोचते हैं,” कुछ सोचता है, पूछता है: “तुम्हारा नाम क्या है?”
 “तुर्गून.”
 “तुर्गून, क्या तुम बहुत दिनों से हो पीटर में?”
 “एक साल, पाँच महीने से.”
 “क्या कन्स्ट्रक्शन साइट पर काम करते थे?”
 “नहीं, भाई के पास.”
 “क्या पहाड़ों की याद आती है?”
 “परिवार की याद आती है. बहनों की. हमारे यहाँ पहाड़ नहीं हैं.”
 “क्या पीटरबुर्ग तुम्हें अच्छा लगता हि?”
 “अच्छा शहर है, बड़ा. बेहद ठण्डा. कहाँ जाएँगे?”
 “कहीं नहीं,” कपितोनोव दो नोट निकालता है. “तुम मुझे बस यूँ ही घुमाओ.”
 “नहीं, मैं नहीं! मैं नशेबाज़ों को नहीं !”
कपितोनोव उसकी जेब में पैसे ठूँस देता है.
 “तुर्गून, मैं तुमसे इन्सान की तरह पेश आ रहा हूँ. तुम मेरी बात सुन रहे हो, हाँ? मैं पीटरबुर्ग देखना चाहता हूँ. काफ़ी अर्से से यहाँ नहीं आया. याद आती थी. तुम्हें सेन्ट इसाकोव्स्की-केथेड्रल मालूम है? ऐडमिरैल्टी-छोटे से जहाज़ के साथ? मुझे सिर्फ ले जा सकते हो? नेवा, मोयका, ग्रिबोयेदोव-कैनाल...अगर कोई तुम्हारी पसन्दीदा जगह हो, तो वहाँ भी ले चलो. जहाँ चाहो, ले चलो. मेरी फ़्लाइट कल है. पता नहीं, फिर कब आऊँगा?”
 “क्या दूर जा रहे हो? अमेरिका जा रहे हो?”
 “कहाँ का अमेरिका?” कपितोनोव बुदबुदाता है, ये महसूस करते हुए कि उसने तुर्गून से जगह बदल ली है, अब वो सवाल कर रहा है. “क़रीब ही जाना है. अमेरिका ही क्यों जाया जाए?”
जोश में आकर तुर्गून पूछता है:
 “क्या सुबह तक चलते रहेंगे?”
 “जब तक उकता न जाऊँ.”
चल पड़े. तुर्गून को अभी तक अपनी सफ़लता में विश्वास नहीं हुआ था – वह पैसेंजर को देखता है: कहीं उसका इरादा न बदल जाए, कहीं पैसे वापस न मांगने लगे.
यहाँ कुछ गर्माहट है. कपितोनोव ओवरकोट के बटन खोलता है और स्कार्फ उतारता है. सर्दियों की बर्फ़ीली रात में पीटरबुर्ग को देखना – कपितोनोव को सबसे ज़्यादा इसी बात की ख़्वाहिश थी. किसी चीज़ को याद करके, या किसी बारे में कल्पना करके, वह आँखें बन्द करता है, और फ़ौरन सो जाता है.

0.41

 “मालिक, आ गए.”
 “आँ? क्या?”
 “इसाकोव्स्की-कैथेड्रल.”
 “कहाँ?”
 “ये रहा. इसाकोव्स्की-कैथेड्रल.”
 “तुर्गून, तुम – तुर्गून?...तुर्गून, ये इसाकोव्स्की-कैथेड्रल नहीं है, ये ट्रिनिटी कैथेड्रल है, इसी को इज़माइलोव्स्की कहते हैं...और मैं क्या सो गया था?”
 “सो रहे थे, जब हम जा रहे थे.”
 “तुमने मुझे क्यों जगाया?”
 “इसाकोव्स्की-कैथेड्रल, ख़ुद ही ने तो कहा था दिखाने के लिए.”  
 “ट्रिनिटी, मैं तुम्हें समझाता हूँ. ये भी बड़ा है, मगर इसाकोव्स्की से थोड़ा कम. इसाकोव्स्की का गुम्बद सोने का है. तू भी क्या...अगर मुझे इसाकोव्स्की दिखाना चाहता है, तो लेर्मोन्तोव्स्की पर मुड़ जाना, और वहाँ रीम्स्की-कोर्साकोव पर, और फिर ग्लिन्का स्ट्रीट पर बल्शाया-मोर्स्काया स्ट्रीट तक...कुछ इस तरह. या फिर इज़माइलोव्स्की पर, मगर वहाँ वज़्नेसेन्स्की प्रॉस्पेक्ट पर ट्रैफ़िक वन-वे है, सादोवाया पर बोल्शाया पोद्याचेस्काया पर निकलना पड़ेगा, और फ़ोनार्नी तक...मगर, यदि मैं सो जाऊँ, तो मुझे जगाना ज़रूरी नहीं है.”
 “क्या सोओगे?”
 “नहीं, तुर्गून, मेरे पास सोने के लिए जगह है. मैंने तुम्हें इसलिए नहीं लिया. मैं तीन रातों से सोया नहीं हूँ, क्या मैं कुछ देर सो नहीं सकता? समझे? मैं एक आदमी को, कह सकते हैं, कि उस दुनिया में भेज कर आया हूँ. सुबह इन्वेस्टिगेटर मुझे बेज़ार कर देगा. हो सकता है, कि मैं कहीं भी न जा पाऊँ. समझ गए? और तुम कहते हो “सोओगे”. तुम मुझे नहीं जानते, तुर्गून. मुझे जादू अच्छा नहीं लगता. मगर सिर्फ इतना जान लो, कि अगर अचानक मैं सो जाऊँ, तो ध्यान रख कि मैं सब देखता हूँ, मैं ख़ुद ही जानता हूँ कि मुझे कहाँ उठना है.”
कपितोनोव एक नौचालक की तरह ग़ौर से देखता है कि तुर्गून लेर्मोन्तोव्स्की प्रॉस्पेकट पर मुड़ जाए. जब पुल के ऊपर से गुज़रते हिं, तो वह उत्साहपूर्वक तुर्गून से कहता है: “फ़व्वारा, देख रहे हो, पूरा बर्फ के नीचे है...” मगर सादोवाया से पहले, जब सिग्नल के पास रुकते हैं, तो कपितोनोव की आँखें फिर से बन्द हो जाती हैं, और वह रीम्स्की-कोर्साकोव प्रॉस्पेक्ट वाले मोड़ को नहीं देख पाता.
क्र्यूकोव कैनाल के ऊपर वाला पुल तुर्गून बहुत धीरे-धीरे पार करता है – वह चाहता है कि पैसेंजर ऊँचे घण्टे को देखे, मगर उसे उठाने की हिम्मत नहीं कर पाया. ये रहा गुम्बज़ों वाला मन्दिर, और सब कुछ चकाचौंध करते प्रकाश से आलोकित है, मगर तुर्गून जानता है कि ये भी इसाकेव्स्की-कैथेड्रल नहीं है, - कैथेड्रल के बारे में उसे सब कुछ याद था, मगर ट्रिनिटी-कैथेड्रल को इसाकोव्स्की–कैथेड्रल इसलिए समझ बैठा कि ट्रिनिटी-कैथेड्रल के पास ट्रिनिटी मार्केट है, वहाँ तुर्गून अपने भाई की मदद करता था.
बाईं ओर मुड़कर, तुर्गून ट्राम की पटरियों को पार करता है – हो सकता है, पैसेंजर को दो स्मारक देखने में दिलचस्पी हो – एक खड़ा है, और दूसरा बैठा है, ख़ासकर बैठा हुआ ज़्यादा अच्छा है – उसके सिर पर बड़ी सी बर्फ़ की टोपी थी. मगर, आगे और भी दिलचस्प चीज़ें होंगी, और इस सड़क को तुर्गून काफ़ी तेज़ी से पार कर लेता है – उतनी तेज़ी से जितने की सिमेंट पर पिघलती बर्फ इजाज़त देती थी.
बल्शाया-मोर्स्काया पर बर्फ़ तोड़ने वाले काम कर रहे थे. मगर यहाँ समुद्र कहाँ है, ये तुर्गून नहीं जानता. पीटरबुर्ग में डेढ़ साल से रह रहा है, मगर आज तक समुद्र नहीं देखा.
ये रहा वो – इसाकेव्स्की-कैथेड्रल, और उसके सामने घोड़े पर सवार स्मारक, और उसके पीछे दूसरा स्मारक – घोड़े पर : तुर्गून धीरे-धीरे जा रहा है, जैसे पैसेंजर को दिखा रहा हो वह चीज़ जिसे वह देखना चाहता था – पीटरबुर्ग के ये महान दर्शनीय स्थल. बड़ी मुश्किल से तुर्गून अपने आप को रोकता है, ताकि कपितोनोव को जगा न दे. अब उसके सामने है नेवा. आसमान की कालिमा में उस तरफ़ की मीनार चमचमा रही है.               
तुर्गून कुछ-कुछ ख़ुद कपितोनोव बन चुका है – उस लिहाज़ से नहीं, कि वह भी सोना चाहता है, बल्कि इसलिए, कि वह ये सब उसकी नज़रों से देखने की कोशिश करता है, जो लम्बे समय तक इस सब के लिए तरसा था. और, जब वह ब्लागोवेश्शेन्स्की ब्रिज पार करता है, तो नेवा की तरफ़ ऐसी नज़र डालता है, मानो सोते हुए कपितोनोव की ख़ातिर उसे देख रहा है.
तुर्गून बड़ी ख़ूबसूरत जगहों पर गाड़ी ले जाता है, और जितनी ख़ूबसूरत वह जगह होती है, उतने ही धीरे वह गाड़ी चलाता है. बुर्ज़ रहा दाहिने हाथ को, और बाईं ओर – म्यूज़ियम, और यहाँ, तोप की फ़ेन्सिंग के पीछे, और, और भी कई जगहों पर वह क़रीब-क़रीब रुक ही जाता है. मुश्किल ही लगता है, कि इस पैसेंजर ने किसी को मार डाला है, - तुर्गून, शायद, पैसेंजर के शब्दों को ठीक से समझ नहीं पाया. शायद, कोई इसे ही मारना चाहता था, न कि उसने किसी को मारा था. ये देखो, वह अभी सो गया है.
इसके बाद वह मस्जिद की तरफ़ आते हैं. तुर्गून रुक जाता है, और दुर्घटना वाली बत्तियों को जला देता है, क्योंकि यहाँ पार्किंग करना मना है, और एक मिनट के लिए इंजिन भी बन्द कर देता है इस उम्मीद में कि पैसेंजर उठ जाएगा, और ख़ुद उसके लिए सम्मानपूर्वक मस्जिद को देखने लगता है.
बर्फ से ढंकी गलियों से होकर वह पुराने जंगी जहाज़ की ओर जाता है, जहाँ से यहाँ क्रांति का आरंभ हुआ था. और फिर, पुल पार करने के बाद, न जाने किस तरफ़ चल पड़ा. पैसेंजर को यहाँ अच्छा न लगता, और तुर्गून फुर्ती से इस इण्डस्ट्रियल एरिया से निकलता है.
पैसेंजर तब भी नहीं उठता जब पेट्रोल पम्प के पास तुर्गून गाड़ी रोकता है, और, हालाँकि कार की शैफ्ट में कोई प्रॉब्लम है, तुर्गून पैसेंजर को नेवा के किनारे की सैर करवाना अपना कर्तव्य समझता है. पहले वह नेवा के किनारे-किनारे पूरब से पश्चिम की ओर जाते हैं (इस समय

03.10

नेव्स्की प्रॉस्पेक्ट पर भी बहुत कम गाड़ियाँ चल रही हैं और पैदल चलने वाले तो बिल्कुल ही नहीं हैं), और फिर वह पैसेंजर को नेवा के किनारे-किनारे पश्चिम से पूरब की ओर ले जाता है. पूरबी छोर पर उसे याद आता है कि इस सड़क पर, जिसे कोन्नाया स्ट्रीट कहते हैं, एक प्रसिद्ध इमारत है. वैसे तो ये किसी साधारण इमारत ही की तरह है, ऐसी इमारतें पीटरबुर्ग में अनगिनत हैं, मगर उसके लिए ये ख़ास है. उसकी दीवार पर स्ट्रा से साबुन के बुलबुले उड़ाते हुए बच्चे की तस्वीर बनी है. पीटरबुर्ग में तो सब कुछ बड़ा कठोर है, मगर तुर्गून को यह तस्वीर गुदगुदा गई. और वह अब

04.02

हौले से मुस्कुराता है.
कपितोनोव आँखें खोलता है. 

तुर्गून ऊँगली से नक्काशी की ओर इशारा करता है, मगर शब्दों में समझा नहीं सकता. वह सिर्फ एक ही शब्द कहता है:
 “तस्वीर.”
कपितोनोव नज़र उठाता है – देखता है – सिर हिलाता है.
और कहता है:
 “चल, घर ले चल.”
 “क्या समर-गार्डन दिखाऊँ?”
 “ठीक है,” कपितोनोव कहता है, और आँखें बन्द कर लेता है.
 04.51

  “तुर्गून, क्या मैंने तुम्हें पैसे दे दिए?”
 “हाँ, हाँ, अच्छे पैसे दिए हैं.”
 “तेरा नाम बड़ा भारी-भरकम है – तुर्गून. क्या तुझे मालूम है कि इसका क्या मतलब है?”
 “मालूम है,” तुर्गून जवाब देता है. “जो ज़िन्दा है.”
 “सिर्फ ज़िन्दा है?”
 “जो ज़िन्दा है. धरती पर चलता है.”
 “ऐसा ही होना चाहिए. और मैंने सोचा, कोई लीडर होगा. विजेता.”
 “नहीं. जो ज़िन्दा है.”
 “अच्छा, ऐसे ही रहो, जो ज़िन्दा है. थैंक्यू.”                        

कपितोनोव को याद नहीं कि वह अपने कमरे तक कैसे पहुँचा और, सिर्फ ओवरकोट उतार कर बिस्तर में दुबक गया.

10.00

ब्रेकफ़ास्ट नींद की भेंट चढ़ गया. बाकी की चीज़ें भी वह नींद के कारण खो देता.

11.09 

कागज़ पर नज़र डालकर कपितोनोव खिड़की की ओर बढ़ता है:
 “मुझे इन्वेस्टिगेटर च्योर्नोव के पास जाना है.”
 “क्या सम्मन पे?”
 “नहीं इन्विटेशन है.”
कपितोनोव के पासपोर्ट को पढ़ने के बाद, ड्यूटी-ऑफ़िसर चोंग़ा उठाता है, कुछ देर किसी से बात करता है.
 “रूम नं 11.”
इन्वेस्टिगेटर च्योर्नोव, मेयर ऑफ़ जस्टिस, ऑफ़िस की मेज़ पे बैठा है, उसके सामने कम्प्यूटर रखा है. इन्वेस्टिगेटर की पीठ के पीछे, कमरे के कोने में गन्दे-हरे रंग की बड़ी भारी सेफ़ रखी है, उसके ऊपर माइक्रोवेव और इलेक्ट्रिक-केटल है. इन्वेस्टिगेटर का चेहरा हाइपर टेंशन के मरीज़ जैसा फूला-फूला है.
 “बैठिए, येव्गेनी गेनाद्येविच. ये तो अच्छा हुआ कि आप भागे नहीं. मगर देर करना – बुरी बात है.”
कपितोनोव ख़ाली कुर्सी को मेज़ से दूर खिसका कर उस पर बैठ जाता है. कमरे में एक और कुर्सी है, मगर उस पर बैग रखी है.
 “आप तो कल जाने वाले हैं ना, क्या टिकट खरीद लिया है?”
 “कल क्यों? आज ही.”
 “आज,” इन्वेस्टिगेटर ने बिना झिझके कहा. “ये कुछ समझ में नहीं आता...”
कपितोनोव ख़ामोश रहता है. ये कहना ठीक नहीं है, कि फ्लाइट ढ़ाई घण्टे बाद है, ख़तरनाक होता, उसे पकड़ कर बन्द भी कर सकते थे.
 “पहले मुझे इस बात का जवाब दीजिए. क्या ‘तालाब’ के साथ आपके संबंध अप्रिय थे?”
 “नहीं, हमारे संबंध अप्रिय नहीं थे.”
 “तो फिर बताइए, आप दोनों के बीच वहाँ हो क्या रहा था. और ये भी, संक्षेप में, कि आप दोनों ही वहाँ, गोदाम में, कैसे पहुँचे, बगैर किसी प्रत्यक्षदर्शी के.”
 “जानते हैं, मैं दो अंकों वाली संख्याएँ बूझता हूँ.”
 “हाँ, मुझे इस बारे में बताया गया है.”
 “कॉन्फ़्रेन्स थी. इंटरवल था. इंटरवल ख़त्म हो रहा था, सेशन शुरू होने में सिर्फ पाँच मिनट बचे थे. ‘तालाब’ मेरे पास आया और बोला, कि अभी काफ़ी  समय है दिखाने के लिए...मतलब, वो, जिसका मैंने उससे वादा किया था...इससे पहले...स्क्रीन रखकर. और उस कमरे में था एक पार्टीशन, एक बुलेटिन-बोर्ड, उस पर नए साल का इश्तेहार लटक रहा था...”
 “नए साल वाला?”
 “हाँ, पुराना. और ये पार्टीशन, ‘तालाब’ की राय में, हमारे लिए स्क्रीन का काम दे सकता था. ‘तालाब’ ये सोचता था, कि उसके चेहरे पर, जैसे, लिखा होता है, कि वह क्या सोच रहा है...और मैं पढ़ सकता हूँ, कि उसने कौन सी संख्या सोची है. इसीलिए स्क्रीन की ज़रूरत थी. मतलब, उस परिस्थिति में, वह पार्टीशन...हम उसे सरका कर कमरे के बीचोंबीच ले आए. ‘तालाब’ उसके पीछे चला गया, मैं इस तरफ़ रह गया. मैंने उससे दो अंकों वाली संख्या सोचने की विनती की, हमेशा की तरह. उसने सोचा 21. फिर उसने एक और संख्या सोची, और मैंने वह भी बूझ ली, अब याद नहीं है कि कौन सी थी.”
“ताज्जुब की बात है कि आपको याद नहीं है.”
 “मगर मैं याद क्यों रखूँ? 21 भी मुझे इसलिए याद रही, क्योंकि ये ‘ब्लैकजैक’35 है. हमने इस बारे में बहस भी की. वह ताशों वाले जादू करता था, और उसके लिए इस संख्या का महत्व था. मगर, उसे लग रहा था कि वह किसी न किसी तरह अपना राज़ खोल रहा है. कुछ संदर्भों से, जैसे नज़र से, आवाज़ से...तीसरी बार हमने ये तय किया कि पार्टीशन के पीछे वह ख़ामोश रहेगा, और मैं बोलता रहूँगा, जैसा हमेशा करता हूँ. मैं उसे न देख रहा हूँ, न सुन रहा हूँ, ऐसा प्रयोग, समझ रहे हैं? और उसने सोचा : 99.”      
यहाँ विस्तार से बताइए.”
“मैं पार्टीशन के पीछे से उसे कोई संख्या सोचने के लिए कहता हूँ, दो अंकों वाली. वह ख़ामोश रहता है. तब मैं उसमें पांच जोड़ने के लिए कहता हूँ. वह ख़ामोश रहता है. मैं कुछ देर इंतज़ार करता हूँ और इस योग में से तीन घटाने के लिए कहता हूँ. फिर मैं चुप रहता हूँ और कहता हूँ: आपने 99 सोचा था. और तभी फर्श पर धम् की आवाज़ सुनता हूँ.”
 “समझ गया. एक बात समझ में नहीं आई. आपको कैसे मालूम कि उसने 99 ही सोचा था?”
 “मालूम है, बस, इतना ही.”
 “मतलब, आप ये कहना चाहते हैं कि उसे आपके दो 9 ने मार डाला?”
 “पहली बात, मेरे नहीं, बल्कि उसके, और दूसरे, ऐसी कोई भी बात मैं नहीं कहना चाहता. आप मुझ पर उन विचारों को लाद रहे हैं, जो मेरे नहीं हैं.”
 “ठीक है. और आपने उसे क्यों पहले पांच जोड़ने को और बाद में तीन घटाने की आज्ञा दी?”
 “आज्ञा नहीं दी, बल्कि विनती की.”
 “हाँ. क्यों”
 “मैं इसका जवाब नहीं दे सकता.”
 “क्यों नहीं दे सकते?”
 “ऊफ़. चलिए, ऐसा समझ लीजिए. ये मेरा प्रोग्राम है. सिर्फ मेरा, लेखक का. वह कॉपीराइट कानून से सुरक्षित है. प्लीज़, मुझ पर इसे समझाने के लिए दबाव न डालें, कि क्यों और कितने जोड़ने के लिए मैं कहता हूँ, और क्यों और कितने घटाने के लिए कहता हूँ.”
 “आपका सीक्रेट है.”
 “क़रीब-क़रीब वही समझ लीजिए.”
 “मैं भी एक जादू जानता हूँ. देखिए.”
मेयर पेन्सिल उठाता है और, दोनों हथेलियों को एक दूसरे के ऊपर चिपका कर उसे अँगूठों से दबाता है. इसके बाद हथेलियों को इस तरह से घुमाता है कि एक अँगूठा दूसरे का चक्कर लगाता है – इस प्रक्रिया में पेन्सिल 180 डिग्री घूम जाती है और वह नीचे से दोनों अंगूठों द्वारा हथेलियों के बीच दबी हुई प्रतीत होती है - मेज़ के समांतर तल पर और कपितोनोव की ओर तनी हुई.”
 “आप दुहराइए.”
कपितोनोव इन्वेस्टिगेटर के हाथों से पेन्सिल लेता है और उसी ट्रिक को दुहरा नहीं पाता है. उसके हाथ बेडौल तरीके से घूमते हैं.
 “ये सिर्फ इसलिए, कि आपके हाथों की मूवमेन्ट किसी दूसरे धरातल पर होती है,” मेयर अपनी ख़ुशी को छुपा नहीं पाता. “आपकी गतिविधियाँ बाईं ओर होती हैं, जबकि मेरी – दाईं ओर. है ना?”
कपितोनोव ने चुपचाप पेन्सिल मेज़ पर रख दी.
 “देखिए, आपको विश्वास नहीं हुआ कि हमारे हाथों की गतिविधि भिन्न-भिन्न धरातलों पर होती है, तो मैं क्यों विश्वास कर लूँ कि उसने 99 ही सोचा था?”
 “इससे क्या फ़रक पड़ता है, कि उसने क्या सोचा था. चाहे 27 ही सही.”
“अब आप विषय से हट रहे हैं.”
कपितोनोव ख़ामोश रहता है, हालाँकि इन्वेस्टिगेटर को किसी ज़ोरदार प्रतिक्रिया की अपेक्षा थी.
 “दिखाइए, प्लीज़.”
 “क्या दिखाऊँ?”
 “आपका जादू. आप और क्या दिखा सकते हैं?”
 “मैंने वादा किया है कि उसे अब कभी भी नहीं दिखाऊँगा.”
 “आपने मुझसे कोई वादा नहीं किया है. इसे इन्वेस्टिगेटिंग एक्सपेरिमेंट समझ लीजिए.”
 “क्या मैं दिखाने के लिए बाध्य हूँ?”
 “ओह, अचानक ये ‘बाध्य’ क्यों? ऐसा करेंगे तो हम दोनों के लिए बेहतर होगा. आपके लिए – ख़ासकर.”
 “ईमानदारी से कहूँ, तो जी नहीं चाहता.”
 “जान लीजिए कि क्या बात है. ‘जी नहीं चाहता’ को छोड़ दीजिए. हम कोई बच्चों के खेल तो नहीं खेल रहे हैं.”
 “कोई संख्या सोचिए,” थके हुए सुर में कपितोनोव कहता है, “दो अंकों वाली.”
 “और?”
 “उसमें सात जोड़िए.”
 “पाँच क्यों नहीं?”
 “क्योंकि सात ही जोड़ना है.”
 “जोड़ दिए.”
 “दो घटाइए.”
 “मान लेते हैं.”
 “क्या ‘मान लेते हैं’? आपने 99 सोचा था.”
 “इसमें क्या जादू है?”
 “आपने 99 सोचा था,” कपितोनोव ने दुहराया.
 “ये तो कोई मच्छर भी समझ सकता है. जो कुछ भी हुआ, उसके बाद मैं और क्या सोच सकता था?”
 “जो कुछ हुआ, उसके बाद आपने 99 का अंक सोचा, इसमें मेरा कोई क़ुसूर नहीं है.”
 “मैं आप को क़ुसूरवार घोषित भी नहीं कर रहा हूँ.”
ये आख़िरी वाक्य कुछ ज़्यादा कठोरता से कहा गया था – उसका लहज़ा मतलब से मेल नहीं खा रहा था.
 “पहले किसी ने भी 99 नहीं सोचा था. वो पहला था.”
मगर ये स्वीकारोक्ति के समान प्रतीत हुआ. कपितोनोव को स्वयम् से ऐसे लहज़े की उम्मीद नहीं थी.
 “मैं दूसरा हूँ,” इन्वेस्टिगेटर कहता है. “तो एक छोटी सी प्रॉब्लेम है. उसने सोचा 99 – और वह मॉर्ग (मुर्दाघर) में है, और मैंने सोचा – 99 – और आप देख रहे हैं, कि ज़िन्दा हूँ, तन्दुरुस्त हूँ, मेज़ के पीछे बैठा हूँ और आगे भी ज़िन्दा रहना चाहता हूँ. क्या आपको ये अजीब नहीं लगता?”   
 “आप मुझसे क्या सुनना चाहते हैं? आपको क्या चाहिए? आप मुझसे क्या निकलवाना चाहते हैं?”
 “नहीं, कुछ भी निकलवाना नहीं चाहता. सिर्फ, इस बात पर ज़ोर देना, कि उसने 99 ही सोचा था – जल्दबाज़ी होगी. आप इस बारे में बहुत ज़्यादा सोच रहे हैं.”
 “उम्मीद करता हूँ कि जाँच हो चुकी होगी. क्या मृत्यु के कारण का पता चला?”
 “मृत्यु के कारण का यहाँ क्या काम है? उसके बारे में तो आप के बिना भी फ़ैसला कर लेंगे.”
इन्वेस्टिगेटर मेज़ की दराज़ बाहर निकालता है, वहाँ से हाइजिनिक नैपकिन्स का पैक निकालता है, एक नैपकिन लेकर उसमें नाक छिनकता है, डस्ट-बिन में फेंकता है.
 “आयडिया ये है कि आपसे ये ग्यारंटी ली जाए कि आप शहर छोड़कर बाहर नहीं जाएँगे. मगर, आप यहाँ, मेरे सामने, आए ही क्यों? जाइए अपने...मालूम नहीं, कहाँ. मगर पहले लिख कर – सब कुछ, जैसा हुआ था.”
     
   
कपितोनोव के सामने कोरा कागज़ पड़ा है.
 “ठहरिए. मैं समझ सकता हूँ कि आप क्या लिखने वाले हैं. बाद में प्रॉब्लेम सुलझा नहीं पाएँगे. आप लिखिए - सारांश में, मोटे तौर पर. बात कर रहे थे. और अचानक उसकी तबियत बिगड़ गई. वो मर गया.”
 “बिना जादू के?”
 “बिल्कुल बिना जादू के,” इन्वेस्टिगेटर कहता है.
कपितोनोव चार वाक्यों में घटनाओं का स्पष्टीकरण देता है – संक्षेप में, स्पष्ट तौर पे.
 “और ये किसलिए? ये कोष्ठक?” -  इन्वेस्टिगेटर ने टेक्स्ट के आरंभ में और फिर अंत में भी धनु-कोष्ठक देखे. हस्ताक्षर के साथ क्या हुआ? क्या आप हमेशा धनु-कोष्ठकों के बीच में हस्ताक्षर करते हैं? किसलिए?”
 “चलता है,” कपितोनोव कहता है.
13.45

अचरज की बात ये नहीं थी कि वह हवाई अड्डे पर वक़्त से पहले पहुँच गया, अचरज की बात ये थी कि मेटल-डिटेक्टर की कमान के पार जाना संभव नहीं हो रहा है. उसने मोबाइल फ़ोन बाहर निकाल कर रख दिया है, और जेब से सारी चिल्लर निकाल दी है, और बेल्ट भी उतार दिया है, मगर ये बेवकूफ़ कमान बजे जा रही है, बजे जा रही है.
 “शायद आपके जिस्म में कोई धातु फ़िक्स की गई हो?”
और यहाँ कपितोनोव पल भर के लिए कांप गया – उसे शक हुआ कि कहीं ये भेस बदले हुए माइक्रोमैजिशियन्स उसे फ़ेस-, मेटल- आदि जाँचों से नहीं गुज़ारेंगे: और, वाक़ई में, पेट में भारी ‘नट’ का पता लगा लेंगे, जिसके बारे में एक बुरे ख़याल ने उसे परेशान कर रखा था.
हाथ वाले मेटल-डिटेक्टर से गुज़र रहे कपितोनोव के जिस्म का एक भी हिस्सा नहीं झनझनाता – जैसे कपितोनोव के भीतर कोई प्रतिक्रिया आरंभ हो गई है, जो सन्देहास्पद कारणों को निष्क्रिय कर रही है.
मगर सभी कारणों को नहीं.
उसे इन्ट्रोस्कोप से गुज़रते हुए पर्स को खोलने के लिए कहा गया. उसमें छोटी सी ब्रीफ़केस क्यों रखी है? इसलिए, कि पूरी तरह पर्स में समा गई, और कपितोनोव ने एक लगेज कम करने का फ़ैसला कर लिया.
ये तो अच्छा हुआ कि ब्रीफ़केस में ऐसी कोई चीज़ नहीं है – कैबेज के कटलेट्स भी नहीं हैं.
कपितोनोव ख़ुद भी नहीं जानता, कि इस ब्रीफ़केस को वह मॉस्को क्यों ले जा रहा है. क्या उसे इस ब्रीफ़केस की ज़रूरत है? मगर अब इसे हवाई अड्डे की बिल्डिंग में भी तो नहीं छोड़ा जा सकता.
वह वहाँ से दूर नहीं जा पाया – अजीब सी यूनिफॉर्म में गश्ती दल के दो आदमियों ने पासपोर्ट दिखाने के लिए कहा. एक के हाथ में जंज़ीर से बंधा कुत्ता था, जो कुछ कर सकता था – कम से कम अनगिनत पैसेंजर्स का ध्यान अपनी ओर आकर्षित नहीं कर रहा था.
 “क्या मुझमें कोई कमी नज़र आ रही है?” कपितोनोव स्वयम् पर ध्यान न देने की, और अपनी तरफ़ से – कुत्ते का ध्यान आकर्षित न करने की कोशिश करते हुए पूछता है.        
  “क्या आपको यक़ीन है, कि ये पासपोर्ट आपका है?”
 “वहाँ मेरी फ़ोटो है!”
 “सिर्फ इसीलिए?”
ये तो अच्छा है कि कुत्ता उसकी ओर ध्यान नहीं दे रहा है.
 “और हस्ताक्षर!”
धारक को पासपोर्ट लौटा देते हैं:
 “हैप्पी जर्नी, येव्गेनी गेनाद्येविच.”
रजिस्ट्रेशन बिना किसी झंझट के पूरा हो गया. कॉफ़ी पीने लायक समय है, मगर एक फ़ेस-टू-फ़ेस मुलाक़ात ने इससे भी परावृत्त कर दिया:
 “वॉव! क्या बात है?”
ज़िनाइदा और झेन्या, उसका डाउन बेटा.
 “आपकी मैथेमेटिक्स वाली कॉन्फ़्रेन्स कैसी रही?” ज़िनाइदा दिलचस्पी दिखाती है.
 “ठीक रही. और आप यहाँ क्या कर रही हैं?”
”हाँ, देखिए, सब गड़बड़ हो गया, बहन को स्ट्रोक आ गया, फ़ौरन वोरोनेझ की फ़्लाइट पकड़नी है. और वहाँ से फिर घर, जैसे भी होगा.”
 “आप क्या कह रही हैं! रुकिए, आपकी बहन तो पीटर्सबुर्ग में है.”
 “ये दूसरी है.”
 “अफ़सोस है,” कपितोनोव कहता है. “लगता है कि आप सिर्फ एक दिन पीटरबुर्ग में रहीं?”
 “कआब्लिक, कआब्लिक!” हमनाम येव्गेनी चहकता है.
कपितोनोव उससे कहता है:
 “कआब्लिक देखा?”
 “क्या तुमने कआब्लिक देखा?” सवाल कपितोनोव की ओर मुड़ जाता है.
 “कैसे नहीं देखता,” कपितोनोव कहता है.
याद आता है.  
“ये ले. अब ये तेरी हो गई.”
छड़ी लेकर, हमनाम हेन्या उसे ऐसे झटकता है, जैसे वो थर्मामीटर हो, और कुछ अपना ही, समझ में न आने वाला, बड़बड़ाने लगता है.
 “लिखा है, कि जादुई है.”
 “मैं समझ रही हूँ,” ज़िनाइदा खोई-खोई सी मुस्कुराती है. “मगर आपने ‘सिर्फ एक दिन’ क्यों कहा? हम तो यहाँ एक हफ़्ते से ऊपर रहे.”
 “क्या मैं आपके साथ यहाँ परसों नहीं आया था – इस शनिवार को?”
 “इस शनिवार को कैसे?...इस शनिवार को नहीं, बल्कि उस शनिवार को...आप क्या मज़ाक कर रहे हैं?”
कपितोनोव मज़ाक नहीं करता. जब और लोग मज़ाक कर रहे होते हैं, उसने, शायद, समझना बन्द कर दिया है. वह बिदा लेकर वहाँ से चल पड़ता है.
14.18

कपितोनोव डिपार्चर हॉल में बैठा है, बेटी को मैसेज भेजना चाहता है. न जाने क्यों उसे लगता है कि अपने पहुँचने के बारे में उसे बता देना चाहिए. कुछ ऐसे: “फ्लाइट से आ रहा हूँ.” या ऐसे: “डिपार्चर हॉल. जल्दी.”
जल्दी ही सभी इलेक्ट्रिक उपकरणों को बन्द करने की घोषणा की जाएगी.
डिपार्चर हॉल में कुछ लोग जल्दी-जल्दी जी भरके बात कर लेना चाहते हैं. मुफ़्त अख़बारों वाले स्टैण्ड के पास बच्चे भाग रहे हैं. शीशे के पार काला आसमान है. हवाई जहाज़ हर मौसम में टेक-ऑफ़ करते हैं.
{{{‘तालाब’ कौन है?}}}
ये मरीना है.
ये जानती है कि आपकी विकेट कैसे डाउन की जाए. कपितोनोव फ़ौरन जवाब नहीं देता.
 {{{ वो मर गया. तुम क्यों पूछ रही हो?}}}
मरीना – उसे:
 {{{ वो ज़िन्दा है.}}}   
उसे फिर से ऐसा लगता है कि पेट में एक भारी ‘नट’ है.
 {{{ क्या तुम्हें यक़ीन है?}}}
इंतज़ार करता है. जवाब आता है.
{{{ वो मेरे मूखिन का भाई है और वे दोनों मंगोलिया में रहते हैं, खदान में काम करते हैं.}}}
 “आसमानी क्षेत्र,” कपितोनोव ज़ोर से पराई आवाज़ में कहता है.
मेसेज आता है:
{{{ थैंक्यू.}}}
{{{ किसलिए?}}}
जवाब आता है:
 {{{ हर चीज़ के लिए.}}}
कपितोनोव मोबाइल स्विच-ऑफ़ कर देता है. कुछ करना चाहता है. फिर से ‘ऑन’ करता है.
आन्का को लिखता है:
{{{ तुमसे बहुत प्यार करता हूँ}}}
क्या ‘पापा’ शब्द लिखे? मगर सोचता है: समझ जाएगी.
फ्लाइट के तीस मिनट लेट होने की घोषणा होती है.
अब ये और किसलिए? क्या हो गया? क्या हो रहा है?
 ‘और मैं भी तुमसे बेहद.’
सिर्फ टेक्स्ट – बिना कोष्ठकों के.  
वह उठकर हॉल में घूमने लगता है – इस डिपार्चर हॉल में, इंतज़ार करता है. घड़ी की तरफ़ देखता है.


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टिप्पणियाँ

1.       सप्सान
2.                एडमिरैल्टी
3.       ईवेंट्स-आर्किटेक्ट – इस व्यक्ति ने अपना कुलनाम यही बताया है. Архитектора Событий
4.       तालाब – रूसी में ये नाम है वोदोयोमोव, जिसका तात्पर्य है तालाब. चूँकि उपन्यास में ऐसे कई कुलनाम हैं, जिनका उस वस्तु के गुणों से संबंध है. इसीलिए अनुवादिका ने नामों का भी अनुवाद किया है. Водоемов
5.       नेक्रोमैन्सर5 - (ओझा-अनु.) Некромант
6.       काल-भक्षक6 -  Пожиратель Времени
7.       काला-वन - Чернолес
8.       कार्ड – रूसी शब्द है ‘कार्ता’ जिसका एक और अर्थ होता है – नक्शा. जब इसके साथ ‘खेलने वाला’ जोड़ दिया जाता है, तो यह ‘ताश का पत्ता’ बन जाता है.
9.       एव्गेनी को प्यार से संक्षेप में ‘झेन्या’, ‘झेनेच्का’ भी कहते हैं.
10.   पीटरबुर्ग को बोलचाल में अक्सर पीटर कह देते हैं
11.   योघर्ट11 - चूंकि बात तोडोर के सही उच्चारण की हो रही है, अत: इस शब्द को वैसे ही रहने दिया है, जैसा मूल पाठ में है. ‘दही’ शब्द के प्रयोग से स्वराघात वाली बात स्पष्ट नहीं हो सकती थी. 
12.   आइसिकल्स12 - क्रमशः टपकते हुए  जल बिन्दुओं के जमने से बनी बर्फ की छड़ी, बर्फ की कलम.
13.                        लैब्नित्ज़ (6146-1716) – प्रसिद्ध जर्मन दार्शनिक एवम् गणितज्ञ, मैथेमेटिक्स के इतिहास में इनका महत्वपूर्ण स्थान है.
14.   रीगेंट - एक रासायनिक पदार्थ
15.   सार्डीन – एक प्रकार की छोटी मछली, जो प्रायः डिब्बा-बन्द की जाती है.
16.    ‘सेका’ – ताश का एक खेल जो सोवियत संघ में लोकप्रिय था. 
17.   “फूल” – यह भी ताश का एक आसान खेल है.
18.   एक हाथ का डाकू – कैसीनो में खेला जाने वाला जुए का खेल. इसे ऑनलाइन भी खेला जाता है.
19.   मख्खी – रूसी में मक्खी के लिए शब्द है – मूख़ा. मूखिन इसी से बना है.
20.   लूडोमैनिया – लूडो खेलने की सनक
21.   रूलेट – जुए का एक खेल-विशेष
22.   ज़्याब्लिक – चैफ़िन्च ( ब्रिटेन में पाई जाने वाली) छोटी गाने वाली चिड़िया
23.   नार्सिसिस्ट – स्वयम् पर मोहित होने वाला.
24.   कपितोन – यहाँ कपितोनोव से तात्पर्य है.
25.   आर्टिस्ट-पेरेद्विझ्निक – उन्नीसवीं शताब्दी के रूसी वास्तववादी- स्कूल का पेंटर, जिनमें लोकतंत्रिक झुकाव भी था.
26.  फ़िबोनाची क्रम लिओनार्दो फिबोनाची द्वारा आविष्कृत संख्याओं का निम्नलिखित अनुक्रम फिबोनाची श्रेणी (Fibonacci number) कहलाता हैं:
  परिभाषा के अनुसार, पहली दो फिबोनाची संख्याएँ 0 और 1 हैं। इसके बाद आने वाली प्रत्येक संख्या      पिछले दो संख्याओं का योग है। कुछ लोग आरंभिक 0 को छोड़ देते हैं, जिसकी जगह दो 1 के साथ अनुक्रम की शुरूआत की जाती है।
27.   एमिल्या  - ‘मूर्ख एमिल्या और मछली’ नामक रूसी लोक कथा का पात्र.
28.   श्राम – इस शब्द का मतलब है – घाव आदि का निशान
29.    फ़ेरो ख़ुफ़ू – प्राचीन इजिप्ट का शासक, जिसे पिरामिड्स बनवाने का श्रेय जाता है.
30.   बोत्तिचेल्ली (1445-1510) – रेनासां कालखण्ड का प्रसिद्ध इटालियन चित्रकार.
31.    मेदूसा गॉर्गोन – ग्रीक पौराणिक कथाओं की पात्र, जो शैतान थी. उसके सिर पर बालों के स्थान पर साँप थे. जो भी उसकी तरफ़ देखता, वह पत्थर बन जाता. पर्सियस ने उसका सिर काटकर अपने शत्रुओं के ख़िलाफ़ ढाल के रूप में उसका उपयोग किया था.
32.  ब्लैकजैक – कैसिनो में खेला जाने वाला ताश का लोकप्रिय खेल.

32.