मंगलवार, 29 सितंबर 2015

Curly Brackets - 05


22.55

“बैठो!” कुर्सी से उठने की उसकी कोशिश का विरोध करते हुए मरीना कहती है. “तुम्हें जल्दी नहीं है. रात में हमारे यहाँ रहना. हमारे यहाँ एक कमरा ख़ाली है.”
 “क्या मैंने उसका अपमान किया?”
 “नहीं. उसे वाक़ई में जल्दी उठना पड़ता है. वह लवा पक्षी है. ये तो हम हैं उल्लू.”
तोडोर के बगैर वातावरण ज़्यादा हल्का, शांत हो गया.
कपितोनोव रात को वहाँ रुकने से इनकार कर देता है.
 “सारी रात फ्लैट में घूमता रहूंगा, भूत की तरह. किसलिए?”
मरीना पूछती है:
 “तुम्हें वो पसन्द नहीं आया?”
 “क्यों नहीं पसन्द आया? बिल्कुल पसन्द आया.”
 “मैं बिल्कुल अच्छी हूँ, तुम कुछ सोचना मत,” मरीना ने कहा.
 “मैं देख रहा हूँ, सोच नहीं रहा.”
 “नहीं, सच में, हमारे बीच सब कुछ सामान्य है,” और आगे बोली, “मूखिन भी ‘बोरिंग’ था”.
 “मरीन, मैंने पूछा नहीं...मुझे अब तक मालूम नहीं हुआ कि मूख़िन के बारे में आख़िर क्या हुआ...जाँच और बाकी सब...”
 “कुछ भी नहीं. मामला बन्द कर दिया. जवाबों के मुक़ाबले सवाल ही ज़्यादा थे. कुछ दिन पहले तक मैं किसी प्राइवेट डिटेक्टिव को रखना चाहती थी. अब ऐसा नहीं चाहती. मगर जिस बात में मेरा विश्वास नहीं है, वो ये है, कि वो ‘वही’ था.”
 “तब, अंत्य संस्कार के समय मैं काफ़ी बकवास कर रहा था, तुम माफ़ करना.”
 “किसे याद रहता है.”
 “नीना को याद था.”
 “नीनोच्का...देख रहे हो, हमारे साथ कैसे सब कुछ एक जैसा होता है. मैं उस समय आ ही नहीं पाई, इस बात के लिए तुम मुझे माफ़ करना.”
आन्का के बारे में पूछा.
 “क्या तुम्हारे पास फोटो है?”
उसके पास है – मोबाइल में.
“ओय, सुन्दर! ओय, प्रिन्सेस! ...मुझे उसकी तब की याद है. हवा भरे हुए मगर के साथ. वह मुझे ‘मलीना आन्ती’ कहती थी.”
 “वो मगर तुम्हीं ने तो उसे गिफ़्ट किया था...”
 “ओह, हाँ.”
 “वो ‘साऊथ’ में उसे छोड़ती नहीं थी”.
 “बच्चों के लिए!” मरीना जाम उठाती है.
जाम टकराए.
पीने के बाद कपितोनोव ने कहता है:
 “हमारे साथ कहीं कुछ अच्छा नहीं हो रहा है.”
 “हमारे यहाँ...क्या बिल्कुल अच्छा नहीं है?”
 “ओह, नहीं, मेरे और उसके बीच– उसके और मेरे बीच , उसके साथ मेरे...”
”प्रॉब्लेम्स?”
 “हमेशा लड़ते रहते हैं. वह मुझे, शायद, तानाशाह समझती है. मैं चाहे कुछ भी पूछूँ, ये जैसे उसकी आज़ादी का, स्वाधीनता का, प्रभुसत्ता का हनन होता है. मैंने तो किसी भी चीज़ के बारे में पूछना ही छोड़ दिया है. दूसरी तरफ़ से, मैं क्यों नहीं पूछ सकता? मैं, क्या – बाहरी आदमी हूँ? वह ख़ुद ही तानाशाह है!...उसे मेरी हर बात से चिढ़ होती है, बिल्कुल हर बात से. नहीं: गुस्से से पागल हो जाती है. “मुझे ये बात गुस्सा दिलाती है!” – ऐसा कहती है.”
 “सुनो, तुम्हारी कौन सी बात उसे गुस्सा दिला सकती है?”
 “अरे, हर बात! मैं जूते चढ़ाने का चप्पा हुक पे क्यों नहीं लटकाता. मैं जल्दी-जल्दी क्यों खाता हूँ. उपस्थितों के बारे में मैं ‘वो लड़का” या “वो लड़की” क्यों कहता हूँ. चाय पैकेट्स में क्यों ख़रीदता हूँ. मैं इतना उदासीन क्यों हूँ....हर इन्सान के प्रति, हर चीज़ के प्रति...उसे, मिसाल के तौर पर ये अच्छा नहीं लगता कि जिस औरत से मैंने उसकी पहचान करवाने का फ़ैसला किया, काला चष्मा क्यों नहीं उतारती. वह मुझसे ये नहीं कहती कि अच्छा नहीं लगता, मगर मैं तो महसूस करता हूँ, देखता हूँ... जैसे किसी इन्सान के पास काला चष्मा न उतारने का कोई कारण ही नहीं हो सकता. कारण तो हो सकते हैं. और, उसे इससे क्या करना है?”
 “सही है, उसे इससे कुछ नहीं करना है. मगर, वजह क्या है?”
 “अब तुम भी. क्योंकि उसकी दोनों आँखें अलग-अलग तरह की हैं, एक – गहरी भूरी, दूसरी – नीली.”
 “क्या उसे ये मालूम है?”
 “कैसे नहीं मालूम होगा, अगर ये उसकी आँखें हैं?”                       
 “नहीं, मैं बेटी के बारे में पूछ रही हूँ.”
 “और क्या उसे मालूम होना ही चाहिए? क्या ऐसी चीज़ें मैं समझाऊँ? क्या तुम ये ‘सीरियसली’ कह रही हो, मरीना?”
”शायद, नहीं समझाना चाहिए...मगर तुम इस तरह बता रहे हो...”
 “चाय पैकेट्स में ख़रीदता हूँ...बता चुका...जल्दी-जल्दी खाता हूँ...हाँ...मैं किसी और तरह का क्यों न हुआ, बल्कि ऐसा...अपनी ख़ामियों से क्यों नहीं लड़ता...”
“सुनो, मुझे यक़ीन नहीं होता! क्या वह इतनी भेजा-खाऊ है?”
 “भेजा-खाऊ तो मैं हूँ! परिभाषा के अनुसार! वो मुझको ही भेजा-खाऊ समझती है! मालूम है, उसे मुझ पर शरम आती है. वह सोचती है कि वह एक असफ़ल आदमी की बेटी है.”
 “क्या उसने ऐसा कहा?”
 “नहीं, मैं ख़ुद ही जानता हूँ. मैं जानता हूँ कि वह ऐसा सोचती है.”
 “हो सकता तुम ख़ुद ही ऐसा सोचते हो – अपने बारे में?”
 “मैं ऐसा क्यों सोचने लगा? मैं इस बारे में कभी सोचता ही नहीं हूँ. मैं सिर्फ यही चाहता हूँ, कि वह असफ़ल न बने. मगर हर चीज़ उसी तरफ़ जा रही है.”
 “किस तरफ़ जा रही है? वह अठारह साल की है.”
 “हफ़्ते भर बाद उन्नीस की हो जाएगी. नहीं मरीना, तुम उसे नहीं जानतीं, उसने स्वयँ को असफ़ल बनाने का प्रोग्राम सेट कर लिया है – जीवन में असफ़ल होने का. युनिवर्सिटी - वह उसमें प्रवेश पा नहीं सकी – छोड़ रही है, और यहाँ भी मैं बेबस हूँ. लगभग छोड़ ही दी.”
 “ऐसा क्यों?”
 “मुझे सताने के लिए. वह हर काम मुझे सताने के लिए ही करती है.”
 “मतलब, उसकी ज़िन्दगी में तुम्हारी महत्वपूर्ण जगह है.”
 “हाँ – क्योंकि मैं उसको जीने में डिस्टर्ब करता हूँ.”
 “तुम डिस्टर्ब मत करो!”
 “मगर मैं कहाँ डिस्टर्ब करता हूँ? किस बात में?”
 “मुझे कैसे मालूम कि किस बात में? हो सकता है कि तुमने उसे अपनी ‘बोरियत’ की गिरफ़्त में ले लिया हो? बेशक, ले ही लिया है!...तुम सब लोग ऐसे ही हो!...क्या उसका ‘कोई’ है?”
 “अच्छा सवाल है. लगता है, कोई है. और, जहाँ तक मैं समझता हूँ, वह शादी-शुदा है.”
 “ ‘लगता है’, ‘जहाँ तक मैं समझता हूँ’...”
 “आख़िर, वह मुझे कुछ भी तो नहीं बताती. बस, मुस्कुराती है. क्या मैं – ख़िलाफ़ हूँ? जीना तो उसे है. एक बात मैं स्वीकार नहीं कर सकता – अनिश्चितता. वह जानती है कि अनिश्चितता मुझसे बरदाश्त नहीं होती, कि अनिश्चितता मुझे पस्त कर देती है, मगर जानबूझकर... मुझे लगता है, कि जानबूझकर...”
“मैं समझी नहीं, आप लोग एक साथ रहते हैं ना? या वह तुमसे अलग रहती है?”
 “अलग रहने के मुक़ाबले, एक साथ ही ज़्यादा हैं.”
 “तो, अलग हो जाते, बंटवारा कर लेते. कोई मुश्किल है?”
 “कोई मुश्किल नहीं है...बस, ये होगा कैसे? किसी को तो ये करना पड-एगा...”
 “स्वाभाविक है. और वह लड़का? वो क्या है?”
 “वो क्या है? वो ठीक है. ज़्यादा बुरी बात – कुछ और ही है. जहाँ तक मैं समझता हूँ, वह, नरमी से कहूँ तो, नासमझ, ग़ैरज़िम्मेदार है. एक न एक दिन ऐसे निकम्मे को बीबी भगा ही देगी, और तब मेरी बेटी बिना किसी परेशानी के उसके साथ रह सकेगी...”
 “हो सकता है, कि तुम ईर्ष्या करते हो?”
 “प्लीज़, माफ़ करो.”
 “मतलब, पिता की तरह?”         
 “मरीना, तुम क्या कह रही हो? वह वयस्क इन्सान है. वह प्यार करती है. उसके पास अपना कमरा है. मैं बर्दाश्त करने वाला हूँ. मैं तानाशाह नहीं हूँ. मगर, हो सकता कि मेरी अपनी कोई राय हो. जो, ख़ैर, ज़ाहिर करने की जल्दी मैं नहीं करूँगा. उसे ख़ुद भी मालूम है कि मैं क्या सोचता हूँ. और फिर...मरीना, मुझे लगता है नीना की मौत के लिए वह मुझे दोषी मानती है.”
 “मगर तुम्हारा तो कोई दोष नहीं है.”  
 “मगर मुझे लगता है कि वह मुझे अपनी माँ की, मेरी बीबी की मृत्यु का दोषी मानती है...”
 “तुम्हें तो बहुत कुछ लगता रहता है! वो क्या सोचती है, ये तुम कैसे जान सकते हो?! सुनो, तुम सिर्फ आत्मकेन्द्रित हो. तुम जवान बाप हो, और बूढ़े ठूँठ की तरह सोचते हो...”
 “ ‘जवान बाप’,” कपितोनोव हँसने लगता है.
 “तो क्या, जवान नहीं हो?”
 “हुँ, थैन्क्यू.”
 “कोई बात नहीं. एक बात मैं समझ नहीं पाती, तुम तो मनोवैज्ञानिक हो.”
 “मैं, और मनोवैज्ञानिक?”
 “संख्याएँ बूझते हो, और मनोवैज्ञानिक नहीं हो?”
 “सिर्फ दो अंकों वाली.”
 “और मनोवैज्ञानिक नहीं हो?”
 “ये मनोविज्ञान नहीं है.”
 “तो क्या है? अंकगणित?”
 “कोई अंक-वंक गणित नहीं है.”
 “फिर क्या है? टेलिपैथी?”
 “मालूम नहीं क्या है. बस, मुझसे वो हो जाता है. मगर कैसे – पता नहीं.”
मगर, तब तुम्हें जानना चाहिए कि दूसरे लोग तुम्हारे बारे में क्या सोचते हैं. और तुम कुछ भी नहीं जानते, तुम्हें सिर्फ ‘लगता है’. अजीब बात है. मुझे तो ऐसा लगता है कि, हर चीज़, जो तुम्हें ‘लगती है’, वो तुम्हारी ही कल्पना होती है.”
 “मैं पीटर नहीं आना चाहता था, कॉन्फ्रेन्स का निमंत्रण था मेरे पास, मगर मैंने निश्चय कर लिया था कि नहीं जाऊँगा, मगर बाद में, लेव टॉल्स्टॉय की तरह – कल के हंगामे के बाद... निकल गया. दरवाज़ा धड़ाम् से बन्द कर दिया.”
 “उसने दरवाज़ा धड़ाम् से बन्द नहीं किया था. कल हुआ क्या था?”
 “कल हम लड़ पड़े, मैंने थूका और चल पडा. मतलब, हमने झगड़ा नहीं किया. उसने मुझे बस भेज दिया.”
 “कॉन्फ्रेन्स में?”
 “ऐसा ही कह सकते हैं.”
 “मुबारक हो. मुझे डर है, कि आप दोनों एक दूसरे के लायक ही हैं.”
 “मैंने उससे कहा कि, नीना के जाने के बाद, वह उसकी नकल उतारने लगी है. और, ऐसा नहीं करना चाहिए – स्वर्गवासी माँ की नकल उतारना. मैंने ऐसा कहा, और उसने मुझे भेज दिया. मेरे ख़याल से, ये सही नहीं है.”
 “ऐसा नहीं कहना चाहिए था.”
 “भेजना भी नहीं चाहिए था.”
मरीना ने कंधे उचका देती है.
 “मेरे वाले को मुहावरे फेंकना अच्छा लगता है. वह कहता: हर कॉटेज के अपने झुनझुने होते हैं.”
 “अच्छा, चलो, कॉटेज के नाम पे. तुम्हारी कितनी अच्छी है. और झुनझुनों के लिए नहीं पियेंगे.”
जामों के टकराने से खनखनाहट की आवाज़ हुई.
 “पता नहीं, ये सब तुम्हें क्यों बता रहा हूँ. अपने बारे में मैं किसी को नहीं बताता. मगर, नहीं, आज ट्रेन में पैसेन्जर पड़ोसन को बताया.”
 “कोई बात नहीं – किसी को नहीं बताते, सिर्फ पुरानी दोस्त और ट्रेन की पैसेन्जर को बताते हो.”
 “उसका बेटा मन्दबुद्धि है. बड़ा ही है. साथ में जा रहे थे. वह उसे एडमिरैल्टी वाला छोटा जहाज़ दिखाना चाहती थी.”
 “मतलब, उस लड़के को भी बताया.”
 “वैसे, हाँ. मगर वह सुन नहीं रहा था.”
 “और तुम्हारी बेटी तुम्हारी योग्यताओं के बारे में क्या सोचती है?”
 “क्या तुम ये सोचती हो कि मैं सिर्फ अपनी योग्यताओं का प्रदर्शन करता रहता हूँ? उसे इससे कोई मतलब नहीं है. शांति से देखती है. मैं उनमें से नहीं हूँ, जो उसे आश्चर्यचकित कर सके. अगर मैं पानी पर भी चलने लगता, जैसे ज़मीन पर चलता हूँ, तो इसे भी वह शांति से लेती....”
 “मगर, ख़ैर, पानी पर तो तुम चलोगे नहीं, तो, तुम्हारे पानी पर चलने को किस तरह से लेती – ये, फिर से, कल्पना की ही बात है, बस.”
 “हाँ, अभी-अभी आश्चर्य के बारे में नाटक दिखा रहे थे.”
 “तुमने कहा था, कि स्पर्म्स के बारे में.”
 “मैं समझ नहीं पा रहा था, कि वह किस बारे में था. सुनो, मरीन, क्या तुम वाक़ई में टेलिपैथी में विश्वास करती हो?”
 “टेलिपैथी में क्यों?”
 “तुमने मुझसे टेलिपैथी के बारे में जो पूछा था.”
 “जानते हो ना, मैं, वैसे, आसानी से यक़ीन कर लेती हूँ. मैं हर चीज़ पे यक़ीन कर सकती हूँ,” मरीना ने जवाब दिया और, चूँकि कपितोनोव ख़ामोश रहता है, आगे कहती है – हौले से: “मैं कोष्ठकों में भी यक़ीन कर सकती हूँ, धनु-कोष्ठकों में.”
 “किसमें यक़ीन करती हो?”
”हाँ, बस, अपने-अपने झुनझुने...”
दोनों ख़ामोश हैं.
 “तुमने कुछ कहा, मगर मैं समझ नहीं पाया.”
 “ देखो, मैं न तो ट्रेन में पैसेंजर्स से मिली थी, न ही किसी मन्दबुद्धि से, जिन्हें अत्यंत व्यक्तिगत बात बताई जा सकती थी. मगर सिर्फ तुम्हें. किसी और को नहीं बता सकती. मैंने अब तक इस बारे में किसी से बात नहीं की. बिल्कुल किसी से भी नहीं.”
 “किस बारे में?”
उसने जाम में बची हुई वाईन ख़त्म करती है, नमकदानी को मेज़ पर इधर-उधर सरकाती है और सीधे कपितोनोव की आँखों में देखती है.
 “अगर मैं कुछ ग़लत बोलूँ तो ठीक करना,” मरीना कहती है. “मैथ्स में धनु-कोष्ठकों का उपयोग किया जाता है, हाँ? मतलब, ऐसे वाले,” – ऊँगलियों से हवा में बनाकर दिखाती है. “वर्ग कोष्ठक नहीं. उनका प्रयोग लैब्नित्ज़13 ने किया था. मैं सही कह रही हूँ?”
 “लैब्नित्ज़ के बारे में ज़्यादा जानकारी मुझे नहीं है. हो सकता है, उसने भी किया हो. क्यों नहीं.”
 “उसीने, ठीक उसीने. मुझे दिलचस्पी थी. मुझे समझाओ, उनका क्या उपयोग है.”
 “तुम ये तो जानती हो कि मैथ्स में धनु-कोष्ठकों का प्रयोग किसने किया था, और ये नहीं जानतीं कि किसलिए?”
 “मैं तो उनका प्रयोग नहीं करती हूँ. मुझसे बस इतना मत कहो, कि वे स्कूल के पाठ्यक्रम में हैं.”
 “मगर तुम्हें उनकी ज़रूरत क्यों पड़ गई?”
 “बस, यूँ ही.”
 “यूँ ही? अगर ऐसा है, तो मतलब... कोष्ठक, कहती हो...मैथ्स में कोष्ठकों के ज़रूरत क्यों पड़ती है? जिससे कि अपने भीतर कुछ रख सकें, बन्द कर सकें. पहले रखते हैं लघु कोष्ठक में, और, वो, जो लघु कोष्ठक में बन्द है, उसे वर्ग कोष्ठक में रखते हैं, और वह, जो वर्ग कोष्ठक में रखा है, उसे रखा जाता है धनु-कोष्ठक में. सही अर्थ में, कोष्ठक का प्रकार भीतर रखने की, सुरक्षितता की श्रेणी को दर्शाता है.”
 “क्या ‘सुरक्षितता’ - ऐसा कोई शब्द है?”   
 “ ‘सुरक्षितता’,” कपितोनोव अपनी बात जारी रखता है. “धनु कोष्ठक तीसरी श्रेणी की सुरक्षितता को दर्शाते हैं.”
 “और चौथी श्रेणी को कौन दर्शाता है? और पाँचवीं? और छठी?”
 “इसके आगे भी धनु-कोष्ठक बना सकते हैं, मगर अक्सर नौबत वहाँ तक नहीं पहुँचती है.”
 “क्यों नहीं पहुँचती?”
 “इसलिए नहीं पहुँचती. इसलिए कि हमें सुसंबद्धता पसन्द है. स्पष्ट संक्षिप्तता.”
 “यक़ीन नहीं है,” मरीना ने कहा.
 “किसमें?” कपितोनोव समझ नहीं पाता.
 “आम तौर से, वे सुरक्षा करते हैं. मैं भी ऐसा ही सोचती थी, जैसा तुमने कहा.”
 “मैंने क्या कहा? किसकी सुरक्षा करते हैं?”
 “और फिर तुमने बड़ी अच्छी तरह से बताया : सुरक्षितता.”
 “मरीनोच्का, हम किस बारे में बात कर रहे हैं?”
 “क्या दो मिनट इंतज़ार कर सकते हो? मैं अभी तुम्हारे लिए एक चीज़ लाती हूँ.”
मरीना दरवाज़े के पीछे चली जाती है. कपितोनोव ने टुकड़ों से एक वर्ग बनाया. ऐसा लग रहा था, जैसे उसने सीढ़ी रखी और अटारी पर चढ़ गई.
23.29

ये कोस्त्या के नोट्स हैं, झेन्या. ये वो है, जो वह मृत्यु के कुछ दिन पहले से लिख रहा था. इन्हें किसी ने नहीं देखा है, सिवाय मेरे, किसी ने नहीं पढ़ा है. सिर्फ मैंने. इनके अस्तित्व के बारे में कोई कल्पना भी नहीं कर सकता. मेरा पति भी. मालूम नहीं कि मुझे इन्हें खोजकर्ता को दिखाना चाहिए था या नहीं, शायद मैंने ठीक ही किया जो नहीं दिखाया, खोज में इनसे कोई सहायता नहीं मिलती, फिर सवाल ये भी है कि वे कहाँ से ढूँढ़ना शुरू करते.”
हरी नोट-बुक, पारदर्शी प्लास्टिक के कवर में, अभी तक उसके हाथों में ही है.
 “इसको वह मुझसे छुपाता था,” मरीना कहती रही, “हालाँकि मैंने देखा था कि वह कुछ लिख रहा है, मगर मेरे दिमाग़ में भी नहीं आ सकता था कि क्या वो क्या है. मैं सोचती थी कि ऑफ़िस के बारे में है. मैं सिर्फ ये नहीं समझ पाई कि वह हाथ से क्यों लिख रहा है, हम सब तो काफ़ी समय से हाथ से कुछ घसीटते नहीं हैं, तुम भी तो हाथ से नहीं लिखते? और वह अक्सर कम्प्यूटर पे बैठा रहता था. और अचानक हो गया – ऐसा.”
मरीना इंतज़ार करती है, कि वह कुछ कहेगा, मगर चूँक़ि कपितोनोव ख़ामोश रहता है, वह आगे कहती है:
 “ये एकदम विशिष्ठ लेख है.”
 “क्या मैथेमेटिक्स से संबंधित कोई चीज़?” कपितोनोव पूछता है.
 “हाँ, इसमें है, आपके ब्यूस्टे के बारे में है, मगर इतना ज़्यादा नहीं, उस बारे में है, जो आप लोग वहाँ करते थे...खाने पीने की चीज़ों के बारे में, मिसाल के तौर पर, आपके इन...मीट के समोसों के बारे में...”
 “कैसे समोसों के बारे में?”
 “मछलियों वाले, तुम्हें अब याद भी नहीं है. आप लोग वहाँ कुछ करते थे, कुछ कैल्कुलेशन्स, डिस्ट्रिब्यूशन्स, तुम बेहतर जानते हो. मैं तो तुम्हारे इस मैथेमेटिकल स्टैटिस्टिक्स के बारे में कुछ नहीं जानती...वहाँ है इस ...फ़ैक्टोरियल कॉन्ट्रास्ट्स और ऐसी ही किसी चीज़ के बारे में...मालूम है, ये बहुत कठिन नोट्स हैं, मगर मुझे मुँहज़बानी याद है.”
 “मतलब, उसमें कैल्कुलेशन्स हैं?”
 “तुमने क्या कहा?”
 “क्या वहाँ फॉर्मूले हैं?”
 “फॉर्मूले किसलिए? कोई फॉर्मूले-वॉर्मूले नहीं हैं. सिर्फ शब्द हैं. ज़िन्दगी के बारे में. मगर बिल्कुल, जैसे इन्सानी नहीं हैं. या, हो सकता है, इन्सानी हों, मगर मूखिन जैसे नहीं हैं. वो दूसरी तरह का था, एकदम दूसरी तरह का. प्यारा, गर्म जोश, बेहद ज़हीन. वह भौंडा नहीं था, है ना? मैं बाहरी रूप-रंग के बारे में नहीं कह रही हूँ.”
कपितोनोव चुप रहना ही ठीक समझता है.
 “वह तो किसी से ईर्ष्या नहीं करता था, तुम से तो ईर्ष्या नहीं करता था?”
 “मुझसे?”
 “मैं इसीके बारे में कह रही हूँ. या फिर सबके दिमाग़ में ऐसा ही होता है? मैं पति के साथ रहती हूँ, वह अच्छा है, मगर, उसके दिमाग़ में, शैतान ही जाने, क्या चल रहा है? या, तुम्हारे, मुझे तो पता नहीं है, कि तुम्हारे दिमाग़ में क्या चल रहा है. जैसे, तुम्हें सब कुछ ‘लगता है’. हो सकता कि तुम ख़ामोश ‘सनकी’ हो, और मैं ये बात जानती ही नहीं हूँ. मैं सिर्फ अपने बारे में कोई ख़ास राय रख सकती हूँ. मेरे दिमाग़ में हर चीज़ पूरी तरह से व्यवस्थित है. बस, इसी बात का सबसे ज़्यादा डर लगता है. हो सकता है कि मैं नॉर्मल नहीं हूँ?”
 “तुम बिल्कुल नॉर्मल हो. और तुम्हें शांत करने के लिए, मैं तुम्हारे सामने स्वीकार करता हूँ, कि मेरे दिमाग़ में भी हर चीज़ व्यवस्थित है. अगर मेरे दिमाग़ में कोई समस्या है, तो..सिर्फ ये, कि मैं सो नहीं सकता....”
 “मैं तुम्हें वोलोकोर्डिन दूँगी, एक छोटी सी शीशी, सिर्फ याद दिला देना.”
 “ठीक है, थैन्क्यू, याद दिला दूँगा. और, तुम्हारे यहाँ टैक्सी कैसे बुलाते हैं?”
 “बहुत आसान है. थोड़ा रुको, मगर यदि ऐसा है, तो ये और भी बुरी बात है. अगर ऐसा है, अगर हम सब नॉर्मल हैं, तो फिर what the hell is this? ये उसके साथ क्यों हुआ? ये क्या है?”
 “मरीनोच्का, मैं समझ नहीं पा रहा, कि तुम किस बारे में कह रही हो.”
 “इससे पहले कि तुम इसे पढ़ना शुरू करो, मैं तुम्हें आगाह करना चाहती हूँ. इसमें काफ़ी कुछ अंतरंग बातें हैं. ख़ासकर मेरे बारे में, मगर, पन्ने तो नहीं फ़ाड़े जा सकते? मैं शर्मिन्दा हूँ. इसे पढ़ने वाले तुम पहले और आख़िरी होगे. मुझे छोड़कर.
 “मरीना, क्या तुम चाहती हो कि मैं इसे पढूँ?”
 “हाँ, बेशक, मैं सचमुच चाहती हूँ. अगर तुम्हें दिलचस्पी है तो, मैंने कभी भी प्रबल आवेग का नाटक नहीं किया, इस बारे में वह ग़लत था. तुम्हें इसलिए बता रही हूँ, कि तुम कुछ और न समझो. आवेग की स्थिति हमेशा हो, ऐसा नहीं था, ऐसा बिल्कुल नहीं था, मगर इसमें, शैतान ले जाए, नाटक किसलिए? और जब मैं हाथों में कीलें निकालने वाला हथौड़ा लिए खड़ी थी, उसने मुझे बुरी तरह डरा दिया, और उसके होंठ, सही में, बेहद ठण्डे थे.”
 “मतलब, ऐसा...मैं इसे नहीं पढूँगा.”
 “तुम पढ़ोगे. होटल का पता क्या है?”
वह टैक्सी बुलाती है – “सबसे सस्ती और तेज़”.
 “पढ़ोगे, पढ़ोगे...मैं अक्सर सोचती हूँ कि हमारे बीच बात कभी बिस्तर तक क्यों नहीं पहुँची. नहीं जानते?”
 “शायद इसलिए...इसलिए, शायद, कि हम दोस्त हैं.”
 “पास! जवाब मंज़ूर है. तुम इसे अंत तक पढ़ोगे और, अगर चाहो, तो मुझसे कुछ कहोगे. मगर, सिर्फ, अगर चाहो तो. हो सकता है, मेरे दिमाग़ तक जो नहीं पहुँच पाया, उसे तुम समझ पाओगे. हो सकता है, तुम कोई ऐसी बात जानते हो, जो मैं नहीं जानती, आख़िर, तुम दोनों ने साथ में काम किया था, तुम्हारे कॉमन फ्रेण्ड्स हैं. जो...संक्षेप में, मैं तुमसे विनती करती हूँ कि इसे पढ़ो. आगाह करती हूँ, कि शुरू में बड़ी मुश्किल से पढ़ा जाएगा, मगर फिर...फिर आसान लगेगा. मैं ये जानबूझकर तुमसे कह रही हूँ, जिससे तुम डर न जाओ. वर्ना दो-चार पन्ने पढ़कर फेंक दोगे. और, इस बात से भी न घबराना कि हाथ से लिखा है...उसकी लिखाई बेहद अच्छी है. ये, देखो.”
वह नोटबुक के बीच का कोई पन्ना खोलती है, और उसे हाथों से हटाए बिना, अपने भूतपूर्व पति के हाथ द्वारा लिखे गए दो पन्ने दिखाती है.                   
 “मैं किस बात का इंतज़ार कर रहा हूँ? मूख़िन की बीबी से – इस एक ख़याल से ही...” कपितोनोव दाएँ पन्ने की ऊपरी पंक्ति पढ़ लेता है. ये वो किसके बारे में लिख रहा है? अपने ख़ुद के? मगर अचरज किसी और ही बात का हो रहा है:
 “मुझे नहीं मालूम था कि वह सुलेखक था.”
 “ज़्यादा बढ़ाचढ़ाकर भी नहीं कहना चाहिए.”
 “मगर, हम सब तो ऐसे लिखते हैं, जैसे मुर्गी के पंजे के निशान हों.”
 “क्या तुम ये मान सकते हो कि ये लिखावट उसकी नहीं है?” मरीना ने संजीदगी से पूछा.
कपितोनोव समझ नहीं पाता कि क्या कहे.
 “टैक्सी गेट पे है,” ऑपरेटर सूचित करता है.
 “तो, ये बात है,” मरीना कहती है. “और, अब मुझसे वादा करो. पहली बात: तुम इसे पूरा पढ़ोगे. दूसरी बात: कल लौटा दोगे.”
 “ज़ाहिर है, कल. परसों तो मैं जा रहा हूँ.”
मरीना नोटबुक में अपना विज़िटिंग कार्ड रखती है. वे बिदा लेते हैं. उन्होंने दरवाज़े पे एक दूसरे का चुम्बन लिया.

सप्ताह का ये दिन था – शनिवार, जो इसी पल समाप्त हो रहा था: कपितोनोव बाहर निकलता है, उसके हाथ में मूख़िन की नोटबुक वाला पैकेट है, और इस तरह, आ पहुँचता है,
इतवार.

00.06     


यहाँ का पीटरबुर्ग बिल्कुल पीटरबुर्गी नहीं है, कोई एक टिपिकल सी चीज़ आँखों में चुभ रही है, - कपितोनोव को वह फ़िल्म पसन्द नहीं आ रही है, जिसे कार की खिड़कियों से दिखाया जा रहा है.
टैक्सी ड्राइवर ने मौसम के बारे में फ़िज़ूल की बातचीत शुरू कर दी, इस बारे में की सड़कों पर रीगेंट15 छिड़क देते हैं और लोगों की कोई इज़्ज़त ही नहीं है, और आम तौर से, या तो लोगों को ख़त्म कर मार देना चाहते हैं या फिर उन्हें महँगी दवाईयाँ ख़रीदने पर मजबूर करते हैं, - वह जल्दी ही पता कर लेता है कि पैसेंजर मॉस्को से है, और फ़ौरन सूचित करता है कि वह तो मॉस्को में किसी भी क़ीमत पर नहीं रहना चाहता, हालाँकि वहाँ, शायद, रास्तों से बर्फ ज़्यादा अच्छी तरह साफ़ करते हैं.
आह, तो ये बात है : पैसेंजर – भूतपूर्व पीटरबुर्गवासी है.       

 “तो, फिर, ‘बोर’ तो नहीं हो जाते?”
दो घण्टे पहले यही बात पूछ चुके हैं.
कपितोनोव ने कहा कि उसने बचपन से पीटर में ऐसी बर्फ नहीं देखी.
 “पिछली सर्दियों में भी कम नहीं थी,” अपने शहर के प्रति गर्व की भावना से ड्राईवर ने जवाब देता है.
 “पिछली सर्दियों में मैं यहाँ नहीं आया था.”
 “अरे, बेकार ही में. आ भी सकते थे. बढ़िया होता है मौसम. आना चाहिए था, न आना भी कोई बात है? आप आते रहिए.”
अजीब बात है: कपितोनोव को ऐसा लगता है कि उसे विगत में बुलाया जा रहा है. मगर, क्यों नहीं? निमंत्रण तो हमेशा भविष्य के लिए होता है, ये सही है, मगर इन निमंत्रणों में से अनेकों सिर्फ अलंकारिक ही होते हैं, उतनी ही सफ़लता से विगत में क्यों न निमंत्रित किया जाए?
इस बीच ड्राईवर कपितोनोव को शहर के टैक्सी-उद्योग की उपलब्धियों के बारे में बताता है. कुछ समय तक पीटरबुर्ग की सड़कों पर परिवहन के लिए साझा-टैक्सी ‘बोम्बिल’ का बोलबाला था (जिस पर ख़ुद-ब-ख़ुद बॉम्ब गिर गया), जो लोगों के समूहों द्वारा चलाई जाती थीं, और अब लोग, पहले की तरह, टेलिफ़ोन करके घर पे टैक्सी बुला लेते हैं. सस्ती, तेज़ और आरामदेह.”
 “वाह, फ़रवरी शुरू हो गई है, और आपके यहाँ अभी तक चौराहे पर क्रिसमस ट्री मौजूद है.”
 “ये नये साल वाली नहीं है.”
 “कैसे नहीं है नए साल वाली? पूरी मालाओं से लिपटी है!”
ड्राइवर नहीं जानता कि इसका क्या जवाब दे, इसलिए उसके दिमाग़ में जो पहली बात आती है, वही कह देता है:
 “दिन में तो जाम लगा रहता है. सिर्फ रात को ही चला सकते हैं.”
कपितोनोव को पार्क की हुई गाड़ियों के बदले बर्फ के बड़े-बड़े टीले देखने में मज़ा आ रहा है, मगर वह कुछ और भी देखना चाहता है. ड्राइवर सही है: कपितोनोव को पीटरबुर्ग की याद आती है. और, अगर कार को घण्टे- दो घण्टे के लिए – तीन घण्टे के लिए किराए पर ले लिया जाए, रात को, नेवा के किनारों पर, नेव्स्की प्रॉस्पेक्ट पे, पुराने कोलोम्ना पे...तो कितना ख़र्चा आएगा?...क़रीब दो हज़ार?
 “दो हज़ार में तो मैं एकदम अभ्भी तैयार हूँ,” ड्राइवर कहता है.
 “मैं तैयार नहीं हूँ,” कपितोनोव ने कहता है.
 “अच्छा, ऐसा करते हैं,” ड्राइवर कहत है. “मैं ऑपरेटर को फ़ोन कर दूँगा, कह दूँगा कि गाड़ी बिगड़ गई है, ये आसान है.”
 “नहीं, थैन्क्स, काम है.”
 “रात को – काम? काम तो मुझे है. आपको क्या काम है? बाद में हो नहीं पाएगा. आज मैं नेवा से होकर गुज़र रहा था, वहाँ बर्फ़ काटने की मशीन गुज़र रही थी, पानी के ऊपर भाप की दीवार बन गई थी...महलों से भी ऊँची! क़्या ख़ूबसूरती थी! और, वह एक जगह पर खड़ी नहीं रहती, बल्कि नेवा पर तैर रही है और गोल गोल घूम रही है, मगर बेहद तेज़ी से तैर रही है, थोड़ी सी टक्कर लगी कि पूरी की पूरी खाड़ी में!...तो? वर्ना ये क्या घूमना हुआ? तीन सौ रूबल्स...खिड़की से देखने लायक भी कुछ नहीं है...”
 “फिर कभी,” कपितोनोव ने कहता है.
 बहस करने लायक कुछ है ही नहीं – ये शहर का सबसे बेहतरीन भाग नहीं है.


 “फिर कभी – तो आप मेरे बगैर जाएँगे.”