सफ़ेद रिबन्स
क्स्यूशा
को घुन ने काट लिया.
बेहतर
होता कि ग्लेब को दो घुन काट लेते. उसने ऐसा ही कहा :
“बेहतर
होता अगर मुझे दो घुन काट लेते”.
क्स्यूशा
के नितम्ब पर घुन का हमला लगातार हो रही बारिश से भी ज़्यादा बुरा था, जिसने
बुधवार से शुक्रवार तक इन पाँच लोगों की छुट्टी बरबाद कर दी थी. और इसलिए नहीं कि
घुन अवश्य ही एन्सेफेलाइटिस के वायरस से संक्रमित होगा – क्स्यूशा को छोड़कर और
किसी का इस पर विश्वास नहीं था, सिर्फ ये जानना चाहिए कि
क्स्यूशा कैसी अतिसंवेदनशील है.
दान्या
और तान्या ने,
और डिज़ाइनर ज़ायनेर ने, ग्लेब को तो छोड़ ही
दीजिए, अपने-अपने तरीके से आहत क्स्यूशा को शांत करने की
कोशिश की, - डिज़ायनर ज़ायनेर ने, मिसाल
के तौर पर, कहा, कि उसे हर साल घुन
काटते हैं, और कुछ नहीं होता, अब तक
ज़िन्दा है; मगर क्स्यूशा को किसी के भी सांत्वनापूर्ण शब्दों
ने ढाढ़स नहीं दिया, उल्टे उसे ज़्यादा ही परेशान कर दिया –
उसे महसूस हुआ कि उसकी किस्मत के बारे में सभी एक जैसे उदासीन हैं, कोई भी, यहाँ तक कि ग्लेब भी उसे प्यार नहीं करता,
और उनके लिए मछली पकड़ना क्स्यूशा की ज़िंदगी से ज़्यादा महत्वपूर्ण
है.
सब समझ
गए : छुट्टियाँ बर्बाद हो गईं.
अगले कुछ
दिन मौसम बढ़िया रहने का पूर्वानुमान किया गया था. बारिश रात में ही रुक गई थी, दोपहर
होते-होते आसमान में एक भी बादल नहीं था, कल भी अच्छे मौसम
का वादा करते हुए अबाबीलें आसमान में ऊँचे उड़ रही थीं, और
सूरज, जो पूरे दिन बड़े प्यार से चमक रहा था, अंत में बादल के पीछे अस्त नहीं हुआ, बल्कि साफ़
आसमान में फिसलता हुआ चला गया, खेतों में टिड्डे शोर मचा रहे
थे, ये भी अच्छा संकेत है. तभी सूर्यास्त के समय एक घुन प्रकट
हुआ. आख़िरकार, अपना स्विमिंग सूट उतारने के लिए क्स्यूशा
तम्बू के भीतर रेंग गई और उसने रबर बैण्ड के बाहर वाले आधे नितम्ब पर, मतलब, जहाँ धूप से झुलसा रंग अंतरंग सफ़ेदी में मिल
जाता है, कोई ऐसी चीज़ महसूस की जो पहले नहीं थी – मस्से जैसी,
या फुन्सी जैसी. शीशे की सहायता से उसने असलियत का पता लगाया :
“ग्लेब!
तुम कहाँ घूम रहे हो? घुन मुझसे चिपक गया है!”
घुन बड़ा
था,
खूब फूला-फूला था, करीब-करीब बेर जितना बड़ा था,
मतलब वह पाँच-छह घण्टों से अपनी प्यास बुझा रहा था, और चूँकि चीज़ों को बड़ा करते समय शीशा उनका आकार बिगाड़ देता है, क्स्यूश्या को घुन एक राक्षस जैसा प्रतीत हुआ. उसने उसे पहले क्यों नहीं
महसूस किया, ये बात क्स्यूशा समझ नहीं पाई.
पूरी टीम
ने मिलकर उसे बाहर खींचने की कोशिश की – घुन को सूरजमुखी के तेल में डुबोने की
विधि से. सोच रहे थे, कि जब घुन को सांस लेने के लिए कुछ न बचेगा
(मगर साँस वह ले रहा था, चूँकि काट रहा था, तो ज़ाहिर है, पिछले अंग से), तो
वह ख़ुद ही क्स्यूशा के शरीर से अपना सिर बाहर निकाल लेगा. है ऐसा तरीका, हालाँकि निर्विवाद नहीं है. इस काम को प्रत्यक्ष रूप से करने की
ज़िम्मेदारी, ज़ाहिर है, ग्लेब ने निभाई,
तान्या लालटेन की रोशनी डालती रही, और बाकी
दोनों सलाह देते रहे. सब लोग क्स्यूशा की हिम्मत बढ़ा रहे थे : घुन जी भर के पी
चुका है, अभी अपने आप बाहर आ जाएगा. मगर ख़ुद-ब-ख़ुद न जाने
क्यों बाहर निकलने को तैयार नहीं था, बावजूद इसके कि
क्स्यूशा का अर्ध-नितम्ब तेल से लथपथ हो चुका था. ग्लेब को सुई और चिमटी का सहारा
लेना पड़ा.
“तुम
वहाँ पूरा छेद किए जा रहे हो!” क्स्यूशा हिनहिनाई. “देखो, कोशिश
करो कि उसका सिर अन्दर न रह जाए...”
“आराम से
लेटी रहो,”
ग्लेब ने हुक्म दिया.
आख़िरकार
घुन को बाहर निकाल लिया गया और उसे काँच के डिब्बे में रख दिया गया – आगे की जाँच
के लिए. क्स्यूशा बड़ी देर तक उस कीटक को देखती रही, उसे यकीन नहीं था, कि उसका सिर उसके जिस्म पर है.
“बिल्कुल
एन्सेफेलाइटिक.”
“असंभव,” ग्लेब ने कहा.
असल में
इसे लैब में भेजना चाहिए. मगर, पहली बात, कल
इतवार है, और दूसरी, कि कम से कम जिले
के केन्द्र तक पहुँचे कैसे? तराई से ऊपर जाना आज न तो ग्लेब
के लिए संभव हुआ, न ही दान्या के लिए – दोनों की ही कारें
पहली ही चढ़ाई पर स्थित एल्डर वृक्ष के पास नीचे फिसल गईं. बारिश के बाद जंगल के
तीन किलोमीटर लम्बे रास्ते से कच्चे रास्ते तक पहुँचना भी असंभव था. वे बुधवार को
ही समझ गए थे कि फँस गए हैं, जब आसमानी मुसीबत टूट पड़ी थी.
सूखे मौसम का इंतज़ार करने के अलावा और कोई चारा नहीं था (आज, अच्छी-ख़ासी धूप में काफ़ी कुछ सूख गया था), हद से हद –
ट्रैक्टर की उम्मीद की जा सकती थी, जिसके लिए भी कीचड़ में छप-छप
करते हुए बस्ती तक जाना पड़ेगा.
सामान्य
परिस्थितियों में – इसमें कोई ख़ास बात नहीं है, मज़ेदार कारनामा है. मगर
आपातकालीन स्थिति में समस्या खड़ी हो जाती है.
सबसे बड़ी
समस्या यह है कि ये समस्या क्स्यूशा की है.
इससे तो
बेहतर होता कि 22 घुन, 222 घुन ग्लेब को काट लेते.
“मुझे
पक्का यकीन है,
कि एन्सेफेलाइटिस वाला है. मुझे पता ही था, कि
ऐसा ही होने वाला है. और मुझे दिलासा देने की कोई ज़रूरत नहीं है! और तुम लोग पहले
कहाँ थे? वह इतने घंटों तक मुझे काटता रहा, और तुममें से किसी ने भी ध्यान तक नहीं दिया, जैसे
मैं बगल में हूँ ही नहीं. इसी तरह मर भी जाऊँगी, किसी को भी
पता तक नहीं चलेगा.
“तुम, बेशक,
बेहद अच्छी हो”, दान्या ने नकली गंभीरता से
जवाब दिया, “मगर ख़ुद ही सोचो, व्यक्तिगत
रूप से मैं कैसे ध्यान दे सकता था? मैं नम्र, शर्मीला हूँ. दिल में तुम्हारे लिए प्यार और सम्मान होने की वजह से,
तुम्हारे अद्वितीय नितम्ब से आँखें हटा ही लेता, कहीं तुम ये तो नहीं सोचतीं कि मैं सिर्फ उसीकी ओर देखता रहता हूँ?...और फिर ग्लेब? अगर, अचानक उसे
अच्छा न लगे तो?”
“बिना
ओछेपन के ज़्यादा अच्छा रहेगा,” तान्या ने कहा.
“देखा, तान्या
को भी जलन हो रही है.”
ये
बातचीत हो रही थी वोद्का पीते हुए, अलाव के पास. तालाब से कोहरा
किनारे की ओर बढ़ रहा था. सितारे एक-एक करके चमकने लगे थे. फोल्डिंग टेबल पर
मच्छरों को भगाने वाली बदबूदार कॉइल जल रही थी. डिज़ाइनर ज़ायनेर के धातु के सफ़री
गिलासों में पी रहे थे, जो एक दूसरे के भीतर समा सकते थे (जब
उन्हें वापस रखना होता) और आराम से चमड़े के खोल में समा जाते.
“पिओ, क्स्यूशा,
और निराशाजनक बातों के बारे में मत सोचो, अल्कोहोल
हर तरह के संक्रमण को ख़त्म कर देगा.”
क्स्यूशा
पी गई और अपने दुर्भाग्य के बारे में लोगों की उदासीनता पर अफ़सोस करते हुए सोने के
लिए टेन्ट में चली गई. उसके इस तरह जाने में किसी को कोई ख़ास बात नज़र
नहीं आई. रात गर्म होने के कारण उसने स्लीपिंग बैग को कम्बल में परिवर्तित कर लिया
(स्लीपिंग बैग में ये सुविधा थी). वह सुन रही थी कि कैसे अलाव के पास बैठकर वे
फ़िज़ूल की चीज़ों के बारे में बातें कर रहे हैं, मगर सिर्फ घुन
के बारे में कोई कुछ नही कह रहा है. तान्या न जाने क्यों हँस रही थी. खनखनाहट की
आवाज़, हाँलाकि सुनाई नहीं दे रही थी, मगर
एकदम सही-सही महसूस हो रही थी. एक बजे के बाद ग्लेब ने कहा, कि
सोमवार को जाएँगे. उसने कहा, कि अगर रास्ता सूख जाता है तो.
“अगर!”- क्स्यूशा ने अपमान से दुहराया.
मगर, बाद
में उन्हें पता चला कि ये बोतल आख़िरी थी. बड़ी देर तक इस बात पर यकीन नहीं हुआ,
बड़ी देर तक ढूँढ़ते रहे, दोनों कारों के दरवाज़े
भड़भड़ाते रहे. इस नतीजे पर पहुँचे कि बारिश का ही कुसूर है, वह
लम्बी खिंचती गई और उसने पूरी टीम का सारा हिसाब-किताब गड़बड़ कर दिया...तुम्हारे
साथ ऐसा ही होना चाहिए, क्स्यूशा ने सोचा.
अलाव
बुझा दिया. अपनी-अपनी जगह पर चल दिए.
डिज़ायनर
ज़ायनेर बड़ी देर तक अपने टेंट में रोज़मर्रा की मुसीबतों से उलझता रहा, अपनी
छोटी-मोटी, मगर आश्वस्त उपलब्धियों के बारे में कहता रहा.
दान्या और तान्या के टेंट से उनकी प्रसन्न चीखें सुनाई दे रही थीं. अकेला ग्लेब
कहीं चल पड़ा. वह सितारे देखने के लिए मैदान में जा सकता था, ये
ग्लेब की आदत ही थी, या फिर टॉर्च लेकर बेंतों वाले
बैकवाटर्स के पीछे जा सकता है, वहाँ झींगा मछली के लिए चारा
रखा हुआ है. क्स्यूशा इंतज़ार करती रही. जब वह आया, तब तक सब
शांत हो चुके थे. क्स्यूशा ने कहना चाहा कि टॉर्च से मच्छरों को आकर्षित न करे,
मगर उसने अपने आप को रोक लिया : जब दिमाग़ से नहीं सोचता, तो होने दो दोनों को ही तकलीफ़. वह लेट गया, कुछ देर
ख़ामोश रहा, फिर यूँ ही किसी फ़ालतू मनोवैज्ञानिक की तरह उससे
प्यार जताना चाहा. क्स्यूशा ने उसे हाथ से झटक दिया, और वह
फ़ौरन दूर हो गया.
आधी रात
को क्स्यूशा को जंगल से आ रही दर्दभरी चीख़ ने जगा दिया. जैसे कोई औरत चिल्ला रही
थी,
वो भी पागल औरत, क्योंकि ये चीख़ मदद के लिए
नहीं थी, न ही दर्द के कारण, न ही कोई
ऐसी चीज़ जो अकल से समझ में आ जाए, बल्कि कुछ पूरी तरह बेमतलब,
बेवजह, अगर सिर्फ उसमें सबको डराने का इरादा न
हो. मगर सब सो रहे थे, सिर्फ क्स्यूशा की नींद खुल गई थी.
शायद, रात का कोई पंछी हो, वर्ना तो ये
मानना पड़ेगा कि कोई पागल औरत जंगल में चल रही है और किसी वजह से चिल्ला रही है,
मगर क्या हमारे इलाकों में पंछी, रात को भी,
इस तरह से चिल्लाते हैं, अगर ये वाकई में पंछी
हो तो? ग्लेब शांति से खर्राटे ले रहा था, और, चाहे कितना ही क्स्यूशा का दिल उसे जगाने को चाह
रहा था, उसने ग्लेब को नहीं उठाया. वह पूरी तरह कम्बल के
भीतर दुबक गई और सोचने लगी : आने दो, आने दो इस पागल औरत को
तेज़ चाकू लेकर और सबके टुकड़े-टुकड़े करने दो, इनके साथ ऐसा ही
होना चाहिए. ऐसा ही होना चाहिए!
क्स्यूशा
सबसे अंत में उठी,
जब सूरज टेंट को गरम कर चुका था, धृष्ठ मक्खी
से अपने आप को बचाने के लिए स्लीपिंग बैग में चेहरा छुपाने की और हिम्मत नहीं थी.
उसने मक्खी को पकड़ने की कोशिश की और फ़ौरन याद आया, कि रात को
उसने वोद्का पी थी – बस, यही, करीब दो
पैग, और थोड़ी सी चढ़ गई थी. आईना भी कहीं गिर गया था, क्स्यूशा ने हवा भरने वाले गद्दे के नीचे भी देखा, मगर
हाथ धोने वाले बेसिन के साथ बर्च के पेड़ से लटक रहे गोल शीशे के पास जाने का मन
नहीं था, - क्स्यूशा ने अच्छी तरह हाथ से घुन के द्वारा काटी
हुई जगह को महसूस किया और, किन्हीं निष्कर्षों से बचते हुए सिर्फ
इसी स्पर्शरूपी अध्ययन पर ध्यान केंद्रित करने का फ़ैसला किया.
सब
नाश्ता कर चुके थे, और तान्या क्रॉकरी धो रही थी.
वे उसे
उठा भी सकते थे.
डिज़ायनर
ज़ायनेर अपनी बन्सी पर एक पाइक मछली पकड़ चुका था और एक और पकड़ने का वादा कर रहा था –
सूप के लिए.
आसमान
में हवाई जहाज़ की छोड़ी हुई सफ़ेद लकीर, जैसा कि दान्या ने गौर किया,
फ़ौरन बिखर गई, मतलब, कल
उन्होंने ठीक ही फ़ैसला किया था : मौसम सही होगा.
कल
समाचारों में बता रहे थे, कि मॉस्को के ऊपर बारिश नहीं होने
देंगे, इसलिए उत्सव और शानदार-कॉन्सर्ट होंगे.
असल में
समाचारों के बगैर अच्छी तरह आराम कर सकते हो. जो, कि मोटे तौर से वे लोग कर
रहे थे.
ग्लेब ने
मश्रूम्स चुनने के लिए जाने की पेशकश की. किसी एक को तो टेंट में रुकना था.
डिज़ायनर ज़ायनेर ख़ुशी से टेंट में रुक जाएगा और चार पाइक मछलियों को साफ़ करेगा, जिन्हें
वह निश्चय ही पकड़ लेगा.
तान्या
ने देखा कि कैसे एक साँप तैरते हुए तालाब पार कर रहा है. कौन सोच सकता था, कि
साँप ये भी कर सकते हैं? साँप का सिर पानी से बाहर निकल रहा
था. सब साँप को देखने चल पड़े, सिवाय क्स्यूशा के.
क्स्यूशा
ने दलिया खतम कर दिया. उसके लिए ख़ास तौर
से चाय की केतली अलाव के पास रखी गई थी, ताकि ठण्डी न हो जाए.
अकस्मात्
इस ग्रुप के सामने करीब पैंतालीस साल का एक अजनबी प्रकट हुआ, सबसे
पहले जिस पर सबकी नज़र पड़ी, वो थीं उसकी छितरी मूँछे और लाल
घुँघराली भँवे, और बाद में – कंधे पर लटकाया हुआ चपटा चमड़े
का बैग. वह किसी समझ में न आने वाले विभाग के युनिफॉर्म में था, मगर उसका रंग इतना उड़ चुका था, कि ये पहचानना भी
मुश्किल हो रहा था, कि यह युनिफॉर्म है. किसी ने भी ध्यान
नहीं दिया कि वह ढलान में कैसे उतरा था.
“नमस्ते.
मैं फॉरेस्ट-इन्स्पेक्टर हूँ. ये रहा मेरा आइडेन्टिटी कार्ड.
कृपया अपनी छुट्टियों के लिए भुगतान करें.”
फॉरेस्ट-इन्स्पेक्टर
किस हद तक फॉरेस्ट-इन्स्पेक्टर था, ये तो एक अलग ही सवाल है; मगर उसके परिचय के अंदाज़ से वह न सिर्फ फॉरेस्ट- इन्स्पेक्टर, बल्कि फॉरेस्ट-इन्स्पेक्टर
लग रहा था.
ये किसी
मज़ाक की तरह था.
“ये और
क्या तमाशा है?”
दान्या को गुस्सा आ गया. “हम पैसे क्यों दें?”
“हाँ,” तान्या भी तैश में आ गई, “किस कानून के तहत?”
फॉरेस्ट-इन्स्पेक्टर
ने पर्स में से फाड़ी हुई रसीदों का कट्टा निकाला.
“जिला
प्रशासन के निर्णय क्रमांक 227 के अनुसार. दस्तावेज़ दिखा सकता हूँ. साथियों!”
फॉरेस्ट-इन्स्पेक्टर एकत्रित लोगों से बोला. “प्लीज़, घबराएँ नहीं, रकम बड़ी नहीं है, आपको तकलीफ़ नहीं होगी! आप लोग
कितने हैं? पाँच? कितने दिनों से रह
रहे हैं? कितने दिन रहने का इरादा है?”
उसने बड़ी
फुर्ती से – वह भी मन ही मन – लोगों की संख्या का रूबल्स में किराए की दर से गुणा
कर लिया. परिणाम बताया:
पाँच सौ
चालीस रूबल्स. अगर आपके पास कैल्कुलेटर है, तो जाँच कर लें.”
“क्रेडिट
कार्ड्स लेंगे?”
धुले हुए चम्मचों वाला गिलास मेज़ पर रखते हुए तान्या ने मज़ाक किया.
डिज़ायनर
ज़ायनेर ने सबके लिए पैसे दे दिये, यह कहकर, कि
“बाद में हिसाब कर लेंगे”.
“ये रही
रसीद,”
और कुछ देर के बाद फॉरेस्ट-इन्स्पेक्टर
ने जवाब दिया : “क्रेडिट कार्ड्स हम नहीं लेते.”
क्स्यूशा
ने पूछा:
“क्या आप
जानते हैं,
कि रातों को औरत की आवाज़ में कौन चिल्लाता है?”
“तुम किस
बारे में कह रही हो, क्स्यूशा?” दान्या को
हैरानी हुई. “हमारे यहाँ तो सिर्फ तुम और तान्या ही औरत की आवाज़ में चिल्ला सकती हो.”
“अजीब
बात है. ये बताइये, प्लीज़ कि आज रात को, जब
मेरे साथी सो रहे थे, जंगल में कोई चिल्ला रहा था, जैसे कोई औरत हो. क्या ये उल्लू था?”
ऐसा लग
रहा था कि फॉरेस्ट-इन्स्पेक्टर
की अंकगणित से पक्की दोस्ती थी और उसे अंकों से प्यार था, वह
बोला :
“पचास
में से चालीस प्रतिशत ये उल्लू ही है.”
“और बाकी
के ...दस प्रतिशत?”
क्स्यूशा ने पूछा.
“बाकी दस
प्रतिशत कोई और हैं.”
“और, ये
बताइये, प्लीज़, कल मुझे एक घुन ने काट
लिया, क्या यहाँ एन्सेफेलाइटिस के संवाहक हैं?”
“सही
आँकडे तो नहीं पेश कर सकता, मगर ऐसी घटनाएँ हुई हैं. पिछले साल
अक्सर होता था.”
“अरे, “अक्सर होता था” मतलब इक्का-दुक्का घटना होती थी,” ग्लेब
बीच में टपक पड़ा. “एक हज़ार डंकों में से एक ख़तरनाक हो सकता है.”
“हाँ,
करीब-करीब ऐसा ही,” फॉरेस्ट-इन्स्पेक्टर
बोला. “पचास का एक प्रतिशत.”
“आप बडे
अजीब तरीके से गिनती करते हैं,” डिज़ायनर ज़ायनेर ने कहा. “क्या आप,
सौ में से दो प्रतिशत कहना चाहते हैं?”
“सीधे
सीधे दो प्रतिशत,”
दान्या ने कहा.
“सौ में
से?”
“ज़ाहिर
है,
सौ में से.”
“मगर यह
कह रहा है,
पचास में से.”
फॉरेस्ट-इन्स्पेक्टर
ने बहस नहीं की. उसने समझौते के सुर में कहा:
“हर एक
प्रतिशत के पीछे एक इन्सान है.”
डिज़ायनर
ज़ायनेर और ग्लेब ने एक दूसरे की ओर देखा, ग्लेब ने अपना सिर खुजाया.
“सही है,” क्स्यूशा ने कहा, “ और क्या पेर्वोमायस्क में
सेनिटरी एपिडेमिओलॉजिकल सेंटर है...पता नहीं क्या ...लैबोरेटरी, जहाँ घुन को परीक्षण के लिए दे सकें? और ख़ुद को भी
डॉक्टर को दिखा सकें?”
“तुझे
पेर्वोमायस्क क्यों चाहिए?” ग्लेब ने कहा. “कल सोमवार है. सूख
जाएगा – और रीजनल हॉस्पिटल चले जाएँगे. कोई सौ किलोमीटर्स. फिर वापस लौट आएँगे.”
“कल देर
हो जाएगी,
मेरे सूरज. आज ही जाना ज़रूरी है,” क्स्यूशा ने
कहा. “क्या आज पेर्वोमायस्क के लिए बस है?”
फॉरेस्ट-इन्स्पेक्टर
ने रहस्यमय अंदाज़ में कहा:
“समझता
हूँ,
कि है. अस्पताल में.”
सब तन
गए. ये अंदाज़ लगाना पड़ा, कि ये जवाब क्स्यूशा के पहले सवाल के लिए था
(पेर्वोमायस्क में सेनिटरी एपिडेमिओलॉजिकल सेन्टर के बारे में); फिर उसने बस के बारे में बताया:
“टाइम
टेबल के हिसाब से – हाँ है.”
“क्या
आपको टाइम-टेबल मालूम है.” क्स्यूशा ने पूछा.
“बेशक,” फॉरेस्ट-इन्स्पेक्टर
दान्या और ग्लेब से मुख़ातिब हुआ. “ दिन में तीन बार : सुबह सात बजकर पचास मिनट पर, दोपहर
में बारह बजकर तीस मिनट पर और शाम को...”
“माफ़
कीजिए,
उन्हें इसमें दिलचस्पी नहीं है.प्लीज़, मुझे,
घुन ने काटा है – सिर्फ मुझे.”
“तुम ऐसा
क्यों कह रही हो?”
ग्लेब ने कहा.
क्स्यूशा
की ओर देखकर फॉरेस्ट-इन्स्पेक्टर
ने अपनी बात जारी रखी:
“...और
शाम को छह बजने में दस मिनट पे. अगर जायेंगे, तो स्टॉप खदान के पास है,
यहाँ से करीब साढ़े तीन किलोमीटर्स. हाँलाकि आज दिन वाली शायद ना भी
हो. आप तो जानते हैं कि आज कौनसा दिन है. गाँवों में सब अपने-अपने घरों में बैठते
हैं. इंतज़ार करते हैं, कि कब लिस्ट लायेंगे. और फिर – टी.वी...प्रोग्राम...मगर टाइम-टेबल के हिसाब से – है.”
तान्या
फिर से आई (जब तक वे बातें कर रहे थे, वह कार से सनस्क्रीन लोशन लाने गई
थी).
“और आपने
– कर लिया?”
“मुझे
कोई पश्चात्ताप प्रकट नहीं करना है,” फॉरेस्ट-इन्स्पेक्टर
सभी उपस्थितों से मुख़ातिब होकर बोला.
मुस्कुराकर
दान्या ग्लेब से बोला:
“इसमें
कुछ असंतोष जैसा है.”
“किसी सांप्रदायवाद
जैसा.”
“ये
निर्भर करता है,
कि आप इस ओर आप किस तरह देखते हैं,” तान्या ने
ट्यूब को हथेली पर दबाते हुए कहा.
फॉरेस्ट-इन्स्पेक्टर
ने कहा:
“बस्ती
में दोपहर में उत्सव के उपलक्ष्य में कॉन्सर्ट है, मगर उनकी अपनी बस है,
प्रशासन की. हर हाल में कोई न कोई सवारी तो मिल ही सकती है.
“और आप
ख़ुद क्या पैदल जाएँगे?” क्स्यूशा ने तान्या द्वारा बढ़ाई गई ट्यूब को न
लेते हुए पूछा.
“मैं ख़ुद, हाँ.
कारों में यहाँ तक बिरले ही आते हैं. अच्छी छुट्टियाँ मनाइए. चला गया.”
मतलब, ऐसा
उसने ख़ुद के लिए कहा : “मैं चला”.
और वाकई
में, फॉरेस्ट-इन्स्पेक्टर – चला
गया.
दान्या, तान्या
और डिज़ायनर ज़ायनेर काफ़ी देर तक फॉरेस्ट-इन्स्पेक्टर
से मुलाकात पर चर्चा करते रहे, उसके अप्रत्यक्ष कथनों पर, और हाल ही की सामाजिक भावनाओं के संदर्भ में उसकी नागरिक-स्थिति पर बातें
करते रहे.
क्स्यूशा
निश्चय पूर्वक पैदल जाने की तैयारी करने के लिए चली गई, - इस पर सिर्फ ग्लेब की नज़र गई, वह फ़ौरन क्स्यूशा के
पीछे टेंट में भागा. क्योंकि पैदल जाने के लिए वह तैयार नहीं था.
“अब ये
क्या चल रहा है?”
ग्लेब ने उसके सामने उकडूँ बैठते हुए कहा : क्स्यूशा पैर ऊपर उठाकर
पीठ के बल लेटी थी, और अभी-अभी उतारे हुए शॉर्ट्स के स्थान
पर तंग जीन्स पहन रही थी. –“मैं क्या तुम्हारा बुरा चाहता हूँ? बात क्या है? तुम तो ऐसा बर्ताव कर रही हो, जैसे सभी गुनहगार हैं, कि घुन ने सिर्फ तुम्हें काट
लिया.”
“घुन
कहाँ है?”
क्स्यूशा ने सख़्त आवाज़ में पूछा.
“डिब्बे
में.”
“घुन
वाला डिब्बा कहाँ है?”
“बैक-पैक
की पॉकेट में. आज पेर्वोमायस्क में कोई भी काम नहीं कर रहा है! कल कार में
जाएँगे!”
उसने, ज़ाहिर
है, उसकी बात सुनी नहीं.
क्स्यूशा
के पीछे-पीछे ग्लेब भी टेण्ट से बाहर आया, “अच्छा ठीक है” कहा.
दोस्तों
के पास गया पूछने कि क्या ख़रीदना है. और वोद्का के संदर्भ में – कितनी.
जब पहला
खेत पार कर लिया,
तो ग्लेब के दिमाग़ में घड़ी देखने का ख़याल आया – ग्यारह में पाँच कम
थे. जल्दी निकल पड़े थे, - चालीस मिनट में खदान तक पहुँच
जाएँगे और घण्टा भर बस का इंतज़ार करेंगे.
ग्लेब को
क्स्यूशा की झल्लाहट समझ में आ रही थी. कहीं भी जाने की तैयारी करते समय उनमें झगड़ा
होता ही था,
मगर, जैसे ही सफ़र शुरू करते, फ़ौरन मतभेदों के बारे में भूल जाते, जैसे कि कुछ हुआ
ही न हो. रास्ते में, अगर झगड़ते भी, तो
सिर्फ तभी जब कहीं रुकते, उन दुर्लभ मौकों को छोड़कर, जब क्स्यूशा को ड्राइव करने की अनुमति मिलती (उस समय, नम्रता से बर्दाश्त करते हुए, उसे ग्लेब का पूरा
लेक्चर सुनना पड़ता). किसी भी तरह का स्थानांतरण, फिर स्थानांतरण का तरीका और उद्देश्य चाहे कुछ भी हो, क्यों क्स्यूशा को संजीदा, अनुशासित बना देता था,
और मानसिक स्वास्थ्य की दृष्टि से भी यह बढ़िया रहता, ग्लेब समझा नहीं सकता था, मगर इस परिस्थिति का फ़ायदा
न उठाना बेवकूफ़ी होती. उसे मालूम था कि क्स्यूशा कुछ देर में प्रसन्न हो जाएगी.
वैसा ही हुआ भी, जब पगडंडी, जिस पर वह
डबरों से बचते हुए, खेतों से जंगल की ओर चल रहे थे, कुछ कुछ रास्ते जैसी दिखाई देने लगी. क्स्यूशा ने जैसे राहत की साँस छोड़ी –
और ऐसी ताज़गी देती हुई सांस, जिसका इंतज़ार हो रहा होता है,
जब कहते हैं : “साँस बाहर छोड़ो!” मगर उसे ख़ुशी किसी प्राकृतिक दृश्य
ने नहीं, बल्कि उसके अपने भुलक्कडपन के कारण हो रही थी: वह
उस रास्ते को पहचान नहीं पा रही थी, जिसे वे कारों से विपरीत
दिशा में पार कर चुके थे. “क्या हम यहाँ से गये थे?” उसने
ख़ुद पर (शायद, प्रकट चीज़ों पर गौर न करने की अपनी योग्यता
पर) मुस्कुराते हुए कहा. फिर भी, आज उसकी प्रसन्नता पर –
ग्लेब ने इसे फ़ौरन महसूस किया – मौत के ख़ौफ़ की झलक होगी ही.
“माफ़
करना,
मुझे याद आ गया, बस,
मेरा चचेरा भाई एन्सेफेलाइटिस से मर गया था.”
“पहली
बात,
“माफ़ करना” क्यों? दूसरी बात, ये “बस” का मतलब क्या है? तीसरी, तुमने इस बारे में कभी नहीं बताया.”
“या
चचेरा-चचेरा. मालूम नहीं, कि उसका नाम क्या था. मैं तब पैदा
भी नहीं हुई थी. बस याद आ गया, कि मेरे रिश्तेदारों में कोई
बचपन में ही एन्सेफेलाइटिस से मर गया था.”
“ये अभी
याद आया?”
“हाँ. तो
क्या?”
उसने
बताया नहीं,
कि क्या सोच रहा है. मर सकता था, मगर, यदि वाकई में मर गया था, तो फ़ौरन याद आना चाहिए था.
कल ही.
“क्या
तुम सोच रहे हो,
कि मैं गप हाँक रही हूँ?”
“और ये
तुम औरत के बारे में क्या बकवास कर रही थीं, जो जंगल में चिल्ला रही थी?”
“तुम तो
किसी भी बात पर विश्वास नहीं करते,” क्स्यूशा ने कहा.
विश्वास
करता हूँ,
नहीं करता. क्या फ़र्क पड़ता है, कि ग्लेब किस
बात में विश्वास करता है, और किस में विश्वास नहीं करता?
क्या ऐसी बातें कम हैं जिन पर वह विश्वास नहीं करता? वह, मिसाल के तौर पर, उनकी
ईमानदारी पर विश्वास नहीं करता, जो उसे गुड़िया कहते हैं,
क्योंकि वह जानता है, कि कैसे लोगों को उन
दोनों से जलन होती है. और ऊपर से उसकी आँखें खूब बड़ी-बड़ी हैं और बाल कृत्रिम रूप
से भूरे, हर चीज़ पर वह विश्वास करता है, एक मील से ही दिखाई दे जाता है, कि वह सीधी-सादी,
मामूली लड़की नहीं है.
या, जैसे,
मिसाल के तौर पर, ग्लेब को इस बात पर विश्वास
नहीं है, कि क्स्यूशा बूढ़ी हो सकती है. ज़ाहिर है, सभी बूढ़े होते हैं. वह आसानी से एक बूढ़े के रूप में स्वयम् की कल्पना कर
सकता है : गंजा, झुकी हुई कमर वाला, लंगड़ाता
हुआ. वह, बेवकूफ़, मानसिक संतुलन खो
बैठे, हकलाते बूढ़े की कल्पना कर सकता है. मगर बुढ़िया के रूप
में क्स्यूशा की कल्पना नहीं कर सकता.
वह उसके
उत्साहवर्धक फ़िकरों पर भी विश्वास करता है, उसके इस “तुम्हारे सिवा किसी
और के साथ नहीं” पर, क्योंकि उसे ख़ुद पर विश्वास है और इस
बात पर विश्वास नहीं करता, कि उसे सच्चाई का पता है, क्योंकि उसे कैसे मालूम कि उसके पास, उसे विश्वास है,
दूसरे कंजूस थे और भविष्य में कभी नहीं होंगे.
क्स्यूशा
पर वह मोटे तौर से विश्वास कर लेता है, मगर उसकी छोटी-छोटी बातों
पर विश्वास नहीं करता. कभी-कभी ये “छोटी-छोटी” बातें उसे आपे से बाहर कर देती हैं,
ख़ासकर तब, जब क्स्यूशा ज़िद्दीपन से उन पर अड़
जाती है, मगर अक्सर वह उन्हें मनोरंजन के रूप में ही देखता
है. एक ही चीज़, जिस पर ग्लेब को हमेशा यकीन नहीं होता,
वो ये है, कि क्या वह ख़ुद भी अपनी
कपोल-कल्पनाओं पर विश्वास करती है, - कभी वह विश्वास करता है,
कि हाँ, कभी वह विश्वास करता है, कि नहीं.
बजरी तक
पहुँच गए. बस स्टॉप को एक ओर को झुके हुए कॉन्क्रीट के डिब्बे की संरचना से
प्रदर्शित किया गया था.
बस स्टॉप
के सामने स्थित खदान किसी तसवीर जैसी सुन्दर थी. खदान के किनारों पर ऊँचे-ऊँचे चीड़
के पेड़ों की टेढ़ी-मेढ़ी जडें एक चट्टान के किनारे से चिपकी हुई थीं. खदान की तली
में पड़े लोहे के टुकड़ों पर लगी जंग को देखते हुए, ज़ाहिर था, कि खदान में काफ़ी समय से काम नहीं किया गया था.
ऊपर चढ़कर, ऊँचाई
से आसपास के दृश्य को देखना चाहते थे.
बाएँ
ढलान पर कुछ खाली जगहें नरम काई से ढँकी हुई थी.
क्स्यूशा
आगे-आगे चल रही थी. ग्लेब को महसूस हुआ कि कुछ अच्छी बात कहना चाहिए.
“तुम्हारा
ज़ख़्म कैसा है?”
“तुम्हें
दिलचस्पी है?”
“अगर
दिलचस्पी न होती तो नहीं पूछता.”
“मुझे
कैसे पता. मुझे तो नहीं दिखाई दे रहा.”
“आओ, मैं
देखता हूँ.”
वह बिना
मुड़े रुक गई,
बेल्ट खोलकर जीन्स को एक किनारे से नीचा किया, - उसे लाल धब्बा दिखाई दिया. और पास गया, बैठ गया,
आँखें उसके नज़दीक लाया. होठों से छुआ और उसके दोनों पैरों से लिपट
गया. ऊपर की ओर देखा.
उसने
कंधे से नीचे की ओर देखा – नर्मी से, उलाहने से.
“अगर
चाहो,
तो मैं शादी वाला डान्स करूँ?” ग्लेब ने पूछा.
“तुम
मुझे हँसाना चाहते हो?” मगर वह इसके बगैर ही हँस पड़ी, और इसका मतलब था, कि डान्स की ज़रूरत नहीं थी.
“तुम्हारे दिमाग़ में बस एक ही बात है,” उसने न जाने क्यों
कुछ कहना ज़रूरी समझा और ख़ुद ही समझ गई, कि उसने वह बेहद घिसा
पिटा वाक्य कह दिया है, जो उससे पहले करोडों बार दुनिया की
सभी भाषाओं में कहा जा चुका है – शायद कुछ ज़्यादा ही, “आय लव
यू”, से भी ज़्यादा. “क्या बकवास है!” और सुस्त हुए मच्छरों
को चुनौती देते हुए अपनी टी-शर्ट उतार दी.
मच्छर, चींटियाँ,
वे ही घुन – ये सब छोटे जीव संभल ही नहीं पाए.
मक्खियाँ, छोटे
मच्छर, घास की मक्खियाँ.
सभी
उबासियाँ ले रहे थे.
हम
इंडिया में तो नहीं न रहते हैं.
असल में, बस
जैसी कोई चीज़ रास्ते से गुज़र तो रही थी, दोनों ने सुना,
मगर क्या किया जा सकता है? कुछ भी नहीं किया
जा सकता.
क्स्यूशा, क्स्यूशा.
ग्लेब, ग्लेब.
इस ढलान
पर लिली के फूल भी थे. लिली मुरझा गई थी.
बड़ी-बड़ी
बदरंग बेरियाँ लिली को सजा रही थीं.
“एक बेरी
खाओगे और मर जाओगे.”
“चल, दो
बेरियाँ खाएँ?” ग्लेब ने पूछा.
“दो बार
मरोगे,”
क्स्यूशा ने कहा. “मत खाओ.”
ऊपर तक
चढ़े ही नहीं.
इसके बाद
सबसे ज़्यादा मज़ेदार बात थी बस-स्टॉप की कॉन्क्रीट की दीवारों पर घिचपिच लिखी
इबारतें पढ़ना. इबारतों में कोई मज़ाहिया बात नहीं थी, मगर न जाने क्यों मज़ेदार लग
रहा था. क्स्यूशा ने ग्लेब को अपना कुछ वहाँ बनाने के लिए उकसाया, उसने एक ख़ाली जगह ढूँढ़ भी ली. ग्लेब ने बॉल पेन निकाला, मगर पहला ही अक्षर नहीं लिख पाया – बॉल पेन लिखना ही नहीं चाहता था.
“तुम
क्या लिखने वाले थे?” क्स्यूशा ने पूछा, जब
ग्लेब ने इस ख़याल को दिमाग़ से निकाल दिया.
“नहीं बताऊँगा.”
और उसने
चाहे कितना ही क्यों न मनाया, नहीं बताया.
जल्दी ही
समझ में आ गया : दोपहर वाली बस नहीं आएगी, क्योंकि वो, जो तब गुज़री थी, ज़रूर बस ही थी.
“मगर ऐसा
कैसे?”
ग्लेब को आश्चर्य हुआ. “इसमें क्या तुक है?”
वह आसानी
से कल्पना कर सकता था, कि कैसे बस आधा घण्टा लेट हो जाती है, मगर, बस आधा घण्टा पहले ही निकल जाए इस बात की
कल्पना वह नहीं कर सकता था.
“या, उस
दुष्ट ने हमें गलत समय बताया?”
“वह किसी
भी दिशा में गलती कर सकता था. अगर वाकई में हमारी बस चली गई है, तो
बेहतर है कि हम ख़ुद ही पैदल आगे जाएँ, और अगर बस अब तक नहीं
आई है, तो बस-स्टॉप से न हटना बेहतर होगा.”
“तो, हमें
इंतज़ार करना है या नहीं करना?”
“चल, इंतज़ार
कर लेते हैं.”
इस बजरी
वाले रास्ते की चहल-पहल वाले रास्तों में गिनती नहीं हो सकती थी.
रास्ते
के किनारे पर ही करीब दो घण्टे इंतज़ार करना पड़ा. एक मिनिबस गुज़री, जिसे
छोटे से ट्रक में तब्दील कर दिया गया था. पुरानी “झिगूली” कार गुज़री, जो बच्चों से खचाखच भरी हुई थीं ( पिछली सीट पर चार थे), क्स्यूशा ने, उसे देखकर हाथ नीचे किया, मगर दाढ़ीवाले बूढ़े ने एक पल के लिए स्टीयरिंग छोड़कर हाथ हटा दिए : माफ़
करना, नहीं ले जा सकता. कुकुरमुत्ते चुनने वालों जैसे
बिल्कुल नहीं थे. फिर साइड-कार के साथ एक मोटरसाइकल गुज़री, और
लकड़ियाँ ले जाने वाले दो ट्रक, लम्बे-लम्बे लट्ठों से लदे.
बस, इतना ही. इस तरह यहाँ शाम वाली बस का इंतज़ार किया जा
सकता है, और इसकी कोई ग्यारंटी नहीं है, कि उसे कैन्सल नहीं करेंगे.
चलने का
फ़ैसला कर लिया. और चल पड़े. बुरे ख़यालों का राक्षस, जो उन्हें बेकार ही इंतज़ार
करने के लिए मजबूर कर रहा था, अचानक चौंककर रास्ते से हट गया
: तभी एक ‘लिफ्ट’ मिल गई.
बेसबॉल कैप
पहने एक अंकल गाड़ी चला रहे थे, उनकी बगल में - बेहद मोटी औरत बैठी
थी.
दोनों की
ड्रेस पर प्रतीक-चिह्न के रूप में सफ़ेद रिबन्स टँके थे.
वे
पेर्वोमायस्क जा रहे थे. ग्लेब और क्स्यूशा ख़ुश होकर बैठ गए.
ड्राइवर
और मोटी औरत ने,
ज़ाहिर है, अपनी अधूरी बातचीत जारी रखी:
“बड़ी
साधारण-सी ‘सील’ है,” वह कह रहा था. “मुझे
किसी शानदार चीज़ का इंतज़ार था. हॉलोग्राम की तरह, जैसी वोद्का
के लेबल पर होती है. उसकी नकल करना मुश्किल है. और इसकी – बेहद आसान.”
“नकल
करना ही क्यों?
इससे फ़ायदा ही क्या है? वो है क्या, और नहीं क्या...”
“ऐसा मत
कहो. वर्ना पासपोर्ट पर लगाने की ज़रूरत क्या है? किसी मतलब से तो लगाते ही
होंगे, वर्ना क्या?”
“हिरण!”
क्स्यूशा चिल्लाई.
और सही
में : बाईं ओर, रास्ते से दूर, भागते हुए एक हिरण पेडों के पीछे
गुम हो गया.
“मेरी
दुनाली कहाँ है?!”
ड्राइवर रोनी आवाज़ में उसी अंदाज़ में चिल्लाया, मानो शिकायत कर रहा हो, “मेरे बीस साल कहाँ गए?!”
अगले एक-दो
किलोमीटर हिरण के बारे में बात करते रहे.
क्स्युशा
काँप गई और,
ग्लेब के पास सरककर, उसके कंधे पर सिर रख
दिया. वे वहाँ – लिली के फूलों के बीच थे, और यहाँ, उसने कल्पना की कि वह – विशाल है – सींगों वाला.
रिअर-व्यू
मिरर में ड्राइवर की नज़र देखी. उसने गाड़ी चलाते हुए पूछा :
“पेर्वोमायस्क
किसलिए जा रहे हैं? क्या लिस्टों पर दस्तख़त करने?”
“हमारे
पास अनुपस्थिति-पत्र हैं,” ग्लेब ने कहा, “नहीं. हम झील के किनारे विश्राम कर रहे हैं.”
“मुझे एक
घुन ने काटा है,”
क्स्यूशा ने कहा, “हॉस्पिटल जा रहे हैं. आपके
यहाँ एन्सेफेलाइटिस का क्या हाल है? सावधान रहते हैं?”
“तभी तो, मैं
देख रही हूँ कि आपने रिबन्स नहीं टाँके हैं,” औरत बोली.
“सावधान
लोगों से रहना चाहिए, न कि घुन से,” ड्राइवर ने
कहा. “और घुन, वो तो घुन ही है.”
“हिरण की
मक्खियाँ,
हाँ,” उसकी हमसफ़र ने कहा, “अगर बालों में घुस जाए, तो उसे झटकते-झटकते परेशान
हो जाते हो. मगर, कहते हैं, कि वे
ख़तरनाक नहीं होतीं. ऐसी मक्खियाँ गुच्छों-गुच्छों में पेड़ों पर होती हैं. घुन हैं,
मगर ज़्यादा नहीं हैं.”
“ज़्यादा
नहीं हैं,”
क्स्यूशा ने कहा, “मगर मुझे तो काट लिया!”
स्टीयरिंग
वाले ने दिलचस्पी दिखाई:
“कहाँ के
हो?
पीटर से? मॉस्को से?”
“पीटर
से.”
“क्या करते
हो?”
“प्लान्स
बनाता हूँ,”
ग्लेब ने संक्षेप में उत्तर दिया (उसे पूछताछ अच्छी नहीं लगती थी).
नुक्कड़
के पीछे रास्ते का एक हिस्सा बारिश के कारण बह गया था – उस धँसे हुए गड्ढे के पास
से धीमी गति से चले. गड्ढे से सिग्नल की तरह एक डंडी बाहर निकल रही थी, जिस
पर एक बालटी रखी गई थी.
“हम
चैन्टरेले मश्रूम्स के लिए जा रहे हैं,” ड्राइवर ने कहा. “आपको तो
मालूम ही है, कि यूरोप में वे कितनी महँगी हैं. यहाँ के
मुकाबले में बीस गुना ज़्यादा. चैन्टरेले मश्रूम्स के लिए एजेन्ट्स बहुत हैं. हम
करीब-करीब सबसे निचली सीढ़ी पर हैं. हमसे नीचे होते हैं – मश्रूम्स चुनने वाले.
चैन्टरेले मश्रूम्स के अलावा और भी कई चीज़ें हैं मुनाफ़ा कमाने की, जैसे, मिसाल के तौर पर नहाने के लिए पत्तों वाले
झाडू. पीटर में पत्तों वाले झाडुओं का क्या हाल है?”
“हमारे
यहाँ स्नानगृह बंद हो रहे हैं.” क्स्यूशा ने कहा.
“वो, सरकारी,
सार्वजनिक, मगर प्राइवेट, इसके विपरीत, जल्दी ही खुलने वाले हैं. बगैर
स्नानगृह के कैसे? और बगैर पत्तों वाली झाडुओं के?”
उसके साथ
वाली ने कहा:
“हम पूरे
पीटर को पत्तों वाले झाडुओं से भर देंगे.”
क्स्यूशा
ने पत्तों वाले झाडुओं से भरे पीटर्सबुर्ग की कल्पना की.
“ओक के?” ग्लेब ने पूछा.
“बर्च
के,” उसकी साथी ने कहा. “बेहद सस्ते. आप सोच भी नहीं सकते.
लेंगे?”
“क्या
लेंगे?”
ग्लेब समझा नहीं.
“पत्तों वाले
झाडुओं की मार्केटिंग का काम?”
“आपकी
शर्तें?”
क्स्यूशा ने कामकाजी भाव से पूछा.
“फिफ्टी-फिफ्टी,” स्टीयरिंग व्हील से जवाब आया. “हर चीज़ ईमानदारी से. हमारे झाडुओं में काफ़ी
फ़ायदा है. मगर, पार्टी पाँच हज़ार से कम न ले, हाँ, तोन्या?”
तोन्या, यही
उसका नाम था, बोली:
“तय कर
लो,
कि कहाँ और कब, हमें सूचित कीजिए, और हम – लॉरी भेज देंगे.”
“संभव है, कि
पत्तों वाले झाडुओं का मार्केट पहले ही हथिया लिया गया हो,” क्स्यूशा
ने सोच में डूबकर, ग्लेब की “बस करो” पर ध्यान न देते हुए
कहा, “ मैंने गेस्ट-पैलेस में नहाने के सामान के सेट्स देखे
हैं, जिनमें पत्तों वाले झाडू, प्राकृतिक
वल्कल, फ्रांसीसी साबुन शामिल हैं.”
“वे
महँगे वाले हैं,
गिफ्ट-पैक्स हैं.”
“ऊँची
क्वालिटी के हैं,”
तोन्या ने पुश्ती जोड़ी.
“हमें
ऊँची क्वालिटी की ज़रूरत नहीं है, हमारे पास साधारण, आम लोगों वाली किस्म की हैं.”
“पीपल्स-ब्रूम”, क्स्यूशा
ने ब्रांड का नाम सुझाया. “और क्या, अच्छा है.”
अंतोनीना
ने उसे अपना मोबाइल नंबर लिखवाया.
बस्ती
में आये और एक घर के पास रुके, जिसकी छत पर पवन-चक्की थी. “हम अभी
आते हैं”. ग्लेब और क्स्यूशा को कार में अकेला छोड़कर ड्राइवर और अंतोनीना घर के
भीतर गए.
“तुम ये
कॉमेडी क्यों कर रही हो?” ग्लेब ने पूछा. “वो तो तुम पर यकीन कर लेंगे.”
“कॉमेडी
क्यों?
कॉमेडी बिल्कुल नहीं है. हो सकता है, डिज़ायनर
ज़ायनेर को दिलचस्पी हो जाए. वर्ना तो, बिना काम के सड़ रहा
है. कार ख़रीद लेगा.”
“अच्छा-अच्छा,” ग्लेब ने कहा.
“वैसे, शुरुवात
तुमने ही की थी. बर्च की या ओक की.”
“बर्च
वाली झाडुओं के बारे में मैंने कुछ नहीं कहा था. मैंने सिर्फ पूछा था, क्या
ओक की हैं. ज़रूरत नहीं है.”
“कभी-कभी
मुझे ऐसा लगता है,
कि मैं तुम्हें एक लब्ज़ से ही समझ जाती हूँ. मगर मुझे डर है,
कि ऐसा सिर्फ लगता है.”
कृत्रिम
ख़ुशबूवाले पदार्थ से भरी चमचमाती थैली, जो रिअर-व्यू मिरर से लटकी
हुई थी, पूरबी ख़ुशबू बिखेर रही थे. क्स्यूशा ने काँच नीचे
किया, कार में ताज़ी हवा घुस आई.
दूर, जागीरों
के पुराने, ताकतवर लिन्डन वृक्षों के पीछे से (रास्ते के
दूसरी ओर), बस्ती के भीतर से, संगीत के
अंश सुनाई दे रहे थे, यहाँ की सामाजिक गतिविधियों का केन्द्र
वहीं कहीं था. दूरी और रुकावटों के कारण आवाज़ों को पहचानना मुश्किल हो रहा था,
मगर फिर भी क्स्यूशा को लगा, कि दूर से
लाउडस्पीकर्स से कोई वाल्ट्ज़ गूँज रहा है (ये वाकई में संगीतकार अद्नोरालव का “द
ब्ल्यू वाल्ट्ज़” ही था, सिर्फ क्स्यूशा और ग्लेब को ये वाल्ट्ज़
मालूम नहीं था).
कार की
ओर एक छोटा सा जुलूस आया. सबसे आगे थी तोन्या, उसके पीछे ड्राइवर – उसके
हाथ में एक बक्सा था, और उसके पीछे और दो आदमी, हाथों में बक्से पकड़े. बक्सों में, जैसा कि पता चला,
चैन्टरेले मश्रूम्स थे. दो बक्से डिक्की में रखे गए, और एक क्स्यूशा की बगलवाली सीट पर, बक्सा, जैसे पैसेंजर हो, और अब क्स्यूशा ग्लेब और बक्से के
बीच में बैठी थी.
चल पड़े, मगर
तीस मीटर्स भी नहीं गए होंगे कि ड्राइवर ने ज़ोर से ब्रेक लगाया, - कोई एक नमूना, हाथों को हिलाते हुए, भागकर रास्ता पार कर रहा था. वह पूरी तरह नशे में धुत् था. अपने सामने
रुकी हुई कार को देखकर वह भी रुक गया, उसकी ओर दायाँ हाथ
फ़ैलाया और उँगलियों से कुछ दिखाने की कोशिश करने लगा : या तो जीत का निशान – ये
एकदम दो उँगलियों से दिखाया जाता है; या अलग-अलग उँगली से
कुछ : बीच वाली उँगली से – अश्लीलता का निशान, जब कि तर्जनी
से – जैसे धमका रहा था...
“तर्र है,” शराबी के किनारे से निकलते हुए ड्राइवर ने कहा, “और
ऊपर से रिबन टाँक रखा है.”
वाकई में
उसके कोट की कॉलर पर सफ़ेद रिबन टँकी थी. उसने कोट पहना था. आम तौर से – वह सूट में
था,
महँगे वाले सूट में. आम तौर से कहें तो – यहाँ काफ़ी लोग त्यौहार के
कपड़ों में थे (क्स्यूशा ने खिड़की से देखा), वैसे फूहड़ कपड़ों
में नहीं, जैसे क्स्यूशा और ग्लेब ने पहने थे.
“आज
इजाज़त है,”
तोन्या ने शराबी की ओर देखकर कहा.
दूसरे
लोगों ने भी रिबन्स टाँक रखे थे. क्स्यूशा को याद आया, कि
उसने निकलने से पहले टी.वी. पर प्रोग्राम देखा था : ये बहस हो रही थी, कि रिबन की लम्बाई कितनी होनी चाहिए, और क्या वे सभी
देश वासियों के लिए पर्याप्त हैं.
बस्ती से
निकलते समय फिर से रुकना पड़ा, अब गायों के कारण. हालाँकि झुण्ड
छोटा ही था, मगर फिर भी झुण्ड तो था. गायें अनिच्छा से
इधर-उधर बिखर गईं, अपने स्वाभिमान को न खोते हुए. गड़रिए को
उन पर भरोसा था और उसने कोई दख़ल नहीं दी. एक के सींग पे सफ़ेद रिबन बंधा हुआ था.
“ये तो
बेकार ही में है...” ड्राइवर ने कहा.
बेशक, अच्छे
इरादे से, मगर उन्होंने क्स्यूशा और ग्लेब को वहाँ नहीं,
जहाँ उन्हें जाना था, बल्कि ट्रॉमा सेन्टर तक
लाकर छोड़ा. “स्लाविक के घुन को यहीं निकाला था”, ड्राइवर ने
कहा, ये बताए बगैर कि स्लाविक कौन है. एक दूसरे से बिदा ली.
ये ट्रॉमा-सेन्टर है, ये दोनों को तब समझ में आया. जब कार से
बाहर निकल चुके थे और कार जा चुकी थी. शायद पेर्वोमायस्क में चोट वाली घटनाओं का
इलाज रेल्वे स्टेशन के क्षेत्र में किया जाता है, क्योंकि
ट्रॉमा-सेन्टर स्टेशन के चौक में था.
स्टेशन
के चौक में खचाखच पब्लिक भरी हुई थी. बस स्टेशन के दाईं ओर एक स्टेज बनाया गया था.
सजे-धजे कपड़ों में बच्चे अपना नृत्य कौशल दिखा रहे थे.
ड्यूटी
पर तैनात बोन-सेटर ख़ुश हो गया:
“आपको
ज़हर निकालने वाले सेन्टर पर जाना चाहिए था. नहीं, मेरे लिए घुन निकालना
मुश्किल नहीं है. मगर जब ये आपने कर ही लिया है, तो मेरी
क्या ज़रूरत है? आपको फर्स्ट-एड की नहीं, बल्कि कम से कम सेकण्ड-एड की ज़रूरत है. और मैं, माफ़
कीजिए, फर्स्ट-एड वाला हूँ. यहाँ लोगों की इस भीड़-भाड़ में हर
तरह की घटनाएँ हो सकती हैं, ख़ास तौर से खोपड़ी से संबंधित. तब
होगा काम! बस में जाइए, दो नंबर की, ल्युक्सेम्बुर्ग...
“
“कहाँ, कहाँ?”
“ल्युक्सेम्बुर्ग
नाम है. रोज़ा ल्युक्सेम्बुर्ग सिटी हॉस्पिटल, भूल गया कि आप यहाँ के नहीं
हैं. आजकल इसका नाम पक्रोव्स्काया हो गया है, मगर हम तो आदत
के मुताबिक उसे ल्युक्सेम्बुर्ग नाम से ही बुलाते हैं. पुल के बाद पहले स्टॉप पर
उतर जाइए.”
ल्युक्सेम्बुर्ग
रवाना होने से पहले क्स्यूशा और ग्लेब बस-स्टेशन पर टाइम-टेबल की पुष्टि करने के
लिए पहुँचे. शाम की बस के लिए कम से कम तीन घंटे का समय था. मैनेजर ने कसम खाकर
कहा,
कि बस आयेगी. ये, पेर्वोमायस्क से छूटने वाली
बस के बारे में है, मगर जहाँ तक पेर्वोमायस्क से गुज़रने वाली
बस का सवाल है, तो कोई प्रॉब्लेम हो गई है, और ख़ास “दो नंबर” के साथ, मगर क्स्यूशा और ग्लेब को
इस बारे में तब पता चला, जब, स्टेज और
उसके सामने खड़ी पब्लिक का (अब वहाँ जादूगर खेल दिखा रहा था), चक्कर लगाकर सामान्य सिटी बस-स्टॉप पर आये.
पता चला, कि
नं. 2 को आज शहर में हो रहे उत्सव के सिलसिले में आयोजित फुटबॉल मैच को देखते हुए
दूसरे मार्ग पर भेज दिया गया है, जिसके बारे में क्स्यूशा और
ग्लेब को स्टॉप पर बस का इंतज़ार कर रहे प्रशंसकों ने बताया.
पेर्वोमायस्क
बहुत बड़ा नहीं है. पैदल ही निकल पड़े.
शहर के
केंद्र में पिछली शताब्दी की इमारतें सुरक्षित थीं. पूर्व अग्निशामक केंद्र में
एथ्नोग्राफी-म्यूज़ियम स्थित था.
आने जाने
वाले उत्सव के ‘मूड’ में ते, बच्चे गुब्बारे
लिए घूम रहे थे. ट्रे में रखकर शुगर-कैण्डी और लॉली पॉप्स बेचे जा रहे थे.
नगर-प्रशासन
के सामने पैडेस्टल पर काँसे का इल्यिच खड़ा था. उसके पैरों के पास सफ़ेद रिबन्स में
बंधे लाल गुलनार के गुलदस्ते रखे थे.
एक पैदल
चलने वाले ने उन्हें चौंका दिया, वह अपने पूरे होशो-हवास में दिखाई
दे रहा था, मगर, दिखाई दे रहा था कि
अजीब हरकतें कर रहा था. ग्लेब ने उसे तब देखा, जब उसने किसी
निश्चय से सड़क पार की. इस बात ने उनका ध्यान आकर्षित किया कि वह उन दोनों की ओर आ
रहा था. ग्लेब के पास आकर, उसने अचानक उसकी कलाई पकड़ ली और
जोश से हाथ मिलाया. क्स्यूशा से उसने हाथ नहीं मिलाया, मगर,
अपने सीने पर हाथ रखकर झुक कर, या सिर हिलाकर
उसका स्वागत किया. इसके बात फ़ौरन शीघ्रता से अपने रास्ते चला गया.
“तुम्हारा
परिचित,”
ग्लेब ने कहा.
“क्या
तुम्हारा नहीं है?”
क्स्यूशा ने पूछा.
“मैं ऐसे
किसी को नहीं जानता.”
“लगता तो
नहीं है,
कि उससे पहचानने में गलती हुई हो.”
नदी के
पास सबसे ज़्यादा लोग घूम रहे थे. शहर के बाग में हिंडोला घूम रहा था. ग्लेब और
क्स्यूशा “फास्ट फूड” वाली गाड़ी के पास रुके, दोनों को ही बेहद भूख लगी
थी. पुराने बर्च वृक्ष के नीचे पड़ी प्लास्टिक की मेज़ पर बैठ गए. बगल वाली मेज़ पर
एक विवाहित जोड़ा पारिवारिक बहस में उलझा था – क्या आज के दिन को त्यौहार मानना सही
है? जूनियर स्कूल वाली उनकी बेटी, कोला
पीने के बाद, डंडी से खेलते हुए एक सावधान बिल्ली को अपनी ओर
आकर्षित करने की कोशिश कर रही थी.
करीब बीस
मिनट बाद क्स्यूशा और ग्लेब सेनिटरी और एपिडेमिक निगरानी विभाग के ड्यूटी डॉक्टर
के सामने थे. इस काली आँखों वाली, अधेड़ उम्र की औरत ने पहला ही सवाल
एक ही शब्द में पूछा : “शिकायत?” उसकी आवाज़ दमदार, प्रभावशाली, हुकूमतभरी थी.
सफ़ेद
एप्रन की कॉलर पर सफ़ेद रिबन टँका हुआ था. सफ़ेद पर सफ़ेद, मानो
चुनौती सी देते हुए एक-दूसरे में मिल नहीं रहा था, बल्कि,
जैसे एक दूसरे को चिढ़ाता हुआ प्रतीत हो रहा था.
“मुझे
घुन ने काटा है.” क्स्यूशा ने कहा.
“और आपको?”
“मुझे
नहीं. हम साथ हैं.”
“कॉरीडोर
में जाइए.”
ग्लेब
बाहर निकल आया.
अख़बारों
वाली छोटी मेज़ पर हर तरह के इश्तेहार पड़े थे – ब्रोश्यूर्स, पैम्फ्लेट्स,
इश्तेहार, पतले-लेआउट्स. चूहे, रेबीज़, तपेदिक... ग्लेब ने घुन से उत्पन्न एन्सेफेलाइटिस
के बारे में एक डरावना पन्ना उठाया और खालीपन की वजह से उसे पढ़ने लगा. अच्छी बातें
कम ही थीं. दिमाग़ में सूजन. घातक परिणाम की संभावना. कोमा.
विकलांगता. घुन से उत्पन्न लाइम बीमारी, जो वायरस से नहीं
फैलती, बल्कि किन्हीं ख़ास स्पाइरोकेट्स द्वारा फ़ैलती है,
जिन्हें ये ही घुन एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक ले जाते हैं.
करीब
पाँच मिनट बाद क्स्यूशा बाहर आई, वह बड़ी उदास लग रहा थी.
“क्या
हुआ?”
ग्लेब ने पूछा.
“अपने
रजिस्टर में दर्ज कर लिया – कब और कहाँ मुझे काटा था.
“और घुन
का क्या?
नहीं लेंगे?” उसके हाथ में जाना-पहचाना डिब्बा
देखकर ग्लेब ने पूछा.
“सिर्फ
कल,”
क्स्यूशा ने कहा. “लगता है, कि शाम वाली बस
नहीं पकड़ पाएँगे.”
“मैंने तो
तुमसे कहा था,
कल ही आना चाहिए था.”
“अरे, मुझे
नहीं मालूम,” क्स्यूशा ने जैसे गाते हुए कहा, “होटल में रात काटनी पड़ेगी.”
कैबिनेट
से सफ़ेद एप्रन पहनी महिला बाहर आई.
“आप किसे
लाए हैं?”
वह ग्लेब से मुख़ातिब हुई. “वो ज़िंदा नहीं है!”
“बल्कि
ज़िंदा है,”
ग्लेब ने डिब्बे की ओर देखते हुए कहा (उसकी अंतरात्मा उसे किसी भी
उलाहने को स्वीकार करने से इनकार कर रही थी).
“कहाँ है
ज़िंदा?
आपने उसे मार डाला.”
“अधमरा
है,”
क्स्यूशा ने कहा. “देखो – अभी हिला था!”
“मुर्दों
को नहीं लेते,”
डॉक्टर ने कहा. “ये मॉस्को में ही लेते हैं मुर्दों के टुकडे. मगर
हम मॉस्को नहीं हैं.” वह ग्लेब से बोली, “कल वाइरोलॉजिस्ट को
दिखाइए. आज वैसे भी लैब बंद है. कल सुबह से खुली रहेगी. इसे फ्रिज में रख दीजिए,
मगर फ्रीज़र में मत रखिए. हो सकता है, ज़िंदा
रहे.”
“और इसे
क्या खिलाना चाहिए?” क्स्यूशा ने पूछा.
डॉक्टर
ने क्स्यूशा की ओर ऐसे देखा, जैसे किसी पागल को देख रही हो.
“चलो, घुन-पीड़ित
मरीज़, आपको इन्जेक्शन दिया जाएगा. प्रिवेन्टिव
डिपार्टमेन्ट.”
दूसरे
कमरे में ले गई.
बैज के
अनुसार कंसीर्ज का नाम यूल्या था.
“हम रात
बिताना चाहते हैं. और हमें फ्रीज वाला कमरा चाहिए.”
“कोई
प्रॉब्लेम नहीं,”
यूल्या ने जवाब दिया. “सभी कमरों में फ्रीज है. आपके पासपोर्ट,
प्लीज़.”
उसने एक
पासपोर्ट के,
और फिर दूसरे के पन्ने पलटे,.
“माफ़
कीजिए,
मगर आपके पासपोर्ट पर सील नहीं है.”
“तो क्या?”
“अगर
आपके पासपोर्ट में सील नहीं है, तो मैं आपको कमरा नहीं दे सकती.”
“ऐसा
कैसे?”
ग्लेब समझ नहीं पाया. “किस आधार पर? सील – स्वैच्छिक
है. आपको हमें कमरा देना ही होगा.”
“सॉरी, मुझे
निर्देश दिया गया है, कि बिना सील के किसी को कमरा न दूँ.”
“मगर ये
तो कानून के ख़िलाफ़ है!”
“हमारे
यहाँ हमारे अपने अफ़सर हैं, और ये कानून के ख़िलाफ़ है या नहीं,
इस बारे में मैं बहस नहीं करूँगी. मुझे निर्देश दिया गया है – सील
के बिना किसी को भी अंदर मत आने देना. सील लगवाने में आपको क्या प्रॉब्लेम है?”
“हमें
क्या प्रॉब्लेम है? हम दूसरे शहर से आए हैं, हम
जंगल में छुट्टियाँ मना रहे हैं. हमें कौन सील लगाकर देगा?”
“क्या आप
पश्चात्ताप करना नहीं चाहते? क्या आप नकारवादी हैं?”
“हमारे
पास अनुपस्थिति मतपत्र नहीं हैं!”
“ओय, क्या
बकवास है! ‘पपॉ’ (पश्चात्ताप पॉइन्ट
– अनु. ) चले जाइए – पश्चात्ताप कीजिए और वो सील लगा देंगे. ये बगल में ही है,
चौक के उस ओर.”
“रुकिए, आप
समझ नहीं रही हैं, बिना अनुपस्थिति मतपत्रों के हमें आपके
क्षेत्र में कोई भी पश्चात्ताप करने की अनुमति नहीं देगा.”
“मैं
क्या जानती नहीं हूँ? आप पहले तो नहीं हैं. आज करीब पंद्रह लोग आये
हैं, और किसी के भी पास अनुपस्थिति मतपत्र नहीं था. मगर सबके
पासपोर्ट पर सील लगा दी गई. किसी को शिकायत नहीं है.”
“अच्छी
व्यवस्था है,”
क्स्यूशा को आश्चर्य हुआ.
“वो ये
आँकडे दिखाने के लिए,” ग्लेब ने अनुमान लगाया. “प्रतिशत मिलता है.”
“मैं
आपको जगह दे देती,
मगर ये मेरे अधिकार में नहीं है. और पॉइन्ट्स आठ बजे तक काम करते हैं.
“अच्छा, हम
कोशिश करते हैं. मगर जब तक हम पश्चात्ताप करेंगे, क्या आप
इसे फ्रिज में रख सकती हैं?” क्स्यूशा ने पूछा.
“ये क्या
है?”
यूल्या सतर्क हो गई.
“अरे, ये...आपको
कैसे समझाऊँ...संक्षेप में, हम जीव-वैज्ञानिक...अध्ययन करते
हैं अलग-अलग तरह के...” – उसने अपने आपको “हानिकारक” शब्द कहने से रोक
लिया...संक्षेप में, इसे फ्रिज में रखना चाहिए...”
“ये मैं
नहीं कर सकती.”
“क्यों?”
“पहले
सील ले आइए,
एक मिनट का काम है, और तब ख़ुद ही अपने फ्रिज
में रख लीजिए.”
“हम समय
बरबाद कर रहे हैं,
और वह...वो...वो मर सकता है. आपको क्या, कोई
परेशानी है? वो कुछ खाने को तो नहीं माँगेगा.”
“पता
नहीं, ये क्या है....मुझे इसकी इजाज़त नहीं है. हमें फ्रिज में रखने के लिए
चीज़ें लेना मना है....”
“ये चीज़
नहीं है.”
“ऊपर
से...ऊपर से आज के दिन...”
“सुनिए,” ग्लेब दखल देते हुए बोला. “ ये आपको फ्रिज किराए पर देने के लिए. आधे
घण्टे के लिए. हम वापस आएँगे और इसे अपने फ्रिज में रख देंगे.”
“मगर
क्या आप सचमुच वापस आएँगे?”
“हमें
कहीं तो रहना ही है – हम वापस कैसे नहीं आएँगे?”
“और अगर
आप वापस आए ही नहीं, तो मैं इसका क्या करूँ?”
“हम
आएँगे,
और - हमारे वापस आने तक
आपको कुछ नहीं करना है. फ्रिज में रख दीजिए और भूल जाइए.”
“अच्छा, मैं
रख दूँगी...हालाँकि...”
जब हॉटेल
से बाहर आए,
तो ग्लेब ने पूछा:
“क्या
तुम समझाओगी,
कि तुमने ये जीव-वैज्ञानिक क्यों पैदा कर लिए? क्या ये ज़रूरी था?”
“बेशक.
वर्ना वह विश्वास नहीं करती!”
“उसने
वैसे भी विश्वास नहीं किया है! उससे भी ज़्यादा बुरी बात ये हुई, कि
तुमने उसे डरा दिया. आजकल तो हमारे बगैर भी आतंकवादियों से लोग डरते हैं. और,
अब हम, न जाने क्या लाए हैं. और अचानक ये कोई
बैक्टेरियोलॉजिकल हथियार हो तो!”
“मेरा तो
सिर घूम रहा है...आज तुम लोगों के बारे में इतना बुरा क्यों सोच रहे हो?”
क्स्यूशा
और ग्लेब ने चौक पार किया. स्कूल की इमारत में ‘पपॉ’
था, जिसके बारे में एक छोटा सा बोर्ड सूचना दे रहा था. पेर्वोमायस्क
शहर का “पश्चात्ताप पॉइन्ट नं. 4”
असेम्बली
हॉल में गए. कमिशन के सदस्य मेज़ों पर बैठे थे, हर मेज़ पर रास्तों के नाम
और मकान नंबर दिखाती हुई तख़्तियाँ थीं – जैसा चुनाव सेन्टर पर होता है, जब वोट डालते हैं. सिर्फ मतपत्रों के लिए मतपेटियाँ नहीं थीं. मतपत्र भी
नहीं थे – मेज़ों पर ‘पश्चात्ताप-पत्रक’ पड़े थे.
अड़ोस-पड़ोस
के अधिकांश निवासी, बेशक, पहले ही पश्चात्ताप
प्रकट कर चुके थे, - ग्लेब, क्स्यूशा
और पश्चात्ताप-पत्रक पर सिर रखकर ऊँघती हुई एक बुढ़िया के अलावा कोई और पश्चात्तापी
नहीं थे.
ग्लेब
सीधे कमिशन के प्रमुख के पास गया.
“नमस्ते.
हम पश्चात्ताप प्रकट करना चाहते हैं, मगर हमारे पास अनुपस्थिति-मतपत्र
नहीं हैं.”
“साफ़-साफ़
कहूँ,
तो बिना अनुपस्थिति-मतपत्र के इजाज़त नहीं है.”
“हम ख़ुद
भी जानते हैं,
कि इजाज़त नहीं है, मगर इसके बगैर हमें होटल
में कमरा नहीं दे रहे हैं.”
“आम तौर
से पश्चात्ताप तो दिल की आवाज़ पर किया जाता है, न कि सहूलियत की ख़ातिर.”
“हम
सिर्फ दिल की आवाज़ पर ही आए हैं. सिर्फ हम जंगल में छुट्टियाँ बिता रहे हैं. हम
ख़ास तौर से पत्रकों पर हस्ताक्षर करने आए हैं, हस्ताक्षर कर देंगे – और कल
वापस चले जाएँगे.”
“पासपोर्ट
हैं?”
“क्यों
नहीं होंगे?”
“ठीक है.
मुख्य बात ये है कि आपके पास दस्तावेज़ हो. और उसे हर परिस्थिति में स्वीकार किया
जायेगा. ये कोई चुनाव नहीं है, आख़िर हम नौकरशाह नहीं हैं. आपने
अच्छा किया, जो आ गए. मैं आपको पश्चात्ताप करने की इजाज़त
देता हूँ. ये है मेज़ आगंतुकों के लिए. कृपया आपका नागरिक-कर्तव्य पूरा कीजिए.”
क्स्यूशा
और ग्लेब नियत मेज़ के पास गए. डिस्ट्रिक्ट-पश्चात्ताप कमिशन के सदस्य ने दोस्ताना
अंदाज़ में उनका स्वागत किया; उसने उन्हें बैठने कि लिए कहा.
क्स्यूशा और ग्लेब ने अपने अपने पासपोर्ट दिए और एक-एक पश्चात्ताप-पत्रक प्राप्त
किया. उस पर लिखा मसौदा काफ़ी सामान्य था : बोल्शेविज़्म, स्टालिनिज़्म
और गुलाग के दौरान किए गए अपराध, मगर ख़ास तौर से बने कॉलम
में अपनी तरफ़ से भी स्वेच्छा से कुछ लिखा जा सकता था. कोई कठिनाई न हो, इसलिए
कुछ ख़ास विषयों की एक लिस्ट दी गई थी. ग्लेब ने उसे नहीं देखा और फ़ौरन
पश्चात्ताप-पत्रक पर लिखे आदर्श मसौदे के नीचे हस्ताक्षर कर दिए, मगर क्स्यूशा इस अतिरिक्त लिस्ट को देखने लगी.
“शायद सब
लोग ‘इवान दि टेरिबल’ का नाम शामिल कर रहे हैं?”
“सब लोग
क्यों. जिसे करना है, वो कर रहा होगा.”
“और, क्या
सच में ये सब म्यूज़ियम में जाएगा?”
“हाँ, सभी
हस्ताक्षरित पत्रकों को मॉस्को में राष्ट्रीय-पश्चात्ताप के ऑल रशियन संग्रहालय
में सुरक्षित रखा जाएगा, इसके साथ एक म्यूज़ियम भी होगा.
अभी-अभी समाचारों में दिखा रहे थे.”
“क्स्यूशा, हस्ताक्षर
करो, फिर चलते हैं,” ग्लेब ने कहा.
“सिर्फ
यहाँ ‘इवान दि टेरिबल’ से पहले कुछ नहीं है. ऐसा सोच सकते
हैं, कि इतिहास ‘इवान दि टेरिबल’ से ही शुरू होता है.”
“ये
सिफ़ारिशी सूची है. और मैं इतिहासकार नहीं हूँ,” कमिशन के सदस्य ने कहा.
“मैं
व्लादीमिर मनोमाख के शासन के आरंभ को शामिल करना चाहती हूँ.”
“क्स्यूशा, तुझे
व्लादीमिर मनोमाख क्यों चाहिए?”
“उस समय
पहला विद्रोह हुआ था.”
“ये
हमारा इतिहास नहीं है,” ग्लेब ने कहा. “उक्राइनवासियों को इसका फ़ैसला
करने दो.”
“तुम ऐसा
कैसे कह सकते हो?
ये हमारा इतिहास क्यों नहीं है?”
“क्या
कोई परेशानी है?”
कमिशन के प्रमुख ने उनके पास आते हुए पूछा.
“नहीं, सब
ठीक है,” कमिशन के सदस्य ने जवाब दिया. “और आप,” वह ग्लेब से बोला, “इन्सान पर दबाव मत डालिए,
हर कोई वही करता है, जो उसकी अंतरात्मा कहती
है.”
“मैंने, बस,
मनोमाख पर थीसिस लिखी थी, मैं जानती हूँ.”
उसने
खाली कॉलम में मनोमाख का नाम लिख दिया.
कमिशन का
प्रमुख,
क्स्यूशा के ज्ञान की गहराई और उसकी जागरूकता से प्रभावित होकर
नौजवानों को विश्वास में लेते हुए बोला:
“मैं भी
मानता हूँ,
कि हर चीज़ सोच-समझ कर नहीं की गई है. अनुपस्थिति-मतपत्रों के बगैर
भी काम चलाया जा सकता था,” उसने कहा. “ये चुनावों के लिए
ज़रूरी है, जिससे कोई एक से ज़्यादा बार मतदान न कर दे. मगर
पश्चात्ताप तो कोई दो बार नहीं करेगा. आप तो दो बार नहीं करेंगे?” उसने ग्लेब से पूछा.
“ज़ाहिर
है,
नहीं,” ग्लेब ने जवाब दिया.
“हो सकता
है,
आप कुछ और लिखना चाहेंगी?” कमिशन के सदस्य ने
क्स्यूशा से पूछा, ये देखकर, कि उसे
हस्ताक्षर करने की जल्दी नहीं है.”
“नहीं, शायद,
इतना ही काफ़ी है.”
क्स्यूशा
ने पश्चात्ताप-पत्रक पर हस्ताक्षर कर दिए. पश्चात्ताप कमिशन के सदस्य ने कहा :
“ दो
मार्च से लागू रशियन फेडेरेशन के नागरिक के पासपोर्ट से संबंधित संशोधन के अनुसार, आपकी
माँग पर, पासपोर्ट में एक स्मारक सील लगाई जा सकती है,
जो यह सूचित करेगी कि आपने राष्ट्रीय नागरिक-पश्चात्ताप प्रक्रिया
में भाग लिया था. क्या आप इच्छुक हैं?”
“हाँ,” क्स्यूशा ने कहा, “हमें चाहिए.”
“ ‘सील’ तो प्रतीकात्मक है,” ग्लेब के पासपोर्ट के पिछले
आवरण पर मुहर लगाते हुए कमिशन के सदस्य ने जानकारी दी, “उसकी
उपस्थिति अथवा अनुपस्थिति,” उसने क्स्यूशा के पासपोर्ट पर
मुहर लगाई, “किन्हीं परिणामों का कारण नहीं हो सकती.”
पासपोर्ट वापस लौटा दिए. “ना तो प्रशासनिक, न ही किसी और तरह
के.”
“कुछ बॉस
दूसरी तरह से सोचते हैं.”
ग्लेब की
यह टिप्पणी अनुत्तरित रह गई.
“किसी और
दिन नहीं लगाएँगे,”
प्रमुख ने कहा, “सिर्फ आज.”
क्स्यूशा
को याद आया:
“हमारे
दोस्त तालाब के किनारे आराम कर रहे हैं. क्या हम उनकी तरफ़ से भी पश्चात्ताप प्रकट
कर सकते हैं?”
“बस करो, क्स्यूशा,”
ग्लेब ने कहा, “वो काम चला लेंगे.”
“तुम ऐसा
क्यों कर रहे हो?
वो तो नहीं कर सकते, मगर हम उनके लिए कर सकते
थे.”
“मेरा अब
किसी और के लिए कुछ भी करने का इरादा नहीं है,” ग्लेब ने चिड़चिड़ाहट से
कहा.
“व्यक्तिगत
उपस्थिति अनिवार्य है,” प्रमुख ने अपनी आवाज़ से हमदर्दी प्रकट करते
हुए नर्मी से कहा.
“कम से
कम दान्या के लिए. उसके हस्ताक्षर आसान हैं, मैं कर सकती हूँ.”
“और अगर
अचानक वह इसका विरोध करे तो?” प्रमुख ने कहा.
“आप क्या
कह रहे हैं! वह दोनों हाथ उठाकर ‘हाँ’ कहेगा!”
“क्या
आपके पास उसका पासपोर्ट है?”
“नहीं.
पासपोर्ट उसी के पास रह गया.”
“अफ़सोस, मगर
असंभव है.”
मगर
पासपोर्ट पर मुहर लगाना तो ज़रूरी नहीं है ना. बिना ‘सील’ के
रहने दो पासपोर्ट को, और पत्रक मैं भर देती हूँ.”
“पत्रक
आप कैसे भरेंगी,
अगर आपके पास उसके पासपोर्ट की जानकारी नहीं है?...या है?”
“क्स्यूशा, बस
हो गया. मैं थक गया हूँ.”
“तुम
सिर्फ अपने ही बारे में क्यों सोचते हो?” क्स्यूशा तैश में आ गई.
“ड्रामा
करने की कोई ज़रूरत नहीं. ठीक है?”
“नौजवानों, आज
के दिन लड़ने की ज़रूरत नहीं है.” कमिशन का सदस्य उठा और उसने समारोहपूर्वक कहा
: “ ‘राष्ट्रीय
नागरिक-पश्चात्ताप’ में शामिल होने के लिए आपको मुबारकबाद.
ये रहे आपके लिए सफ़ेद रिबन्स जो यह दर्शाते हैं कि आपने पश्चात्ताप कर लिया है.”
सफ़ेद
रिबन्स देकर उसके हाथ मिलाया – पहले ग्लेब से, और फिर क्स्यूशा से.
हाथ
मिलाते हुए ग्लेब को अचानक उस आदमी की याद आई जो कुछ देर पहले उनसे मिला था – कैसे
उसने रास्ते पर हाथ मिलाया था. अब ग्लेब को समझ में आया कि मामला क्या था : उनके
पास उस समय सफ़ेद रिबन्स नहीं थे, और जाने वाला, जो ख़ुद भी बिना रिबन्स के था, उन्हें उस समय अपना
समझ बैठा. उसने फ़ैसला कर लिया, कि वे, उसीके
समान, नकारवादी हैं.
“आप ठीक
तो हैं?”
फ़ौरन सिर
घुमा कर क्स्यूशा की ओर देखा. ये कमिशन का सदस्य था, जो हाथ मिलाते हुए उससे पूछ
रहा था. क्स्यूशा विवर्ण हो गई थी, उसकी आँखें मानो अजीब तरह
से निर्जीव हो रही थीं.
“पानी?” प्रमुख ने पूचा.
“नहीं.....खुली
हवा...”
“तुम्हें
क्या हो गया,
क्स्यूशा?” ग्लेब घबरा गया.
“चलो, चलो,
जाएँगे...”
वे बाहर
खुली हवा में आए,
वह ग्लेब के सहारे चल रही थी, जैसे गिरने से
डर रही हो.
कमिशन का
दूसरा सदस्य दाईं ओर वाली मेज़ पर बैठी बुढ़िया से कह रहा था:
“कुछ भी
मिटाने की ज़रूरत नहीं है. यहाँ कुछ मिटाया नहीं जाता. यहाँ, उलटे,
कुछ जोड़ा जाता है.”
और पीछे
से ग्लेब तक आवाज़ आई:
“अगर आप
नहीं चाहतीं,
तो बेहतर होता, कि यहाँ न आतीं...विक्टर
अन्द्रेयेविच, इस पेन्शनर बुढ़िया ने ‘बोल्शेविकों
के अपराध’ को मिटा दिया है!...क्या करें?...’’
हॉटेल तक
100 मीटर्स भी वे न जा पाए.
“चलो, बैठते
हैं,” क्स्यूशा ने कहा.
“क्या, इतनी
बिगड़ गई है तबियत?” ग्लेब ने क्स्यूशा के साथ रेस्टारेन्ट की
सीढ़ी पर बैठते हुए पूछा.
दरवाज़े
पर ‘ईवेन्ट’ लिखी हुई तख़्ती लटक रही थी.
“पता है, ग्लेबूश्का,
मुझे तुम्हारी जो बात मुझे सबसे बुरी लगती है, वो क्या है? तुम्हारी उदासीनता.”
“मैं
किसके प्रति उदासीन हूँ?”
“हर चीज़
के प्रति. तुम मेरे प्रति उदासीन हो. तुम लोगों के प्रति उदासीन हो. तुम्हें इससे
कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि मनोमाख किसके इतिहास का है. हमारे, हमारे
नहीं...तुम किसी भी चीज़ की ज़िम्मेदारी नहीं लेना चाहते. उसकी भी नहीं, जो देश में चल रहा है, उसकी भी नहीं जो हमारे बीच चल
रहा है...तुम मेरे बारे में कुछ भी नहीं जानते. क्योंकि तुम मेरे प्रति उदासीन हो.
और मेरी तबियत से भी तुम्हें कुछ लेना-देना नहीं है. और हर उस चीज़ से, जिससे मैं गुज़र रही हूँ.”
“फ़ालतू
की बातें सोचती रहती हो, ख़ुद अपने आप की ही नहीं सुनती, “ ग्लेब ने सिर के ऊपर टँगी मालाओं की ओर देखते हुए कहा.
“और क्या
तुम ख़ुद पश्चात्ताप प्रकट नहीं करना चाहते? औरों के लिए नहीं. अपने
लिए.”
“किसके
सामने पश्चात्ताप प्रकट करूँ? किस बारे में?”
“किसी भी
बात के बारे में. इससे क्या फ़रक पड़ता है कि किस बात के लिए कर रहे हो. मेरे सामने.
जब तक यहाँ हैं,
वर्ना मैं वैसे ही मर जाऊँगी. या बेवकूफ़ बन जाऊँगी. अफ़सोस करते
रहोगे, कि कहा नहीं.”
“मैंने
तुमसे क्या नहीं कहा? बेवकूफ़ क्यों बन जाओगी? या
मरोगी क्यों?”
“मुझे
ठण्ड लग रही है. और साँस लेने में मुश्किल हो रही है. और सिर.”
उसने
क्स्यूशा का माथा चूमा.
“ओह. तुम्हें
तो बुखार है.”
“अगर
तुम्हें किसी बात के बारे में नहीं कहना है, तो मैं कहूँगी. मैं
तुम्हारे सामने पश्चात्ताप प्रकट करती हूँ, कि तुम्हारे सिर
के बाल खड़े हो जाएँगे. वर्ना तो तुम बेहद ख़ामोश तबियत के हो, बेपरवाह किस्म के...”
“क्स्यूशा.
तुम्हें बुखार है. कुछ करना चाहिए.”
“तुम
मुझे – “नहीं” कहना चाहते हो? हा-हा” वह
हँसने लगी और फ़ौरन खाँसने लगी. “मगर मैं तुम्हें - “हाँ”!- उसने खाँसी के बीच
चीखने की कोशिश करते हुए कहा.
ग्लेब
उठा. वह इधर उधर देखते हुए खड़ा था, समझ में नहीं आ रहा था, कि क्या करे.
“दान्या
के साथ,
दानेच्का के साथ – किसके साथ!... बुरा मान गए? उम्मीद नहीं थी, कि दानेच्का के साथ?”
ग्लेब ने
सिर एक ओर को झुकाया.
“अच्छा, और
इसे क्या कहते हैं?” उसने शांत आवाज़ में पूछा. “और इसका क्या
मतलब है? तुम, क्या पश्चात्ताप कर रही
हो या कुछ और?”
“हाँ, मैं
पश्चात्ताप कर रही हूँ, हाँ!”
“अगर तुम
पश्चात्ताप प्रकट कर रही थीं, तो तुम्हें अफ़सोस होता, मगर तुम्हें अफ़सोस नहीं हो रहा है, बल्कि, इसके विपरीत, तुम मुझे गुस्सा दिलाना चाहती हो. पता
नहीं, किसलिए. तुम्हारे शब्दों की कीमत कौडी भर है.”
“तो
तुम्हें यकीन नहीं हो रहा है, कि मैं दानेच्का के साथ?...”
“बकवास
कर रही हो,
सिर्फ न जाने कहाँ की बकवास!...दान्या तान्या को देख-देखकर अघाता
नहीं है, और तुम कह रही हो!...दान्या – फ़रिश्ता इन्सान है!”
“चार बार
दान्या के साथ. एक नहीं, दो नहीं, बल्कि चार बार!”
“अगर तुम
कहतीं कि डिज़ायनर ज़ायनेर के साथ, तो हो सकता है, मैं विश्वास भी कर लेता...मगर दान्या के साथ...कभी नहीं...”
क्स्यूशा
रोने लगी.
“तुमने
मुझ पर कभी यकीन ही नहीं किया!...तुमने सोचा, कि मैं इस घुन के बारे में
भी मज़ाक कर रही हूँ. देख लिया नतीजा? देख रहे हो?...तुम यही चाहते थे न?” उसने अपने हाथों की ओर देखा,
उसे बुखार हो गया था. “क्या – अब ख़ुश हो?”
उसने एक
बार फिर से उसके माथे को छूना चाहा, इस बार होठों से नहीं, बल्कि हाथ से, क्स्यूशा ने झटके से हाथ हटा दिया.
“कितने
उदासीन हो तुम मेरे बारे में!...कितने उदासीन हो तुम मेरे बारे में!...”
रेस्टारेन्ट
से एक आदमी बाहर निकला जिसका युनिफॉर्म फॉरेस्ट-इन्स्पेक्टर
के युनिफॉर्म जैसा था.
“यहाँ
बैठना मना है,”
चौकीदार ने कहा. “हमारे यहाँ भोज चल रहा है.”
“इसकी
तबियत ख़राब है,”
ग्लेब ने कहा, “इसे इन्फेक्शन हो गया है.
एम्बुलेन्स को बुलाना होगा.”
“हॉस्पिटल
बगल में ही है – ज़्यादा जल्दी पहुँच जाओगे.”
“मैं कह
तो रहा हूँ,
वह चल नहीं सकती.”
“चल सकती
हूँ,”
क्स्यूशा ने कहा; उसने खड़े होने की कोशिश की,
मगर ग्लेब ने उसके कंधों पर दबाव डाल कर उसे ऐसा करने नहीं दिया.
“बैठो!
मैं एक मिनट में आता हूँ.”
क्स्यूशा
भड़क गई.
“मर ही
जाती...या पागल ही हो जाती...और तुम्हें कुछ भी पता नहीं चलता...आप कौन हैं?” उसने चौकीदार से पूछा.
चौकीदार
ने सीने के बाईं ओर टँकी सफ़ेद रिबन को ठीक किया और कोई जवाब नहीं दिया.
“उठो मत,” ग्लेब ने कहा. “हॉस्पिटल तक भाग कर जाता हूँ और हम तुम्हें एम्बुलेन्स में
ले जाएँगे. और आप इसकी बात मत सुनिए,” वह रेस्टारेन्ट के
चौकीदार से बोला.
“मुझे
छोड़कर मत जाओ,
ग्लेब...”
“क्स्यूशा, मैं
अभ्भी आया.”
वह भागा.
ग्लेब
हॉटेल की बगल से भाग रहा था, नुक्कड तक पहुँचा, दाईं ओर मुड़ा, दाईं ओर मुड़ती हुई बस नं. 1 को डराते
हुए सड़क पर तिरछे भागा, और ल्युक्सेम्बुर्ग की दिशा में
भागा. तीन मिनट भी नहीं बीते थे, कि वह वहाँ पहुँच गया,
जहाँ थोड़ी ही देर पहले क्स्यूशा के साथ आया था.
“मैं आज
आपके यहाँ आया था. संक्रामक एन्सेफेलाइटिस. उसकी हालत ख़राब है. वह रास्ते पर अजनबी
के साथ है. एम्बुलेन्स बुलाकर उसे यहाँ लाना पड़ेगा.”
रजिस्ट्रेशन
काउन्टर के पीछे से जवाब आया:
“गार्डन
में और पहला दरवाज़ा.”
ग्लेब ने
बाहर की ओर छलाँग लगाई, गार्डन में भागा और उड़ते हुए पहले दरवाज़े में
घुसा:
“बीबी
रास्ते पर अजनबी के साथ है. उसकी तबियत बेहद ख़राब है. एम्बुलेन्स बुलाकर उसे यहाँ
लाना होगा.”
उसने
सुना :
“घबराइए
नहीं. क्या हुआ है?”
एन्सेफेलाइटिस.
सभी लक्षण हैं. एम्बुलेन्स भेजिए. यहीं पास में ही है.”
“क्या
लक्षण हैं?”
ग्लेब से पूछा.
“मेरा
इम्तिहान मत लीजिए, मैं कोई स्टूडेन्ट नहीं हूँ!” ग्लेब चीख़ा. “तेज़
बुखार, सिहरन, सिर में दर्द, दमघोंटू खाँसी, मौत के बारे में ख़याल...ये रही वो!”
उसने खिड़की से क्स्यूशा को देखा, जो फ़ेन्सिंग के पीछे,
रास्ते पर जा रही थी.
ग्लेब
बाहर भागा और क्स्यूशा को पकड़ने के लिए लपका (वर्ना वह बगल से निकल जाती).
“क्स्यूशा, कहाँ
जा रही हो?”
“ग्लेबूश्का, मैंने
सोचा, कि तुम चले गए...”
वह
बदहवास थी.
उसने उसे
हाथों में उठाया और गार्डन से होकर पहले दरवाज़े में तक लाया.
वहाँ न
सिर्फ सफ़ेद एप्रन्स वाले थे, बल्कि नीले एप्रन वाले और मामूली
ड्रेस वाले भी थे, मगर सभी, जो उस समय
लॉबी में थे, सब “खड़ी” स्थिति में दिखाई दिए : जो खड़ा था,
वह खड़ा ही रहा, और जो बैठा था, वो भी फ़ौरन खड़ा हो गया.
क्स्यूशा
को हाथों में लेकर आते हुए ग्लेब ने गहरा प्रभाव डाला था.
परेशान
हो गए.
एक पल को
तो ग्लेब को ऐसा लगा कि उसके बारे में भूल गए हैं, कि कोई ख़ौफ़नाक चीज़ हुई है
और अब उन्हें उससे कोई नहीं मतलब नहीं है. वाकई में, जो हुआ,
उसमें सबसे ज़्यादा दोष उसीका था. वह यह तो नहीं जानता था, कि उसका दोष क्या है, मगर यह ज़रूर जानता था, कि सबसे ज़्यादा दोष उसीका है. हालात का दोष भी उतना ही था. क्या इन घुनों
को एक बार में और हमेशा के लिए निकाल देना इतना मुश्किल है – उन पर कोई ज़हरीली दवा
छिड़क देना, उन पर घुन खाने वाले किन्हीं कीडों को छोड़ देना?...इस संक्रमण का कोई प्राकृतिक शत्रु तो होगा? ऐसे
रास्ते बनाना क्यों मुश्किल है, जो बारिश से बह न जाएँ,
और क्यों बसों को इन्सानी टाइम-टेबल के अनुसार नहीं छोड़ा जा सकता?
ग्लेब को
जगह नहीं मिल रही थी, बावजूद इसके कि कॉरीडोर लम्बा-चौड़ा था – वह
लगातार चल ही रहा था. कभी-कभी वह रुक जाता : क्या वह वहीं है, जहाँ उसे होना चाहिए? उसी मंज़िल पर, उन्हीं दरवाज़ों के सामने? जाकर पूछना चाहिए – बस करो
अपनी ख़ामोशी, जवाब दीजिए.
“नौजवान, क्या
आप यहाँ पर चक्कर लगाना बंद करेंगे? आप हमें बहुत डिस्टर्ब
कर रहे हैं.”
इन
शब्दों का मतलब न समझते हुए ग्लेब ने क्लीनिक के दो लोगों पर नज़रें गडा दीं – एक
मरीज़ जैसा था,
और दूसरा मरीज़ जैसा नहीं था – दोनों बगल में बैठे थे. फिर उसने
टी.वी. के स्क्रीन की तरफ़ देखा, जिसे देखने में वह बाधा डाल
रहा था. समाचारों का प्रसारण हो रहा था. ये सूचित किया गया कि रासट्रीय नागरिक पश्चात्ताप
व्यक्त करने वालों की संख्या के अनुसार उत्तरी कॉकेशस और तूवा प्रथम स्थान पर हैं –
क्रमश: 97% और 99%. आम तौर से देश में बड़े जोश से पश्चात्ताप व्यक्त किया जा रहा
है. दोनों राजधानियाँ ‘आउटसाइडर्स’ हैं,
हाँलाकि उनमें भी पश्चात्ताप व्यक्त करने वालों का प्रतिशत ड्यूमा
और राष्ट्रपति चुनावों में भाग लेने वालों के प्रतिशत को पार कर गया (अगर पिछले
दशक पर गौर करें तो). कहा जा रहा है कि मॉस्को समय के अनुसार दोपहर के एक बजे
पश्चात्ताप व्यक्त करने वालों की संख्या 50% से अधिक हो गई, मतलब,
तभी स्पष्ट हो गया था : राष्ट्रीय नागरिक पश्चात्ताप का आयोजन हुआ
था!
मरीज़
जैसे नहीं दिखने वाले ने मरीज़ जैसे आदमी से कहा:
“कितनी
अफ़सरशाही है हर जगह. हमने इसके लिए संघर्ष नहीं किया था, हमने
इसकी कल्पना नहीं की थी.”
“तो, आप
क्या चाहते हैं?” मरीज़ जैसे आदमी ने पूछा. “कुछ और तो हो ही
नहीं सकता था. क्या आपने सुना, कि राष्ट्रपति कैसे बोल रहे
थे? नहीं, कुछ भी कहिए, ये एक बहुत बड़ा, बस बेहद बड़ा कदम है भविष्य की ओर.
आज हम कुछ और हो गए हैं.”
ग्लेब
हिला नहीं. स्क्रीन पर प्रतिशत संख्याएँ झाँक रही थी.
ग्लेब की
तरफ़ ध्यान न देते हुए, मरीज़ जैसे ने उस आदमी से पूछा जो मरीज़ जैसा
नहीं था:
“क्या आप
वाकई में ऐसा सोचते हैं, कि व्यवस्था से संघर्ष करने वालों और व्यवस्था
से पीड़ितों को सबके समान ही पश्चात्ताप करना चाहिए?”
“एक तरफ़
से,
कोई भी, किसी के भी प्रति, कुछ भी व्यक्त करने के लिए मजबूर नहीं है, मगर
दूसरी तरफ़ से, और ये होगा समस्या का सार – बेशक, करना चाहिए. हम सभी इस समाज का और इस कालखण्ड का हिस्सा हैं, हममें से हरेक जवाबदेह है उसके लिए, जो हुआ था,
चाहे वो हमारे साथ न भी हुआ हो....”
ग्लेब
कॉरीडोर में चलते हुए खिड़की के पास गया. कॉरीडोर की दीवारों पर तस्वीरें टँगी थीं –
जंगल के दृश्य. एक में हिरन दिखाया गया था. ग्लेब को ड्राइवर की और उसके प्रस्ताव
की याद आई.
अचानक
उसके दिमाग़ में सीधे लॉरी से पत्तों वाले झाडू बेचने का ख़याल आया. वो भी
स्नानगृहों से दूर. जैसे, कहीं, सेन्नाया
चौक पर. जैसे वह क्स्यूशा से बात कर रहा था. सोचो, वह कह रहा
था, तुम सादोवाया पर जा रही हो, पत्तों-वत्तों
वाले झाडुओं के बारे में कुछ भी नहीं सोच रही हो, और अचानक
एक लॉरी खड़ी है, और उसमें से सीधे पत्तों वाले झाडू बेच रहे
हैं. सस्ते. ये ज़रूरी नहीं है, कि तुम स्नानगृह जा रही हो या
नहीं, - ऐसा नज़ारा देखकर, फ़ौरन समझ
जाती हो कि तुम किस्मत वाली हो. कि, ये अच्छा मौका है. मौका –
पत्तों वाले झाडू को हाथ से न जाने देने का. पता नहीं. वर्ना चला जाएगा. और तुम
पत्तों वाली झाडू खरीदती हो, एक और ख़रीदती हो. अपने लिए नहीं,
दोस्तों के लिए, माँ-बाप के लिए, परिचितों के लिए. क्या नहीं खरीदोगी? मैं तो ख़रीदता.
‘माय
गॉड, ये मैं क्या सोचने लगा?’ ग्लेब
अपने स्वगत भाषण से घबरा गया.
“आप –
पति हैं?”
डॉक्टर
पास आ रहा था.
“पति,” ग्लेब ने कहा और लार निगल ली.
“उसे, लगता
है, इम्युनोग्लोबिन का इंजेक्शन दिया गया था. घंटा भर पहले,
क्या वह ठीक कह रही है?”
“करीब-करीब
तभी. पाँच नहीं बजे थे.” वह चौंक गया : क्या सिर्फ एक ही घंटा बीता है,
और इतनी सारी घटनाएँ हो गईं? “मगर मुझे ये
नहीं मालूम, कि कौन सा इंजेक्शन था.”
“इम्युनोग्लोबिन.
वैसे तो इम्युनोग्लोबिन आसानी से बर्दाश्त हो जाता है, मगर
कभी-कभी कुछ छोटे-मोटे कॉम्प्लिकेशन्स हो जाते हैं, अक्सर
पहले इंजेक्शन के बाद. और फिर, हर व्यक्ति की अपनी-अपनी
बर्दाश्त की ताकत होती है, कई सारी बारीकियाँ होती हैं!...और ये लस? कौनसा प्रॉडक्शन था, मालूम है?”
बातें
करते हुए डॉक्टर सफ़ेद रिबन पर उँगलियाँ फेर रहा था.
“हमारा? ऑस्ट्रिया
का?”
उसने
ग्लेब से परे एक ओर को देखा.
“मैंने
कहा ना,
मुझे नहीं मालूम, कि कौनसा इंजेक्शन था. बगल
वाली बिल्डिंग में दिया गया गया था. मालूम कर सकते हैं.”
“कोई
ज़रूरत नहीं है. सब ठीक है, ‘फाल्स अलार्म’. अभी सब ठीक हो जाएगा, बल्कि समझिए, कि ठीक हो गया है. बुखार कम हो गया, मरीज़ शांत हो
गया, ऊँघ रहा है. मगर, एकाध घण्टा
कमज़ोरी रहेगी, ये डरने की बात नहीं है.”
“मतलब, ये
एन्सेफेलाइटिस नहीं है?”
“घुन ने
कब काटा था?
कल?”
“कल शाम
को उसे निकाला था.”
“बस, चौबीस
घण्टे हुए हैं. नहीं, ये एन्सेफेलाइटिस नहीं है और लाइम रोग
भी नहीं है. उसके लिए करीब दो-तीन दिन का समय देना पड़ता है, और, आम तौर से, बीमारी का पता काटे जाने के एक हफ़्ते
बाद चलता है, हो सकता है और भी देर से. अंडे सेने के लिए
करीब बीस दिन का समय चाहिए...मुझे आपको बताना होगा कि, मेरी
जानकारी के अनुसार, इस बार संक्रमित घुनों की महामारी कम हो
रही है. आपकी बीबी के बीमार पड़ने की संभावना ज़्यादा नहीं है. मैं तो कहूँगा,
कि बेहद कम है.”
“ओह,
कितना ढाढस बंधाया आपने मुझे!”
“हमारे
पास दो पर्याय हैं. आधे घण्टे बाद, अधिक से अधिक एक घण्टे बाद,
हमें इत्मीनान हो जाएगा, कि आपकी बीबी ज़िंदा
है और तंदुरुस्त है और हम उसे आपके साथ कहीं भी जाने के लिए छुट्टी दे देंगे. और
दूसरा, मगर ये सिर्फ आपके मन की तसल्ली के लिए है. हमारा मन
तो हमेशा शांत रहता है, यकीन कीजिए. संक्षेप में, हम एक अलग कमरे में सुबह तक रखेंगे. क्या उसकी इन्श्युरेन्स पॉलिसी है?”
“नहीं, हमने
नहीं ली है.”
“और
पासपोर्ट में मुहर है?...शायद, आप समझ रहे हैं,
कि मैं किस बारे में कह रहा हूँ?”
“मुहर
है!”
“मतलब, एक
स्वतन्त्र कमरा, आराम करने दो, नींद
पूरी हो जाएगी. विटामिन्स देंगे. बिना देखभाल के नहीं रहने देंगे. सिर्फ आपको आगाह
करना होगा – कमरे के लिए पैसे देना होंगे.”
“ठीक है.
मैं पैसे भर दूँगा. कितने?”
“आपको
बता दिया जाएगा,”
लापरवाही से डॉक्टर ने कहा. “कम ही होगा.”
“डोक्टर, क्या
मैं भी उसके साथ रह सकता हूँ – रात भर.”
“मतलब, क्या
परिचारक के रूप में?”
“उसे
ज़्यादा अच्छा लगेगा, मुझे विश्वास है.”
“इसकी
कोई ज़रूरत तो नहीं है, मगर...आपके पासपोर्ट में मुहर है?”
“बेशक, है!”
“हम
आसानी से कर लेते हैं. आप दोनों को डबल रूम दिया जाए. वह कुछ महँगा होगा – मतलब एक
तिहाई और.”
“मैं
तैयार हूँ,
डॉक्टर,” ग्लेब ने कहा. “और कल सुबह-सुबह हम
घर चले जाएँगे.”
“अभी से? आपको
इतनी जल्दी है? नहीं, नहीं, मैं रोक नहीं रहा हूँ...थोड़ा घूम-फिर लीजिए, हमारे
यहाँ बाग में चेरीज़ हैं, जंगली गुलाब है, शाम कितनी हसीन है, तब तक आपका कमरा तैयार हो जाएगा.
और पैसों के बारे में आपके पास आ जाएँगे, फिक्र मत करिए. मैं
पैसों के मामले नहीं देखता.”
डॉक्टर
मुड़कर सीढ़ियों पर जाने ही वाला था, कि ग्लेब को एक और बात याद आ गई:
“आख़िरी
सवाल,
डॉक्टर. आपका क्या ख़याल है, क्या इस हालत
में...वह बड़बड़ा सकती थी?”
“बड़बड़ाना? हुम्...सैद्धांतिक
रूप से यदि बुखार काफ़ी तेज़ हो, तो बड़बड़ाहट हो सकती है. पता
नहीं, इस ‘केस’ में
क्या हुआ था...टेम्परेचर कम ही देर के लिए ऊपर गया था..और, ख़ास
तौर से, क्या बड़बड़ा रही थी?”
“वह
अविश्वसनीय बातें कह रही थी. कुछ ऐसा, जिसकी कल्पना भी नहीं कर सकते,
जिसका कोई मतलब ही नहीं है. मैं, बेशक,
आपके सामने दुहराऊँगा नहीं, इसका संबंध हमारी
निजी ज़िंदगी से था.”
अब तक तो
डॉक्टर ग्लेब से बातें करते हुए या तो फर्श की ओर देख रहा था, या
ग्लेब के दाएँ कान की ओर, मगर अभी उसने सीधे ग्लेब की आँखों
में देखा, जैसे वहाँ किसी असाधारण चीज़ को देखना चाहता हो;
फिर उसने सहानुभूतिपूर्वक ग्लेब की बाँह पकड़ी.
“पूरे
विश्वास के साथ कहता हूँ, कि ये बड़बड़ाहट थी,” हौले से, करीब-करीब प्यार से डॉक्टर ने कहा, और उसके चेहरे पर विश्वासभरी मुस्कान तैर गई. “भूल जाइए. मैं आपसे बड़ा हूँ.
मेरे ज़िंदगी के तजुर्बे पर यकीन कीजिए, औरतें...औरतें
पूरे होशो-हवास में भी बेहद अजीब-अजीब बातें करती हैं. ठीक है? मतलब डबल रूम, टी.वी. के साथ,
हाँ?”
“हाँ, डॉक्टर,
थैंक्यू!”
वह बाहर
आया. नोटिस-बोर्ड के पास रुका. घूमते-फिरते मरीज़ों के लिए शाम को डान्स का वादा
किया गया था. शाम हो रही थी, ठण्डक बढ़ रही थी. सिर्फ यहीं,
सिर्फ गार्डन के रास्ते, क्यारी के सामने,
जिसमें कुछ कलियाँ लगी थीं, या, शायद, गेंदे के फूल लगे थे, ग्लेब
ने महसूस किया कि उसकी पीठ कितनी भीग गई है. डेढ़ महीने में पहली बार सिगरेट पीने
का मन हुआ. गेंदे के फूल बड़े-बड़े गुबरैलों जैसे नज़र आ रहे थे, उन पर सफ़ेद धब्बे थे, - शायद, गेंदे
के फूलों को कोई बीमारी लग गई है. अपनी उपस्थिति की विचित्रता को ग्लेब शारीरिक
रूप से महसूस नहीं कर रहा था. पेर्वोमायस्क में वो लोग क्या कर रहे हैं? दिन इतना लम्बा, न ख़त्म होने वाला क्यों है? दिलचस्प बात है, क्या डान्स का नोटिस उसके और
क्स्यूशा के लिए है, - हालाँकि वे घूम-फिर रहे हैं, मगर बीमार नहीं हैं? “ऊफ़”,
ग्लेब ने कहा और गहरी साँस ली. उसे याद आया कि झील पर वोद्का नहीं ख़रीदी थी. कल
सुबह जाने से पहले खरीदेंगे – रेल्वे चौक पर चौबीसों घण्टे खुली रहने वाली दुकान
है. “ऊफ़”, ग्लेब ने फिर कहा और आसमान की ओर देखा, फिसलते हुए बादलों की ओर.
कंसीर्ज
यूल्या बरानवा गुरुवार को ड्यूटी पर आई. उसके ड्यूटी-चार्ट के मुताबिक सोमवार को
उसकी छुट्टी होती थी, और मंगलवार और बुधवार को उसे भाई की शादी के
लिए सरातव जाने की छुट्टी मिल गई. यूल्या किसी विपत्ति की आशंका से गई थी : उस
संदेहास्पद डिब्बे के लिए वे दोनों आए ही नहीं. और अब सबसे पहले अपने ड्यूटी रूम
में फ्रिज के पास आई. सब कुछ वैसा ही था – डिब्बा अपनी जगह पर था. उसके सहयोगियों
में से किसीने शायद ही उसे हाथ लगाया होगा. यूल्या ने दो ऊँगलियों से इस अबूझ
डिब्बे को पकड़ा और फ्रिज से बाहर निकालकर रोशनी में ले जाकर देखा, - डिब्बे की तली पर कोई मच्छर पड़ा था. उसका विचार था, कि
पुलिस को सूचित करे. मगर वलेरी विताल्येविच क्या कहेंगे? यूल्या
ने कल्पना की कि सीनियर मैनेजर उसकी कैसी खिंचाई करेगा. उसने सोचा-सोचा और फ़ैसला
किया कि किसी से भी ना कुछ कहेगी, ना कुछ दिखाएगी. डिब्बे को
ऊपरी शेल्फ के दाएँ कोने में धकेल दिया और दूसरों की नज़रों से बचाने के लिए उसके
सामने अंजीर का पैकेट रख दिया. वहीं पड़ा रहने दो, शायद सब
ठीक हो जाएगा,
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