बुधवार, 30 जनवरी 2019

किस्सा वापसी का



किस्सा वापसी का

कमरा – पत्नी. – पति आता है.

पति: कितना बढ़िया मौसम है! हवा साफ़, आसमान साफ़, बारिश गुज़र गई और अब सितारे दिखाई दे रहे है...क्या तुम्हें याद है, कि शहर में कभी सितारे दिखाई दे रहे हों? दो-तीन नहीं, बल्कि हज़ारों, हज़ारों...
पत्नी : मगर तुम थे कहाँ?
पति (जोश से) : मैं रुदाकोपव के यहाँ था.
पत्नी : आह, हाँ, रुदाकोपव के यहाँ...(मेज़ सजाती है.)
पति : रुदाकोपव के घर गया, और उसका टेलिफोन बिगड़ा पड़ा है, मैं फोन न कर सका...पता है, रुदाकोपव आजकल मिर्द्याखिन पर काम कर रहा है, और हम विभिन्न प्रारूपों पर चर्चा कर रहे थे, बहुत काम की थी ये मुलाकात...
पत्नी : ग्रीशा, मुझे तुमसे कुछ कहना है.
पति : कोई गंभीर बात है?       
पत्नी : एकदम गंभीर.
पति : सुबह तक इंतज़ार कर सकते हैं?
पत्नी : नहीं, इस बातचीत को टाला नहीं जा सकता.
पति : और मुझे ऐसा लगता है, कि किसी भी न टाली जा सकने वाली बातचीत को सुबह तक टाला जा सकता है...मैं समझ रहा हूँ, मुझे देर हो गई, तुम परेशान हो गईं, मैंने फोन नहीं किया, मगर सुबह, तुम ख़ुद ही जानती हो, शाम से ज़्यादा समझदार होती है... हो सकता है, कि सुबह तुम्हारी ये बातचीत उतनी गंभीर नहीं लगेगी...जल्दबाज़ी नहीं मचाएँगे...ठीक है?
पत्नी : मुझे तुमसे एक बेहद ज़रूरी सवाल पूछना है.
पति : ठीक है, पूछो.
पत्नी : सिर्फ तुम टेन्शन मत लेना.
पति : नहीं, मैं टेन्शन ले भी नहीं रहा हूँ. ऐसा क्यों सोचा? मेरे पास छुपाने के लिए कुछ भी नहीं है. मैं ईमानदारी से जवाब दूँगा.
पत्नी : नहीं, मैं देख रही हूँ, कि तुम परेशान हो गए हो.
पति : ऐसा तुम्हें लगता है. पूछो.
पत्नी : सवाल ये है. हैरान मत होनाग्रीशा, तुम क्या कहते, अगर तुम्हें पता चलता...कि हमारी अलमारी में...एक नंगा आदमी छुपा हुआ है?
ख़ामोशी.
पति : ऐसा कैसे?
पत्नी : मतलब, पूरी तरह नंगा नहीं – शॉर्ट्स में है.
पति : शॉर्ट्स में? ख़ैर अगर शॉर्ट्स में...(प्रसन्नता से, राहत महसूस करते हुए.) सही में – शॉर्ट्स में?
पत्नी : हा, मान लो, कि शॉर्ट्स में. तब तुम क्या कहते?
पति: किससे छुप रहे हो?
पत्नी : फ़िलहाल, तुमसे.
पति : मुझसे? क्या ये कोई टेस्ट है?
पत्नी : हाँ. टेस्ट. मैगज़ीन से.
पति : हुम्...मैं क्या कहता?...मैं कहता : “तुम हार गईं, नास्तेन्का!...”
पत्नी : तो ऐसा है. फ़ौरन नास्तेन्का. (कडवाहट से.) बगैर नास्तेन्का के तो काम ही नहीं चलता, है ना?  नास्तेन्का का, हो सकता है, यहाँ कोई काम ही न हो, ये बात दिमाग़ में भी नहीं आती, हाँ? फ़ौरन शक?...
पति : माफ़ करो, मगर उसे अलमारी में छुपाया किसने? क्या तुमने नहीं?
पत्नी : कल्पना करो कि वह ख़ुद ही छुप गया!
पति : बहुत मुश्किल है कल्पना करना.
पत्नी : नहीं तो क्या, क्या मैं – मैं!- मैं छुपाऊँगी नंग़े आदमी को अलमारी में, क्या तुम कल्पना भी कर सकते हो!
पति : मैं कोई भी कल्पना नहीं कर रहा हूँ! तुम मुझ पर ज़बर्दस्ती कर रही हो! मैं तो कोई कल्पना ही नहीं करना चाहता!...मैं क्यों नंगे आदमी की कल्पना करूँ? वो भी अपनी अलमारी में!
पत्नी : ड्राइव करके आए हो. समोसे खाओगे? कह देती हूँ – ठण्डे हो गए हैं.
पति खाता है. बेदिली से.
पति : और मुझे क्या कहना चाहिए था?
पत्नी : कुछ नहीं.
पति प्लेट में काँटा चुभोता है.
पति : कोई बकवास मैगज़ीन पढ़ लेती हो, और कुसूर मेरा है.
पत्नी : तुम्हारा कोई कुसूर नहीं है, तुम औरों के ही जैसे हो.
पति : और तुम तो किसी के भी जैसी नहीं हो.     
पत्नी : हाँ. ऐसा ही है.
ख़ामोशी.
पति : अगर मैं औरों की तरह होता, तो सीधे उसकी आँख में घूँसा जमाता. और तुम्हें फ्राय-पैन से मारता. (खामोशी. प्यार से.) तो क्या, मुझे क्या कहना चाहिए? “नास्तेन्का, देखो तो, यहाँ कोई है, मुझे नौजवान से मिलवाओ?”
पत्नी : वो नौजवान नहीं है. वो पकी उम्र का मर्द है.
पति : क्या मैं उसे जानता हूँ?
पत्नी : नहीं. तुम उसे नहीं जानते. तुमने “अब्लोम” नाम का उपन्यास नहीं ना पढ़ा है?
पति : मैंने “अब्लोमव” पढ़ा है.
पत्नी : झूठ बोल रहे हो, तुमने तो “अब्लोमव” भी नहीं पढ़ा है. सिर्फ फेंकते हो : मैंने पढ़ा, मैंने देखा, मैं जानती हूँ...आज तुम कहाँ थे?
पति : मैं रुदाकोपव के यहाँ था.
पत्नी : ध्यान से सुनो! बात मत काटो. कल्पना करो : पत्नी पति के घर लौटने की राह देख रही है, पति कहीं मटरगश्ती कर रहा है, रात के दो बजे हैं, दरवाज़े की घण्टी बजती है, शायद पति आया है, भीतर आने देती है, मगर ये कोई पति-वति नहीं, ये कोई और है, शॉर्ट्स में घुस आया और छुपने के लिए जगह माँग रहा है, उसके पीछे पुलिस पड़ी है...
पति : तुम मुझे क्या सुना रही हो? उपन्यास “अब्लोम”?
पत्नी : वैसा ही है ना?
पति : एकदम नहीं.
पत्नी : और मेरी राय में, काफ़ी मिलता-जुलता है. ये ज़िंदगी है, ग्रीशा.
पति : तो फिर वो शॉर्ट्स में क्यों है?
पत्नी : वह नशा-विमुक्ति केन्द्र से भागा है. उस पर अभी भी असर है. समझ रहे हो, - असर? वह होश में तो है, मगर कुछ समझ नहीं पा रहा है, इधर-उधर डोल रहा है, यहाँ-वहाँ कमरे में. अगर बीबी की जगह तुम होते तो क्या करते? सीढ़ियों पर धकेल देते? अधिकारियों के हवाले कर देते?
पति : स्वयम् की ऐसी परिस्थिति में कल्पना करना मेरे लिए मुश्किल है. मगर वह नशा विमुक्ति केन्द्र से भागा क्यों?
पत्नी : क्या तुम हमारे नशा विमुक्ति केन्द्रों को नहीं जानते? फिर भी पूछ रहे हो?
पति : फिर?...सुनो, हमने तय किया था, कि तुम मुझे कभी भी नशा विमुक्ति केन्द्र की याद नहीं दिलाओगी!...ये बहुत पहले हुआ था और सब झूठ था! ...असल में तो नशा विमुक्ति केन्द्र से भागने का ख़याल मेरे दिमाग़ में आया ही नहीं था...पैर पे नंबर लिख दिया, स्ट्रेचर पे डाल दिया...और बस. मैं सो भी गया.
पत्नी : वो तुम थे, और ये वो है. वह उपन्यासकार है. उपन्यास लिखता है! “मेरी मदद कीजिए, मैं – उपन्यास अब्लोम का लेखक हूँ!” ये दमन है, ग्रीशा! और, क्या तुम उसे घर से बाहर निकाल देते?
पति : अब्लोम...(सोच में पड़ गया.) तो फिर? आगे क्या?
पत्नी : आगे घण्टी. मैंने कहा : “पति”.
पति : तुमनेकहा?
पत्नी : हाँ, मैंने – पत्नी की जगह पर मेरी कल्पना करो! मैंने कहा – तुम्हारे बारे में : “ये पति है”. और “पति” शब्द सुनते ही वह ख़ौफ़ से छुप गया!...
पति : अलमारी में!
पत्नी : खैर, आख़िरकार...वहाँ पहुँच गया!
पति : रुको. तुम ये कहना चाहती हो कि इस समय अलमारी में कोई बैठा है?
पत्नी : हो सकता है, बैठा न हो, हो सकता है कि खड़ा हो...
पति : रुको, तुम ये कहना चाहती हो, कि अगर मैं अलमारी खोलूँगा , तो वहाँ कोई होगा?
पत्नी : उपन्यास “अब्लोम” का लेखक.
पति : शॉर्ट्स में?
पत्नी : लगता तो ऐसा ही है.
पति : क्या मैं खोल सकता हूँ?
पत्नी : खोल सकते हो, मगर सावधानी से. इन्सान को डराओ मत.
पति (अलमारी के पास जाता है): तो, खोल दूँ?
पत्नी : अगर तुम भीतर से इसके लिए तैयार हो, तो खोलो. सिर्फ शराफ़त से पेश आना. दादागिरी न करना.
पति : तो, खोल दूँ?
पत्नी : ग्रीशा, मैंने तुम्हें सब समझा दिया है.
पति : तो, वो वहाँ है?
पत्नी : वो वहाँ है.
पति : यहाँ कोई बात है, कोई बात तो है...मैं समझ नहीं पा रहा हूँ, कि बात क्या है...तो, मैं खोल रहा हूँ...मगर किसलिए?
पत्नी : ग्रीशा, हमें मिलकर इस समस्या को सुलझाना होगा. तीनों को.
पति : जैसे कोई पहेली है.
अलमारी से दूर हटता है.
पत्नी : तुमने खोली क्यों नहीं?
पति : मैं शायद बेवकूफ़ हूँ, माफ़ करना, मुझे समझ में नहीं आ रहा है. और इसमें हँसने जैसी क्या बात है, क्या पूछ सकता हूँ?
पत्नी : ग्रीशा, वहाँ एक आदमी मौजूद है, जो नशा विमुक्ति केन्द्र से भागा है. वह तुमसे डर गया और छुप गया. मैं उसे रोक न सकी. उसे मदद की ज़रूरत है!
पति : ये मज़ाक की बात है?
पत्नी (चिड़चिड़ाते हुए) : ये मज़ाक की बात नहीं है. और हो सकता है, मज़ाक की बात भी हो. जिसे जैसा लगे. मुझे नहीं मालूम. उसे मज़ाक नहीं लगता, मगर मुझे मज़ाक लगता है. मुझे ये मज़ाक लग रहा है, कि तुम मुझ पर विश्वास नही कर रहे हो.
पति (अविश्वास से मुस्कुराता है) मज़ाक कर रही हो...ये क्या बात हुई : “उसे मदद की ज़रूरत है”? और मैं नहीं खोल रहा हूँ!...नहीं, नहीं, नहीं खोलूँगा...तुम इससे कुछ कहना चाहती हो...चाहती हो – तो कहो!...ये कहना चाहती हो, कि मैं रुदाकोपव के यहाँ नहीं था?
पत्नी : यहाँ रुदाकोपव कहाँ से आ गया? मुझे गुस्सा न दिलाओ.
पति : मगर मैं रुदाकोपव के यहाँ था. उसे फोन कर सकती हो. असल में, वह सो भी गया होगा, शायद.
पत्नी : और उसका फोन काम नहीं कर रहा है!...ग्रिगोरी, तुम मुझ पर विश्वास ही नहीं करते, कि अलमारी में उपन्यास का लेखक है?
पति : किसलिए? विश्वास करता हूँ.
पत्नी : नहीं, तुम मुझ पर विश्वास नहीं करते!
पति : ये तुम ही मुझ पर विश्वास नहीं कर रही हो!
पत्नी : तुमने खा लिया? अगर खा चुके हो, तो प्लीज़ सोने के लिए जाओ. तुम अव्वल दर्जे के बेवकूफ़ हो.
पति : क्या वह यहाँ रुकेगा?
पत्नी : घबराओ नहीं, मैं उसे छोड़ दूँगी.
पति : शॉर्ट्स में?
पत्नी : मैं उसे तुम्हारी पतलून दूँगी. बाद में वापस कर देगा.
पति : तो तुमने उसे फ़ौरन ही मेरी पतलून क्यों नहीं दी.
पत्नी : नहीं दे पाई.
पति : समझ गया, तुम भी समझ लो, प्यारी, तुम्हें ये जानना ही चाहिए : नशा विमुक्ति केन्द्र से भागना नामुमकिन है!
पत्नी : बहादुरी शहर जीत लेती है!
पति : नहीं, प्यारी. जेल से भागना आसान है, बनिस्बत नशा विमुक्ति केन्द्र से!
पत्नी : इस बारे में मैं तुमसे और कोई बात नहीं करना चाहती.
पति : बेशक, वह मुझसे बात नहीं करना चाहती!...तुम मुझे हमेशा किसी न किसी बात से ताने देती हो. मगर मैं एहसानमन्द रहूँगा, अगर अपनी बात सीधे-सीधे कहो और बगैर कोई रूपक इस्तेमाल किए. रुदाकोपव...
पत्नी : ख़ामोश! मैं ये नाम भी नहीं सुनना चाहती!
दरवाज़े की घंटी बजती है.
पति : वाह!...इस वक्त कौन हो सकता है... (पुलिस वाले को अंदर आने देता है.)
पुलिस ऑफिसर : सीनियर लेफ्टिनेन्ट ज़्द्रावामीस्लव. आराम से खाना खाइये. ऐसे घुस आने के लिए मुझे माफ़ करें. उम्मीद है, मैंने किसी की नींद तो नहीं ख़राब की? नमस्ते, मैडम. (पति से.) मानव जाति के आधे बेहतरीन हिस्से के प्रतिनिधि को मैं आम तौर से “मैडम” कहकर संबोधित करता हूँ, अगर हालात प्राइवेट हों तो. आप, शायद, मुझसे बहस नहीं करेंगे, जहाँ तक शिष्टाचार का संबंध है, हमारी भाषा उतनी बढ़िया नहीं होती.
ख़ामोशी.
आपको फ़ौरन आगाह करता हूँ कि मेरा यहाँ आना पूरी तरह गैर-सरकारीहै, और आप हमारी बातचीत को किसी भी पल रोक सकते हैं. इस समय मैं अपनी व्यक्तिगत हैसियत से आया हूँ, मगर फिर भी मैं आपसे समझदारी और समर्थन की उम्मीद करता हूँ.
ख़ामोशी.
 ऐसा मत सोचिये, कि आप पर कोई इल्ज़ाम लगा रहा हूँ, अपने दिल में कोई अपमान या दुर्भावना छुपाए हूँ. बिल्कुल नहीं! बल्कि, इन्सान होने के नाते मुझे आपकी परिस्थिति का अंदाज़ है, मगर जिस टीम का मैं प्रतिनिधित्व कर रहा हूँ, उसमें ख़ुद को रख कर देखिए.
ख़ामोशी.
पति : ये और कौन सी टीम है?
पुलिस ऑफिसर : नशा विमुक्ति केन्द्र नं. 2 के कर्मचारियों की टीम.
ख़ामोशी.
पत्नी : नहीं, नहीं, ये कोई ग़लतफ़हमी हुई है!
पुलिस ऑफ़िसर : सिर्फ मुझसे तलाशी का वारन्ट न पूछिये, मैडम! कोई ऑर्डर नहीं, कोई गवाह नहीं! मैं आपके आपके पास इस तरह आया हूँ, जैसे एक इन्सान दूसरे इन्सान के पास आता है. और ये कोई मुहावरा नहीं है!
पति : इसे क्या चाहिए?
पत्नी : समझ नहीं पा रही हूँ!
पुलिस ऑफिसर : अफ़सोस है, कि आप समझ रही हैं, मैडम, आपको निराश करूँगा, मगर आपको मेरी परेशानी की वजह के बारे में काफ़ी जानकारी है, और मैं आपसे समझदारी से काम लेने की विनती करता हूँ! आपको मालूम है, कि मैं किस बारे में कह रहा हूँ, और आप भी.
पति : वो किस बारे में बात कर रहा है? किस बारे में?
पत्नी : आप गलत क्वार्टर में आ गए हैं!
पुलिस ऑफ़िसर : बिल्कुल नहीं! हमारी सारी सूचनाओं के अनुसार वह यहीं छुपा है. नहीं, नहीं, ये कोई तरीका नहीं है – आपने एक कथित पीड़ित व्यक्ति को आश्रय दिया है! मगर बात ये है, कि ख़तरा – काल्पनिक है, चाहे जैसे देखिए, सभी पहलुओं से. और मैं इसलिए यहाँ हूँ, कि आप काल्पनिकता में विश्वास करें!
पति : किस व्यक्ति को?
पत्नी : उसकी बात मत सुनो!
पति : उसने कहा, कि तुमने आश्रय दिया है – किसे?
पुलिस ऑफिसर : येव्गेनी देनीसविच हुंग्लिंगेर को, जो हमारे नशा विमुक्ति केन्द्र के अस्पताल से भागा है.
पत्नी : बकवास!...पागलपन!...मैं किसी हुंग्लिंगेर को नहीं जानती!
पति (संदेह से). ये वही तो नहीं, जिसने “अब्लोम” उपन्यास लिखा है?
पुलिस ऑफिसर : आहा! मतलब, जानते हैं!
पत्नी : ग्रीशा, चुप रहो!...तुम अपनी जानकारी से क्या गड़बड़ कर रहे हो! क्या तुमने “अब्लोम” पढ़ा है? नहीं पढ़ा! जब नहीं पढ़ा, तो चुप हो जाओ!...
पुलिस ऑफिसर: अगर आप ये सोच रहे हैं, कि येव्गेनी देनीसविच के ऊपर बल प्रयोग किया गया है, तो ये गलत है. मैं छुपाऊँगा नहीं, हमारे यहाँ गरम दिमाग वाले लोग होते हैं. मगर इस मामले में वह किसी के भी उकसाए बगैर भाग गया, हमारे विश्वास को तोड़ा है, वो भी उस समय, जब लोगों के प्रवेश कक्ष का दरवाज़ा एक अन्य क्लाएन्ट को भीतर लाने के लिए खुला था. मेरी बात समझिए, ये आपात स्थिति है. ऐसा कभी नहीं हुआ था! उसके कागज़ात, कपड़े, अपूर्ण उपन्यास की पाण्डुलिपि वाला बैग, उसकी घड़ी – ये सब हमारे पास रह गया. अगर मैं येव्गेनी देनीसविच को हमारे नशा विमुक्ति केन्द्र में वापस नहीं लौटाऊँगा, तो कल मेरी गर्दन मरोड़ दी जाएगी. हम सभी के सिरों पर पड़ेगी. (चिल्लाता है.) येव्गेनी देनीसविच! मुझे मालूम है, कि आप यहाँ हैं! मैं पूरी जवाबदेही से सूचित करता हूँ, कि आपको कोई ख़तरा नहीं है! फ़ौरन बाहर आ जाइए!
ख़ामोशी.
पत्नी : देखा, कोई भी नहीं है.
पुलिस ऑफिसर : मुझे यकीन है, कि वो यहीं है. (चिल्लाता है.) येव्गेनी देनीसविच! येव्गेनी देनीसविच!
ख़ामोशी. सब ख़ामोशी में गौर से सुनते हैं.
पति (अचानक): कहीं आप ये तो नहीं कहना चाहते, कि आपकाक्या नाम है...येव्गेनी देनीसविच मेरी अलमारी में छुपा है?
पत्नी : ग्रिगोरी! गड़बड़ मत करो!
पुलिस ऑफ़िसर : मगर अलमारी में क्यों? मेरा ख़याल है, कि मोटे तौर पर उसे दूसरे कमरे में होना चाहिए. हद से हद सबसे आख़िरी कमरे में परदे के पीछे खड़ा होगा – पलंग के नीचे छुपा होगा. मगर अलमारी में ही क्यों? हर चीज़ को अजीब नहीं बनाना चाहिए.
पति (पत्नी से) : मतलब, अलमारी में कोई नहीं है?
पत्नी : अरे, ये क्या अलमारी, अलमारी की रट लगा रखी है! वाकई में, नहीं है! अलमारी में भला कौन हो सकता है? (पुलिस वाले से) मेरे पति को कुछ भी मालूम नहीं है, वो अभी-अभी आया है, वह घर पे नहीं था. ग्रीशा, जाओ, अपनी टाँग न अड़ाओ.
पुलिस ऑफिसर : आप घर पे नहीं थे? आप अभी-अभी आये हैं? तो आप कुछ नहीं जानते?
पति: मैं रुदाकोपव के यहाँ था. वैसे, आपके सामने मुझे सफ़ाई देने की कोई ज़रूरत नहीं है. और वैसे भी, आपके डॉक्यूमेन्ट्स, कॉम्रेड!
पुलिस ऑफिसर : प्लीज़...(पत्नी से मुख़ातिब होते हुए पति को देता है.) माफ़ कीजिए, मैडम, भीतर आते ही मुझे फ़ौरन डॉक्यूमेन्ट्स दिखाने चाहिए थे. (पति से). मतलब, आप रुदाकोपव के यहाँ थे?
पत्नी : ग्रीशा, डॉक्यूमेन्ट्स लौटा दो. जाओ, मैं ख़ुद ही देख लूँगी.
पति (ग़ौर से डॉक्यूमेंट्स देखते हुए). : नहीं...यहाँ सब कुछ ठीक नहीं है. मैं तुम्हें यकीन दिलाता हूँ, कुछ ठीक नहीं है. अलमारी, अलमारी...
पुलिस ऑफ़िसर (लेते हुए) : और जहाँ तक अलमारी का ताल्लुक है, ये बेहद मासूम तरीका है. वहाँ से ध्यान हटाइए, आदरणीय महोदय. और क्या मैं आपके डॉक्यूमेंट्स देख सकता हूँ?
पति : ठेंगे से! मैं अपने घर में हूँ!
पुलिस ऑफिसर : बढ़िया. मैं ज़ोर नहीं दूँगा. आप – घर में हैं. आपकी पतलून बहुत छोटी है, यही बात गड़बड़ है. देखिए, मैडम.
पति : ये क्या कहना चाहता है! क्या तुम्हें कुछ समझ में आ रहा है?
पुलिस ऑफिसर : आपकी पतलून आपके लिए छोटी है, इससे मैं यह निष्कर्ष निकालता हूँ, आपकी पतलून आपकी नहीं है.
पति (जल्दी से) : तो फिर किसकी है?
पुलिस ऑफिसर : मैडम?
पत्नी : ये मेरे पति की पतलून है.
पुलिस ऑफिसर : यही तो मैं सुनना चाहता था! आपने मैडम के पति की पतलून पहनी है!
पति : मैडम का पति – मैं हूँ!
पुलिस ऑफिसर : मज़ाक मत कीजिए.
ख़ामोशी. पति-पत्नी की जैसे बोलती बंद हो गई – वे चौंक गए हैं. पुलिस ऑफिसर कमरे में चक्कर लगा रहा है.
वाकया सचमुच में असाधारण है. मगर मैंने हर बात पर विचार कर लिया है. अपने धीमेपन के समर्थन में, मैडम, मुझे आपको बताना पड़ेगा, कि आम धारणा के विपरीत, कानून प्रवर्तन विभाग के कई लोग चेहरों को अच्छी तरह याद नहीं रख सकते. अफ़सोस की बात है, कि मैं उनमें से एक हूँ. बड़े-बड़े डिपार्टमेन्टल स्टोर्स के विक्रेताओं में भी ऐसी ही बात देखी जाती है. चेहरों के निरंतर प्रवाह के कारण, जो आँखों के सामने से गुज़रते हैं, मस्तिष्क के आवरण के कुछ हिस्सों पर दबाव पड़ता है, जो स्मरण शक्ति से संबंधित होते हैं. कुछ और भी बताऊँगा, हमारे पेशे के आधिकारिक प्रतिनिधियों के लिए आदमी का चेहरा – सबसे महत्वपूर्ण नहीं होता. ख़ैर, आप कपड़े उतारिये, शॉर्ट्स तक, और मुझे एक पल के लिए भी शक नहीं होगा. ये आप हैं या आप नहीं हैं. आप! आप रुदाकोपव के यहाँ नहीं थे!
पति : तो फिर मैं कहाँ था!
पुलिस ऑफिसर : आप नशा विमुक्ति केंद्र में थे. हमारे!
पति : फ़ौरन यहाँ से दफ़ा हो जाइए!
पुलिस ऑफिसर ( समर्थन की आशा में) : मैडम?
पत्नी : नहीं, ये, सचमुच में ग़लतफ़हमी हुई है...
पुलिस ऑफिसर (तिरस्कार से सिर हिलाते हुए) : मैडम...क्या मैंने आप पर कोई आरोप लगाया है? आपने इन्सानियत से काम लिया है.
पति : वह पागल है!
पुलिस ऑफ़िसर : आप, ना कि मैं, ये आप हैं, येव्गेनी देनीसविच, आपने ऐसा बर्ताव किया, जैसे पागल हों! कहीं किसी ने आपको धमकी तो नहीं दी? कहीं आपने ये तो नहीं सोच लिया कि आपको मारेंगे?...हम, काफ़ी हद तक, कानून पसंद देश में रहते हैं!... चलिए, शांति से, शांति से, सब पीछे छूट गया है...दोस्त बनेंगे...चलिए, चलिए...हमारा इंतज़ार हो रहा है...
पति : नहीं जाऊँगा!...कहीं नहीं जाऊँगा!...
पुलिस ऑफिसर : मैं विनती करता हूँ...मैं विनती करता हूँ आपकी, जैसे एक पाठक, अगर आप चाहें तो, लेखक की करता है...प्लीज़...आप कुछ देर वहाँ रहेंगे, और फिर हम आपको छोड़ देंगे. आपको कुछ देर के लिए वहाँ रहना होगा. वर्ना – अजीब बात हो जाएगी.
पति : नास्त्या, नास्त्या...
पत्नी : ग्रीशा, एक तरह से वह ठीक ही है...शायद, जाना तुम्हारे लिए बेहतर होगा, तुम्हारा क्या ख़याल है?...
पति : कहाँ?
पत्नी : अरे, वहाँ...कहाँ, ये महत्वपूर्ण नहीं है...ग्रीशा, मैं तुम्हारी मदद करूँगी, तुम डरो नहीं, जाओ. तुम मुझ पर विश्वास करते हो? या नहीं करते?
पति : मुझे कहीं जाने की ज़रूरत क्या है?
पत्नी : अरे, तुम समझ क्यों नहीं रहे हो, कि क्यों जाना चाहिए? या तो तुम, या तुम नहीं...चलो, स्वार्थी मत बनो. जाओ भी. ये ज़रूरी है.
पति : मैं तुम्हारा पति हूँ. नास्त्या! मैं होशो-हवास में हूँ!
पत्नी : ये तो और भी अच्छा है, तुम्हें किसी बात से डरने की ज़रूरत नहीं है.
पुलिस ऑफिसर : मैडम, वादा करता हूँ, आपके पति के कपड़े हम आपको लौटा देंगे.
पत्नी : मुझ पर यकीन करो, मेरे प्यारे, और हमारी अंतरात्मा साफ़ रहेगी...(पति को चूमती है.)
पुलिस ऑफिसर : कसम खाता हूँ, मैडम, येव्गेनी देनीसविच का एक बाल भी बांका नहीं होगा!
पति : मैं येव्गेनी देनीसविच नहीं हूँ! मैंने “अब्लोम” उपन्यास नहीं लिखा है!
पुलिस ऑफ़िसर (व्यंग्य से) : हाँ, बेशक, आप रुदाकोपव के यहाँ थे.
पति : मगर, मैं अलमारी में तो नहीं हूँ! नास्त्या, आखिर मैं अलमारी में नहीं हूँ ना?!
पुलिस ऑफिसर : चलिए, चलिए, वहाँ फैसला कर लेंग़े.
ले जाता है.
पत्नी अलमारी के पास भागती है. दरवाज़ा छूती है            
पत्नी : येव्गेनी देनीसविच...येव्गेनी देनीसविच! ...आप बच गए!

अंत का एक और विकल्प
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पुलिस ऑफिसर : वैसे आपकी पतलून आपके लिए छोटी है, यही परेशानी की बात है. देखिए, मैडम.
पति : ये क्या बकवास कर रहा है! तुम्हें कुछ समझ में आ रहा है?
पुलिस ऑफिसर : आपकी पतलून आपके लिए छोटी है, इससे मैं ये निष्कर्ष निकालता हूँ, कि आपकी पतलून आपकी नहीं है.
पति (फ़ौरन): तो फिर किसकी है?
पुलिस वाला : मैडम?
पत्नी : रुको, प्यारे, मगर ये पतलून, वाकई में तुम्हारी नहीं है!
पति : क्या वाकई में?
पत्नी : ये रुदाकोपव की पतलून है!
पति : ये हो ही नहीं सकता!...मुझे पता नहीं, ऐसा कैसे हो सकता था...
पत्नी : तो तुम रुदाकोपव के यहाँ थे?
पति : हाँ...मगर...
पत्नी : क्या तुम सचमुच में रुदाकोपव के यहाँ थे???
पति : नास्तेन्का...मैं...था रुदाकोपव के यहाँ...मगर इसका ज़रा भी वो मतलब नहीं है, जो तुम सोच रही हो...
पुलिस ऑफ़िसर : ये हमारे नशा विमुक्ति केंद्र में थे!
पत्नी : मुझे कहानियाँ न सुनाइये! मुझे मालूम है, कि वह कहाँ था!
पति : (अनमनेपन से). असल में...मैं नशा विमुक्ति केंद्र में था...
पुलिस ऑफिसर : मैंने क्या कहा था!...चलिए, येव्गेनी देनीसविच!
पत्नी : ये कहाँ से येव्गेनी देनीसविच हो गया?
पति : नास्तेन्का...ये सही है...मैं सचमुच में नशा विमुक्ति केंद्र में था...और तुम, नास्तेन्का, कहाँ का रुदाकोपव?... मैं मज़ाक कर रहा था... मैं रुदाकोपव के यहाँ नहीं था...
पत्नी : थे! थे! थे!
पुलिस ऑफिसर : मैडम, कसम खाता हूँ, मैडम, येव्गेनी देनीसविच हमारे नशा विमुक्ति केन्द्र में थे. परेशान न हों, मैडम, हम आपके पति के कपड़े आपको लौटा देंगे. चलिए, चलिए...
पति (फ़ौरन) : हाँ, बेशक...चलिए, चलें...
दोनों चले जाते है.
पत्नी अलमारी की ओर लपकती है.
पत्नी (रोते हुए) : येव्गेनी देनीसविच...येव्गेनी देनीसविच...आप बच गए!

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बुधवार, 16 जनवरी 2019

फ्रीज़र


फ्रीज़र - Nosov's story and about him

लेखक का परिचय:



सिर्गेइ नोसोव आधुनिक रूसी लेखक, नाटककार एवम् निबन्धकार हैं. उन्हें पीटरबुर्ग का प्रमुख आधुनिकोत्तर (पोस्टमॉडर्न) लेखक कहा जाता है, उन्हें एक्ज़िस्टेन्शियलिस्ट (अस्तित्ववादी) भी माना जाता है.

सेर्गेइ नोसोव का जन्म 19 फरवरी 1957 को पीटरबुर्ग में हुआ था. उन्होंने विमानन साधन इंस्टीट्यूट और गोर्की साहित्य इंस्टीट्यूट में शिक्षा ग्रहण की. पहले कुछ साल विमानन साधन के क्षेत्र में काम किया फिर पत्रकारिता की ओर मुड़ गए. रेडिओ पर भी काम करते रहे.
साहित्य इंस्टीट्यूट में पढ़ते हुए ही कुछ कविताएँ लिखीं थीं, जिन्हें उन्होंने जला दिया. सन् 1980 में ‘अव्रोरा’ नामक पत्रिका में उनकी कविताएँ छपीं. पहली पुस्तक “सितारों के नीचे” सन् 1990 में प्रकाशित हुई.
सेर्गेइ नोसोव ऐसे लेखक हैं जिनका नाम अनेक बार “नेशनल बेस्टसेलर’ और ‘रूसी बुकर’ की अंतिम सूची में शामिल हुआ था. एक अन्य पुरस्कार “बिग बुक” की अंतिम सूची में भी उन्हें शामिल किया गया था. सन् 1998 में उन्हें पत्रकारिता का ‘ज़ोलोतोए पेरो’ (गोल्डन पेन) पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
उन्होंने अब तक छह उपन्यास लिखे हैं: ‘फ्रांत्सुआज़ा या ग्लेशियर्स की यात्रा’, ‘मुझे एक बन्दर दो’, ‘पंछी उड़ गए’, ‘समाज का सदस्य या भूखा समय’, ‘डेढ़ ख़रगोश’ और  ‘धनु कोष्ठक’.
उनकी पुस्तक “पीटरबुर्ग के स्मारकों का रहस्यमय जीवन” भी काफ़ी प्रसिद्ध है.
सेर्गेइ नोसोव को युद्ध से संबंधित कथाओं में, विस्थापितों के दर्द को दर्शाने में, ऐतिहासिक गाथाओं के पुनर्मूल्यांकन में कोई दिलचस्पी नहीं है. नोसोव – ख़ामोश तबियत लेखक हैं. उन्हें दिलचस्पी है ज़िन्दगी के छोटे-छोटे प्रसंगों में – एक प्राइवेट आदमी, अपनी सभी अटपटी आदतों - बेकार के अपमान, दिलचस्प फ़ोबिया, और अटपटे निष्कर्षों की पोटली लादे – ये है उनका नायक.    




फ्रीज़र
लेखक: सिर्गेइ नोसव 
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास

आख़िरकार रात के दो बजे केक आ ही गया. दो टुकड़े खाने के बाद – एक अपने लिए और एक शौहर के लिए, - मार्गारीटा मकारोव्ना को टी.वी. की तलब आईअपने प्यारे कॉमेडी-कलाकारों को देखने का जी चाहने लगा. वह हिम्मत करके डाइनिंग रूम से बाहर निकली और दूसरी मंज़िल पर भी चढ़ गईजहाँ क्रिसमस ट्री की ख़ुशबू फैली थीमगर टी.वी. तक वह पहुँच ही नहीं पाई – निढ़ाल होकर उससे सात कदम की दूरी पर आरामदेह कुर्सी में धंस गईसमझ गईकि अब उसमें उठने की और टी.वी. चालू करने की शक्ति नहीं हैउसने गहरी सांस छोड़ीपस्त हो गई और ऊँघने लगी.
जल्दी ही हॉल हल्की-हल्की आवाज़ों से भर गया. हेल्थ-रिसॉर्ट के दर्जनों रहने वाले यहाँ आ पहुँचेजिससे कि एक दूसरे के मन में डर पैदा कर सकें, - उनका दिल ख़ौफ़नाक घटनाएँ’ सुनना चाह रहा थाये है नये साल का अटपटापन. मार्गारीटा मकारोव्ना सुन रही थीमगर ग्रहण नहीं कर रही थी. सब लोग दबी ज़ुबान में बात कर रहे थेजिससे मार्गारीटा मकारोव्ना जाग न जाएमगर असल मेंइस प्रोजेक्ट की तरफ़ दूसरे कोण से देखा जाएतो...ख़ौफ़नाक कहानियाँ हमेशा इसी तरह से तो सुनाई जाती हैं.
वहाँ आए हुए लोगों में ज़्यादातर महिलाएँ ही थीं, - धीमीरहस्यमय आवाज़ों में रक्तपिपासु सांप्रदायिकों के बारे मेंसीरियल किलिंग्स के बारे मेंइन्सानों को खाने वाले नकाबपोशों के बारे में बातें हो रही थीं. ऊँघ के बीच मार्गारीटा मकारोव्ना ने तीसरी मंज़िल के स्पोर्ट्स-वीकली के संवाददाता कोस्त्या सलव्योव की मौजूदगी को महसूस किया. छुट-पुट फिकरों की वजह से उसके अपने पतिमैमालोजिस्ट रस्तिस्लाव बरीसोविच ने भी अपनी उपस्थिति का एहसास करवाया. लगता हैकोई और मर्द नहीं थे.
नहींमार्गारीटा मकारोव्ना दहशतभरी बकवास को नहीं सुन रही थीउसे तो खुमानियों के केक की याद आ रही थी, - वो सपना भीजिसमें वह लुढ़क गई थीमीठाख़ुशनुमाखुमानी जैसा था.
(बसप्लीज़मुझसे ये न पूछिएकि मार्गारीटा मकारोव्ना को कैसा सपना आ रहा है इसके बारे में मुझे कैसे मालूम हैमैं तो लेखक हूँ!...
बसऐसा ही था.)
इस बीच कोस्त्या सलव्योव नेजहाँ तक टी.वी. के ऊपर रखी प्रकाश की एकमात्र स्त्रोत मोमबत्ती इजाज़त दे रही थीमहिलाओं के जामों में शैम्पेन डाल दी. बिजलीज़ाहिर हैबंद कर दी गई थी.
“डियर लेडीज़,” बेख़याली से सलव्योव की उपस्थिति को अनदेखा करते हुए रस्तिस्लाव बरीसोविच ने इस समूह को संबोधित करते हुए कहा, “जो कुछ भी आप यहाँ कह रहे हैंख़तरनाक हद तक दिलचस्प है. मगर आप किसी और के साथ हुई घटना के बारे में बात कर रही हैंन कि आपबीती सुना रही हैं. जब तक मेरी बीबी सो रही हैआपको एक अचरजभरी घटना के बारे में सुनाता हूंजो ख़ुद मेरे साथ हुई थी. ग्यारन्टी के साथ कहता हूँकि आपकी पीठ और पैरों में ठण्डक दौड़ जाएगी.          
महिलाओं में काफी उत्सुकता दौड़ गई. रस्तिस्लाव बरीसोविच नेशायद अनुमान लगा लियाकि सोती हुई बीबी का ज़िक्र करने से उसकी बात का गलत मतलब लगाए जाने का ख़तरा है. उसने फ़ौरन स्पष्ट किया:
“नहींनहीं. मार्गो को ये किस्सा बहुत अच्छी तरह से मालूम है. और वैसे भीमैं कई सारी बातों के लिए उसका शुक्रगुज़ार हूँ...आप अंदाज़ा नही लगा सकते कि उसने कैसे उस समय मेरा साथ दिया. उस घटना के बाद मुझे भयानक नर्वस-ब्रेकडाउन हो गया था. मगर उसने मुझे उससे बाहर निकालाअपने पैरों पे खड़ा किया. ये लब्ज़ इस्तेमाल करने से मैं हिचकिचाऊँगा नहींउसने मुझे बचाया.
उसने प्राकृतिक यूरोपियन बालों से बना उसका विग’ ठीक किया जो एक किनारे को खिसक गया था.
“सोने दें थोडी देर,” रस्तिस्लाव बरीसोविचने भावुकता से कहा. “कभी ये मेरे साथ क्लिनिक में नर्स का काम करती थी.”
“छोडोछोडो,” उपस्थित लोगों ने रज़ामंदी दर्शाई. “आप सुनाइयेरस्तिस्लाव बरीसोविचये इतना दिलचस्प है.”   
रस्तिस्लाव बरीसोविच ने अपनी कहानी शुरू की:
“ये किस्सा मेरे साथ हुआ थापेर्वोमायस्क  शहर में....”
तभी सलव्योव ने उसकी बात काटते हुए पूछा:
“कौन से वाले पेर्वोमायस्क  मेंकहीं वही तो नहींजो आजकल स्तारोस्कुदेल्स्क कहलाता है?”
“देखिएजानता है आदमी,” रस्तिस्लाव बरीसोविचने ख़ुशी से कहा. “स्तारोकुदेल्स्क – ये शहर का प्राचीन ऐतिहासिक नाम है. बसप्लीज़सिर्फ ये न कहियेकि आप वहाँ जा चुके हैं.”
“जा चुका हूँहाँमैं वहां प्रादेशिक अखबार में मशक्कत करता था! पंद्रह साल पहले.”
“वाह!” रस्तिस्लाव बरीसोविच ज़ोर से चहकाबीबी बस जागते-जागते रह गई. “सुना आपने?! मैं भी...पंद्रह साल पहले...एक हादसे में फँस गया था!...”
“क्या हम मिल चुके हैं?” सलोव्येव ने आँखें सिकोड़ते हुए अपनी याददाश्त पर ज़ोर देते हुए पूछा.
“सवाल ही नहीं है. मैं पेर्वोमायस्क  में सिर्फ कुछ घंटे ही था. इकतीस दिसम्बर कोइत्तेफ़ाक से! और सिर्फ दो लोगों को छोड़कर मैं वहाँ किसी से भी नहीं मिला था. अच्छा बताइये तो सहीचूंकि आप अख़बार में काम करते थेतो शायद आपको पता होगाकि पेर्वोमायस्क  में लोग कहीं बिना कोई निशान छोड़े गायब तो नहीं हुआ करते थे?”
“उस समय तो पूरे रूस में लोग गायब हो जाया करते थेऐसे हालात थे,” सलोव्येवने उड़ते-उड़ते जवाब दिया.
“नहींबल्कि पेर्वोमायस्क  मेंपेर्वोमायस्क  में?” रस्तिस्लाव बरीसोविचने फिर से कोशिश की. “कहीं वहाँ कोई सीरियल किलर’ या साफ़-साफ़ पूछूं तो, ‘सीरियल किलर्स’ तो नहीं थे?...”
सवाल से परेशान सलोव्येव बुदबुदाया :
“वैसे तोमैंने वहाँ सिर्फ चार महीने ही काम किया था. नया साल आते-आते मैं मॉस्को आ गया था.”
“तबठीक है,” रस्तिस्लाव बरीसोविचने कहा, “आपको पता नहीं चला होगा...”
महिलाएँजिनकी उत्सुकता चरमसीमा तक पहुँच गई थीएक सुर में मांग करने लगींकि फ़ौरन कहानी शुरू की जाए.
“तोये अजीब घटना मेरे साथ पेर्वोमायस्क  में हुई,” रस्तिस्लाव बरीसोविचने दुहरायाउसके बाद आराम से जाम की शैम्पेन ख़तम की और ग़ौर से बीबी की तरफ देखा: मार्गारीटा मकारोव्ना कुर्सी में पूरी तरह समाकर, सुकून से सो रही थी, 
और उसने कहानी आगे बढ़ाई.
और करीब बीस मिनट में पूरी कर दी.
इन बीस मिनटों के दौरान रस्तिस्लाव बरीसोविच हॉल का आकर्षण केंद्र बना रहा.
सुननेवालियाँजैसा कि बाद में उन्होंने स्वीकार कियाकाफ़ी चकित थींऔर कई तो परेशान भी थीं,रस्तिस्लाव बरीसोविच के अजीब से, भरोसा दिलातेकरीब-करीब स्वीकारोक्ति जैसे अंदाज़ ने (कम से कम,सभी परएक साथ, गहरा असर डाला था) – वैसे भी “डरावना” किस्सा सुनाने वाले से किसी ने भी असली उत्तेजना की उम्मीद रखने की जुर्रत नहीं की. बाद मेंजब इस सनसनीखेज़ किस्से को सेनिटोरियम की सभी मंज़िलों पर बार-बार सुनाया जाएगाऔर पार्क के बर्फ साफ किये गए गलियारों में एक साथ या दो-दो के गुटों में टहलते हुए रस्तिस्लाव बरीसोविच की अजीब किस्मत पर चर्चा होगीवे सभीजिन्होंने इस किस्से को ख़ुद उसीके मुँह से सुना थारस्तिस्लाव बरीसोविच के बयान करने के अंदाज़ कोउसकी ख़ासियत को याद करने का और उस पर गौर करने का एक भी मौका नहीं छोडेंगे: जोशविश्वसनीयता,स्वीकारोक्ति. ये सही हैकि ऐसे शक्की लोग भी मिल जाएँगे (ख़ासकरउनमें जिन्हें किस्से को घिसे पिटे तरीके से बार-बार दुहराए जाने के परिणामस्वरूप मोटे तौर पर इसका सारांश पता चला है) जो कहेंगे : वो,जिसे तुम जोशविश्वसनीयतास्वीकारोक्ति समझ रहे हो – शायद सिर्फ एक आमभलीभांति आत्मसात् की गई ट्रिक हैजो महिलाओं की सभा में तुरंत सफलता के लिए अपनाई जाती है. मगर इस बात पर बहस कौन करेगाकि रस्तिस्लाव बरीसोविचकिस्सा शुरू करते समयअच्छी तरह समझ रहा थाकि वह किसके सामने और क्यों अपनी कहानी सुना रहा हैअगर उसने स्वयम् को इस छोटे से नाटक का रचयिता समझ लियातो फिर क्यों नहीं? – वह एक अच्छा एक्टर भी बन सकता था. ज़्यादा महत्वपूर्ण बात ये हैकि किस्सा सुनाते हुएवोसभी की राय मेंख़ुद ही कुछेक बातें समझना चाह रहा था, - ये सबको याद रहेगा. मतलबरस्तिस्लाव बरीसोविच का किस्साएक स्थानीय लोक-कथा बन जायेगा और न केवल इस शिफ्ट केबल्कि आने वाली शिफ्टों के – अप्रैल तक केऔर शायद मई के भी टूरिस्ट्स के बीच चलता रहेगा. कोस्त्या सलव्योवप्रादेशिक अख़बार में अपने मशक्कत’ के अनुभव को याद करकेइस किस्से को एक साहित्यिक रचना के रूप में प्रस्तुत कर देगामगरअफ़सोसउसके हाथ रचनात्मक असफ़लता ही आयेगी. पहली बातवोपेर्वोमायस्क  के जीवन से भली भांति परिचित होने के कारण,अपने लेखकीय स्व’ को बढ़ा-चढ़ा कर पेश करेगाऔर दूसरी बातपरिणामस्वरूप – पेश करने के अंदाज़ में मात खा जायेगा. वाकई मेंरस्तिस्लाव बरीसोविच के मौखिक स्वगत-कथन को लिखित रूप में प्रस्तुत करना बेहद मुश्किल है. साहित्यिक परिष्करण के बिना काम नहीं चलेगा. अगर काबिल व्यक्तियों में से कोई रस्तिस्लाव बरीसोविच के अत्यंत भावावेशपूर्ण स्वगत-कथन को उचित दिशा में हल्के से सुधार कर (जैसे, ‘प्यारी महिलाओं के प्रति अत्यधिक आग्रहों को घटा कर और भावनाओं के अतिरेक को कम करके),अपने शब्दों में सुनाने का निर्णय करेतो वो कुछ इस तरह का हो सकता है.
इस तरह का.
तुलना के लिए माफ़ करेंमेरे दोस्तोंमगर मैं था कौन?... मैं थापरवाने जैसाजो शमा की ओर लपकता है. परवाने जैसा!...
सोचियेउसका नाम था फ़इना. इसके बाद मैं कभी भी किसी फ़इना से नहीं मिला.
शुरुआत कुछ पहले ही हुई थी...नये साल से करीब तीन महीने पहले.
मैं ये नहीं बताऊंगा कि हमारी मुलाकात किन परिस्थितियों में हुईमगर क्यों नहीं? – ये हुआ था ग्लीन्स्का में, रेल्वे स्टेशन परमुझे मॉस्को जाना थाउसेबाद में पता चलापेर्वोमायस्कमतलबआज के स्तारोस्कुदेल्स्क. हम अलग-अलग टिकिट-खिडकियों के सामने खड़े थेमेरा नंबर बस आ ही गया था,मगर उसे अभी काफ़ी देर तक कतार में खड़ा रहना था. वो कोई किताब पढ़ रही थी. उसने मुझे नहीं देखा थाहालाँकि अब मुझे शक हैकि पहले किसने किसको देखा थाआज मुझे इस बात का भी यकीन नहीं हैकि वो वाकई में ख़ूबसूरत थीजैसा मुझे तब प्रतीत हुआ था. हो सकता हैकि मुझे पहले चुना गया थाभीड़ से अलग करके, - हो सकता हैकि मैं किसी मानसिक धोखे का शिकार बन गया थाजैसे जिप्सी लोग करते हैं. वैसेउसमें कुछ जिप्सियों जैसी बात तो थीऔरसबसे पहलेबेशकउसकी आँखें – कालीजैसेपता नहीं क्या...जैसे बेपनाह गहरे दो छेद. मगर आँखें मैंने थोड़ी देर बाद देखीं – जब हम करीब आये. मतलबमैं उसकी ओर एकटक देखने लगाजोस्वीकार करना पड़ेगाकि अपनी ज़िंदगी में कभी नहीं करता हूं – भीड में किसी औरत की ओर एकटक देखनामगर मैं किसी पागल की तरह उसकी ओर आँखें गडाए थाऔर ऊपर से मैं कतार की दिशा के  विपरीत मुड गया, - देखा और इस बात से हैरान हो गयाकि दूसरे लोग उसकी तरफ़ क्यों नहीं देख रहे हैंसही मेंकोई भी नहीं देख रहा था. सिर्फ मैं अकेला ही देख रहा था. क्या इसका कोई ख़ास मतलब है?...तोबात इसीके बारे में है.      
आगे का घटनाक्रम इस प्रकार है. वो किताब में देख रही हैऔर मैं उसे देख रहा हूंअचानक वह पढ़ना रोक देती हैजैसे महसूस कर रही होकि लोग उसकी ओर देख रहे हैंऔर अचूकता सेबिना किसी सहायता के मुझ पर नज़र गड़ा देती है. औरमैं क्या करता हूँमैं हाथ के इशारे से उसे बताता हूँकि यहाँ खड़ी हो सकती हैमेरे आगे, - प्लीज़मैं आपको जाने दूँगा. और वोमुझे ऐसा लगाकि थोड़ा सा हिचकिचाकरआँख़ों से मुझे धन्यवाद देते हुए हमारी कतार में आ जाती है और मेरे आगे खड़ी हो जाती हैऔर मैंउसकी आँखों में झांकते हुएयूँ ही किसी से कह देता हूँ हम एक साथ हैं’ और आँखें हटाकर देखता हूँकि वह किताब को पर्स में रख रही हैऔर वहाँपता हैकवर के ऊपर कोई विकृत व्यक्ति था और शीर्षक कुछ इस तरह का विध्वंसक आएगा सोमवार को’. पूछता हूँ: “दिलचस्प है?’ – “अरे नहींक्या कह रहे हैं,” वो जवाब देती है, “फालतू बकवास है!” – “तो फिर क्यों पढ़ रही हैं?” और पता हैउसने क्या जवाब दियाउसने जवाब दिया : “मज़ेदार है.”
उसका पेर्वोमायस्क का टिकट बनाने में काफी देर लग रही थीतब ग्लीन्स्का में रेल्वे काउन्टर्स पर कम्प्यूटर नहीं थेमालूम नहीं हैकि अब हैं या नहींकैशियर लगातार कहीं फोन किये जा रही थीखाली बर्थ्स के बारे में सूचना मांग रही थीऔर मैं उसके पीछे खड़ा था...अरेनहींकैशियर के नहींख़ैर,बेवकूफ़ीभरे सवाल क्यों पूछ रहे हैं?...उसके पीछे खड़ा था और मुश्किल से अपने आप पर काबू कर रहा थाजिससे उसे अपनी बांहों में न भर लूँजिससे उसके गालों को होठों से न छू लूं.   
देखियेआपके सामने मैं अपना दिल खोलकर रख रहा हूँ. वर्ना तो कहानी बनेगी ही नहीं.
तो ऐसी बात है. मैं उसके साथ प्लेटफॉर्म पर आयाहम स्टेशन के पास वाले छोटे से बगीचे में गएवहां बीयर के स्टाल्स हैंसिमेन्ट का घण्टे के आकार के फूल का फव्वारा हैमतलब - भूतपूर्वमैपल्स के पेड हैंवो मुझसे कहती है : “आप उदास क्यों हैंउदास नहीं होना चाहिए”. मैं जोश से कहता हूं: “ ये आपसे किसने कह दियाकि मैं उदास हूं?” वो कहती है : “साफ दिखाई दे रहा है”. और उस समय मैं कई असफ़लताओं से जूझ रहा थामुझे पूरी दुनिया से नफ़रत हो गई थीजीने की ख़्वाहिश ही नहीं रह गई थी. अपने मरीज़ों से नफ़रत हो गई थीस्तनों की बीमारियाँमेरी प्रैक्टिस भी उन दिनों बेहद बुरी चल रही थी...”उदास न होंदेखिएकितना अच्छा है”. और वाकई में बहुत अच्छा था: पतझड का मौसमगिरते हुए पत्ते (अगर,बेशकगंदे प्लेटफॉर्म से कल्पना की जाए तो). और तब मैं अचानक उसके सामने खुल गया,अपने बारे में बताने लगा. मुझ पर ये कैसा भूत सवार हो गया थाफिर मैं कल्पना की दुनिया में खो गया : सुखभाग्यमगर क्या-क्या कह डालायाद नहीं – शायद लचर बातें थीं. मगर वो बड़े ग़ौर से मेरी बातें सुन रही थीमैं भी इसीलिए कहे जा रहा थाक्योंकि मैं देख रहा थाकि वह कैसे मेरी बातें सुन रही है. पता नहींमुझमें ऐसी क्या ख़ासियत थीमगरएक आम बात को भी उसने अनदेखा नहीं कियाउस प्यारी लड़की ने. वोप्यारी महिलाओंआपको अच्छी तरह मालूम है: हमारे भाई को पटाना बेहद आसान हैअगर उससे उसकी विशेषता का ज़िक्र कर दो. हद से हदजब ‌आहप्यारेऔर किसी के भी साथ इतना अच्छा नहीं लगा थाजितना तुम्हारे साथ”पर हमारी छोटी-मोटी खूबियाँ भीजब उनकी तारीफ़ की जाती हैतो बदले में प्यार जताने के लिए प्रेरित करती हैं. मैं पूरा का पूरा पिघल गयाजब उसे मेरे बयान करने का तरीकाकैसे कहूँ, ‘ख़ास’ प्रतीत हुआ. मतलबउसे मुझमें कोई योग्यता नज़र आईजैसे कुशाग्र बुद्धिविरोधाभास. जैसेइस तरह की बात कभी किसी से सुनी नहीं हो. जैसे कि मैंने उसके सामने मानव-स्वभाव को खोलकर रख दिया हो. इस बात के लिए धन्यवाद देते-देते रह गईकि मैं दुनिया में हूँ. इस पर मैं कहता तो क्या कहताकुछ नहीं. मगर मैंने उसके दिल को जैसे छू लिया थाऐसा लगा. किसी तरह.
याद नहींकि कैसे हमने एक दूसरे के फोन नंबर लियेऔर क्या ये हुआ था? – जैसे नहीं हुआ थामगर मेरा पर्स जिसमें उसका पता और टेलिफोन नंबर थामॉस्को में किसी ने पार कर लियामगर उसके पास मेरा नंबरमतलबरह गया.                           
हाँहमारी बातचीत करीब चालीस मिनट चलीचलो घंटे भर. उसकी ट्रेन आईमैंने उसे कम्पार्टमेन्ट तक छोड़ा. बिदा लेते हुए उसने मुझे चूमाजैसे किसी अपने को चूम रही हो. अगर बुलातीतो मैं वैसे ही उसके पीछे-पीछे पेर्वोमायस्क चला जाता. ताज्जुब की बात हैकि नहीं गया, - मॉस्को में उस समय मेरे पास कोई ख़ास काम नहीं था.
शायदमैं किसी और मुलाकात के लिए अपने आप को तैयार कर चुका था.
उसने मुझ पर सम्मोहन कर दिया थामैं आपसे कहूँगा. मगरप्यार मैं कर नहीं सकता थानहीं कर सकता था. ये मेरा अंदाज़ नहीं है. मैं अपने आप को अच्छी तरह जानता हूँ.
इस बीच मेरे साथ ऐसा हुआ!
मॉस्को वापस लौटता हूं – जैसे पूरी तरह बदल गया हूँ – अपने आप में नहीं हूँदूसरा ही इन्सान बन गया हूँ. औरत के रूप में औरतों में कोई दिलचस्पी नहीं रह गई – किसी भी औरत में नहींसिर्फ एक को छोड़करइस पेर्वोमायस्कवाली को छोड़कर. और ऊपर सेमाफ़ कीजिए, ‘सेक्स’ की इतनी चाहत पैदा हो गईया अगन?...कि उसके बारे में कुछ न कहना ही बेहतर हैवर्ना अश्लील प्रतीत होगा. आप तो ख़ुद ही जानती हैंकि डॉक्टर सनकी होते हैंऔर मैं भी अपवाद नहीं हूँमगर यहाँ तोजैसे कोई जुनून पैदा हो गया था!... ओहअपनी कल्पना को मैं कैसे हवा दे रहा था! जैसे मैं कोई मुँहासे भरा स्कूली बच्चा हूँन कि पैंतीस साल का मेडिकल सायन्स का विशेषज्ञ! तोमेहेरबानी करके मुझे बताइयेइसके बाद क्या मैं उसे शैतान नहीं समझूँगा?
जल्दी हीसही मेंये सब रुक गया.
मगर कुछ ही वक्त के लिए.
दिसम्बर की बीस वाली तारीखों में टेलिफोन की घंटी बजती है. कानों पर भरोसा नहीं करता: फइना! अपने छोटे भाई के साथ नया साल मनाने के लिए पेर्वोमायस्क आने की दावत दे रही है. बस ऐसे ही दावत दे रही है. जैसे मैं बगल वाली सड़क पर रहता हूँ.
अब मैं आपसे पूछता हूँ: इस हरकत का क्या मतलब हैज़ाहिर हैकि इसका मतलब सिर्फ निमंत्रण ही नहींबल्कि कुछ और भी है. मुझे अच्छी तरह याद हैकि कैसा आश्चर्य हुआ था – मानना पडेगाबहुत अच्छा लगा था – मेरे ही फैसले परक्योंकि मैंने एक भी मिनट के लिए नहीं सोचा थाकि जाना चाहिए या नहीं. और वैसेऐसा लग रहा थाकि पहल मैंने की हैन कि उसने. उसने क्या कहा था? “हम,” बोली थी वो, “मेरे छोटे भाई के साथ मिलकर नया साल क्यों नहीं मना सकते?” समझ रहे हैं नाये सवाल था,सिर्फ एक सवाल. और मैं फ़ौरन बोला: “ओह,” कहता हूँ, “कितना ग़ज़ब का ख़याल है!” – “तो फिरआ जाइयेआपसे मिलकर हमें ख़ुशी होगी.”
और मैं चल पड़ा. इकतीस दिसम्बर को. चल क्या पड़ा – चल नहीं पड़ा – लपका! और अगर उस समय कोई मुझसे कहताकि मुझ पर किसीने जादू कर दिया हैतो मैं उस बेवकूफ़ के मुँह पर थूकताइतनी स्वाभाविक मुझे प्रतीत हो रही थी  मेरी ललक.
नहींझूठ बोल रहा हूँ. जब पेर्वोमायस्क नज़दीक आ रहा थामन में संदेह थे. सब कुछ इतनी आसानी से हो गया था. हो सकता हैकि मैंने बाद में ऐसी कल्पना कीमगरमेरे ख़याल सेनहीं, - एक उत्तेजित करने वाला ख़याल था – चिढ़ाता साअपने आप को चिढ़ाता हुआ: जैसेअभी प्लेटफॉर्म पे उतरोगेऔर काली आँखों वाली सुंदरी के बदले खड़ी मिलेगी पोपले मुँहलम्बी नाक वाली बुढ़िया: “क्याप्यारेपहुँच गए?”
और पता हैअगर उस समय वाकई में मेरे दिमाग़ में ये बकवास ख़याल आ सकता थातो अपने गुज़रे हुए अनुभव को देखते हुएस्वीकार करना पड़ेगाकि वो बेवजह नहीं आया था...मगरचलिएसब कुछ सिलसिलेवार बताता हूं!
मेरा स्वागत किया गया था. मैं प्लेटफॉर्म पर उतरा और मैंने उसे देखाऔर वो मुझे और भी ज़्यादा आकर्षक लगीउससे भी ज़्यादाजितनी ग्लीन्स्का में लगी थी. उसने बड़ी बड़ी बटनों की दो कतारों वाली,लम्बी काली ड्रेस पहनी थीसिर पर कुछ नहीं थाऔर वो घिनौनी चीज़जो आसमान से गिर रही थी,और जो बिल्कुल बर्फ जैसी नहीं थीबड़े आश्चर्यजनक तरीके से उसके घने काले बालों में आकर्षक,चमकदार, पन्ने जैसी ओस की बूंदों में बदल रही थी. और सर्दियाँ बिल्कुल सर्दियों जैसी नहीं थींकुछ बेहूदा सी चीज़ थी. नया साल और बाहर का तापमान +4 डिग्री!
“मिलोये है मेरा भाई गोशा”. – मतलबवह मेरे साथ तुम’ पर उतर आई थीबिना किसी हिचकिचाहट के. मैंने भी सोचा : बढ़िया है!
महाप्रलय पूर्व की पहले मॉडेल की वोल्गा’ सेजो तब भी प्राचीन एवम् दुर्लभ वस्तुओं में शुमार किये जाने लायक थीमैं शाम के पेर्वोमायस्क का नज़ारा देख रहा था. करीब छह बज रहे थेअंधेरा हो गया था. गोशा कार चला रहा था. उसे फिसलन भरे कीचड़ से होकर गाड़ी चलाना पड़ रहा थाबर्फ लगातार पिघल रही थी और बह रही थी. वह मज़ेदार तरीके से कार से बातें कर रहा थाकभी उसे नाम से संबोधित करताप्यार से – ब्रोन्काब्रोनेच्काब्रोन्याशा. “ब्रोनेविक” (बख्तरबन्द गाडी) इस शब्द से,” -फइना ने कहा.
उनके साथ मुझे हल्का लग रहा था.
वे मुझे शहर के अंतिम छोर तक ले गए. वे लकड़ी के दुमंज़िले मकान में रहते थेजो उन्हें माता-पिता से मिला था. उसमें अनगिनत कमरे थेछह से कम तो थे ही नहीं. फइना मुझे घर दिखाने ले गई. ये है स्वर्गीय माता-पिता का कमरावहाँ जाने की ज़रूरत नहीं हैये है गोशा का कमराये रहा गोशा का फोटोस्टूडिओबहुत बडे फोटो-एनलार्जर के साथजो पुरानी एक्सरे मशीन की याद दिलाता था...ग़ौर कीजिएमैं गोशा की फोटोग्राफी के नमूने देख ही नहीं पाया (कल्पना कर सकता हूँ कि वहाँ कैसे-कैसे फोटोग्राफ्स होंगे!).
नहींकुल मिलाकर गोशा मुझे तब अच्छा लगा थामगर अब मैं यकीन के साथ कह सकता हूँकि वो किसी सनकी जैसा थाबहन से भी ज़्यादा. पहली बात, मेरे बारे में अपनी राय का वह ज़रा ज़्यादा ही खुलकर प्रदर्शन कर रहा था. दूसरीउसका बर्ताव भी काफ़ी भेद भरा लग रहा थाजैसे उसे कुछ मालूम है,जिसे वो छुपा रहा है. तीसरी बातवह बहुत भेंगा थाहालाँकि इससे उसे कार चलाने में ज़रा भी मुश्किल नहीं हो रही थीमगर जिसके कारण मैं उससे बात नहीं कर पा रहा था, - मैं समझ नहीं पा रहा थाकि उससे बात करते समय मुझे किस आँख की तरफ़ देखना हैअंदाज़ से उस वाली की तरफ़ जो तुम्हें देख रही हैमगर दोनों ही कहीं और ही देख रही थीं.                
सच कहूँतो मैंने गोशा से बहुत बातें नहीं कींवह मुझे फइना के साथ अकेले छोड़ने की कोशिश कर रहा था. उस समय मुझे महसूस हो रहा थाकि मेरी फइना के साथ आश्चर्यजनक रूप से अच्छी जम रही थी,दोनों तरफ़ किसी किस्म का दबाव नहीं था. जैसे इससे पहले हमने एक दूसरे के साथ सिर्फ एक घंटा नहीं,बल्कि आधी ज़िंदगी बिताई हो. बेशकबिना हिप्नोसिस के ये हो नहीं सकता था. हालाँकि मैं मैमालोजिस्टहूँपर मनोविज्ञान की भी मुझे थोड़ी बहुत समझ है. इस घटना के बारे में मेरा एक अपना सिद्धांत भी है,मगर उसे यहाँ नहीं बताऊँगा. मुझे उनके घर में अटपटापन महसूस नहीं हो रहा था. और वो भी मेरे आने से अचकचा नहीं रही थी. जैसे लंबी जुदाई के बाद पति पत्नी के पास आया हो. ऊपर सेकाफ़ी इंतज़ार के बाद. इस घर में जैसे मैं अपनापन महसूस कर रहा थाचाहे घर की हर चीज़ पहली बार ही क्यों न देखी हो.
जब वो मुझे मेरे वाले कमरे में ले जा रही थीतब गोशा किचन में बर्तनों की खड़खड़ाहट कर रहा था. हर चीज़ मेरे लिए सजाई गई थीसब कुछ साफ़-सुथरा था. थोड़ी शरम आई थी मुझेयाद हैलाल कम्बल देखकर: क्या लाल रंग का कोई ख़ास मतलब था? – मगरमानता हूँकि उस समय तो मुझे पलंग की चौड़ाई ने आकर्षित किया थाक्योंकि चौड़ाई के इस आयाम से मेज़बान के इरादों का अप्रत्यक्ष रूप से आभास हो रहा था. और पलंग – सिंगल बेड नहीं था...मुझे लगाकि फइना मेरे ख़याल पढ़ रही हैतभी मैंने फ़ौरन – उसकी ओर देखा! – और मुझे लगा: जैसे होठों पर पतंगे की परछाईं है... वह कुछ कहते-कहते रह गई. और उसने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे कॉरीडोर में ले आई. और मेरे कान में फुसफुसाई: “पता है,मैं बहुत ख़ुश हूँकि तुम आए हो”. वह कॉरीडोर में जा रही थीऔर मैं उसके पीछे थाऔर तब मैंने फ़ौरन वो कर डालाजो तबरेल्वेस्टेशन की टिकिट खिडकी के पास नहीं कर पाया था: मैंने उसे रोक कर अपनी बाहों में ले लिया. ऐसेपेट पकड़कर. उसने हौले सेबिना मुड़ेअपने आप को मेरे आलिंगन से ये कहते हुए आज़ाद किया: “मेज़ पर जाना चाहिए”मतलब ये कहना था, “डाइनिंग टेबल सजाना है”, - और आगे चल पडीअबूझेशैतानी आकर्षण क्षेत्र से मुझे अपने पीछे-पीछे घसीटते हुए.
हम तीनों ने मिलकर मेज़ सजा दीमैंसच कहूँतो बस इधर-उधर डोलता रहाक्योंकि फ्रीज से ओलिविएर सलाद और ड्रेस्ड हैरिंग निकालने में तो कोई मेहनत नहीं करनी पड़ी. उन्होंने काफ़ी सारी चीज़ें बनाई थीं. वो सालअगर आपको याद होहमारे देश के लिए भरपेट अनाज वाला नहीं था. मगर नए साल की मेज़ – एक पवित्र बात है. ये सभी के यहाँ होता है. मैं भी साथ में कुछ लाया था, - याद हैकैवियर का डिब्बावोद्काशैम्पेन. क्रिसमस-ट्री के नीचे चुपके से दो डिब्बे रख दिए – उनके लिए गिफ़्ट्स. मगर गोशा ने देख लिया: “देखो तोसान्ता क्लॉज़ आया थासाथ में कुछ तो लाया था”. इस पर वो सवालिया जवाब देती है: “और सान्ता क्लॉज़ वाला हमारा सरप्राइज़ क्या हैशायदअभीया बाद में?” – “चल,अभी”, - गोशा कहता है.
वो मुझे कमरे से कहीं भी न जाने के लिए कहते हैं और सरप्राइज़ के लिए निकल जाते हैं. मुझेछुपाऊँगा नहींअच्छा लग रहा था. मैं इंतज़ार करता हूँउनके आपसी संबंधों पर ख़ुश होता हूँ.
अच्छे संबंध हैं. बहुत ही प्यार सेमिलजुलकर रहते हैं. आधे शब्द से ही एक दूसरे को समझ लेते हैं. वैसे,सच मेंअजीब तरह से बातें करते हैं – एक दूसरे की ओर करीब-करीब देखे बिनाकम से कममेरी मौजूदगी में, - येजैसे गलती ढूँढ़ने पर ही उतर आओ तो...तब मैंने इस बात को कोई महत्व नहीं दिया थामगर अब सोचता हूँ: ऐसा कहीं इसलिए तो नहीं थाकि वो अपनी आपसी समझ को मुझसे पूरी तरह छुपाना चाहते थेवर्नासंभव है कि मैं षडयंत्र को ताड जाऊँगा?
मगर उस समय मेरे मन में ये ख़याल भी नहीं था. मैं सुखी थाजितना दुनिया में कोई और नहीं हो सकता. और मुझे ऐसा लग रहा थाकि मेरे साथ कोई अत्यंत महत्वपूर्ण और आवश्यक घटना हो रही है,जैसे मैं ख़ुद कोई दूसरा इन्सान बन जाऊँगाकि मैं फिर कभी भीकभी भी पहले की तरह जी नहीं पाऊँगा. एक ख़ामोश खुशी ने मेरे अस्तित्व को सराबोर कर दिया था. और इन क्षणों में पूरी दुनिया मुझे साफ़-सुथरीसुंदर नज़र आ रही थी, - जैसे किसी नर्म ब्रश से उसकी धूल झटक दी गई हो.
हालांकि विचित्रता के हल्के से एहसास नेमानना पड़ेगामुझे छोड़ा नहीं था. बेशक. सब कुछ बड़ी आसानी सेहौले से हो गया थामेरी ज़रा सी भी कोशिश के बगैर.
सुन रहा हूँ: ऊपर चल रहे हैंकोई चीज़ सरका रहे हैं, ‘सरप्राइज़ निकाल रहे हैं.
तभी मुझे याद आया कि मैंने वोद्का फ्रीज़र में नहीं रखी थी.
बोतल लेता हूँफ्रिज के पास जाता हूँफ्रिज का दरवाज़ा खोलता हूँ...(मैंने शाम को फ्रिज में कई बार झांका थामगर फ्रीज़र एक भी बार नहीं खोला था)...मतलबमैंने फ्रीज़र खोला.
तो.
औरकरीब पूरे पंद्रह साल हो गएजब मैंने फ्रीज़र खोला था. अगर बिल्कुल सही-सही कहूँ तो पंद्रह साल और चार घंटेदस मिनट कम-ज़्यादा.
तबसे कितना पानी बह गया हैकितनी सारी घटनाएँ हो चुकी हैं!...जैसेमैंने शादी कर ली...हाँ...मार्गारीटा मकारोव्ना से...
नर्व्हस ब्रेकडाउन...अगर वो नहीं होती...
अच्छा. माफ़ कीजिए...मैं कुछ अंदाज़ तो लगा सकता हूँकि फ्रीज़र के बारे में आप क्या सोच रहे होंगे,और किसी हद तक वो सही भी होगामगर सिर्फ कुछ हद तक. मैं कोई भी शर्त लगाने के लिए तैयार हूँ,कि आप कल्पना भी नहीं कर पाएँगे कि फ्रीज़र में क्या था.
तो! उसमें थे दो जूते! दो बिल्कुल नयेकाले जूते! बर्फ से ढँके हुए!
क्या माजरा है?
मैंने बोतल रखे बिना फ्रीज़र बंद कर दियाकुर्सी पर बैठ गया और सोचने लगा. दिमाग पूरा सुन्न हो गया था! एक भी विचार नहीं. एक भी कैफ़ियत नहीं!
सैद्धांतिक रूप से ये माना जा सकता थाकि एक जूता फ्रीज़र में रखा जा सकता था किसी बेहद भुलक्कडपन के कारण...मगर सिर्फ एक!...मगर यहाँ तो दोनों हैं!
हो सकता हैमज़ाक होतो इसमें हँसने वाली बात क्या है?
मेरा सिर फटने को हो रहा था. मुझे लग रहा थाकि पागल हो जाऊँगा. मैंने सोच लिया कि ये मेरा भ्रम था. अपने आप पर यकीन नहीं हो रहा था.
तब मैंने फिर से फ्रीज़र खोला...जूते! मैंने गौर से देखा और मुझे जूतों से मुश्किल से झाँकती जुराबें नज़र आईं. मैंने एक जूता उठाया और मुझे महसूस हुआ कि वो खाली नहीं हैउसमें कुछ है!... मैंने उसे फ्रीज़र से बाहर निकालामैंने जूते के भीतर झांक कर देखा और मैंने बर्फीली चिकनी सतह देखीकिनारे तक आती हुई...समझ रहे हैं?...कोई कटी हुई चीज़बर्फ बन चुकी कटी हुई चीज़!...एक अमानवीय भय ने मुझे दबोच लियामेरे होश बस खो ही गए थे!...
और मुझे पल भर में ही कुछ और भी याद आ गया – उसकी किताब किसी हत्यारे के बारे मेंऔर खून जैसा लाल कंबलऔर दो हाथों वाली आरीजिसे संयोगवश प्रवेश द्वार के पास देखा था...और उनकी बातें भी याद आईं: “क्रिसमस-ट्री तिरछी खड़ी है”. – क्योंकि उसे तिरछा काटा गया है”. – “किसका कुसूर है?” – “मिलकर ही तो काटा था!” – “तू बड़ा आरी चलाने में माहिर है”. – “और तू?”
और भी बहुत कुछ याद आया.
और उनके कदम नज़दीक आ रहे थे. वे दरवाज़े के पास खड़े थे – अपना मनहूस सरप्राइज़ लिए! मैं सुन रहा थाकि वे कैसे फुसफुसा रहे हैंजैसे दरवाज़े के पीछे किसी बात पर चर्चा कर रहे हों...
और फिरजैसे मेरी आँखों से परदा हट गया!
जैसे मुझसे किसी ने कहा: “अपने आप को बचाबेवकूफ़!”
और मैं खिड़की की ओर लपका - वो बंद थी! और पूरी ताकत से अपने आपको चौखट पे दे मारादोहरी चौखट पेऔर दोनों चौखट साथ लिए उड चलाबाग में!...कैसे छिटका थादिमाग़ समझ नहीं पाया!...
फेन्सिंग फांदीऔर पूरे पेर्वोमायस्क के नये साल के उस चिपचिपे कीचड़ से होकर भागा रेल्वे स्टेशन की ओर! ये तो अच्छा थाकि पैसे पतलून की जेब में थेऔर जैकेट भी थामगर वो वहीं रह गया!
मेरी किस्मत अच्छी थी: पौने बारा बजे एक ट्रेन वहाँ से गुज़रने वाली थी. मुझे पहले कम्पार्टमेन्ट की टिकट दी गईऔर वहाँ कण्डक्टर्स नया साल मना रहे हैं. कोई और नहीं थामैं अकेला ही पैसेन्जर था! पूरी ट्रेन में – मैं इकलौता पैसेन्जर!...उन्होंने मेरे लिए गिलास में वोद्का डालीठण्डी. मेरे हाथ काँप रहे थे. मैंने आपबीती सुनाई. कण्डक्टर्स को बहुत अचरज हो रहा थाबोलेकि मैं किस्मतवाला हूँ. ऐसा था किस्सा.”
तो ऐसा किस्सा – शायदकुछ अलग लब्ज़ों में – अपने बारे में सुनाया रस्तिस्लाव बरीसोविच ने.
रस्तिस्लाव बरीसोविच की कहानी से स्तब्ध होकर सभी श्रोता एक मिनट चुप रहे. मोमबत्ती की लौ किसी चुम्बक के समान नज़रों को अपनी ओर आकर्षित कर रही थी. कुछ देर इंतज़ार कियाकि कहीं रस्तिस्लाव बरीसोविच कुछ और तो नहीं जोड़ने वाला है. उसने आगे कुछ नहीं कहा. बसख़ामोशी... सोई हुई मार्गारीटा मकारोव्ना की नाक सूँ-सूँ कर रही थी.
ख़ामोशी को तोड़ा दूसरी बिल्डिंग की एलेना ग्रिगोरेव्ना नेजो फर्स्ट रैंक की टैक्स इन्स्पेक्टर थी. उसने सावधानीपूर्वक कहाकि रस्तिस्लाव बरीसोविच ने चालाकी से लोगों को हैरान कर दिया थाआसान शब्दों में – वह लोगों की भावनाओं से खेल रहा था – उसकी कहानी एकदम अविश्वसनीय है.                                                      
विरोध के सुर सुनाई दिए. ये घोषित किया गयाकि रस्तिस्लाव बरीसोविच की कहानी में कई सारे ऐसे विवरण थेजो कपोल कल्पित नहीं थी. जैसेवो ही जूते फ्रीज़र में...अगर उसे फ्रीज़र में जूते नहींबल्कि कोई और पारंपरिक चीज़ दिखाई देतीतो तब कहानी की विश्वसनीयता पर संदेह किया जा सकता था...मगर जूते! जूते क्योंकिसलिएऐसी चीज़ की कल्पना नहीं की जा सकती.
रस्तिस्लाव बरीसोविच से जूतों का रहस्य जानने की कोशिश की गईमगर उसने अपनी कहानी की व्याख्या करने से इनकार कर दियाक्योंकि उसके पास इस संबंध में कोई ढंग का स्पष्टीकरण था ही नहीं.
और वो सरप्राइज़’…क्या सरप्राइज़ थाकिसलिए?
“यहाँ काफी कुछ ऐसा हैजो तर्कहीन है,” रस्तिस्लाव बरीसोविच ने कहा. “मैं अक्सर दिमाग़ से सोचता हूँ,मगर यहाँ कुछ न सोचना ही बेहतर है.”
पूछने लगे: उसने पुलिस में रिपोर्ट दी थी या नहीं?
“नहीं. पता नहीं क्योंमगर कोई चीज़ मुझे ऐसा करने से रोक रही थी.
लोग उसका धिक्कार करने लगे. गुस्सा भी करने लगे.
और तब सलव्योव उठाजो अब तक चुप बैठा था. वो हॉल के बीचोंबीच आया. मोमबत्ती उसकी पीठ के पीछे जल रही थीउसका चेहरा छाया में थामगर उसके लगभग अदृश्य चेहरे से भी साफ़ ज़ाहिर हो रहा थाकि सलव्योव बेहद परेशान है.
“रस्तिस्लाव बरीसोविचआपने बिल्कुल सही कियाकि कहीं भी रिपोर्ट नहीं की!”
एकत्रित समूह अविश्वास से चीख़ा. शोर होने लगा.
“आप सबसे ज़्यादा मैं चौंक गया हूँ!...” स्पोर्ट्स-जर्नलिस्ट सलव्योव सबको एक साथ संबोधित करते हुए चहकाउसने कहा, “अविश्वसनीय संयोग!...एक शानदार सिलसिला!...पता हैइस सबमें कुसूरवार कौन है?...मैं!...मैं अकेला और सिर्फ मैं!...चाहे तो मेरे टुकडे कर दो!...आप मेरी तरफ इस तरह क्यों देख रहे हैं?...अबजैसे आपके हाथों से मछली की गंध आ रही हैमिसाल के तौर पे!...क्या करेंगे?...नींबू निचोड़ देंगे!...और जब प्याज़ काटते हैंतो आप कुछ भी चबा रहे नहीं होते?...बसइसीलिए रोते हैं!...कुछ चबाना चाहिए!...पेचकश के बिना बोतल?...आँ?...ये सब मेरा ही किया धरा है!...सब मेरा!...कैसे खोलें!...मैं यही सब करता था!...”
सभी स्तब्ध होकर सलव्योव की ओर देख रहे थे – कोई भय सेकोई ख़ौफ़ से : येवाकई मेंबहुत अजीब हैजब इन्सान आपकी नज़रों के सामने पागल हो जाता है. मगर तभी सलव्योव फिर से रस्तिस्लाव बरीसोविच से मुख़ातिब हुआ:
“वोजिसे आप जुराबें समझ रहे थेजो जूतों से बाहर झांक रहे थेअसल में पॉलिथीन की थैलियाँ थीं,यकीन कीजिएये सचमुच में ऐसा ही था!...समझाता हूँ!...सब लोग सुनिए!...जब मैं अख़बार में काम करता थामैं उसमें एक कॉलम लिखता था :घर के लिए उपयोगी सलाह”!...सारे अख़बारों में ऐसे कॉलम होते थे!...याद है?...ख़ैरमैं आपको समझाता हूँ...कुर्सियाँ...कुर्सियों से फर्श पर खरोंचें पड़ती हैं!...क्या किया जाएउनकी टांगों में वाइन की बोतलों के प्लैस्टिक के ढक्कन पहना दीजिए!...या फिर: आपको जूते पॉलिश करने हैं...बढ़िया! पुराने स्टॉकिंग्ज़ इस्तेमाल कीजिए और कोई समस्या ही नहीं!...और अगर जूते?...अगर जूते तंग हों तो?...क्या करें जब जूते तंग हों तो?...तो ऐसे मतलबमुझे याद आयाकि जब मैं स्कूल में थातभी हमारे फ्लोर वाले पडोसी ने मुझे सिखाया थाकि जूतों को चौड़ा कैसे करना चाहिए...और मैंने अख़बार में छाप दिया!...बेहद आसान है: जूतों में पॉलिथीन की थैली रखना चाहिएउसे पानी से भरकर जूतों को अपने फ्रिज के फ्रीज़र में रख देना चाहिए!...पानी जमते हुए आयतन में फैलता है...”
“ये असंभव है!” रस्तिस्लाव बरीसोविच ज़ोर से बोला और झटके से उठ गया.
“आपको यकीन दिलाता हूँये भौतिक शास्त्र का नियम है!...बर्फ फैलती हैजूता चौड़ा हो जाता है!... इकतालीस नंबर का जूता थाबयालीस का बन गया!...हाँहमारे इस प्रकाशन पर इतनी प्रतिक्रियाएँ आई थींआप क्या कह रहे हैं!...कई लोगों को विश्वास नहीं हुआकहते थेऐसा हो नहीं सकताबर्फ को फैलने दोमगर चमड़े को तो सिकुड़ना चाहिएहै कि नहीं?!...नहींऐसी कोई बात नहीं है!...अपने आप पर प्रयोग किया था!...आपको और क्या चाहिएउस समय पेर्वोमायस्क में सिर्फ इकतालीस नंबर के जूते आये थे. मुझे याद है. और अगर आपको बयालीस नंबर की ज़रूरत हो तोऔर तैंतालीस?...हाँहमारे पेर्वोमायस्क में मेरे इस प्रकाशन के बाद हर दसवें आदमी के जूते फ्रीज़र में रखे जाते थे!...और आप कह रहे हैं!...”
ये अंतिम शब्द सलव्योव ने रस्तिस्लाव बरीसोविच की अनुपस्थिती में ही कहे.
रस्तिस्लाव बरीसोविच मुँह से एक भी शब्द निकाले बिना हॉल से बाहर निकल गया था. सलव्योव के स्वगत भाषण में सब इतने मगन थेकि किसी का भी इस ओर ध्यान नहीं गया.
लाइट जलाई गई.
तभी मार्गारीटा मकारोव्ना जागी.
“मैं जैसे ही शैम्पेन पीती हूँमेरी आँख लग जाती है.” उसके होठों पर मुस्कान थी: “बाग का सपना आया था...अफ्रीकाशायद?...पूरे नींबू के पेड...”
एलेना ग्रिगोरेव्ना नेजो टैक्स इन्स्पेक्टर थीसलव्योव के पास से गुज़रते हुए एक फ़ब्ती कसी:
“आपने बेकार ही में ये कियावह अपने रहस्य को अपने भीतर समेटे रहता तो बेहतर था.”
“और मेरा शौहर कहाँ हैफिर ग़ायब हो गया?” मार्गारीटा मकारोव्ना ने अनचाही उबासी को हथेली से रोका. “क्या बॉक्स के लिए गया है?”
अब तक रस्तिस्लाव बरीसोविच को सभी मंज़िलों पर ढूँढ़ा जा रहा था. वह कहीं भी नहीं था.
मार्गारीटा मकारोव्ना भारी बदन से कुर्सी से उठी और धीरे-धीरे टेलिविजन की तरफ़ जाने लगी.
स्क्रीन भड़क उठा. हास्य कलाकारों का अगला प्रोग्राम चल रहा था.

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