“छू
लेगी दिल एक मूरत...”
काँसे के अक्षर चुरा लिए गए, मगर
पैडेस्टल पर उनके निशानों को देखकर अभी भी नाम पढ़ा जा सकता है. उसी नाम से बगल
वाला पुल भी जाना जाता है. यहाँ से, पुल से, और ख़ासकर उसके निकट बने ट्राम के ओवरपास की ऊँचाई से, वलदार्स्की का स्मारक कुछ दयनीय-बेतुका, अनुचित,
अकेला, अपमानित प्रतीत होता है.
जैसे उसका बायकॉट कर दिया
गया हो. लोग बिरले ही यहाँ आते हैं. ज़रूरत ही नहीं है. सिर्फ यातायात का शोर होता
रहता है. कल्पना करना मुश्किल है, कि कभी यहाँ
हज़ारों की संख्या में सभाएँ होती थीं, झण्डे लहराते थे...
ये विशाल क्षेत्र
वलदार्स्की डिस्ट्रिक्ट कहलाता था. शहर में वलदार्स्की एवेन्यू – भूतपूर्व लितेयनी
एवेन्यू - था. “वलदार्स्की” के नाम की संस्थाओं और उद्यमों की गिनती करना मुश्किल
है. स्मारक के उद्घाटन के वर्ष (1925) में वलदार्स्की के सम्मान में कई इमारतों को
उसका नाम दिया गया, जैसे अस्पताल, क्लब, लकड़ी छीलने का कारखाना, छात्रावास,
सब-स्टेशन, मुद्रणालय, कपडों
की फैक्ट्री, लिखने के कागज़ की फैक्ट्री...लोकप्रिय अख़बारों
के नाम : “वलदारेत्स”, “वलदार्का”, “वलदार्स्की
बेकर्स”, “वलदार्स्की पॉकेटबुक्स”...
“वलदार्स्की” और
“नेव्स्की” लगभग समानार्थी थे, बावजूद इसके,
कि नेव्स्की – एवेन्यू के अर्थ में – 25 अक्टूबर को एवेन्यू था. अगर
मॉस्को का नाम लेनिनग्राद होता (आख़िर क्यों नहीं? देश का
प्रमुख शहर है!...), तो शायद पेत्रोग्राद वलदार्स्क हो जाता –
आख़िर सन् 1924 में एकातेरिनबर्ग स्वेर्द्लोव्स्क हो ही गया – स्वेर्द्लोव की
मृत्यु के पाँच साल बाद. वलदार्स्की का स्मारक इल्यिच के स्मारक से पहले बना था. फिनलैण्ड
स्टेशन के निकट लेनिन के अवतरण से पूर्व प्रतिस्पर्धाओं के जुनून का एक तूफ़ान उठा
था, - मगर वलदार्स्की के स्मारक का निर्माण उसी स्थान के
निकट विस्तीर्ण बंजर भूमि पर कर दिया गया, जहाँ ‘पीपल्स कमिसार’ की हत्या हुई थी - वलदार्स्की प्रदेश
सोवियत के निर्णय के अनुसार और धीरे-धीरे सशक्त हो रहे शिल्पकार एम. गे. मनिज़ेर,
उसकी पत्नी एल. वे. ब्लेज़े-मनिज़ेर और आर्किटेक्ट वी. ए, वितमैन की मेहनत से.
अगर गर्भावस्था और
सृजनात्मक विचार को मूर्तरूप देने के बीच कोई संबंध हो सकता है,
तो यहाँ वह दुर्भाग्यशाली था : वलदार्स्की के विशाल सिर का निर्माण
करते-करते लीना वलेरिआनोव्ना का शीघ्र ही प्रसूति के दौरान निधन हो गया. मत्वेय गेनरिखोविच
मनिज़ेर के लिए, जिसे बाद में तीन बार स्तालिन-पुरस्कार से
सम्मानित किया गया, वलदार्स्की का काँसे में ढला यह पहला
स्मारक था, और, जैसा कि बाद में स्वयम्
उसने पुष्टि की, ये सोवियत यूनियन का पहला काँसे में ढला
स्मारक था.
काँसे के स्मारक का एक
पूर्ववर्ती भी था – अस्थायी, आरंभिक –
ऊरित्स्की स्क्वेयर (मतलब द्वर्त्सोवाया स्क्वेयर) के पास. थोड़े दिनों तक खड़ा रहा –
क्रांति विरोधियों ने उड़ा दिया. कुछ समय तक “वलदार्स्की के स्मारक के विस्फोट की
याद में लगाए गए स्तम्भ से”22 काँसे के स्मारक का पूर्वाभास होता रहा.
वलदार्स्की की हत्या की जगह उसके नाम से संबद्ध हो गई थी – उसे “वलदार्स्की गाँव का
एवेन्यू” – इस नाम से जाना जाता था (जो भावी अबूखोव डिफ़ेन्स एवेन्यू का हिस्सा था),
यहीं पर सन् पच्चीस में काँसे के स्मारक का उद्घाटन किया गया.
उस इतवार को चार सुनियोजित
कतारों में श्रमिक यहाँ आए. “वलदार्स्की रेजिमेन्ट के फ़ौजी और टॉर्पीडो टीम”
(ज़ाहिर है, ये भी “वलदार्स्की”
टीम ही थी), और करीब दो सौ पायनियर्स की पलटन अपने आप यहाँ
आये. प्रथम फ़ैक्टरी कॉलम के साथ खिलाड़ियों की सुगठित टीम आई. कॉम्रेड ज़िनोव्येव ने
भाषण दिया.
वलदार्स्की की हत्या बेहद
कम उम्र में कर दी गई थी – छब्बीस साल की आयु में. मौत के हालात अजीब से भी बेहद
अजीब हैं, वैसे ही,
जैसे इस “सुनियोजित हत्या” पर चलाया गया मुकदमा. बोल्शेविकों की पार्टी में वह
सिर्फ साल भर से कुछ ज़्यादा रहा. त्रोत्स्की का दोस्त और शागिर्द था, “क्रांति के दुश्मनों” से कभी भी समझौता न करने के लिए मशहूर था, हर परिस्थिति में, उसे दिये गए दिशा-निर्देशों के
अनुसार: प्रेस, प्रचार और आंदोलन से जुड़े मामलों का कमिसार
होने के कारण वह विरोधी प्रेस पर पैनी नज़र रखता था. बोल्शेविकों से सहानुभूति न
रखने वाले समाज में उसे शब्द की आज़ादी का गला घोंटने वाला कहा जाता था, मगर श्रमिकों के बीच (ख़ुद भी पहले दर्जी रह चुका था) वह एक सर्वहारा
आंदोलक के रूप में लोकप्रिय था. करिश्माई, असीम ऊर्जा वाला
व्यक्ति, वह जन समुदाय का नेता था, इस
शब्द के असली अर्थ में : “ अपने पीछे जनता को ले चलने वाला”. उसके पीछे लोग चलते
थे. उस पर यकीन करते थे.
वलदार्स्की के श्रोताओं
में से एक उन्हें इस तरह याद करता है. “क्रास्नाया गज़ेता” (रेड न्यूज़ पेपर-अनु.)
(1924) – अंदाज़ बरकरार रख रहा हूँ:
“वलदार्स्की जलते हुए
सींगों से ज्वलन्त शब्द प्रस्तुत करता है.
वह ‘वर्ग’ को संबोधित करता है. वर्ग उसे समझता है. उसे
हाथों-हाथ उठाता है...
प्यारी,
अपनी नज़र.
बालों की एक ज़िद्दी,
उद्दण्ड लट माथे पर गिरती है, वैसी ही उद्दण्ड,
जैसा उसका चरित्र है.
तेज़-तेज़ स्ट्रोक्स के साथ
वह प्रवाह के विरुद्ध तैर रहा था, और वे भी पीछे
नहीं रहे, जो उसे प्यार से फैक्ट्री से हाथों में उठा कर लाए
थे”.23
और ये है “प्राव्दा”(1922)
से: “वर्कर्स ट्रिब्यून से सुने हुए भाषण से सुलगा हुआ दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था और
निश्चित रूप धारण कर चुके बहुमूल्य विचार, दिमाग़ को
धुंधला कर रहे थे और संघर्ष के लिए बुला रहे थे”.
सबसे ज़्यादा प्रभावशाली
टिप्पणी थी सर्वहारा कवि वसीलि क्न्याज़ेव की (“क्रास्नाया गज़ेता”,
1921 – वलदार्स्की की मृत्यु की तीसरी बरसी पर) : “और, अशांत, उफ़नते समुद्र के ऊपर उभरी असाधारण व्यक्ति की
छोटी सी आकृति. हिम का टुकड़ा, जिसके भीतर छुपा था एक
डाइनामाइट”.24
क्न्याज़ेव ने ही
“वलदार्स्की” नामक कविता लिखी है. अभी तक स्मारक की कल्पना नहीं की गई थी,
मगर भव्य “शिल्प” का विषय पूरी तरह विकसित हो चुका था:
सब
लोगों के अपने
पुत्र
सर्वहारा बसन्त के:
धूप
के पहले दिनों के,
कविता
है उसके बारे में –
वलदार्स्की!
कई
कम्युनार्ड योद्धाओं के शानदार नाम
लिखेंगी
पीढ़ियाँ काँसे पर,
सर्वहारा
महलों की दीवारों के संगमरमर पर
मुर्दे
हो उठेंगे ज़िंदा और लेंगे साँस.
ये
है हमारा नेता-महान,
सर्वहारा
टाइटन,
विश्व
के गरीबी का नेता;
ये,
समूची आग और क्रोध,
लाल
सेना का शेर,
हज़ारों
सेनाओं का विजेता...
कई
शानदार नामों को अमर कर देगा,
भवन
भविष्य के स्मारक का,
उनके
सामने झुकेंगी पीढ़ियाँ,
मगर
दिल को छू लेगी एक मूरत:
सब
लोगों के अपने
पुत्र
सर्वहारा बसन्त के:
धूप
के पहले दिनों के,
कविता
है उसके बारे में –
वलदार्स्की!
ये
है लेखक, कम्यून को जो लाया अपना तोहफ़ा –
विद्रोही
तारों की वीणा के गीत;
ये
है कवि चौराहों का, अग्निपंखवाला इकारस,
कम्यून-युग
का ढिंढोरची.
सर्वहारा
उकाबों की
देखता
हूँ कांसे की कतार:
संगीतकार,
अभिनेता, कवि;
और
कलाकारों का झुण्ड
और
योद्धा व्यवस्था के,
रक्षक
जनता और सोवियत के...
कई
शानदार नामों को अमर कर देगा,
भवन
भविष्य के स्मारक का,
उनके
सामने झुकेंगी पीढ़ियाँ,
मगर
दिल को छू लेगी एक मूरत:
सब
लोगों के अपने
पुत्र
सर्वहारा बसन्त के:
धूप
के पहले दिनों के,
कविता
है उसके बारे में –
वलदार्स्की!
वलदार्स्की
चश्मा, हैट, ओवरकोट पहनता था,
गलोश कभी नहीं छोड़ता था, हमेशा ब्रीफ़केस लिए
रहता. एक समकालीन के चित्र में, जो नरोद्नी कमिसार की हत्या
के बाद प्रकाशित हुआ था, उसे भाषण देते हुए दिखाया गया है –
हैट और चश्मे में. एक प्रमाण भी है, हालाँकि उसे अपुष्ट कहना
चाहिए, कि स्मारक के उद्घाटन के अवसर पर ख़ुद ज़िनोव्येव ने इस
बात में दिलचस्पी दिखाई थी कि वलदार्स्की की हैट का क्या हुआ.
स्मारक
पर हैट नहीं है. और गलोश भी नहीं. और ब्रीफ़केस भी नहीं.
चश्मा
होने का संकेत है. ओवरकोट है, विशाल बटन्स वाला
– अर्थपूर्ण.
बात
असल में ये है. वलदार्स्की को जोश के पल में दिखाया गया है : अपने भाषण के अंतिम
शब्द चिल्लाकर कह रहा है. वह खूब जोश से हाव-भाव प्रदर्शित कर रहा था – कोट
स्पष्टतः कंधों से गिरने लगा, और वक्ता उसे थाम
रहा है, मंच से (या, जैसा कि तब कहा
करते थे, “प्रचार मंच से”) नीचे उतरने की तैयारी में. खाली
हाथ ऊपर की ओर उठा है.
ख़ुद
शिल्पकार ने इस बात पर ज़ोर दिया कि ये भाषण का अंत है.
दिलचस्प
है, मगर किस भाषण का? वलदार्स्की
ने बहुत सारे भाषण दिए थे. और “क्रास्नाया गज़ेता” के लिए कई संपादकीय लिखे थे,
ख़ुद “वी. वलदार्स्की” – ये नाम कुछ और नहीं बल्कि मोज़ेस गोल्डस्टेन
का अख़बारी छद्म नाम है. मगर चौंकाने वाली बात ये है : वी. वलदार्स्की के लेखों का
संकलन हमें प्राप्त नहीं होगा. इस “बोल्शेविक सिसेरो” का नाम
अत्यंत महिमामण्डित करते हुए, बोल्शेविकों ने उसके भाषणों का
पुनः प्रकाशन ज़रूरी नहीं समझा. सन् 1919 में एक पतली सी पुस्तिका “भाषण” निकली थी,
मगर बाद में उसे भी पुस्तकालयों से हटा लिया गया...
ये
हो सकता है, कि ऐतिहासिक वलदार्स्की के हत्या
की जगह पर जैसे उसका काँस्य-प्रतिरूप भाषण दे रहा है, जो
दुर्भाग्यवश स्टेज का अंतिम भाषण होने वाला था. वलदार्स्की के अंतिम भाषण और उसकी
अचानक मृत्यु के बीच दो-एक घण्टे का ही अंतर था.
पेत्रोग्राद
सोवियत के चुनाव की तैयारी हो रही थी. निकोलायेव्स्की माल ढुलाई स्टेशन पर
वलदार्स्की का इरादा श्रमिकों को “सुख, रोशनी और
आज़ादी” के वादे से आकर्षित करने का था. ये बात थी जून 1918 की जब पेत्रोग्राद भुखमरी
से जूझ रहा था. “सिर्फ हमारी सोवियत सत्ता ही आपको सुख, रोशनी
और आज़ादी दे सकती है. श्रमिकों-किसानों की सत्ता ज़िंदाबाद, श्रमिकों,
किसानों और लाल सेना के डेप्यूटीज़ की सोवियत की सत्ता ज़िंदाबाद!”
काँसे के वलदार्स्की के हाथ का दयनीय भाव पूरी तरह अंतिम वाक्य का समर्थन करता है.
अंतिम भाषण. जैसे अंतिम इच्छा हो.
एक
‘मगर’. वो “अंतिम भाषण” जो मृत्योपरांत प्रकाशित किया गया था, असल
में गूँजा ही नहीं. रेलवे-कर्मचारियों ने उसे बिल्कुल बोलने नहीं दिया.
प्रदर्शनकारियों का ‘मूड’ इतना ख़तरनाक
था, कि वक्ता को वहाँ से भाग कर जान बचानी पड़ी.
नहीं,
काँसे के कमिसार के जोश की वजह कुछ और ही है.
क्रांतिकारी
प्रेस ट्रिब्यूनल के सामने वलदार्स्की का भाषण बहुत दिलचस्प है. “आपके अख़बार में,
नागरिक कुगेल, बहुत सारे ‘टाइपोज़’ (मुद्रण त्रुटियाँ-अनु.) थे. मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि एक अंक में दो सौ टाइपोज़ थे. चाहे दो
हज़ार होने दें. मगर जब टाइपोज़ के कारण सोवियत शासन को भारी नुक्सान होता है,
तो मैं कहता हूँ : या तो आप उस हथियार पर काबू रखना नहीं जानते जो
आपके हाथों में है, उस हालत में उसे आपके हाथों से निकाल
लेना चाहिए, या आप जानबूझ कर इस अस्त्र का उपयोग सोवियत शासन
के ख़िलाफ़ कर रहे हैं”. इस मामले में अभियुक्त, “न्यू
ईवनिंगर” के सम्माननीय संपादक अलेक्सान्द्र रफाइलोविच कुगेल के चेहरे पर छाये आश्चर्य
की, उनके विरोध की और क्रोध की कल्पना कर सकते हैं...
फिर
भी, क्रांतिकारी ट्रिब्यूनल – ये एक बंद कमरे वाली
चीज़ है. और भाषणों के समापन अंश काफ़ी विशिष्ठ थे : अख़बार बंद कर दिया जाए और काम
ख़तम. यहाँ भी - लम्बे चौड़े “प्रदर्शनकारियों के बिदाई-भाषण” में भावपूर्ण शीर्षक
के बावजूद, भाषण के समापन अंश में आसमान की ओर हाथ उठाने की
ज़रूरत नहीं थी.
एक
अलग बात है वह भाषण, जिसका शीर्षक है “लात्वियन
कॉम्रेड्स के लिए”. इसे सन् 1918 के अप्रैल में दिया गया था, 9वी सोवियत लात्वियन रेजिमेन्ट के गठन के उपलक्ष्य में (पहले से ही मौजूद
आठ रेजिमेन्ट्स के अतिरिक्त) और लात्वियन डिविजन के गठन की पूर्व संध्या को. नौवीं
रेजिमेन्ट का गठन लेनिन के सुरक्षा दस्ते के आधार पर किया गया था, जिसमें लात्वियन राइफलमैन थे. सर्वहारा वर्ग का नेता अपने क्रांतिकारी कार्य
की सफ़लता के लिए काफ़ी हद तक उनकी वफ़ादारी का ऋणी था. वलदार्स्की के भाषण का समापन,
समूचे भाषण की तरह, बहुत प्रभावशाली था.
भाषण के बीच से ही एक उद्धरण देने से अपने आप को रोक नहीं पा रहा
हूँ (ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य की दृष्टि से बहुत रोचक है...): “और अगर हमारे रूसी
समुदाय में, अनेक कारणों की वजह से, कॉम्रेड्स
को आकर्षित करने के लिए हमें ‘उपदेश देना’ और ‘आत्म अनुशासन की ओर प्रेरित करना’ जैसे शब्दों का प्रयोग करना पड़ता है, तो लात्वियन
कॉम्रेड्स के संदर्भ में ऐसी कोई ज़रूरत और बाध्यता नहीं है, क्योंकि
लात्वियन सर्वहारा वर्ग का बहुत बड़ा भाग – जागरूक, अनुशासित
लड़ाकू क्रांतिकारी हैं”.
और
ये रहा भाषण का अंतिम भाग.
“और यहाँ, इस सभा में, जिसमें
आपके रेजिमेन्ट का शुभारंभ हो रहा है, मैं पूरे दिल से आपका
स्वागत करता हूँ, नई क्रांतिकारी सेना के अग्र-दल के रूप में,
जो न सिर्फ देश में लड़ेगी, बल्कि जिसे बर्लिन
की सड़कों पर भी साम्राज्यवाद की सत्ता को समाप्त करना होगा और, हो सकता है, पूरे यूरोप में जाना होगा, पैरिस में भी रुकना होगा, लन्दन में भी, और सभी बड़े पूंजीवादी शहरों में भी, जहाँ
साम्राज्यवादी शासन कर रहे हैं, और हमारे कॉम्रेड्स, सभी देशों के क्रांतिकारी मज़दूर राज करेंगे, और
सत्ता पाए बगैर नहीं रहेंगे”.
इस
वाक्य के अंत में कुछ चीज़ खटक रही है – हो सकता है, स्टेनोग्राफ़र
ने गलती की हो, मगर उसके बाद आगे – स्पष्ट और खनखनाती आवाज़
में:
“धन्यवाद
लात्वियन कॉम्रेड्स, आपकी समर्पित क्रांतिकारी
सेवाओं के लिए, और इस उम्मीद और विश्वास को व्यक्त करने की
इजाज़त दें, कि वह घड़ी निकट ही है, जब पुनर्जीवित
हो रहा क्रांतिकारी रूस, जब पुनर्निमित क्रांतिकारी लाल सेना
आपके साथ मिलकर आपके देश को भी बलपूर्वक शासन कर रहे लोगों से आज़ाद करेगी और पूरी
दुनिया को साम्राज्यवादियों से आज़ाद करेगी और एक नई प्रणाली का – सुख की प्रणाली का, स्वतंत्रता की प्रणाली का,
समाजवादी प्रणाली का निर्माण करेगी! (तालियाँ)
हाँ,
शायद, ऐसा ही था. सुख, स्वतंत्रता
और समाजवाद के बारे में ये ही शब्द – पूरी दुनिया में, और
ख़ासकर लात्विया में, - प्रेरित वक्ता अपना काँसे का ओवरकोट
संभालते हुए, जैसे सपने में कह रहा हो.
(सितम्बर
2007)
-------------------------------------------------
22.पी. आर्स्की. अले.द्मित्रिएव.
एम.एम.वलदार्स्की (जीवनी और चरित्र के लिए सामग्री), गुबपलोम
द्वारा प्रकाशित, लेनिनग्राद, 1925. (इस
स्तम्भ का चित्र दिया गया है.)
23. एन. सिर्गेयेव, “उसके शब्दों की ताकत” – “क्रास्नाया गज़ेता, 20 जून,
1924.
24. “क्रास्नाया गज़ेता”. 18
जून
1921.


