दो बार जन्मा
पिघलाना, टुकड़े कर देना,
नष्ट कर देना – कई स्मारकों की किस्मत में होता है. दमन का एक सौम्य
तरीका भी होता है – कारावास देकर अलग-थलग कर देना, जैसे,
किसी सराय में या गैरेज में – अच्छे दिन आने तक, और फिर पुनर्वसन किया जाना और अपनी जगह पर वापस लौटाना.
इस स्मारक का भाग्य
असाधारण है. दुनिया के सामने आज़ाद ज़िंदगी (बेशक, उस हद तक,
आज़ाद ज़िंदगी, जितनी स्मारकों की जानने की
क्षमता है), अचानक सज़ाए मौत, टुकड़े-टुकडे
करके लकड़ी की पेटियों में बंद होना और, आख़िरकार, चौदह साल के गंभीर अकेलेपन के बाद प्राप्त हुई आज़ादी, मगर विचित्र शर्त के साथ – जैसे घर में नज़रबंद किया गया हो.
इस स्थिति पर एक अन्य रूपक – चिकित्सा
संबंधी - भी लागू किया जा सकता है. लम्बी ज़िंदगी - अकस्मात् नैदानिक मृत्यु (जो
चौदह साल खिंची) – ज़िंदगी में वापसी, पुनर्वास,
प्रतिबंधित हेल्थ-रिसॉर्ट...
दूसरा रूपक ज़्यादा अनुकूल
है. आख़िर बात डॉक्टर के स्मारक के बारे में हो रही है.
…सन् 1859 में पीटर्सबुर्ग में दो समारोह हुए थे:
दो स्मारकों का एक के बाद एक अनावरण किया गया. एक – सम्राट का, ये
था जून में; दूसरा – बैरोनेट, वास्तविक गुप्त सलाहकार का – दिसम्बर में. सम्राट का नाम था, ज़ाहिर है, निकोलाय, ये सबको
मालूम है, मगर बैरोनेट जेम्स वासिल्येविच वाइली के बारे में
आज कम ही लोग जानते हैं. जो, पहली नज़र में विस्मयजनक ही
प्रतीत होता है. असल में उस समय कदम-कदम पर स्मारक नहीं लगाए जाते थे, स्मारक का अनावरण महत्वपूर्ण घटना होती थी और अपने बारे में ख़ुद ही बयान
करती थी. वे सभी, जिन्हें उन दिनों काँसे में अमर बना दिया
गया था उँगलियों पर गिने जा सकते थे – दो त्सार, तीन जनरल,
दादा क्रीलव और, बेशक, ये
वाइली, इस पंक्ति में आख़िरी. इस पहली पंक्ति के स्मारक – सभी,
वाइली के स्मारक को छोड़कर – अपने आप ही मशहूर थे, और, उन हस्तियों से कम मशहूर नहीं थे, जिनको वे महिमामंडित करते थे. सिर्फ वाइली का स्मारक, इसके विपरीत, लगभग अनजान है, अधिकांश
पीटरबुर्गवासी उसके अस्तित्व की कल्पना भी नहीं कर सकते. ये इसलिए भी आश्चर्यजनक
प्रतीत होता है, क्योंकि उसका आकार, सौम्य
शब्दों में कहें तो, प्रभावशाली है. पैडेस्टल समेत इसकी
ऊँचाई आठ मीटर्स है! थोड़ी सी, मगर आठ मीटर की ऊँचाई तक तो
पहले स्थापित किए गय स्मारक चाहे सुवोरव हो, या कुतूज़व,
या बार्क्ले द टोली... नहीं पहुँच सकते.
ज़ाहिर है,
ये कोई घास में पड़ी हुई सुई तो नहीं है – ऐसी चीज़ को अनदेखा कैसे
किया जा सकता है?
पूरा मामला ये है,
कि साधारण नागरिकों के लिए स्मारक देखना असंभव है. वह अजनबियों की
नज़रों से छुपा हुआ है, लगभग गुप्त है. वर्तमान में वह
मिलिटरी-मेडिकल अकाडेमी के पार्क में है, वहाँ सिर्फ सैनिकों
द्वारा संरक्षित चेक-पॉइन्ट्स से होकर ही जा सकते हैं. मतलब कि नहीं जा सकते. बेशक,
अगर आप किसी मिलिट्रीवाली चालाकी से काम न लें, मगर, इसके परिणाम गंभीर हो सकते हैं...
जन्म से स्कॉटिश,
पादरी के बेटे, जेम्स वाइली ने (हमारे हिसाब
से – याकव वासील्येविच विली) सम्राज्ञी कैथेरीन के ज़माने में रेजिमेन्टल डॉक्टर के
रूप में रूसी सेवा में प्रवेश किया. सम्राट पॉल के ज़माने में वह स्टाफ़-सर्जन बन
चुका था, और अलेक्सान्द्र के ज़माने में तो साम्राज्य के पूरे
चिकित्सा-विभाग का प्रभारी था. वह प्रमुख मेडिकल-सर्जन था, मिलिटरी-मिनिस्ट्री
के मिलिटरी-मेडिकल डिपार्टमेन्ट का प्रमुख था, मेडिको-सर्जिकल
अकादमी का प्रेसिडेन्ट था. मिलिटरी-विभाग में उसने काफ़ी सुधार किए. उसने “मिलिटरी-मेडिकल
जर्नल” का आरंभ किया, जो आज तक(!) प्रकाशित हो रहा है. पचास वर्षों से
अधिक काल उसने रूस की चिकित्सा सेवा को समर्पित किया था. एक अच्छे
चिकित्सक-व्यवस्थापक के रूप में वह मशहूर था. इसके अलावा उसने कई ग्रंथों की रचना
की, जिनमें प्रमुख है – “फील्ड फार्माकोपिया”.
त्सार अलेक्सान्द्र,
जिसके साथ विली हर सैनिक अभियान पर जाता था, अकारण
ही उस पर फ़ख्र नहीं करता था – पैरिस के निकट सैन्य-समीक्षा के दौरान सभी मित्र
सम्राटों ने रूसी त्सार को, विली द्वारा ज़ख्मी सहयोगियों को
दी गई सहायता के लिए यूँ ही धन्यवाद नहीं दिया था.
एक बार अलेक्सान्द्र I
ने उसके लिए व्यक्तिगत रूप से बहुत गहरे अर्थ वाले (खून से लथपथ
हाथ...) राज्य-चिह्न की कल्पना की थी, और इंग्लैण्ड यात्रा
के दौरान प्रिन्स-रीजेन्ट से विली के लिए (अंग्रेज़ नागरिक होने के नाते) ‘सर’ के ख़िताब वाली पीढ़ीगत कुलीनता और बैरोनेट की
पदवी देने की प्रार्थना की थी.
विली ने वसीयत में अपनी
विशाल बचत – लगभग डेढ़ मिलियन रूबल्स – रूस में चिकित्सा विज्ञान के विकास के लिए
प्रदान कर दी, विशेष रूप से मेडिको-सर्जिकल
अकादमी में क्लीनिक की स्थापना के लिए (जिसे बैरोनेट विली का नाम दिया जाने वाला
था). उसने वसीयत में अपने लिए स्मारक बनाने की इच्छा भी व्यक्त की, और इस बात का भी ख़ुद ही इंतज़ाम किया कि स्मारक पर किसी को खर्च न करना
पड़े. और, स्वास्थ्य की देवी हायजिआ को समर्पित – एक फ़व्वारे
का अलग से निर्माण भी करवाने की बात भी लिखी.
शिल्पकार डी. आइ. जेन्सेन
और वास्तुशिल्पकार ए. आइ. श्ताकेन्श्नेयदेर को दोनों ही (स्मारक और फ़व्वारा) से
संबंधित तस्वीरें भी मिलीं.
9 दिसम्बर को,
विली की रूसी चिकित्सा-सेवा में पदार्पण करने की 69वीं वर्षगाठ पर
स्मारक का समारोहपूर्वक उद्घाटन किया गया. शासकीय प्रोफेसर याकव अलेक्सेयेविच
चिस्तोविच ने, जिसने उस अवसर पर लम्बा-चौड़ा भाषण दिया था,
समारोह के बारे में एक पूरी किताब लिखी है.
विली ने,
जिसकी सेहत किसी पहलवान जैसी थी और, कहा जाता
है, कि वह कभी बीमार नहीं होता था,
ख़ामोशी से इस दुनिया से बिदा ले ली, नब्बे तक पहुँचने से
पहले. उतने ही सालों तक स्मारक भी एक ही जगह पर – अकादमी के दर्शनीय भाग में –
आराम से खड़ा रहा. इस दौरान अकादमी ने अपना नाम बदल दिया था और काफ़ी ज़्यादा
प्रसिद्धि प्राप्त कर ली थी. ना तो त्सार के, और ना ही
सोवियत काल में, शायद, स्मारक किसी की
आँखों में खटकता था. वह आज तक भी प्रमुख प्रवेश द्वार के पास खड़ा रहता, अगर एक बार एक अप्रत्याशित घटना न घटी होती – कॉस्मोपोलिटन्स से संघर्ष.
स्मारक इसे बर्दाश्त नहीं
कर पाया.
विली के बारे में सन् 1859
में दिये गए इस वक्तव्य की सन् 1948 में “लेनिनग्राद प्राव्दा” में छपे लेख से
तुलना करना दिलचस्प होगा. मिसाल के तौर पर, स्मारक के
उद्घाटन के अवसर पर प्रोफेसर चिस्तोविच ने उत्साह से कहा था : “उसने काफ़ी जल्दी,
और सम्पूर्ण देशभक्तिपूर्ण सच्ची प्रसन्नता से अपनी हार्दिक इच्छा
का फल देखा : रूस में एक रूसी मेडिकल अकादमी की स्थापना करना; सचमुच, अकादमी के प्रबंधन में उसके प्रवेश करने के
पंद्रह सालों के भीतर ही उसकी कॉन्फ़्रेन्स के सदस्यों में एक भी विदेशी नहीं था”. 6
और “लेनिनग्राद प्राव्दा” ने सन् 1948 में लिखा: “रूसी जनता के ख़िलाफ़
निर्देशित ब्रिटेन की विदेश नीति का एक होशियार सरदार, जिसने
ज़िंदगी भर रूसी डॉक्टरों को सताया, विली ने हमारे राष्ट्रीय
चिकित्सा-विज्ञान के विकास में बाधा डाली”.7
इस लेख में,
जिसे बड़ा भद्दा शीर्षक दिया गया था “रूसी चिकित्सा विज्ञान के
इतिहास में विदेशियों की चापलूसी के विरोध में”, याकव वासिल्येविच
पर सभी ख़तरनाक पापों का दोष लगाया गया था – वो, जैसे,
ग्रंथ-चोर था, परोपजीवी था, ख़तरनाक था, और, बेशक, अंग्रेज़ जासूस था.
वह “ज़हरीले-डॉक्टर्स” का
प्रेरक भी हो सकता था, जिन पर “विदेशियों की चापलूसी
के विरोध...” के प्रकाशन के चार साल बाद मुकदमा चलाया जाने वाला था – क्योंकि
कैथेरीन के समय में ही, रेजिमेंट-डॉक्टर होते हुए, नौजवान विली ने अस्थायी बुखार के इलाज के लिए एक उपाय के रूप में आर्सेनिक
का प्रयोग किया था. अठारहवीं सदी के अंग्रेज़ जासूस से “आर्सेनिक का सिरा” बीसवीं
सदी तक खींचा जा सकता था, मगर वहाँ तक सिर्फ मेरा परिष्कृत
दिमाग़ ही पहुँच सकता है, उन “मुकदमों” के विचारकों ने, सौभाग्य से,
इतिहास का इतना गहन अध्ययन नहीं किया.
ऐतिहासिक
डॉक्टर की प्रतिष्ठा के प्रश्न पर मिलिटरी-मेडिकल म्यूज़ियम के नेतृत्व द्वारा
आयोजित एक मीटिंग में विचार-विमर्श किया गया; विवरण
मुझे ज्ञात नहीं है, मगर ये पता है, कि
मिलिटरी-डॉक्टर्स और इतिहासकारों के सम्मान में अधिकांश वक्ताओं ने “लेनिनग्राद
प्राव्दा” में छपे आरोपों को खारिज कर दिया. ये सोचने का मन होता है, कि इसीलिए स्मारक को नष्ट नहीं किया गया, बल्कि
सिर्फ हटाया गया. हिस्से अलग किए – पैक किया – निकाल दिया. अकादमी के प्रवेश द्वार
के सामने, ज़ाहिर है, वह कभी भी नहीं हो
सकता – यहाँ सन् 1996 में बल्शोय सैम्प्सनियेव्स्की एवेन्यू से “हायजिया” फव्वारा
प्रतिस्थापित किया गया, वही फ़व्वारा - जो विली के पैसों से
बना था.
अनेक वर्षों का कारावास – या, देखा
जाए तो, स्मारक की नैदानिक मृत्यु –
ख्रुश्चोव के ‘गरमाहट’ काल के अंत में,
जैसा कि होना चाहिए था – सन् 1964 में पुनर्वास से (और, दोनों - कानूनी और चिकित्सा की दृष्टि से) समाप्त
हो गया. स्मारक को नये सिरे से जोड़ा गया और अब उसे अकादमी के भीतरी पार्क में पुनर्स्थापित किया गया. अजनबियों से बातचीत करने
पर प्रतिबंध था (सौम्य शब्दों में कहें तो, चिकित्सा की
दृष्टि से निषिद्ध था). पार्क लगभग निर्मनुष्य है – अगर कोई किनारे से गुज़रता भी
है, तो समझ लो, कि अपना –
मिलिटरी-मेडिकल डिपार्टमेंट का है. पेड़ों की छाँव में याकव वासिल्येविच को आराम
करने की सलाह दी गई है, मगर आराम कहाँ का, जब तुम्हारे एक हाथ में पेन्सिल और दूसरे में – कागज़ का मुट्ठा हो?
ख़ुद याकव वासिल्येविच, ग़ौर कीजिए, चट्टान के किनारे पर बैठा है... वह पूरी मिलिटरी-मेडिकल युनिफॉर्म में है –
समारोहपूर्ण, मेडल्स के साथ...तलवार के साथ...उसके पैरों के
पास किताब है...किताब – इतनी मोटी, कि मज़बूती से नीचे अपने किनारे
पर किए खड़ी है – ये वही फार्माकोपिया है. और मोटाई को देखते हुए – चौथी आवृत्ति है
(1848), आठ सौ पृष्ठों वाली...(वैसे, लैटिन
में है.)
राज्य-चिह्न,
हालाँकि काँसे का है, फिर भी पूरा साबुत बचा
है...मगर दो अन्य नक्काशियाँ स्वाभाविक रूप से लुप्त हो गईं...आह, “प्रेसिडेन्ट के रूप में” विली की अध्यक्षता में अकाडेमी की कॉन्फ्रेन्स
के चित्र नश्वर लोगों में से कोई भी नहीं देख सकेगा, उसी तरह
जैसे बोनापार्ट के साथ युद्ध के प्रसंग, जब “युद्ध के मैदान
में ज़ख्मियों की सेवा कर रहे”, ऐतिहासिक डॉक्टर को “इस अकादमी के छात्रों के साथ” दिखाया गया था (चिस्तोविच).
ख़ामोशी है यहाँ. यहाँ से
हटने का मन नहीं करता. स्वास्थ्य की देवी की प्रतिमाओं में ग्रेनाइट के करियाटिड्स
देखने का मन करता है...राज-चिह्न पर “खून से लथपथ हाथ” ढूँढ़ने को...मेडल्स गिनने
को...
पैडेस्टल की ऊँचाई में
प्रत्यक्ष अर्थ स्पष्ट है. वहाँ, ऊपर, बेशक, वह सुकून से है. वहाँ उस तक नहीं पहुँच सकते.
जुलाई
2007
P.S.
(अगस्त 2009)
मगर नहीं,
इतिहास चलता रहता है. कल यह किताब प्रेस में जाएगी दूसरे संस्करण के
लिए, और यहाँ ऐसी घटनाएँ! ये घोषणा की गई, कि गुमशुदा आकृतियों में से एक आकृति की प्लेट मिली है. समाचारों में
सूचित किया गया, कि “दो असली पीटरबुर्गवासियों” (एक उद्यमी
और एक पुनर्स्थापक) ने उसे किसी संदेहास्पद व्यक्ति से अलौह धातुओं की खरीदवाली
दुकान के पास से ख़रीदा और अपने प्रयत्नों से उसे पुनर्स्थापित भी कर दिया. अब
स्मारक को पहले वाली जगह पर स्थानांतरित करने की संभावना के बारे में बातें हो रही
हैं. मगर, मेरा ख़याल है, ये मुश्किल
है...मगर, मुझे किसी भी बात से अचरज नहीं होगा.
ज़िंदा रहेंगे – देखेंगे.


