शुक्रवार, 28 सितंबर 2018

Monuments of Petersburg - 12




“छू लेगी दिल एक मूरत...”





काँसे के अक्षर चुरा लिए गए, मगर पैडेस्टल पर उनके निशानों को देखकर अभी भी नाम पढ़ा जा सकता है. उसी नाम से बगल वाला पुल भी जाना जाता है. यहाँ से, पुल से, और ख़ासकर उसके निकट बने ट्राम के ओवरपास की ऊँचाई से, वलदार्स्की का स्मारक कुछ दयनीय-बेतुका, अनुचित, अकेला, अपमानित प्रतीत होता है.

जैसे उसका बायकॉट कर दिया गया हो. लोग बिरले ही यहाँ आते हैं. ज़रूरत ही नहीं है. सिर्फ यातायात का शोर होता रहता है. कल्पना करना मुश्किल है, कि कभी यहाँ हज़ारों की संख्या में सभाएँ होती थीं, झण्डे लहराते थे...

ये विशाल क्षेत्र वलदार्स्की डिस्ट्रिक्ट कहलाता था. शहर में वलदार्स्की एवेन्यू – भूतपूर्व लितेयनी एवेन्यू - था. “वलदार्स्की” के नाम की संस्थाओं और उद्यमों की गिनती करना मुश्किल है. स्मारक के उद्घाटन के वर्ष (1925) में वलदार्स्की के सम्मान में कई इमारतों को उसका नाम दिया गया, जैसे अस्पताल, क्लब, लकड़ी छीलने का कारखाना, छात्रावास, सब-स्टेशन, मुद्रणालय, कपडों की फैक्ट्री, लिखने के कागज़ की फैक्ट्री...लोकप्रिय अख़बारों के नाम : “वलदारेत्स”, “वलदार्का”, “वलदार्स्की बेकर्स”, “वलदार्स्की पॉकेटबुक्स”...

“वलदार्स्की” और “नेव्स्की” लगभग समानार्थी थे, बावजूद इसके, कि नेव्स्की – एवेन्यू के अर्थ में – 25 अक्टूबर को एवेन्यू था. अगर मॉस्को का नाम लेनिनग्राद होता (आख़िर क्यों नहीं? देश का प्रमुख शहर है!...), तो शायद पेत्रोग्राद वलदार्स्क हो जाता – आख़िर सन् 1924 में एकातेरिनबर्ग स्वेर्द्लोव्स्क हो ही गया – स्वेर्द्लोव की मृत्यु के पाँच साल बाद. वलदार्स्की का स्मारक इल्यिच के स्मारक से पहले बना था. फिनलैण्ड स्टेशन के निकट लेनिन के अवतरण से पूर्व प्रतिस्पर्धाओं के जुनून का एक तूफ़ान उठा था, - मगर वलदार्स्की के स्मारक का निर्माण उसी स्थान के निकट विस्तीर्ण बंजर भूमि पर कर दिया गया, जहाँ पीपल्स कमिसारकी हत्या हुई थी - वलदार्स्की प्रदेश सोवियत के निर्णय के अनुसार और धीरे-धीरे सशक्त हो रहे शिल्पकार एम. गे. मनिज़ेर, उसकी पत्नी एल. वे. ब्लेज़े-मनिज़ेर और आर्किटेक्ट वी. ए, वितमैन की मेहनत से.

अगर गर्भावस्था और सृजनात्मक विचार को मूर्तरूप देने के बीच कोई संबंध हो सकता है, तो यहाँ वह दुर्भाग्यशाली था : वलदार्स्की के विशाल सिर का निर्माण करते-करते लीना वलेरिआनोव्ना का शीघ्र ही प्रसूति के दौरान निधन हो गया. मत्वेय गेनरिखोविच मनिज़ेर के लिए, जिसे बाद में तीन बार स्तालिन-पुरस्कार से सम्मानित किया गया, वलदार्स्की का काँसे में ढला यह पहला स्मारक था, और, जैसा कि बाद में स्वयम् उसने पुष्टि की, ये सोवियत यूनियन का पहला काँसे में ढला स्मारक था.  

काँसे के स्मारक का एक पूर्ववर्ती भी था – अस्थायी, आरंभिक – ऊरित्स्की स्क्वेयर (मतलब द्वर्त्सोवाया स्क्वेयर) के पास. थोड़े दिनों तक खड़ा रहा – क्रांति विरोधियों ने उड़ा दिया. कुछ समय तक “वलदार्स्की के स्मारक के विस्फोट की याद में लगाए गए स्तम्भ से”22 काँसे के स्मारक का पूर्वाभास होता रहा. वलदार्स्की की हत्या की जगह उसके नाम से संबद्ध हो गई थी – उसे “वलदार्स्की गाँव का एवेन्यू” – इस नाम से जाना जाता था (जो भावी अबूखोव डिफ़ेन्स एवेन्यू का हिस्सा था), यहीं पर सन् पच्चीस में काँसे के स्मारक का उद्घाटन किया गया.

उस इतवार को चार सुनियोजित कतारों में श्रमिक यहाँ आए. “वलदार्स्की रेजिमेन्ट के फ़ौजी और टॉर्पीडो टीम” (ज़ाहिर है, ये भी वलदार्स्की” टीम ही थी), और करीब दो सौ पायनियर्स की पलटन अपने आप यहाँ आये. प्रथम फ़ैक्टरी कॉलम के साथ खिलाड़ियों की सुगठित टीम आई. कॉम्रेड ज़िनोव्येव ने भाषण दिया.

वलदार्स्की की हत्या बेहद कम उम्र में कर दी गई थी – छब्बीस साल की आयु में. मौत के हालात अजीब से भी बेहद अजीब हैं, वैसे ही, जैसे इस “सुनियोजित हत्या” पर चलाया गया मुकदमा. बोल्शेविकों की पार्टी में वह सिर्फ साल भर से कुछ ज़्यादा रहा. त्रोत्स्की का दोस्त और शागिर्द था, “क्रांति के दुश्मनों” से कभी भी समझौता न करने के लिए मशहूर था, हर परिस्थिति में, उसे दिये गए दिशा-निर्देशों के अनुसार: प्रेस, प्रचार और आंदोलन से जुड़े मामलों का कमिसार होने के कारण वह विरोधी प्रेस पर पैनी नज़र रखता था. बोल्शेविकों से सहानुभूति न रखने वाले समाज में उसे शब्द की आज़ादी का गला घोंटने वाला कहा जाता था, मगर श्रमिकों के बीच (ख़ुद भी पहले दर्जी रह चुका था) वह एक सर्वहारा आंदोलक के रूप में लोकप्रिय था. करिश्माई, असीम ऊर्जा वाला व्यक्ति, वह जन समुदाय का नेता था, इस शब्द के असली अर्थ में : “ अपने पीछे जनता को ले चलने वाला”. उसके पीछे लोग चलते थे. उस पर यकीन करते थे.        

वलदार्स्की के श्रोताओं में से एक उन्हें इस तरह याद करता है. “क्रास्नाया गज़ेता” (रेड न्यूज़ पेपर-अनु.) (1924) – अंदाज़ बरकरार रख रहा हूँ:

“वलदार्स्की जलते हुए सींगों से ज्वलन्त शब्द प्रस्तुत करता है.
वह वर्गको संबोधित करता है. वर्ग उसे समझता है. उसे हाथों-हाथ उठाता है...
प्यारी, अपनी नज़र.
बालों की एक ज़िद्दी, उद्दण्ड लट माथे पर गिरती है, वैसी ही उद्दण्ड, जैसा उसका चरित्र है.
तेज़-तेज़ स्ट्रोक्स के साथ वह प्रवाह के विरुद्ध तैर रहा था, और वे भी पीछे नहीं रहे, जो उसे प्यार से फैक्ट्री से हाथों में उठा कर लाए थे”.23

और ये है “प्राव्दा”(1922) से: “वर्कर्स ट्रिब्यून से सुने हुए भाषण से सुलगा हुआ दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था और निश्चित रूप धारण कर चुके बहुमूल्य विचार, दिमाग़ को धुंधला कर रहे थे और संघर्ष के लिए बुला रहे थे”.

सबसे ज़्यादा प्रभावशाली टिप्पणी थी सर्वहारा कवि वसीलि क्न्याज़ेव की (“क्रास्नाया गज़ेता”, 1921 – वलदार्स्की की मृत्यु की तीसरी बरसी पर) : “और, अशांत, उफ़नते समुद्र के ऊपर उभरी असाधारण व्यक्ति की छोटी सी आकृति. हिम का टुकड़ा, जिसके भीतर छुपा था एक डाइनामाइट”.24

क्न्याज़ेव ने ही “वलदार्स्की” नामक कविता लिखी है. अभी तक स्मारक की कल्पना नहीं की गई थी, मगर भव्य “शिल्प” का विषय पूरी तरह विकसित हो चुका था:

सब लोगों के अपने
पुत्र सर्वहारा बसन्त के:
धूप के पहले दिनों के,
कविता है उसके बारे में –
वलदार्स्की!
कई कम्युनार्ड योद्धाओं के शानदार नाम
लिखेंगी पीढ़ियाँ काँसे पर,
सर्वहारा महलों की दीवारों के संगमरमर पर
मुर्दे हो उठेंगे ज़िंदा और लेंगे साँस.
ये है हमारा नेता-महान,
सर्वहारा टाइटन,
विश्व के गरीबी का नेता;
ये, समूची आग और क्रोध,
लाल सेना का शेर,
हज़ारों सेनाओं का विजेता...
कई शानदार नामों को अमर कर देगा,
भवन भविष्य के स्मारक का,
उनके सामने झुकेंगी पीढ़ियाँ,
मगर दिल को छू लेगी एक मूरत:
सब लोगों के अपने
पुत्र सर्वहारा बसन्त के:
धूप के पहले दिनों के,
कविता है उसके बारे में –
वलदार्स्की!
ये है लेखक, कम्यून को जो लाया अपना तोहफ़ा –
विद्रोही तारों की वीणा के गीत;
ये है कवि चौराहों का, अग्निपंखवाला इकारस,
कम्यून-युग का ढिंढोरची.
सर्वहारा उकाबों की
देखता हूँ कांसे की कतार:
संगीतकार, अभिनेता, कवि;
और कलाकारों का झुण्ड
और योद्धा व्यवस्था के,
रक्षक जनता और सोवियत के...
कई शानदार नामों को अमर कर देगा,
भवन भविष्य के स्मारक का,
उनके सामने झुकेंगी पीढ़ियाँ,
मगर दिल को छू लेगी एक मूरत:
सब लोगों के अपने
पुत्र सर्वहारा बसन्त के:
धूप के पहले दिनों के,
कविता है उसके बारे में –
वलदार्स्की!

वलदार्स्की चश्मा, हैट, ओवरकोट पहनता था, गलोश कभी नहीं छोड़ता था, हमेशा ब्रीफ़केस लिए रहता. एक समकालीन के चित्र में, जो नरोद्नी कमिसार की हत्या के बाद प्रकाशित हुआ था, उसे भाषण देते हुए दिखाया गया है – हैट और चश्मे में. एक प्रमाण भी है, हालाँकि उसे अपुष्ट कहना चाहिए, कि स्मारक के उद्घाटन के अवसर पर ख़ुद ज़िनोव्येव ने इस बात में दिलचस्पी दिखाई थी कि वलदार्स्की की हैट का क्या हुआ.   

स्मारक पर हैट नहीं है. और गलोश भी नहीं. और ब्रीफ़केस भी नहीं.

चश्मा होने का संकेत है. ओवरकोट है, विशाल बटन्स वाला – अर्थपूर्ण.

बात असल में ये है. वलदार्स्की को जोश के पल में दिखाया गया है : अपने भाषण के अंतिम शब्द चिल्लाकर कह रहा है. वह खूब जोश से हाव-भाव प्रदर्शित कर रहा था – कोट स्पष्टतः कंधों से गिरने लगा, और वक्ता उसे थाम रहा है, मंच से (या, जैसा कि तब कहा करते थे, “प्रचार मंच से”) नीचे उतरने की तैयारी में. खाली हाथ ऊपर की ओर उठा है.

ख़ुद शिल्पकार ने इस बात पर ज़ोर दिया कि ये भाषण का अंत है.

दिलचस्प है, मगर किस भाषण का? वलदार्स्की ने बहुत सारे भाषण दिए थे. और “क्रास्नाया गज़ेता” के लिए कई संपादकीय लिखे थे, ख़ुद “वी. वलदार्स्की” – ये नाम कुछ और नहीं बल्कि मोज़ेस गोल्डस्टेन का अख़बारी छद्म नाम है. मगर चौंकाने वाली बात ये है : वी. वलदार्स्की के लेखों का संकलन हमें प्राप्त नहीं होगा. इस बोल्शेविक सिसेरो” का नाम अत्यंत महिमामण्डित करते हुए, बोल्शेविकों ने उसके भाषणों का पुनः प्रकाशन ज़रूरी नहीं समझा. सन् 1919 में एक पतली सी पुस्तिका “भाषण” निकली थी, मगर बाद में उसे भी पुस्तकालयों से हटा लिया गया...

ये हो सकता है, कि ऐतिहासिक वलदार्स्की के हत्या की जगह पर जैसे उसका काँस्य-प्रतिरूप भाषण दे रहा है, जो दुर्भाग्यवश स्टेज का अंतिम भाषण होने वाला था. वलदार्स्की के अंतिम भाषण और उसकी अचानक मृत्यु के बीच दो-एक घण्टे का ही अंतर था.

पेत्रोग्राद सोवियत के चुनाव की तैयारी हो रही थी. निकोलायेव्स्की माल ढुलाई स्टेशन पर वलदार्स्की का इरादा श्रमिकों को “सुख, रोशनी और आज़ादी” के वादे से आकर्षित करने का था. ये बात थी जून 1918 की जब पेत्रोग्राद भुखमरी से जूझ रहा था. “सिर्फ हमारी सोवियत सत्ता ही आपको सुख, रोशनी और आज़ादी दे सकती है. श्रमिकों-किसानों की सत्ता ज़िंदाबाद, श्रमिकों, किसानों और लाल सेना के डेप्यूटीज़ की सोवियत की सत्ता ज़िंदाबाद!” काँसे के वलदार्स्की के हाथ का दयनीय भाव पूरी तरह अंतिम वाक्य का समर्थन करता है. अंतिम भाषण. जैसे अंतिम इच्छा हो.

एक मगर’. वो अंतिम भाषण” जो मृत्योपरांत प्रकाशित किया गया था, असल में गूँजा ही नहीं. रेलवे-कर्मचारियों ने उसे बिल्कुल बोलने नहीं दिया. प्रदर्शनकारियों का मूडइतना ख़तरनाक था, कि वक्ता को वहाँ से भाग कर जान बचानी पड़ी.

नहीं, काँसे के कमिसार के जोश की वजह कुछ और ही है.

क्रांतिकारी प्रेस ट्रिब्यूनल के सामने वलदार्स्की का भाषण बहुत दिलचस्प है. “आपके अख़बार में, नागरिक कुगेल, बहुत सारे टाइपोज़’ (मुद्रण त्रुटियाँ-अनु.) थे. मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि एक अंक में दो सौ टाइपोज़ थे. चाहे दो हज़ार होने दें. मगर जब टाइपोज़ के कारण सोवियत शासन को भारी नुक्सान होता है, तो मैं कहता हूँ : या तो आप उस हथियार पर काबू रखना नहीं जानते जो आपके हाथों में है, उस हालत में उसे आपके हाथों से निकाल लेना चाहिए, या आप जानबूझ कर इस अस्त्र का उपयोग सोवियत शासन के ख़िलाफ़ कर रहे हैं”. इस मामले में अभियुक्त, “न्यू ईवनिंगर” के सम्माननीय संपादक अलेक्सान्द्र रफाइलोविच कुगेल के चेहरे पर छाये आश्चर्य की, उनके विरोध की और क्रोध की कल्पना कर सकते हैं...

फिर भी, क्रांतिकारी ट्रिब्यूनल – ये एक बंद कमरे वाली चीज़ है. और भाषणों के समापन अंश काफ़ी विशिष्ठ थे : अख़बार बंद कर दिया जाए और काम ख़तम. यहाँ भी - लम्बे चौड़े “प्रदर्शनकारियों के बिदाई-भाषण” में भावपूर्ण शीर्षक के बावजूद, भाषण के समापन अंश में आसमान की ओर हाथ उठाने की ज़रूरत नहीं थी.

एक अलग बात है वह भाषण, जिसका शीर्षक है “लात्वियन कॉम्रेड्स के लिए”. इसे सन् 1918 के अप्रैल में दिया गया था, 9वी सोवियत लात्वियन रेजिमेन्ट के गठन के उपलक्ष्य में (पहले से ही मौजूद आठ रेजिमेन्ट्स के अतिरिक्त) और लात्वियन डिविजन के गठन की पूर्व संध्या को. नौवीं रेजिमेन्ट का गठन लेनिन के सुरक्षा दस्ते के आधार पर किया गया था, जिसमें लात्वियन राइफलमैन थे. सर्वहारा वर्ग का नेता अपने क्रांतिकारी कार्य की सफ़लता के लिए काफ़ी हद तक उनकी वफ़ादारी का ऋणी था. वलदार्स्की के भाषण का समापन, समूचे भाषण की तरह, बहुत प्रभावशाली था. भाषण के बीच से ही एक उद्धरण देने से अपने आप को रोक नहीं पा रहा हूँ (ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य की दृष्टि से बहुत रोचक है...): “और अगर हमारे रूसी समुदाय में, अनेक कारणों की वजह से, कॉम्रेड्स को आकर्षित करने के लिए हमें उपदेश देनाऔर आत्म अनुशासन की ओर प्रेरित करनाजैसे शब्दों का प्रयोग करना पड़ता है, तो लात्वियन कॉम्रेड्स के संदर्भ में ऐसी कोई ज़रूरत और बाध्यता नहीं है, क्योंकि लात्वियन सर्वहारा वर्ग का बहुत बड़ा भाग – जागरूक, अनुशासित लड़ाकू क्रांतिकारी हैं”.

और ये रहा भाषण का अंतिम भाग.

और यहाँ, इस सभा में, जिसमें आपके रेजिमेन्ट का शुभारंभ हो रहा है, मैं पूरे दिल से आपका स्वागत करता हूँ, नई क्रांतिकारी सेना के अग्र-दल के रूप में, जो न सिर्फ देश में लड़ेगी, बल्कि जिसे बर्लिन की सड़कों पर भी साम्राज्यवाद की सत्ता को समाप्त करना होगा और, हो सकता है, पूरे यूरोप में जाना होगा, पैरिस में भी रुकना होगा, लन्दन में भी, और सभी बड़े पूंजीवादी शहरों में भी, जहाँ साम्राज्यवादी शासन कर रहे हैं, और हमारे कॉम्रेड्स, सभी देशों के क्रांतिकारी मज़दूर राज करेंगे, और सत्ता पाए बगैर नहीं रहेंगे”.

इस वाक्य के अंत में कुछ चीज़ खटक रही है – हो सकता है, स्टेनोग्राफ़र ने गलती की हो, मगर उसके बाद आगे – स्पष्ट और खनखनाती आवाज़ में:

“धन्यवाद लात्वियन कॉम्रेड्स, आपकी समर्पित क्रांतिकारी सेवाओं के लिए, और इस उम्मीद और विश्वास को व्यक्त करने की इजाज़त दें, कि वह घड़ी निकट ही है, जब पुनर्जीवित हो रहा क्रांतिकारी रूस, जब पुनर्निमित क्रांतिकारी लाल सेना आपके साथ मिलकर आपके देश को भी बलपूर्वक शासन कर रहे लोगों से आज़ाद करेगी और पूरी दुनिया को साम्राज्यवादियों से आज़ाद करेगी और एक नई प्रणाली का सुख की प्रणाली का, स्वतंत्रता की प्रणाली का, समाजवादी प्रणाली का निर्माण करेगी! (तालियाँ)

हाँ, शायद, ऐसा ही था. सुख, स्वतंत्रता और समाजवाद के बारे में ये ही शब्द – पूरी दुनिया में, और ख़ासकर लात्विया में, - प्रेरित वक्ता अपना काँसे का ओवरकोट संभालते हुए, जैसे सपने में कह रहा हो.

(सितम्बर 2007)

            

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22.पी. आर्स्की. अले.द्मित्रिएव. एम.एम.वलदार्स्की (जीवनी और चरित्र के लिए सामग्री), गुबपलोम द्वारा प्रकाशित, लेनिनग्राद, 1925. (इस स्तम्भ का चित्र दिया गया है.)
23. एन. सिर्गेयेव, “उसके शब्दों की ताकत” – “क्रास्नाया गज़ेता, 20 जून, 1924.
24. “क्रास्नाया गज़ेता”. 18 जून 1921.

गुरुवार, 20 सितंबर 2018

Monuments of Petersburg - 11




पायनियर्स्काया स्ट्रीट पर पायनियर्स





पायनियर्स–संस्था की पचासवीं सालगिरह विशेष धूमधाम से मनाई गई. मार्च, रैलियाँ, परेड्स. “कीरव संयंत्र में पायनियर्स-स्मेल्टिंग यूनिट”. पायनियर्स-कन्स्ट्रक्शन यूनिट. “बच्चों, आपको मालूम ही है कि लेनिनग्राद की पायनियर्स-कन्स्ट्रक्शन का मुख्य उद्देश्य था – पायनियर्स्काया स्ट्रीट का निर्माण”, “लेनिन स्पार्क्स”16 ने अपने पाठकों से कहा था. तो मैं उसके – पायनियर्स्काया स्ट्रीट के, भूतपूर्व ग्रेट ग्रेबेत्स्काया स्ट्रीट के बारे में बताने जा रहा हूँ, जहाँ पर कभी गैली बेड़े के खिवैये रहते थे.

यहीं पर पायनियर्स-संस्था की पचासवीं वर्षगाठ के उपलक्ष्य में यादगार स्मारक-संरचना का निर्माण किया गया था.       

इसकी शुरुआत स्ट्रीट के आरंभ में एक स्मृति-स्तंभ से होती है जिस पर लेनिन के ऑर्डर की आकृति की उभरी हुई छबि है. स्मारक इस लिहाज़ से दिलचस्प है, कि जब उसे बनाया जा रहा था, तब “लेनिन अखिल सोवियत पायनियर्स संस्था” को दूसरी बार लेनिन के ऑर्डर से सम्मानित किया जा रहा था, - फ़ौरन एक और ऐसा ही स्मारक बनाना उचित होता, जिससे दोनों ऑर्डर्स (1962, 1972) मौजूद रहते, मगर, नहीं, ऐसा नहीं हुआ.    

पायनिर्स्काया और कोर्पूस्नाया स्ट्रीट्स वाला चौराहा. काफ़ी समय से बंद पड़ी “क्रास्नोए ज़्नाम्या” होज़ियरी फैक्ट्री के पॉवर हाउस के सामने प्रथम पेट्रोग्राद पायनियर्स टुकड़ी का स्मारक है. इस टुकड़ी के सम्मान में, जिसका गठन फैक्ट्री के क्लब में किया गया था, सन् 1932 में बिग-ग्रेबेत्स्काया स्ट्रीट का नाम बदलकर पायनियर्स्काया स्ट्रीट रखा गया था. स्मारक, साफ़ कहेंगे, साधारण-सा है. स्मारक इसलिए दिलचस्प है, कि (अगर स्त्रोत गलत नहीं हैं तो) उसमें एक रहस्यमय कैप्सूल छुपाई गई है, जिसमें सन् 2022 के पायनियर्स के लिए एक पत्र है17, मगर मुझे पता नहीं चला कि उसे कहाँ छुपाया गया है – शायद भावी पायनियर्स, कल्पना कर सकता हूं, ज़्यादा समझदार होंगे.

 स्मारक का मुख्य तत्व है – स्तम्भ. उसे पायनियर बैज के आकार का ताज पहनाया गया है – पंचकोणी सितारे और तीन लपटों वाली मशाल समेत. 5:3 का ये सांख्यिक अनुपात अपने व्युत्क्रम (3:5) तक उस प्रतीक को दर्शाता है, जो आरंभिक पायनियर्स के नीले हेल्मेट्स पर लगा था, जो ड्रम्स की आवाज़ के साथ ग्रेट ग्रेबेत्स्काया स्ट्रीट पर मार्च कर रहे थे. ग्रेट ग्रेबेत्स्काया का नाम तब तक परिवर्तित नहीं हुआ था. उस प्रतीक पर मशाल का चित्र था – तीन कुंदे, जो “थर्ड इन्टरनेशनल” के प्रतीक थे, और पाँच लपटें, जो पाँच महाद्वीपों की संख्या दर्शाती थीं. ये मैं इसलिए कह रहा हूँ, क्योंकि पायनियर्स के विचारकों के लिए 3 और 5 – इन संख्याओं का बहुत महत्व है. ख़ास तौर से 5 का. पायनियर्स की संस्था की पचासवीं वर्षगाठ के उपलक्ष्य में पायनियर्स्काया स्ट्रीट पर पाँच स्थानों पर “रूबी” के पंचकोणी सितारे प्रकट हुए थे. वे आज भी ज़ंग लगे ब्रेकेट्स पर फुटपाथ के ऊपर लटक रहे हैं – काँच टूट चुके हैं, मगर सेटपूरा है.

जादुई अंक 5 की सर्वोत्तम अभिव्यक्ति “रेड-टाई हाइवे” पर नायकों की संख्या से हुई थी. अक्टूबर क्रांति की घटनाओं के पचास साल बाद क्रांतिकारी-विगत को संवारने में लगे विशेषज्ञों ने नौजवान बालकों की वीरता के प्रश्न पर गंभीरता से ध्यान दिया: ये स्पष्ट है, कि “लेनिनग्राद पायनियर्स” की मुख्य सड़क पर श्रमिकों के बच्चे क्रांतिकारी कारनामे न करें ये असंभव था. इन नौजवान-वीरों की संख्या थी, बेशक, 5.

मेमोरियल-कॉम्प्लेक्स में इन पाँच वीरों को दो स्मारक समर्पित हैं.

पहला – च्कालव एवेन्यू के कोने पर है. ये पत्थर की बड़ी तख़्ती है, और बगल में, छोटे-छोटे पत्थरों के चौकोर पर कोई धातु की चीज़ है, जो तोपखाने को दर्शाती है. लोहे का टुकड़ा ख़ास दिलचस्प नहीं है, मगर पत्थर की तख़्ती ध्यान देने लायक है. असल में, ये स्मारक-तख़्ती है. सिर्फ बिन-अक्षरों वाली. सारे अक्षर चुरा लिए गए. अक्षरों की अनुपस्थिति से तख़्ती को आज तक सेंट-पीटर्सबुर्ग की सबसे बड़ी स्मारक–तख़्तियों में से एक बने रहने में कोई परेशानी नहीं है. वह अनधिकृत लिखित इश्तेहारों का परीक्षण-स्थल है. उसमें रोज़मर्रा की सेवाओं के बारे में विशेष टिप्पणियाँ हैं, जो मेन-होल्स तक की दूरी को दर्शाते हैं.

शायद, सब भूल गए हैं कि ये एक स्मारक है. फिर भी – ये वाकई में स्मारक है.

मेरी नज़र में, लेख के खो जाने से यह वस्तु निरर्थक नहीं हो गई है, बल्कि, इसने संदेश को असीमित विस्तार की दिशा में मोड़ दिया है. उभरे हुए अक्षरों को खोकर, ये वस्तु लोगों की (जैसे, अलौह धातुओं के शौकीन) इच्छा की परवाह किए बगैर ख़ुद ही पुनःआत्मसमर्पित हो गई है – किसे, ये एक अलग सवाल है. मगर इससे तख़्ती का स्मारक-तख़्ती होना बन्द नहीं हो जाता. मतलब, इसे बेकार ही में आधिकारिक दर्जे से वंचित करके “सेंट पीटर्सबुर्ग की स्मारक-तख़्तियाँ” (सेंट पीटर्सबुर्ग, 1999) नामक मूल निर्देशिका में शामिल नहीं किया गया, जिसमें करीब दो हज़ार ऐसी ही, मगर अक्षरों वाली, तख़्तियों का वर्णन है.

वैसे खो चुके शब्दों का संयोजन इस प्रकार था: “इस स्थान से 29 अक्तूबर 1917 को श्रमिकों ने विद्रोह कर रहे “कैडेट-स्कूल” पर तोप से गोलीबारी की थी. पीटर्सबुर्ग के पाँच बच्चे गोले लाए थे. क्रांति के युवा सेनानियों को कीर्ति और सम्मान.”

जहाँ तक गोलों का सवाल है, तो सब सही है: यहीं कहीं “तीन इंची तोप” थी, जिससे सीधे व्लादीमिर इन्फैन्ट्री स्कूल पर गोले दागे गए थे. जवाब में कैडेट्स ने मशीनगनें चलाईं. दोनों तरफ़ खून-खराबा हुआ. लगभग रक्तहीन तख़्तापलट के चार दिन बाद और भावी गृहयुद्ध की संभावना में ये खुल्लम खुल्ला बर्बरता और क्रूरता का अतिरेक था. “बच्चे” कहाँ से आए!...”क्रांति विरोधी अड्डे” का ख़तरनाक हत्याओं और लूटपाट से अंत हुआ.

वैसे, तत्कालीन प्रेस में शब्द “नौजवान” का प्रयोग कैडेट्स के लिए किया गया था. विद्रोही “मातृभूमि और क्रांति की रक्षक कमिटी” के प्रति समर्पित थे, जिसका संचालन दक्षिणपंथी सोशलिस्ट डेमोक्रेट्स द्वारा होता था. “बेवकूफ़ छोकरे”, “नौजवान कैडेट्स” (जैसा कि ताज़ा घटनाओं के संदर्भ में “सेन्ट्रल एक्ज़ेक्यूटिव कमिटी के इज़्वेस्तिया” में उनका उल्लेख किया गया था)18 ख़ुद को न सिर्फ मातृभूमि के रक्षक, बल्कि क्रांति के सेनानी भी समझते थे. परस्पर संघर्षरत पक्षों की आयु के संतुलन को बनाए रखने के लिए ही कहीं लगभग आधी शताब्दी के बाद – पुरानी तारीख में, “श्रमिकों” की सहायता के लिए उन्हीं के बच्चों को बुलाने का निर्णय तो नहीं लिया गया, जिन्होंने, मिसाल के तौर पर, तोप के गोले ला-लाकर दिए थे?

पायनियर्स की सालगिरह से पहले तक तोप के गोले लाने वाले किन्हीं भी “ग्राव्रोशों” * के बारे में किसी को भी याद नहीं था. सन् 1932 में भी, जब पायनियर्स संस्था की दसवीं वर्षगाठ के उपलक्ष्य में ग्रेट ग्रेबेत्स्काया का नाम बदल कर पायनियर्स्काया रखा गया था. पायनियर्स्काया के अनाम “गव्रोश” – ये सत्तर के दशक के आरंभ का विशेष आविष्कार है. देखिये अख़बार “स्मेना” की शैली : “कोई भी उनके नाम नहीं जानता, उन्हें पहचानने की फुर्सत भी नहीं थी. बड़ों के साथ, बाप और भाइयों के साथ, पाँच गव्रोशों ने इतिहास रच डाला”.19 और आगे : “ उस समय पायनियर्स की टुकड़ियाँ नहीं थीं, मगर ग्रेट ग्रेबेत्स्काया स्ट्रीट के पाँच लड़कों ने तभी पायनियर्स की भूमिका निभाई, बड़ों के कंधे से कंधे मिलाकर, आश्चर्यजनक निडरता दिखाते हुए, ‘अक्टूबर क्रांति के महान उद्देश्य की पूर्ति के लिए जान निछावर करने की तत्परता दिखाई”. “लेनिनग्राद्स्काया प्राव्दा” का जोश देखिये: “अक्टूबर क्रांति के बच्चे, जिसने पैरिस कम्यून की ज्वलंत मशाल थामी थी”.20

बर्बरता के समर्थन में नहीं, बल्कि मानवीय न्याय की ख़ातिर : पत्थर की तख़्ती से अक्षरों के ग़ायब होने का कोई मतलब तो है. बिना अक्षरों की इबारत भी इबारत हो सकती है. निःशब्दता स्मारक हो सकती है. और इस स्मारक को नज़रों के सामने नहीं आना चाहिए.

ख़ुद हीरोज़ का स्मारक तो और ज़्यादा दिलचस्प है. उसके लिए बिल्डिंग नं. 41 के निकट एक छोटा सा चौक दिया गया. “पायनियरस्त्रोय नक्शे” पर उसे इसी नाम से दिखाया गया है – “गव्रोश स्क्वेयर” सन् 71 की पतझड़ से पायनियर्स – मुख्यतः “झ्दानव स्ट्रीट वाले” (शहर के एक भाग के नाम पर) – इस पार्क को सुधारने में लग गए. ज़मीन खोदी गई, पेड़ और पौधे लगाए गए. अक्टूबर क्रांति के वयोवृद्ध सिपाही, बूढ़े नाविक ने, जिसने हालाँकि कैडेट-स्कूल के विनाश में भाग नहीं लिया था, मगर जिसके पास ये गुण था कि वह पायनिर्स्काया स्ट्रीट पर रहता था, पायनियर्स के साथ ऐश-ट्री के दो पौधे लगाए थे (जो आज भी बढ़ रहे हैं). जल्दी ही यहाँ स्मारक प्रकट हो गया: “पाँच बच्चों” की छबि वाले दो आड़े पत्थर (लेनिनग्राद के प्रेक्षणीय स्थलों की डाइरेक्टरी से लिंगों के बारे में स्पष्टीकरण याद रखें) और इबारत: “ पीटर्सबुर्ग के श्रमिकों के बच्चों के सम्मान और शान में, जिन्होंने सन् 1917 के अक्टूबर में कैडेट्स के क्रांतिविरोधी विद्रोह को कुचलने में भाग लिया था”. 21

मुझे याद है कि कैसे इस स्मारक की तोड़-फोड़ की गई थी. बच्चों के चेहरे विद्रूप कर दिए गए: जैसे उभरी हुई मूर्तियों पर पत्थर फेंके गए हों – चेहरों के धातुई आवरण पिचक गए थे. भयानक दृश्य... फिर बच्चों के सिर बिल्कुल गायब हो गए, उभरे हुए अक्षरों समेत – बचे सिर्फ पत्थर-खंभे, जो कुछ भी प्रकट नहीं कर सकते थे. ये सही है, कि एक बार किसी ने (कहते हैं, रात को) काले रंग से पुरानी इबारत को पुनर्जीवित कर दिया. उसी हालत में स्मारक कई साल खड़ा रहा.

मगर सन् 2006 में, जैसा कि हमें याद है, एक शिखर सम्मेलन हुआ. इस अवसर के लिए शहर की हर चीज़ को रंगा किया, उसका नवीनीकरण किया गया, पुनर्निर्माण किया गया. स्मारकों का भी पुनरुद्धार किया गया, सही कहें तो, उन्हें फिर से बनाया गया. तभी एक चमत्कार हुआ!...बेहद अजीब चमत्कार.

“श्रमिकों के बच्चों” में से आधों ने अपने लिंग बदल दिये. पहले “पाँच लड़के” थे, “पाँच बच्चे”, अब हो गए दो लड़के और दो लड़कियाँ, और बीच में – पता नहीं कौन : शायद लड़का था या लड़की. मतलब, ये मान सकते हैं, कि राजनीतिक शुद्धता की वजह से लड़के और लड़कियों की संख्या बराबर रखी गई. उभरे हुए अक्षरों को भी फिर से बनाया गया, मगर इस बार उनकी संख्या कम की गई और उन्हें एक अलग क्रम से रखा गया – राजनीतिक रूप से ज़्यादा शुद्ध: “पीटर्सबर्ग के श्रमिकों के बच्चों की शान और सम्मान में, जो सन् 1917 के अक्टूबर में मर गए थे”. घटना के बारे में एक भी शब्द नहीं. “प्रतिक्रान्ति” का ज़रा सा भी उल्लेख नहीं. (ख़ैर, ये बात समझ में आती है : “विनाश”, “कैडेट्स”...- इनसे संबंध न रखने का फ़ैसला किया गया.) मगर – ये अगला कदम कैसा था! इस बारे में सन् बहत्तर में नहीं सोचा था...बच्चे, पता चला, कि मर गए थे! ढाई लड़के और ढ़ाई लड़कियाँ!

कैसे मर गए? कौनसे बच्चे? उन्हें सन् 1917 के अक्टूबर में क्यों मरना था?,,,ये स्मारक किसका है? इसका क्या महत्व है?

मासूम बच्चों को कब्र में दफ़नाने का फ़ैसला क्यों लिया गया?

विस्फ़ारित आँखों और चेहरों के भावों को देखकर ऐसा लगता है, कि ये बच्चे ख़ुद ही नहीं समझते हैं कि वे किसके हैं और यहाँ क्या कर रहे हैं.

विगत से मिथिकल तत्वों को हटाने की मेरी मंशा नहीं है.

जब मैं स्मारक की फोटो ले रहा था, तो सचमुच के दो बच्चे एक तरफ़ खड़े थे और न जाने क्यों मेरी तरफ़ देख रहे थे. मैंने उनसे पूछा, कि क्या वे जानते हैं कि यह स्मारक किसका है. “जानते हैं” – उनमें से एक ने बिना पलक झपकाए जवाब दिया, - “उन्होंने शीत महल पर हमला किया था”.

तो क्या, - हो सकता है. कोई भी स्मारक, चाहे वह कितना ही बेतुका क्यों न हो – आगे या पीछे ख़यालों को जन्म देता ही है. बस, सिर्फ सोचना चाहिए.

या – इंतज़ार करना चाहिए.

मई 2007                                   
                           
पुनश्च (सितम्बर 2008)

इस लेख के प्रकाशन को छह महीने भी नहीं बीते थे, और पायनियर्स्काया स्ट्रीट पर काफ़ी कुछ बदल गया. दो सितारे गिर गए. वजह एक ही थी : पुराने हो गए थे. पहले सितारे के पाँच मीटर्स की ऊँचाई से सिमेन्ट पर (पायनिर्स्काया और कोर्पुस्नाया स्ट्रीट के चौराहे पर) गिरने की तारीख थी – घटना बड़ी प्रतीकात्मक थी – सही-सही बताता हूँ: 3 सितम्बर 2007. निकोलाय फ़्योदरव ने, जो बगल से बाइसिकल पर गुज़र रहे थे, फोटो खींचने में देर नहीं की. मगर बस, इतिहास के लिए. यहाँ, मुझे मानना पड़ेगा, कि पायनिर्स्काया स्ट्रीट पर, जाँचे-परखे आँकडों के अनुसार, सितारे पाँच नहीं, जैसा मैंने लिखा है, बल्कि – सात थे. मगर मैंने लेख में सुधार नहीं किया, महत्वपूर्ण नहीं है. इससे भी ज़्यादा महत्वपूर्ण थी वह घटना जो अक्टूबर 2007 के अंत में हुई थी. इन दिनों भूतपूर्व व्लादीमिर इन्फेन्ट्री स्कूल की बिल्डिंग तोड़ने के लिए आए थे, और शुरुआत इस तरह की, कि “टर्मिनेटर” नामक एक्स्केवेटर की बाल्टी के माध्यम से उस पार्श्व को धराशायी कर दिया, जिसकी खिड़कियाँ म्यूज़िशियन्स-गली में खुलती थीं. 29 अक्टूबर 1917 को, ठीक यहीं से, कोने से, दूसरी मंज़िल की खिड़की से, मशीनगन से फायरिंग हुई थी, और यहीं से बोल्शेविकों की “तोप” ने सीधे गोले दागे थे. मानना पड़ेगा कि ये एक अविश्वसनीय संयोग था - ऐतिहासिक दीवारों को गिराने का काम “कैडेट्स के विद्रोह” के 90 वर्ष पूरे होने के दिन ही किया गया. सन् 1917 के अक्टूबर में बोल्शेविकों की गोलाबारी ने इमारत को दो दरारों के रूप में क्षति पहुँचाई (जिसका प्रमाण इन घटनाओं के फ़ौरन बाद जारी किए गए पोस्टकार्ड से मिलता है); इन दरारों को तभी बंद कर दिया गया था. मगर सन् 2007 के अक्टूबर में, ठीक उसी तारीख़ को, इमारत को पूरी तरह गिरा दिया गया. स्मारक-तोप अभी तक तो वहीं खड़ी है, जहाँ थी, च्कालव्स्की प्रॉस्पेक्ट के निकट – स्मारक दीवार के सामने, जो कब के अपने काँसे के अक्षरों को खो चुकी है. स्मारक-तोप का मुँह – यहाँ भी निर्माणकर्ताओं की ऐतिहासिक अचूकता की दाद देनी होगी – सही दिशा में है, ठीक उसी खिड़की की ओर, जहाँ से पहले मशीनगन बाहर निकली थीं. लक्ष्य गायब हो गया. और अब इस प्रतीकात्मक तोप का निशाना किस तरफ़ है, बिल्कुल स्पष्ट नहीं है. जल्दी ही उसे भी हटा लिया जाएगा. ऊपर से वह पार्किंग में बाधा डालती है.                          

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* गव्रोश – विक्टर ह्यूगो के “Les Miserables” का पात्र.     
16. “लेनिन्स्काया इस्क्रा” 30 जून 1971.
17. “सदा तत्पर!” संकलन ए. एल, मोझेस. ले. 1978, पृ. 295.
18. “...बेवकूफ़ कैडेट्स, जिन्हें बेवजह ही गोलों की मार में धकेला गया था”. – “इज़्वेस्तिया” सेन्ट्रल एक्ज़ेक्यूटिव कमिटी”, 8 नवम्बर 1917.
19. “स्मेना”. 18 मई 1972.
20. “लेनिनग्राद्स्काया प्राव्दा”, 19 मई 1972.
21 30 जून के “लेनिनस्काया इस्क्रा” में चित्र है :  तीन लड़के तोप के गोलों से भरे दो बक्से घसीट रहे हैं. इसका शीर्षक है “पायनियर्स्काया स्ट्रीट पर’, अध्याय “पायनियर्स गव्रोशी”