अध्यक्ष ने स्वयँ उठे हुए हाथों को गिना.
“बहुमत से बोर्ड की
कार्यकारिणी की पुष्टि हो गई है. सबको बधाई देता हूँ.”
माइक्रोफ़ोन के पास माइक्रोमैजिशियन अदिनोच्नी प्रकट होता है.
“मुझे लगता है, कि
हमारी कॉन्फ़्रेन्स समाप्त हो रही है, हमने अपनी व्यक्तिगत समस्याओं पर बहुत ज़्यादा
ध्यान दिया, मगर हमने राष्ट्रीय स्तर पर काग़ज़ातों के अत्यधिक प्रवाह की/ बर्बादी
की निंदा करने का प्रस्ताव नहीं पारित किया....”
हॉल में तालियाँ बजने लगीं, और उसके लिए भी तालियाँ बजने लगीं.
माइक्रोमैजिशियन रीख्ली को माइक्रोमैजिशियन अदिनोच्नी को माइक्रोफ़ोन से हटाने के
लिए ज़रा-सी भी कोशिश नहीं करनी पड़ी.
“अपनी भेड़ों की ओर लौटते
हुए...ये क्या हो रहा है, महाशयों? क्या आपको ये अजीब नहीं लगता? जाँच अभी शुरू
नहीं हुई है, और हमारी कार्यकारिणी में ऐसा सदस्य है, जो जाँच के घेरे में आने
वाला है! मैं प्रस्ताव रखता हूँ कि इस भयानक ग़लती को सुधारा जाए, और कपितोनोव को
हमारी कार्यकारिणी का सदस्य न माना जाए. कम से कम जाँच पूरी होने तक!”
“न माना जाए – ये क्या
है? निकाल दिया जाए?”
“निकाल दिया जाए!
निकाल दिया जाए!” ज्युपिटेर्स्की के ग्रुप वाले लोग चिल्लाते हैं.
कालावन के ग्रुप के लोग जवाब में सीटियाँ बजाते हैं और ‘हूट’
करते हैं.
“प्लीज़, मुझे अपनी
उम्मीदवारी वापस लेने की इजाज़त दें,” कपितोनोव उठता है.
“अरे, आख़िर, आप बैठ भी
जाइए, ये आपका मामला नहीं रहा, यहाँ सिद्धांत की बात है!”
“शांति! शांति!”
अध्यक्ष व्यवस्था बनाए रखने की अपील करता है. “मैं भी समझ नहीं पा रहा हूँ कि हम ‘निर्दोषिता
का अनुमान’ वाले सिद्धांत की अनदेखी कैसे कर सकते हैं. उस कमरे में कपितोनोव और
‘तालाब’ के बीच चाहे जो भी हुआ हो, अभी तक मुक़दमा नहीं बना है और हमें सिर्फ
अविश्वास के आधार पर कपितोनोव के बारे में राय बनाने का अधिकार नहीं है.”
अब माइक्रोफ़ोन के पास व्लादिस्लाव हेर्त्स आता है, ये जादूगरों
के उस ग्रुप का लीडर है, जिसे ‘तालाब’ प्राइवेट बातचीत में जुआरी कहता था.
“ये सही है, हमें
क़ानून की इज़्ज़त करना चाहिए. ‘निर्दोषिता का अनुमान – ये पवित्र बात है. मगर इस
समस्या को दूसरी तरह से भी देखें. हमारे साथी ने क़रीब दो ही घण्टे पहले” उसने घड़ी
पर नज़र डाली.
19.25
“...ओके, हो सकता है,
तीन... कई सारे लोगों की उपस्थिति में एक गंभीर घोषणा की थी. उसने कहा था : मैं
फिर कभी भी ये जादू नहीं दिखाऊँगा. और, अगर बात ये है, तो क्या ये ‘नॉनसेन्स’ नहीं
है, कि वो आदमी, जो अपने प्रोफ़ेशन को छोड़ चुका है, बोर्ड की कार्यकारिणी का सदस्य हो?”
इस तर्क का ऑडिटोरियम पर गहरा प्रभाव पड़ता है – कुछ लोग
उत्तेजित हो जाते गए हैं, और चिल्लाने लगते हैं : “ ‘नॉनसेन्स! नॉनसेन्स!’, कुछ लोग
हताश हो जाते हैं, और उनके विरोधात्मक ‘नो! नो!’ पहले वालों की चीख़ों में दब जाते
हैं.
माइक्रोमैजिशियन ज़्वेनिगरोद्स्की माइक्रोफ़ोन पर कब्ज़ा कर लेता
है:
“ यहाँ क़ानूनी जाँच और
उसके परिणामों का राग अलाप रहे हैं, मगर, प्लीज़ ये बताइए, सिद्धांततः परिणाम, चाहे
कोई भी परिणाम क्यों न हो, क्या हमारी कॉन्फ़्रेन्स के बगैर उतनी ही स्पष्टता से इस
बात पर प्रकाश डाल सकता है, जिसे हमारी कॉन्फ़्रेन्स ने...अपने आप कामकाज के
दौरान.. अभी-अभी इतना स्पष्ट कर दिया है? मैं किस बारे में कह रहा हूँ? इस बारे
में! कपितोनोव के पास वजह थी! ...हाँ, हाँ, हम सबके दिमाग़ में ये भयानक शब्द घूम
रहा था, मगर किसी न किसी को इसे कहना भर था!”
तब माइक्रोफ़ोन के पास हेराफेरी वाला जादूगर पेत्रोव दिखाई देता
है:
“होश में आइए,
साथियों! अमानुष न बनिए! हमने अभी-अभी ‘तालाब’ की स्मृति में एक मिनट का मौन रखा
था. कार्यकारिणी के लिए कपितोनोव के नाम का सुझाव किसी और ने नहीं, बल्कि ‘तालाब’
ने ही दिया था. ‘तालाब’ की याद की ख़ातिर, आपसे विनती करता हूँ, कि इस विषय को
समाप्त करें! कपितोनोव वो इन्सान नहीं है, जो कार्यकारिणी में शामिल होने के लिए
‘तालाब’ की लाश पर से गुज़र जाए!”
माइक्रोमैजिशियन पाव्लेन्को ने फ़ौरन उसका विरोध किया:
“मैं भी ‘निर्दोषिता के अनुमान’ का सम्मान करता हूँ, मगर उसके प्रति
मेरे तमाम प्यार के बावजूद मेरा ख़याल है कि आपने जो कहा है, वह सिर्फ भड़काऊ बात
है, और ऐसा कहकर आप ‘तालाब’ की स्मृति का अपमान कर रहे हैं!”
न जाने कहाँ से एक सफ़ेद कबूतर प्रकट हो जाता है, वह एक दीवार
से दूसरी दीवार की ओर उड़ रहा है.
अध्यक्ष खड़ा हो जाता
है:
“अब अगर एक भी ख़रगोश,
तोता या कोई और चीज़ दिखाई दी, तो मैं कॉन्फ़्रेन्स ख़त्म कर दूँगा!”
कबूतर उड़कर उसके पास जाता है और कंधे पर बैठ जाता है. अध्यक्ष
कबूतर को भगाना नहीं चाहता, वह उसके साथ सावधानी से अपनी कुर्सी पर बैठ जाता है.
“उसका बहिष्कार करने के
प्रस्ताव पर वोटिंग करवाइए!” हॉल से लोग चिल्लाकर कहते हैं.
“नहीं, मत करवाइए!”
“बहिष्कार! बहिष्कार!”
कंधे पर कबूतर लिए अध्यक्ष कहता है:
“कपितोनोव के
कार्यकारिणी से बहिष्कार के प्रस्ताव पर वोटिंग करवाने में मेरा कुछ नहीं जाता है,
मगर मुझे गहरा विश्वास है, कि कार्यकारिणी से - जिसका अनुमोदन हमने अभी-अभी हुए
चुनावों के परिणामों के आधार पर किया है - किसी के भी बहिष्कार का प्रस्ताव हमारी
राजनैतिक अपरिपक्वता का प्रमाण है. चलिए, पहले एक कमिटी बनाएँ, नैतिकता पर, ये
मुश्किल नहीं है और ये ज़रूरी है, उसे ही ...”
उसे अपनी बात पूरी नहीं करने दी जाती:
“कमिटी की कोई ज़रूरत
नहीं है!”
“ख़ूब जानते हैं हम इन
कमिटियों को!”
कबूतर अध्यक्ष के कंधे से फ़ड़फड़ाकर उड़ा, और दो बार हॉल का चक्कर
लगाकर कपितोनोव से दो मीटर्स दूर खिड़की की सिल पर बैठ गया.
कपितोनोव गहरी नज़र से कबूतर की नज़र में उलझ गया. वो कपितोनोव
की तरफ़ तिरछे खड़े होकर एक आँख से उसे देख रहा है. कपितोनोव काफ़ी देर से
कॉन्फ्रेन्स की कार्रवाई पर ध्यान नहीं दे रहा है. यदि कबूतर के बदले वहाँ
प्लैटिपस कबूतर भी आ जाता, तो भी कपितोनोव को अचरज नहीं होता.
इस समय
19.48
दो माइक्रोमैजिशियन्स माइक्रोफोन के पास जगह पाने के लिए लड़
रहे हैं.
खिड़की की सिल पर कबूतर मानो डान्स कर रहा है: कभी एक पंजा
उठाता है, तो कभी दूसरा – जैसे कुछ कहना चाहता हो.
“वो कुछ कहना चाहता
है,” कपितोनोव कहता है, मगर उसकी बात कोई नहीं सुनता.
और वह भी अपनी तरफ़ से नहीं सुनता (हाँ, उन दो
माइक्रोमैजिशियन्स के कारण कुछ भी सुनना मुश्किल था), कि अध्यक्ष कैसे रेंक रहा है
: “आप कौन?” – उससे मुख़ातिब होकर, जो तेज़ी से हॉल में घुसा था. और वो था – एक
लिलिपुट. उसके अप्रत्याशित आगमन को कुछ लोगों ने देखा, तब भी, जब कुर्सियों के बीच
के रास्ते को पार करके, वह पंक्तियों के बीच से होकर खिड़की की ओर जाने लगता है.
कपितोनोव लिलिपुट को तभी देखता है, जब वह अपनी मुट्ठी से कपितोनोव के घुटने को दूर
करता है और खिड़की की सिल के पास नज़र आता है. पंजों के बल खड़े होकर, लिलिपुट कबूतर
को हाथ में लेता है, कहता है : “ये मेरा है”, और अपने रास्ते वापस जाने लगता है.
अब तो सभी ने उसे देखा. भागने वाले को देखने की उम्मीद में
कॉन्फ़्रेन्स के डेलिगेट्स थोड़ा सा उचकते हैं. माइक्रोफ़ोन के पास वाले दोनों भी
अपना झगड़ा छोड़कर नीचे की तरफ़ देखने लगते हैं.
“क्या आपको यक़ीन है,
कि ये आपका है?” अध्यक्ष पूछता है.
“बेशक!” जाते जाते
लिलिपुट जवाब देता है और दरवाज़े के पीछे ग़ायब हो जाता है.
“ये कौन है? ये क्या
है?” हॉल में लोग चहकने लगते हैं. “वो हमारे साथ क्यों नहीं है?”
“बैठ जाइए!” अध्यक्ष उन दोनों माइक्रोमैजिशियन्स
को आज्ञा देता है, और वे, ‘सॉरी’ कहते हुए स्टेज छोड़ देते हैं. “ मैं बहस रोकता
हूँ. बस हो गया. अभी हमारे सामने अनौपचारिक काम भी पड़े हैं. शांति! क्रपया शांत
रहें!”
वह स्वयम् ही ख़ामोश हो जाता है – खड़ा है और ख़ामोश है, जैसे
उदाहरण प्रस्तुत कर रहा हो. इस इशारे का पब्लिक पर असर हुआ: ख़ामोशी की ताक़त धीरे
धीरे शोर के राक्षसों पर काबू पा लेती है.
जब काफ़ी मात्रा में शांति छा गई, तो एक सकुचाती हुई, मगर ज़िद
करती हुई आवाज़ सुनाई देती है:
“डॉक्यूमेन्ट्स का
प्रवाह...”
“चुप रहें!” अध्यक्ष
मेज़ पर हथेली मारते हुए कहता है.
और पूरी शांति छा जाती है.
“एक विकल्प है,”
अध्यक्ष कहता है. “कपितोनोव को कार्यकारिणी से बाहर न निकाला जाए, मगर कार्यकारिणी
में उसकी सदस्यता को तब तक निलम्बित रखा जाए, जब तक इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना की
जाँच सभी पहलुओं से नहीं कर ली जाती, जिसमें यह बात भी शामिल है, कि हमारे साथी ने
इस प्रोफ़ेशन से निकल जाने की घोषणा कर दी थी, जिसके बारे में समय आने पर हम अपनी
राय दे सकेंगे. मेरे ख़याल से ये बेहद अच्छा समझौता है. हम तुरंत इस पर वोटिंग कर
लेते हैं. जैसे, हम अपने साथी को कोष्ठकों के बाहर ले आएँगे.”
“बल्कि, इसके विपरीत,”
अपनी जगह से कोई सुधारता है, “कोष्ठकों में बन्द कर देंगे.”
“मगर हम उसे रफ़ा-दफ़ा
नहीं करेंगे!” अध्यक्ष अपनी आवाज़ को अधिकाधिक गंभीरता प्रदान करते हुए बहस को समेटने
की कोशिश करता है.
मगर नेक्रोमैन्सर बीच में टपकता है:
“कोष्ठकों में तो इसे रखना चाहिए!” वह ईवेन्ट्स-आर्किटेक्ट की
ओर तर्जनी से इशारा करता है. “या वह किसी काम का नहीं है? और, अगर वह किसी काम का
नहीं है, तो यहाँ क्या कर रहा है?”
ईवेन्ट्स-आर्किटेक्ट लाल होकर तनी हुई तर्जनी की दिशा में
फ़ुफ़कारता है:
“और तू ख़ुद तो...और तू
उसे ज़िन्दा कर...कर ज़िन्दा!...हम भी देखेंगे कि कैसे ज़िन्दा करता है.”
“मैं तो तैयार हूँ!
मुझे करने ही नहीं दे रहे!”
“इन पागलों को यहाँ से
निकाल दो!” पिछली पंक्तियों से लोग चिल्लाए.
“यहाँ कोई पागल नहीं
है!”
‘प्लीज़, अपमान न
करें!”
“बस! बस! बस! मैं
प्रस्ताव वोटिंग के लिए रखता हूँ! कौन इसके पक्ष में है, कि कोष्ठकों से बाहर
निकाला जाए? कौन विरोध में है? कौन कुछ नहीं कह रहा है?”
अधिकांश लोगों ने “इसके” – “कोष्ठकों से बाहर” - के पक्ष में
वोट दिया.
अध्यक्ष ने सबको मुबारकबाद दी. सब लोग उठते हैं और बाहर जाते
हैं. क्योंकि उन्हें मालूम है कि कहाँ जाना है.
20.01
कपितोनोव सबके जाने का इंतज़ार करता है, - क्लोकरूम में उनकी
नज़रों का कांटा नहीं बनना चाहता. उलाहने और सहानुभूति की नज़रों के प्रति उदासीनता
दिखाते हुए अपने सामने देख रहा है. ये भी, और वो भी – हैं तो सही, मगर उन्हें किस
हद तक महत्व दिया जा सकता है, ये एक बड़ा सवाल है, क्योंकि जिस पर वे डाली जा रही
हैं, वह उन पर ध्यान ही नहीं दे रहा है, हालाँकि पास से गुज़रते हुए कोई संदेश तो
देते हैं: ज्युपिटेर्स्की की पार्टी के अशुभचिंतक लोग उस पर कड़ी नज़र डालते हैं, या
सिर्फ मुँह फ़ेर लेते हैं; और कालेवन की पार्टी के साथी, उन्हें छोड़कर जो कपितोनोव
को ‘तालाब’ की मौत का ज़िम्मेदार मानते हैं (अपनों में भी ऐसे कुछ लोग हैं), जो यदि
कपितोनोव की नज़र से उनकी नज़र मिल जाती, तो उसकी तरफ़ गर्दन हिलाकर अभिवादन करने को
या उँगलियों से ‘विक्टरी’ का निशान बनाने को तत्पर हैं.
संक्षेप में, वह इंतज़ार करता है. वो चले जाते हैं.
सिर्फ नीनेल उसके पास आई:
“आपने बड़े संयम से काम
लिया.”
हाँ, और कॉन्फ़्रेन्स का अध्यक्ष भी, जो कामकाज के कागज़ात
समेटते हुए, औरों से पिछड़ गया था, अपनी ब्रीफ़केस लिए उसके पास आता है. हाँ, महाशय
नेक्रोमैन्सर भी, शायद, पास आना चाहता था, क्योंकि वह अपनी जगह पर खड़ा है, और हॉल
से बाहर नहीं जा रहा है.
“मैंने वह सब किया, जो
मेरे बस में था,” अध्यक्ष कहता है. “परिस्थिति काफ़ी बुरी भी हो सकती थी. आगे से
कभी जल्दबाज़ी में कोई घोषणा न कीजिए.”
शायद उसे आभार प्रदर्शन करने वाले शब्दों का इंतज़ार था.
कपितोनोव ख़ामोश रहता है.
“और, जो मैंने तब
कोष्ठकों के बारे में कहा था, उस पर ध्यान मत दीजिए,” अध्यक्ष सलाह देता है और,
अपनी पीठ के पीछे निकट आते हुए नेक्र्मैन्सर को महसूस करके, वह अपनी जगह से इधर
उधर हिलने लगता है, ताकि नेक्रोमैन्सर पीठ के पीछे न रहे. “कोष्ठक – एक प्रतीक
है...”
“मगर धनु-कोष्ठक
नहीं!” आगे बढ़ते हुए नेक्रोमैन्सर कहता है.
अब
20.07
कपितोनोव बैठा नहीं है, बल्कि खड़ा हो गया है. न तो उसे या किसी
और को ही नेक्रोमैन्सर से किसी अच्छी बात की उम्मीद थी, मगर, वो जो नेक्रोमन्सर ने
किया किसी को भी चौंका सकता था.
उसने कपितोनोव के कंधे को चूमा, मुड़ा और तेज़ क़दमों से हॉल के
बाहर निकल गया.
कपितोनोव का जैसे दम घुटने लगा, मगर अध्यक्ष और नीनेल ने यूँ
दिखाया, जैसे नेक्रोमैन्सर की हरकत को उन्होंने देखा ही नहीं.
“आपने बड़ी हिम्मत
दिखाई,” अभी तक दरवाज़े की ओर देखते हुए नीनेल ने प्रशंसा के स्वर में कहा, “डटे
रहिए और डटे रहिए. मैं आपकी प्रशंसक हूँ.”
वह उसका हाथ पकड़ती है.
“बैन्क्वेट (भोज) में
जाने का टाइम हो गया है.”
“मैं? बैन्क्वेट में?”
कपितोनोव के मुँह से निकलता है.
“नहीं, ये बैन्क्वेट
नहीं होगा,” नेक्रोमैन्सर की अनुपस्थिति से प्रसन्न होकर अध्यक्ष कहता है. “ये कुछ
और होगा. मेमोरियल-ईवनिंग होगी. फ़्यूनरल-फ़ीस्ट.”
“चलिए, कपितोनोव.”
“प्लीज़, मुझे छोड़
दीजिए.” वह उसकी हथेली से हाथ खींचता है. “लाश अभी तक उठाई नहीं गई है, और आप लोग
बैन्क्वेट में जाने को तैयार हो गए.”
“अगर ‘तालाब’ ज़िन्दा
होता, तो वो भी हमारे साथ चलता,” अध्यक्ष कहता है. “तो, इस तरह से हम उसे
श्रद्धांजली दे रहे हैं – सब मिलकर, इन्सानों की तरह. पूरी इन्डस्ट्री. लाश...लाश
में क्या है? लाश हमारे बगैर ले जाएँगे.”
“आप मेरे साथ ऐसा
क्यों कर रहे हैं?” नीनेल समझती नहीं है. “आप बिल्कुल ऐसे नहीं हैं, आप बड़े सलोने
हैं, बड़े अच्छे हैं.”
“कहीं आप सीरियसली तो
नहीं सोच रहे हैं, कि मैं मेमोरियल-ईवनिंग में आऊँगा?” कपितोनोव उनसे दूर हटता है.
“क्या कह रहे हैं,”
अध्यक्ष उसे रोकता है, “बल्कि, आपके बगैर तो इस मेमोरियल-ईवनिंग की कल्पना ही नहीं
कर सकता! किसी और के बगैर तो समझ सकता हूँ, मगर आपके बगैर नहीं. आख़िर आप यहाँ
‘तालाब’ की मेहेरबानी से ही तो हैं ना? क्या उसीने आपको नहीं ढूँढ़ा था? जाना
चाहिए. अगर नहीं जाएँगे, तो बुरा होगा, ग़लत होगा. सब सोचेंगे, कि आप गुनाह के
एहसास से परेशान हो रहे हैं, मतलब, आप गुनहगार हैं. या फिर, इससे भी बुरा होगा, कि
आप इस बेकार के हंगामे से रूठ गए हैं, और वाक़ई में ये बेकार का ही है!...मगर आप तो
इस शोरगुल से ऊपर हैं? हमारे षडयंत्रों से ऊपर. और महत्वपूर्ण बात, अपने आप को
क़ातिल न समझें. आप क़ातिल नहीं हैं, नहीं ना?”
“सुनिए, मैंने कुछ भी
नहीं किया था. मुझे नहीं मालूम था कि वह 99 का अंक सोच रहा है. और अगर जानता तो?
उसमें ऐसा क्या है? नहीं. मैं आपको बताऊँगा. मुझे याद आ रहा है. किसी ने भी आज
तक...सुन रहे हैं?... अब तक किसी ने भी, कभी भी 99 संख्या नहीं बूझी थी. चौंकाने
वाली बात है. मगर ऐसा ही है!”
“मैं भी उसी बारे में
कह रहा हूँ, थोडी ही देर के लिए रुकिए, और फिर चले जाइए. बस सिर्फ आना और जाना ही
चाहिए. फिर ये आयोजन आपके हॉटेल में ही तो हो रहा है. आप वैसे भी वहीं जा रहे हैं
ना? फ़ायरप्लेस वाले हॉल में पहुँचिए, कुछ देर ठहरिये और चले जाइए. ”
“पहुँचेंगे और निकल पड़ेंगे,
कपितोनोव,” नीनेल कहती है. “पहुँचेंगे और निकल पड़ेंगे.”
20.21
“कपितोनोव,
बेवकूफ़ न बनो,” क्लोक-रूम में उससे कहती है.
उससे पहले ही कोट के बटन बन्द कर लिए, और दस्ताने पहन लिए, और
वह सोच ही नहीं पाया कि दूसरा दस्ताना कहाँ है: दोनों ही तो बाईं जेब में थे.
‘सी-9’ से हॉटेल तक,
कपितोनोव अभी तक भूला नहीं था, काफ़ी नज़दीक है. अध्यक्ष तो बाहर निकलते ही सीधा
लपका, जिससे, जैसा कि उसने कहा, लोगों की नब्ज़ पकड़ कर रखे, - सब लोग रेस्टॉरेंट
में जमा हो चुके हैं, बस इन दोनों को छोड़कर: कपितोनोव जाना नहीं चाहता और वहाँ
इसलिए खिंचा जा रहा है, क्योंकि नीनेल उसे खींच कर ले जा रही है.
उसका हाथ पकड़कर आत्मविश्वास से ले जा रही है.
कपितोनोव के दिमाग़ में आख़िरी साँस छोड़ता हुआ फ़ेरो ख़ुफ़ू 32
कौंध गया.
पीटरबुर्ग की सर्दियाँ आइसिकल्स और कड़ी बर्फ (हिम), दोनों के
कारण अच्छी लगती हैं. इस रास्ते पर कड़ी, जमी हुई बर्फ़ आइसिकल्स से ज़्यादा डरावनी
है.
ज़रा सा आड़ा-तिरछा क़दम पड़ा – और या तो गर्दन तुड़वा बैठोगे, या कूल्हे
की हड्डी.
“औरतें, कपितोनोव, बड़ी
भारी जादूगरनियाँ होती हैं,” नीनेल कहती है. “स्टेज पर नहीं, वहाँ तो मर्दों का
राज चलता है, बल्कि जीवन में, रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में...हाँ और सपनों में
भी!...ज़िन्दगी हमें मजबूर करती है. मजबूर करती है चालाकी करने के लिए, संख्याएँ
बनाने के लिए, सीधे-साधे लोगों को रहस्यमय बनाने के लिए. उम्र को ही ले लीजिए.
क्या ख़याल है, मेरी उम्र कितनी होगी?”
“मैं इस बारे में नहीं
सोच रहा हूँ,” चलते हुए - आगे बढ़ते हुए (कभी यहाँ, कभी वहाँ पैदल चलने वाले गिर
रहे हैं) कपितोनोव जवाब देता है.
“क्यों नहीं सोच रहे
हैं? आप सोचिए! क्या सोचने में मुश्किल हो रही है? चलिए, सोचिए, सोचिए, मेरी उम्र
कितनी है?”
कपितोनोव के दिमाग़ में, अचानक, अपने आप, दिमाग़ के मालिक की
इच्छा पर निर्भर हुए बिना, 36 का अंक बनता है. जहाँ तक ख़ुद कपितोनोव का सवाल है,
वह ख़ामोश रहता है.
“आपने सोचा: 36! फ़ेन्टास्टिक,
कपितोनोव, मैं आपके प्यार में गिरफ़्तार होने के लिए तैयार हूँ, मगर, नहीं, घबराइए
नहीं, मैं किसी भी हालत में ऐसा नहीं करूँगी!”
“आपको कैसे मालूम कि
मैंने क्या सोचा था?”
“मैंने आपके ख़याल को
पढ़ लिया! यक़ीन कीजिए, वो जटिल नहीं है! क्या आपको मेरा जादू अच्छा लगा? अगर आप
चाहें तो आपको इसका राज़ बता दूँ?”
कपितोनोव जवाब नहीं देता.
“कपितोनोव, ये तो
एलिमेन्ट्री है! मैं बिल्कुल अपनी उम्र की ही लगती हूँ.”
और वह मानो संक्रामक हँसी से सराबोर हो गई, मगर इतनी भी
संक्रामक नहीं, कि कपितोनोव को संक्रमित कर दे. वो ख़ामोश है. वैसे ही चलते हैं.
“कपितोनोव, आपको क्या
हो गया है? होश में आइए! मैं नीनेल पिरोगोवा हूँ. याद आया? मैं ट्रिक्स-डाइरेक्टर
हूँ. और आप बहादुर हैं. आपने बड़े संयम से काम लिया. मगर, यदि आपने ट्रिक से इनकार
कर दिया, तो मैं आपके लिए ट्रिक का आयोजन कैसे करूँगी?”
“नीनेल,” कपितोनोव
कहता है, “मगर ये वाक़ई में ऐसा ही है: वो पहला था, जिसने 99 की संख्या सोची थी.
उम्मीद करता हूँ कि वो ही आख़िरी भी होगा.”
“आह!” वह फ़िसलती है,
मगर उसकी मदद से, अपनी जगह पर जमी रहती है.
“देखिए,” कपितोनोव
कहता है. “वहाँ नेक्रोमैन्सर जा रहा है. वो क़रीब-क़रीब गिर ही गया था.”
“मतलब, ऐसा करना
चाहिए. चलते रहिए, चलते रहिए. अगर पैर ले जा रहे हैं, तो इसका मतलब है, कि चलना
चाहिए.”
“न तो पैर ही ले जा
रहे हैं, और न ही दिमाग़ चाहता है!” कपितोनोव शिकायत के सुर में कहता है.
“और, क्या वो चाहता
था? क्या वो मरना चाहता था? आपने उससे नहीं पूछा?”
20.38
“आप अन्दर जाइए, मैं
नहीं जाऊँगा.”
“फिर वही? फ़ौरन बन्द
कीजिए! आप मुझे गुस्सा दिला रहे हैं.”
हॉल में – चौकीदार है, उसे देखकर तो कहना मुश्किल था कि वह
सचमुच का सिक्यूरिटी-ऑफ़िसर है, या दिखाने
के लिए किसी को भी खड़ा कर दिया था.
“शोक-सभा के अपने-अपने
आयोजन होते हैं,” नीनेल समझाती है, “परिस्थिति को देखते हुए, यहाँ हमारा आदमी होना
चाहिए था. हो सकता है, कि मेरे पर्स में कोई ग्रेनेड हो, आपकी आस्तीन में - हेरोइन
का पैकेट हो. मगर ये मज़ाक का समय नहीं है.”
रेस्टॉरेन्ट के क्लॉक-रूम का कर्मचारी दूसरे, सफ़ाई कर्मचारियों
जैसा लग रहा है. शायद, उसे हिदायत दी गई थी कि शोक-सभा होने वाली है.
हॉल के काँच के दरवाज़े के सामने रुकते हैं.
“साथ में अन्दर
जाएँगे. लोगों को देखने दीजिए, कि आप अकेले नहीं हैं."
भीतर आए. U – आकार की मेज़. बोतलें, खाने पीने
की चीज़ें. कुर्सियाँ बाहर को खींची हुई. फ़ायरप्लेस में आग जल रही है. सब लोग
दीवारों के साथ खड़े हैं, अपनी ख़ामोश हरकतों को छोड़कर नीनेल पिरोगोवा और कपितोनोव
की ओर मुड़कर देखते हैं.
कपितोनोव और नीनेल पिरोगोवा ठहरते हैं, क्योंकि अन्दर जाते ही
कुछ देर ज़रूर ठहरना पड़ता है. उन्हें औरों से कोई मतलब नहीं है. और दूसरे भी, नीनेल
पिरोगोवा और कपितोनोव की ओर नज़र डालकर अपने-अपने ख़ामोश कामों में जुट गए, असल में,
ये एक ही काम था: अवश्यंभावी का इंतज़ार.
अब कुछ लोग, जैसे कि होना चाहिए, पहले भी होता था, दो-दो या
तीन-तीन के समूहों में अलसाई हुई बातचीत शुरू करते हैं. बाकी लोग अकेले-अकेले खड़े
हैं. माइक्रोमैजिशियन झ्दानोव, हॉल में टहलते हुए माचिस की तीलियों वाला जादू
दिखाता है (‘तालाब’ ज़रूर प्रशंसा करता). महाशय नेक्रोमैन्सर पीठ के पीछे हाथ बांधे
बोत्तिचेल्ली33-शैली में बनाया गया बड़ा पैनल देख रहा है.
ईवेन्ट्स-आर्किटेक्ट – तिरछे-तिरछे - चुपचाप नए प्रविष्ट हुए
लोगों के पास पहुँचता है. नज़रों से ही नीनेल से गवाह बनने की प्रार्थना करता है,
कपितोनोव से ज़ोर से फुसफुसाते हुए पूछता है:
“मैं चाहता हूँ, कि आप
ये जान लें. नेक्रोमैन्सर ने सबके सामने मुझ पर आरोप लगाया है, और मैं चाहता हूँ
कि आप मुझे समझें और मुझ पर दोषारोपण न करें. सैद्धांतिक रूप से, मैं निकटवर्ती
स्थानों पे काम नहीं करता हूँ. आप मैथेमेटिशियन हैं, आपको शायद आईन्स्टीन का समीकरण
याद होगी – e=mc2 नहीं, बल्कि दूसरी – कॉस्मोलॉजिकल स्थिरांक वाली. उसमें उसका
रिक्की टेन्सर (गणित से संबंधित – अनु.) से गुणा किया जाता है, आप जानते
हैं. बेहद छोटी संख्या, क़रीब-क़रीब – शून्य, मगर अधिक दूरियों पर ऐसे ऐसे परिणाम
देती है!...मगर, सिर्फ बेहद-बेहद ज़्यादा दूरियों पर ही! कम दूरियों पर बिल्कुल
नहीं!...मुझ से पूरी-पूरी समानता है. मैं किसी काली ऊर्जा के समान हूँ, समझ रहे
हैं? मैं माक्रोइफ़ेक्ट दे सकता हूँ. ..वो भी बेहद दूरी वाला...सेंट्रल अफ़्रीका में
हो रही घटनाओं पर प्रभाव डाल सकता हूँ...और न केवल डाल सकता हूँ – बल्कि प्रभाव
डालता हूँ!...और ख़तरनाक प्रभाव डालता हूँ – अमेरिका में हो रहे चुनावों पर, मगर
‘तालाब’ पर मैं, सिद्धांततः, प्रभाव डालने के क़ाबिल नहीं था, अगर चाहता, तो भी
नहीं – वह – क़रीब था, वह यहाँ था. और जितना ज़्यादा दूर कोई चीज़ होती है, मेरा
प्रभाव उतना ही गहरा होता है...”
नीनेल ने उतनी ही ज़ोर से फुसफुसाते हुए तर्क रखा:
“आपकी बात समझ ली गई
है. अब चुप हो जाइए.”
कुछ देर चुप रहकर ईवेन्ट्स-आर्किटेक्ट अपनी बात जारी रखता है:
“और ये मुझसे हमेशा
खार क्यों खाता है? उसे तो अच्छी तरह मालूम है कि मैं सिर्फ दूर से ही काम करता हूँ...वह
सिर्फ मेरे आयाम से जलता है...वह ख़ुद भी, मेरे ही जैसा, सिर्फ काफ़ी दूरी से...क्या
आप समझते हैं कि वह सीधे यहीं कर सकता है...बिना अपनी जगह से हिले?...क्यों नहीं!
ये सिर्फ दिखावा है!...मुझे तो उसकी सीमाएँ और योग्यताएँ मालूम हैं, मुझे बताने की
ज़रूरत नहीं है...ये ग्रोबोवोय ने उसे बिगाड़ा है...ग्रोबोवोय याद है? वही सिस्टम,
वही तरीक़ा...जैसे आप मॉस्को में कोई अफ़सर हैं और आप मर गए हैं, और आपको कहीं
फ़िलीपीन्स में प्रमाणित किया जाता है – एक स्थानीय बेघर के रूप में...आपको कभी भी
याद नहीं आएगा, कि आप मॉस्को में अफ़सर थे...
“प्लीज़, फ़ौरन बन्द
कीजिए,” नीनेल फ़ुफ़कारती है. “कपितोनोव आपकी बातें नहीं सुन रहा है.”
“हाँ, हाँ, आप यहाँ
पुरानी दुर्लभ वस्तुओं का व्यापार करते थे, मगर अब कहीं बांग्लादेश में कछुए मारते
हैं... और, याद रखिए, उसकी हैसियत हमेशा कम रहती है. मैं समझता हूँ, कि हर कोई
जीना चाहता है. मगर मैं इस तरह नहीं करता. मैं उद्देश्यपूर्वक, पूरी एकाग्रता से
करता हूँ. ब्राज़ील में ग्यारह लोग जेल से भाग गए...क्या इसके लिए आप मुझ पर मुकदमा
चलाएँगे? मगर, मेरे अपने सिद्धांत, अपनी मान्यताएँ हैं... इंसाफ़ के बारे में अपनी
कल्पनाएँ हैं...”
नीनेल एक-एक शब्द को तौलते हुए कहती है:
“निकल जाइए. पीछे मुड़ –
एक क़दम आगे – मार्च.”
वह चला जाता है, मगर फ़ौरन वापस लौट आता है.
“मैं, बेशक, अद्वितीय
हूँ, कोई भी ऐसा नहीं कर सकता, जैसे मैं करता हूँ, मगर क्या मुझे प्रोफ़ेशनल कहना
उचित होगा? अपने काम का मैंने किसी से भी एक कोपेक तक नहीं लिया. मैं यहाँ किसलिए
हूँ? आपके बीच मैं पराया हूँ. मगर, यदि मैं न होता, तो दुनिया में सब कुछ किसी और
ही तरह से होता.”
मुड़ता है और हॉल के दूसरे सिरे पर जाता है.
“ ’तालाब’ का भाई यहाँ
है,” नीनेल पिरोगोवा कहती है, “और आप ये नहीं चाहते थे.”
‘तालाब’ का भाई हाथ में कैप-थैली पकड़े हुए है.
हेरा फेरी–उठाईगिरी करने वाला किनीकिन ग़ौर से मेज़ की ओर देख
रहा है.
फ्रेम में रखे ’तालाब’ के साथ दो माइक्रोमैजिशियन्स अन्दर आते
हैं. फ़ोटो आज ही खींची गई थी. जब ‘तालाब’ भाषण दे रहा था.
कालावन और ज्युपिटेर्स्की लाने वालों के हाथों से पोर्ट्रेट
लेते हैं और उसे फ़ायरप्लेस के ऊपर वाली शेल्फ़ में रखते हैं.
इस कदम को सबने सुलह का संकेत समझा.
इसी की राह देख रहे थे.
“कृपया मेज़ पर आइये,
महोदय, खड़े रहने में कोई तुक नहीं है,” अध्यक्ष कहता है.
सब बैठ जाते हैं.
“आपको वहाँ,” माइक्रोमैजिशियन बिल्देर्लिंग कपितोनोव से कहता
है. “वहाँ कार्यकारिणी के सदस्य हैं.”
“वह कोष्ठकों के बाहर
है,” उसका पड़ोसी, हेरा-फेरी वाला इवानेन्को बीच में टपकता है. “अगर ये सही नहीं है
तो, माफ़ कीजिए,” वह कपितोनोव से कहता है.
कहीं बैठ गए.
अध्यक्ष उठा.
21.06
“महाशयों, साथियों.
दोस्तों. इन्सान सोचता तो बहुत कुछ है, मगर होता वही है, जो ख़ुदा को मंज़ूर है. कुछ
ही देर पहले मैंने सोचा था, कि कुछ बोलूंगा, अभी भी यहाँ बोलूंगा, किसी और चीज़ के
बारे में, न कि इस बारे में. मैंने सोचा था, कि बोलूंगा हमारी, हो सकता है, पहली
नज़र में बेहद छोटी, मगर, असल में, हम सबके लिए ज़रूरी विजय के बारे में, और स्वयम्
पर विजय के बारे में, उस बारे में कि चाहे दुश्मनों ने कितनी ही बाधाएँ क्यों न
डाली हों, हमारी ‘गिल्ड’ की कॉन्फ़्रेन्स होकर ही रही, और उस बारे में, कि ऐसा हो
ही नहीं सकता था, कि उसकी मीटिंग न हो, उसकी स्थापना न हो उसकी रचना न हो...
अस्तित्व में न आए!...क्योंकि ये चाहते थे, हम ख़ुद. मैंने सोचा था कि इस बारे में
बोलूंगा कि हमारा प्रमुख शत्रु हमारे बीच में ही है और उसका नाम है – अपनी ही
शक्तियों और अपनी ही संभावनाओं पर
अविश्वास. गिल्ड की स्थापना के अवसर पर आपको मुबारकबाद देते हुए, मैंने सोचा था कि
इस बारे में भी बोलूंगा, कि आज, जब आख़िरकार हमें संगठित होने का मौका मिला है,
हमारी विचारधाराओं और मान्यताओं की विविधता के बावजूद, किसी को भी, किसी को भी
अपने अकेलेपन से, बेसहारापन से डरने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि अब हम एक साथ हैं,
जैसे पहले कभी नहीं थे, - बस, इसी बारे में मैं कहना चाहता था, और, हो सकता है,
कुछ देर बाद किन्हीं और शब्दों में, कुछ और भी कहूँगा. मगर फ़िलहाल, मुझे यह नहीं
कहना चाहिए. वलेन्तीन ल्वोविच ‘तालाब’ आज परलोक सिधार गए, जैसा कि आपको मालूम है,
और, हालाँकि उसने ख़ुद ने नहीं, बल्कि उसके लिए लोगों ने गाया, अंतिम समय तक वह
अपनी ड्यूटी पर रहा. चिर स्मृति.
ज़ोर-ज़ोर से कुर्सियों को हटाते हुए सब लोग उठ गए, और सबके साथ –
कपितोनोव भी. पीते हैं और, एक भी शब्द कहे बिना, आँखें झुकाए, मेज़ के चारों ओर
अपनी अपनी जगह पर बैठ जाते हैं. सलाद की ओर, खाने-पीने की चीज़ों की ओर हाथ बढ़े.
कपितोनोव आधा मिनट ख़ाली प्लेट की ओर देखता रहा, फिर, माँस की ठण्डी स्लाइसेस वाली
प्लेट की तरफ़ नज़र घुमाते हुए, मानो उसीसे मुख़ातिब हो रहा हो, ख़ामोशी को तोड़ता है :
“उसकी आत्मा को शांति मिले. समय हो गया. गुड बाय.”
वह हॉल से बाहर निकलता है.
सीढ़ियों पर नीनेल उसे पकड़ लेती है.
“आपने सोचा, कि मैं
आपको अकेले जाने दूँगी?”
“माफ़ कीजिए,” कपितोनोव
कहता है, “मुझे टॉयलेट जाना है.”
21.27
उसे टॉयलेट नहीं जाना, मगर जब अन्दर घुस ही गया, तो वह
यूरिनल्स की तरफ़ बढ़ता है.
अब स्वयम् को परिस्थितिजन्य प्रतिक्रिया के आधीन करना है.
वह करता है.
यूरिनल्स के ऊपर टंगी हुई दो तख़्तियों को न देखना असंभव है: एक
पर इश्तेहार है आईनों का, दूसरी पर प्रोस्टेटाइटिस के लिए दवाई लिखी है.
हमेशा की तरह सिंक की तरफ़ जाता है, पानी चालू करता है और शीशे
में अपने आप को देखता है.
परेशान हो जाता है.
उसकी तरफ़ देख रहा है – नहीं, ये पराया चेहरा नहीं है.
ऐसा नहीं है. बल्कि ऐसा है. – अगर इस परेशानी को उसे बनाने
वाले तीन घटकों के योग के रूप में देखा जा सकता, तो वे समय के क्रमबद्ध अंतरालों
के अनुरूप प्रतीत होते. – पहले पल में वह अपने आप को देखता है. दूसरे में, दिल की
धड़कन के समानुपात में, - समझता है, कि वह
- वह नहीं है. तीसरे पल में – कि वह (क्योंकि, बेशक, वह है), मगर इस पल में
वह ये जान गया है, उसे, जिसने उसे डरा दिया था.
चश्मा !
उसने कभी भी चश्मा नहीं पहना था.
उसके चेहरे पर चश्मा था, और चश्मा बिना कांच का.
वह अपनी नाक से उसे खींच लेता है और फर्श पर पटक देता है.
चश्मा उछलता है और नीली टाइल्स से गुज़रते हुए – रुक गया और
ख़ाली नज़रों से उसके घुटनों की ओर देखने लगा.
वह पैरों से उसे – बिना कांच की फ्रेम को - मसल देता है. और जब
वह नाक वाली डंडी पर टूट गया, तो वह पैर की ठोकर से पहले आधे हिस्से को क्यूबिकल
में धकेल देता है – और नज़रों से दूर कर देता है और दूसरे को – दूसरे क्यूबिकल
में.
अचानक उसे ऐसा लगा कि क्यूबिकल्स में कोई है और उस पर नज़र रख
रहा है.
न सिर्फ कोई है, बल्कि उस पर नज़र रख रहा है.
कुल चार क्यूबिकल्स हैं, और वह हरेक को खोलता है.
कोई नहीं है. कोई नहीं.
कपितोनोव मूखिन के भय को याद करता है (मगर क्या वह भय था?),
मतलब, तब, जब उसने पहली बार ग़ौर किया कि उसकी हर हरकत पर लगातार पैनी नज़र रखी जा
रही है.
वह चेहरा धोता है.
और बाहर निकलता है.
“क्या मैंने चश्मा पहना था? क्या मेरे चेहरे पर चश्मा था?”
“माय गॉड, क्या हुआ?”
“मैं पूछ रहा हूँ,
क्या मेरे चेहरे पर चश्मा था?”
“बेशक था – चश्मा.”
“बिना काँच वाला?”
“बिना काँच वाला
क्यों?”
“क्योंकि मेरी नज़र
अच्छी है. मैं चश्मा लगाता ही नहीं हूँ!”
“तुम पूरे दिन चश्मे
में थे.”
“पूरा दिन चश्मे में?
तुमने मुझे सुबह देखा था?”
“मैंने तुम्हें लंच से
पहले देखा था. तुमने चश्मा लगाया था. और फिर उसके बाद, जब तुम्हारी ठोढ़ी का ज़ख़्म
पोंछ रही थी. मैंने सोचा भी: चेहरे को छूते हुए पार्टीशन गिरा था, मगर चश्मे को
कुछ नहीं हुआ. परेशान मत हो, तुम अच्छे ही लगते हो – चश्मे में भी और बिना चश्मे
के भी. सुनो, तुम्हारे होंठ बेजान नज़र आ रहे हैं...ये सब बन्द करो, होश में आओ,
कपितोनोव.
21.43
“आसमानी जन्नत, वो
कितनी अच्छी तरह ‘किस’ करता है, कपितोनोव!”
“कौन?”
“तुम, कपितोनोव! मैं
तुम्हारे बारे में कह रही हूँ!”
उसने उसकी ‘किस’ को बस, झिड़क नहीं दिया था – जब वह लिफ्ट में
उससे लिपट गई थी – होठों सहित पूरे जिस्म से. उसे महसूस हुआ कि वह उसे प्रतिसाद दे
रहा है.
और फिर से प्रतिसाद देता है.
लिफ्ट के दरवाज़े अपनी कसरत करते रहते हैं “खुल गए-बन्द हो गए”.
तीसरी कोशिश में दोनों बाहर निकलते हैं.
21.48
...कपितोनोव, क्या तुमने सचमुच में समझ लिया, कि ऐसे समय पर
मैं तुम्हें छोड़ दूँगी?...तब, जब सबने तुम्हें छोड़ दिया है?... मैं वैसी नहीं
हूँ... मैं देख रही हूँ कि तुम्हें किस चीज़ की ज़रूरत है...तुम्हें औरत की ज़रूरत
है, तुम्हें गरमाहट की ज़रूरत है, तुम्हें अपने विलक्षण जादू के लिए डाइरेक्टर की
ज़रूरत है!...मैंने सोच लिया है: तुम चाँदी जैसे चमचमाते सूट में अपना कार्यक्रम
पेश करोगे...नहीं? क्यों?...तुम्हें अपनी क़ीमत का अंदाज़ा ही नहीं है... तुम्हारा
स्वाभिमान कम हो गया है...कपितोनोव, मुझे तुम पर पूरा विश्वास है, तुम एक साथ
दो-दो दो अंकों वाली संख्याएँ बूझ सकते हो!...और चार भी!...और आठ भी!...
...और सिर्फ एक नज़र से ताला खोलना?...झूठ, तुम कर सकते हो!
चलो, प्लीज़ – नज़र से! सिर्फ नज़र से... चलो, उसकी तरफ़ देखो, चलो ना, प्लीज़...यहाँ
पीठ पर...
...व्वा! खोल दिया!...तुमने! सिर्फ तुमने!...नहीं, वह ख़ुद नहीं
खुला!... ‘ख़ुद’ का क्या मतलब है? और मैंने भी नहीं!...कपितोनोव, बस करो, मेरा
अपमान करने की ज़रूरत नहीं है! तुम नज़र से ही खोल सकते हो!...ये तुम्हारा जादू है!
मेरा नहीं!...’सीक्रेट’ जानना नहीं चाहती...
...आसमानी जन्नत, आह, ख़ामोश-तबियत वालों से मैं कितना प्यार
करती हूँ!
मुझे तुम्हारे सामने स्वीकार करना होगा, कपितोनोव...मैंने कभी
भी, किसी से भी इस बारे में नहीं कहा...मेरा कभी भी तीस साल से ज़्यादा आयु के
पुरुषों से संबंध नहीं रहा...ईमानदारी से!...मैं हमेशा, ऐसे, तुम्हारे जैसे पुरुष
का सपना देखती रही, कपितोनोव!...
...कपितोनोव! तुम – दिमाग़ हो, तुम – शक्ति हो. तुम – ताक़त हो.
तुम – पायथन (अजगर- अनु.) हो.
...कपितोनोव, हम कहाँ हैं?...मैं समझ नहीं पा रही हूँ, तुम
मुझे अपने हॉटेल के कमरे में ले आये?
...कपितोनोव, मैं, बस, तुम्हें फ़ौरन आगाह कर देना चाहती
हूँ...मैं चिल्लाऊँगी...इजाज़त है?...तुम डर तो नहीं रहे हो ना, कि मैं तुमसे
समझौता करूँगी?”
.....
जब अपने पैरों को उसके चारों ओर लपेटती है, लगभग उसे अपने भीतर
दबाते हुए, और पहले गुर्राती है, फिर चिल्लाती है : “कपितोनोव!”, वह वापस अपने
ख़यालों पर लौटता है, क्या वह कपितोनोव ही है. या वह कोई और है, जिसने कपितोनोव को
प्रतिस्थापित कर दिया है?
इससे पहले, इतनी शिद्दत से उसे किसी ने यक़ीन नहीं दिलाया था,
कि वह कपितोनोव है, और इससे पहले, उसके दिल में कभी ये सन्देह भी नहीं उठा था.
काले बाल धब्बे के समान बिखरे थे. कहीं ये मेदूसा34
गॉर्गोन तो नहीं? गॉड्स, सेव मी, - मेदूसा गॉर्गोन की सुन्दरता का ख़याल कपितोनोव
को मानो चीर गया! उसकी सुन्दरता का साक्षी कौन हो सकता था, यदि सब
प्रत्यक्षदर्शियों की मृत्यु हो जाते थी, और वह, जो सही-सलामत बचा था, बिना बुर्ज़
वाला, क्या नाम था उसका...हर्क्युलस नहीं...पेर्सेइ...वह भी दयनीय प्रतिबिम्ब के
अलावा क्या देख सका था?...
[बस, वह उसे पहले ही
खो चुका था (कपितोनोव – आकस्मिक ख़याल को).]
उसके कानों में बड़े-बड़े इयर-रिंग्स हैं – पतले, चौड़े,
लहरियेदार प्लेटों वाले, अल्टार के द्वार की याद दिलाते. क्या ये इयर-रिंग्स हैं? कवच
के बचे-खुचे टुकड़े – पोषाक की आख़िरी चीज़, जो उसके बदन पर बची थी.
“क-पि-तो-नोव!...
क-पि-तो-नोव!...” जैसे वह डर रही हो, कि अगर पूरा भी नहीं, तो कपितोनोव के
अस्तित्व का एक हिस्सा खो जाएगा – का, या पि, या तो, या नोव.
कपितोनोव, सिर्फ ऐसे ही, किसी और तरह से नहीं.
..............
इसके बाद उसे ऐसा लगता
है, कि यही ख़ामोशी है – वो, जिसे सुना जाए, वो असल में साधारण किस्म की बारीक़
आवाज़ों से सराबोर है – खिड़की के परे वाली, दरवाज़े के परे वाली, दीवारों के परे
वाली और बस, इन्हीं कमरों की : कहीं श्च्श्च्श्श्च, कहीं प्त्स्क, कहीं चरमराहट,
कहीं ब्रूम, कहीं टाक-टिक-टाक-टिक, कहीं “तीसरा, तुमसे कह रही हूँ” (कॉरीडोर के
अंत में).
एक दूसरे की बगल में लेटने के लिए जगह काफ़ी है. वह, उसकी तरफ़
मुँह मोड़कर, थोड़ा सा दूर हटता है, जिससे एक किनारे से उसे अच्छी तरह देख सके. उसका
मुँह कुछ खुला है, पलकें झुकी हैं. वह बिना तकिए के है, और नीनेल का सिर तकिए में
धंसा है, जिससे उसकी नुकीली ठोढ़ी, छत की ओर हो गई है, और अल्टार का द्वार न्यून
कोण बनाते हुए कपितोनोव की ओर है. चांदी? मगर वो तो भारी होती है...तब ये कवच
नहीं, बल्कि – जंज़ीरें भी नहीं है.
कपितोनोव धातु के इस आभूषण को ऊँगली से छूता है – सावधानी से,
जिससे कि उसे जगा न दे, क्योंकि उसे विश्वास है कि यह औरत दूर किसी दूसरी दुनिया
में चली गई है: वह यहाँ नहीं है, वह समय और स्थान की किसी और ही परिधि में है.
वह उसकी साँस की गति का निरीक्षण करता है, जो उसके पेट से
प्रकट हो रही है, और सीने में कोई हलचल नहीं हो रही है.
एक ओर से देखने पर उसका वक्षस्थल धनु-कोष्ठक जैसा प्रतीत हो
रहा है.
कपितोनोव दूसरी ओर सिर घुमाता है – उससे दो मीटर्स की दूरी पर
दीवार में आईना जड़ा है. तर्कसंगत है : निर्वस्त्र, हड्डियाँ निकला, और उसके पीछे
वह, धनुकोष्ठकों वाली.
वे चार हैं.
अगर दोनों कपितोनोवों को एक गिना जाए, तो कपितोनोव धनुकोष्ठकों
के बीच में दब गया है.
वह – जैसे घोंसले में है.
वह उठता है और स्वयम् को कोष्ठकों से निकालकर मिनिबार की ओर
जाता है.
वह फ़ौरन होश में आती है, और जैसे कुछ हुआ ही न हो, कंधों तक
कंबल के नीचे छुप जाती है – अब कोई कोष्ठक नहीं हैं.
“कपितोनोव, क्या
तुम्हारे बच्चे हैं?”
“बेटी. उन्नीस की.”
“और मेरा एक बेटा है.
ग्यारह का. तुम्हें क्या हुआ है, कपितोनोव?”
“यहाँ... मक्खी है,”
कपितोनोव कहता है.
“फ्रिज में?”
“हाँ.”
“मरी हुई?”
“नहीं.”
“तुम खड़े थे और तुमने
ध्यान नहीं दिया, कपितोनोव?” कुहनियों पर थोड़ा सा उठती है. “तुम इतना चौंक क्यों
गए? आख़िर, ऐसी क्या बात है?... सर्दियों की मक्खी. हॉटेल की. मिनिबार से...अरे,
तुम्हें हुआ क्या है, कपितोनोव? क्या तुम मक्खियों से डरते हो? ये कोई कॉक्रोच थोडे
ही है.”
“सब ठीक है,” कपितोनोव
ने अपने आप पर काबू किया. “क्या वाइन लोगी? या, यहाँ और क्या है? श्नेप्स – दो
घूँट...वोद्का ‘रशियन स्टैण्डर्ड’ ...ओहो, पूरे सौ ग्राम!”
“चलो, आधी आधी. नहीं
बोतल से ही पियेंगे. जिससे जाम न टकराना पड़े.”
पहले वह गटकती है, मगर बोतल से पूरा घूंट उसके मुँह में नहीं
जाता – बोतल का मुँह बहुत संकरा है. वह अपना घूँट पीता है.
“और, तुम्हारे उसके
साथ संबंध कैसे हैं, सब ठीक है?”
“किसके साथ ठीक है?”
“बेटी के साथ – सब ठीक
तो है?”
“हाँ, ठीक है. बुरा
क्यों होने लगा?”
नहीं, बस, ऐसे ही पूछ लिया. प्यार से रहते हो?”
“प्यार से, बेशक.”
“ ये, ‘बेशक’ भी? हाँ,
बेशक – वह बड़ी है...अभी शादी नहीं हुई?”
“एंगेजमेंट हो गई है.”
“क्या बात है! होना ही
चाहिए...और तुम? तुम तो शादी-शुदा हो?”
“फ़िलहल हम,” कपितोनोव
कहता है – “बिल्कुल एक साथ नहीं हैं. तुम्हारे कानों में ये क्या है – चांदी का
है?”
“इयर-रिंग्स अच्छे
लगते हैं?”
“शायद, क्या भारी
हैं?”
“मेरे ख़याल से वे मुझ
पर जँचते हैं.”
“हाँ, बेशक, जँचते
हैं.”
वो चीज़, जिसके बिना आज का इन्सान, चाहे वो कहीं भी हो, बेहद
परेशानी महसूस करता है, उसके हाथों में दिखाई दिया. वो छोटे से परदे पर देखती है:
“पूछते हैं कि मैं
किसके पक्ष में हूँ – स्मेत्किन के या चिचूगिन के? टु हेल!...वॉव!...गिल्ड के
प्रेसिडेंट के बारे में भूल गए. ये सब तुम्हारी वजह से हुआ, कपितोनोव! बोर्ड की
पुष्टि तो कर दी, मगर प्रेसिडेंट तो है ही नहीं. अभी वहाँ रेस्टॉरेंट में चुनाव हो
रहा है...और, क्या तुम्हारे पास मेसेज नहीं आया? तुमने, क्या फ़ोन बन्द कर दिया
है?”
“मुझे कोई फ़रक नहीं
पड़ता कि वे किसे चुनते हैं.”
“अगर तुम्हें चुनते,
तो बढ़िया होता.”
“उहूँ,” कपितोनोव ने
कहा.
“क्या ‘उहूँ’,
कपितोनोव? तुम एक बेहतरीन प्रेसिडेंट साबित होते.”
“मगर, क्या वोटिंग
सीक्रेट नहीं है?”
“देखा, तुम्हें फ़रक
पड़ता है!”
“आज कौन सी तारीख़ है?”
कपितोनोव ने पूछा.
“ओह, ये हुई न बात!
बूझो.”
“ठीक है, ज़रूरी नहीं
है.”
“नहीं बूझ सकते? क्योंकि वो दो अंकों वाली नहीं है, इसीलिए तुम
नहीं बूझ सकते!...मगर, मैंने अपनी बूझ ली. तुम मेरी बूझो...हूँ? ख़ामोश क्यों हो?
मैंने दो अंकों वाली सोच ली.”
“बस करो, मैं ये नहीं
करूँगा.”
“ओह, प्लीज़. मैंने सोच
ली है.”
“कहा तो, कि नहीं
करूँगा.”
“अच्छा, मैं उसमें कुछ
जोड़ दूँ..कितना जोडूँ?...चार?”
“मुझे कोई फ़रक नहीं
पड़ता.”
“और कितने
निकालूँ...दो?”
“मुझे कोई फ़रक नहीं
पड़ता.”
“तो? मैंने जोड़ दिया
और घटा भी दिया. बोलो भी! ...ख़ामोश हो?...चौबीस!”
“मुझे कोई फ़रक नहीं
पड़ता. मुझे नहीं मालूम कि तुमने क्या सोचा था.”
“झूठ बोलते हो! तुमने
बूझ ली! चौबीस!”
“मैंने कुछ भी नहीं
बूझा. ये तुम मुझे उकसा रही हो. मुझे नहीं मालूम, कि तुमने क्या सोचा था.”
“तुम बुरे हो,
कपितोनोव. और, क्या तुम्हारा ख़याल है, कि मैं हर रोज़ इन्हें पहनती हूँ?...अच्छा
बताओ तो, कपितोनोव, मैं क्यों तुम्हें ‘कपितोनोव, कपितोनोव!’ कह कर बुलाती हूँ,
मगर तुमने एक भी बार मुझे नाम से नहीं बुलाया? क्या तुम बिस्तर में सबके साथ ऐसे
ही होते हो? ये तुम्हारा सिद्धांत है?”