बुधवार, 29 अगस्त 2018

Monuments of Petersburg - 09



छुपा हुआ लेनिन




कभी-कभी स्मारकों के लिए लोगों की नज़रों में न पड़ना फ़ायदेमन्द होता है, ख़ासकर उस हालत में, जब  ऐतिहासिक उथल-पुथल के कारण समाज में अमर बना दिए गए व्यक्ति के प्रति समाज में निरंतर एक  पूर्वाग्रह स्थापित हो जाये. ऐसी ही दुर्भावना व्लादीमिर इल्यिच लेनिन ने अनेक लोगों के मन में पैदा कर दी, और लेनिन के स्मारकों को निशाना बनाया जाने लगा...अब उन्हें दुबकना पड़ा और छुपे-छुपे, कठिन समय का इंतज़ार करना पड़ा. मगर दुबकना कैसे संभव है, यदि लेनिन के स्मारक, नियमानुसार, सबके सामने हैं? और वैसे भी स्मारकों को ज़िंदगी भर अच्छी तरह दिखाई देना ही चाहिए...

एक ख़ास स्मारक के लिए ये संभव हुआ. एक स्मारक सचमुच में छुप गया. बॉटनिकल गार्डन में लेनिन का स्मारक जिसे यहाँ तीस के दशक के आरंभ में स्थापित किया गया था. हाथ में किताब लिए – इल्यिच बैठा है और कोई सपना देख रहा है. ख़ुद कॉन्क्रीट का बना है, और पैडेस्टल भी कॉन्क्रीट का ही है. अगर महँगे ग्रेनाइट के पैडेस्टल पर स्थित काँसे के नेता की किस्मत में भी युसूपव गार्डन से लुप्त होना लिखा था, तो शायद, इस बॉटनिकल गार्डन वाले को, जो सीधे-सादे कॉन्क्रीट का है, सज़ा सुनाना बेहद आसान था – विचारधारा का हवाला न देते हुए भी, सिर्फ इस वजह से : अवधि ख़त्म हो गई है, हटाना होगा – पदार्थ अस्थाई है, कॉन्क्रीट तो आख़िर कॉन्क्रीट ही है.

नहीं, बच गया. वह हरियाली में छुप गया. फ़ेन्सिंग के कारण उसे नहीं देख सकते. और बॉटनिकल इन्स्टिट्यूट की इमारत में जाने वाली सीढ़ियों से भी नहीं देख सकते, जिनकी बगल में वह स्थापित है.

दो टूक कहें, तो ये मौलिक स्मारक नहीं है. ये क्लोन है. और इसीलिए अद्भुत है, कि क्लोन्स की श्रृंखला का पहला स्मारक है. क्योंकि मूल की तो मृत्यु हो गई, और मूल की मृत्यु के बाद उसका मानद ओहदा अनुयायी को दिया गया है.

“मूल” शब्द से मेरा तात्पर्य कॉन्क्रीट के, बिल्कुल वैसे ही, हाथ में किताब लिए लेनिन के स्मारक से है, जिसे कुछ पहले, सन् 1932 में पॉलिटेक्निक इन्स्टीट्यूट के पार्क के मुख्य एवेन्यू पर स्थापित किया गया था. वह सबको नज़र आता था.

स्मारक के रचनाकार सिर्गेइ द्मित्रियेविच मेर्कूरव – अपने ज़माने के बहुत प्रसिद्ध शिल्पकार, अत्यंत प्रभावशाली, अत्यंत - अगर इस शब्द को उसके विशाल परिमाण तक ले जाएँ, तो, सफ़ल थे. दो बार स्तालिन पुरस्कार प्राप्त कर चुके थे, और दोनों ही बार स्तालिन के स्मारकों के लिए. नहीं, सही-सही कहेंगे : पहली बार, असल में, दो स्मारकों के लिए – लेनिन के और स्तालिन के, दोनों – संगमरमर के   (क्रेमलिन में, सोवियत कृषक प्रदर्शनी में), और दूसरी बार – अकेले स्तालिन के – ढलवाँ तांबे के (येरेवान में). येरेवान के स्मारक की पैडेस्टल समेत ऊँचाई करीब पचास मीटर्स थी! मेर्कूरव यादगार स्मारक बनाने के लिए प्रसिद्ध थे. मॉस्को नहर के किनारे पर भीमकाय-लेनिन और भीमकाय-स्तालिन मेर्कूरव के प्रोजेक्ट के अनुसार कैदियों के श्रम से बने थे. मेर्कूरव द्वारा बनाया गया मॉडेल अनिर्मित पैलेस ऑफ़ सोवियत्स के शिखर पर स्थापित किए जाने वाले अस्सी मीटर्स के लेनिन की प्रतिकृति था.

इन भीमकायों की तुलना में हाथ में किताब पकड़े कॉन्क्रीट का लेनिन सिर्फ धूल के कण के बराबर है. बैठे हुए लेनिन की ऊँचाई सिर्फ दो मीटर्स बीस सेन्टीमीटर्स है. ऊपर से करीब दो मीटर्स का पैडेस्टल. ऐसा स्मारक छुप सकता है, अगर बगल में पेड़ और झाड़ियाँ हों. मगर यदि वे नहीं हैं, तो उन्हें कहाँ से लाएँ?

पॉलिटेक्निक इन्स्टीट्यूट वाले लेनिन की बगल में झाड़ियाँ और पेड़ नहीं थे, ये कोई बॉटनिकल इन्सटीट्यूट तो नहीं है. किसी को भी पता नहीं चला कि कैसे अपनी किताब के साथ लेनिन गायब हो गया. वैसा ही येरेवान में भी हुआ – वहाँ मेर्कूरव के स्तालिन को कई टैन्क्स की सहायता से पैडेस्टल से उखाड़ दिया गया!...                             

तीस के दशक के बीच में लेनिनग्राद में एक और क्लोन प्रकट हुआ, कॉन्क्रीट का, हाथ में किताब पकड़े. उसे अब्वोद्नी-कॅनाल के पीछे भूतपूर्व बूचड़खानों के क्षेत्र में एक पार्क में स्थापित किया गया था. कुछ ही दिन पहले इस क्षेत्र में डेयरी-प्रॉडक्ट्स का उत्पादन होता था. वर्तमान समय में “पेटमोल” (पीटर्सबुर्ग डेयरी से तात्पर्य है) भी संयोगवश वहीं है. और जब मैं स्कूल में पढ़ता था, तो हमें श्रम-शिक्षा के अंतर्गत डेयरी-प्लान्ट में सहायता के लिए ले जाया जाता था – हम दूध की खाली बोतलें बक्सों में रखते थे. लेनिन को मैंने देखा था, मगर ठीक से याद नहीं है.

वैसे, याद रखने जैसा क्या है? वैसा ही है, जैसा बॉटनिकल गार्डन में है, सिर्फ पैडेस्टल कुछ नीचा है.
अच्छी तरह मालूम है, कि वो अब भी वहीं खड़ा है (मतलब, बेशक, बैठा है.)

युद्ध से ठीक पहले एक और क्लोन स्थापित किया गया था फैक्टरी के क्षेत्र में, जिसे आजकल आसान शब्दों में “ एस्केलेटर प्लान्ट का भूतपूर्व दक्षिणी भाग” कहा जा सकता है. ये वासिल्येव्स्की द्वीप की अठारहवीं लाइन है. आज यहाँ कई फ़र्म्स ने आश्रय लिया है, स्मारकों के उत्पादन के वर्कशॉप्स भी हैं (ज़ाहिर है, कब्रिस्तान के). कारखानों की बिल्डिंग्स के मध्य में एक छोटा सा पब्लिक गार्डन है, - पॉप्लर वृक्ष के नीचे किताब लिए लेनिन बैठा है, करीब-करीब ज़मीन पर ( मतलब, लगभग बिना पैडेस्टल के). दुश्मन उस तक पहुँचने का रास्ता नहीं ढूँढ़ पायेगा, परेशान होने की ज़रूरत नहीं है.

मेर्कूरव की मृत्यु के दो साल बाद – सन् 1954 में, लेनिन की तीसवीं पुण्यतिथि के अवसर पर, अबूखोव्स्की डिफेन्स प्रॉस्पेक्ट के दोनों ओर फ़ौरन दो क्लोन स्थापित किए गए : एक – ई.वी. बाबुश्किन गार्डन के मुख्य एवेन्यू पर, और दूसरा – “श्रमजीवी” फैक्टरी के क्षेत्र में. तो, “बाबुश्किन वाला” आख़िरकार लुप्त हो गया, वह आँखों में काफ़ी खटकता था, मगर “श्रमजीवी”, हाँलाकि अच्छी हालत में नहीं है, मगर अभी भी टिका हुआ है. कॉन्क्रीट के इस इल्यिच ने पूंजीवाद के काफ़ी नख़रे देख लिए! मालूम है, स्मारक की पचासवीं सालगिरह पर उसे क्या तोहफ़ा दिया गया (स्मारक भी, लोगों के ही समान, अपनी सालगिरह के प्रति संवेदनशील होते हैं, सिर्फ वे उसे अपने आप, चुपचाप मनाते हैं)? स्मारक की पचासवीं सालगिरह पर (सन् 2004 में) उसकी आँखों के सामने सम्पत्ति के बटवारे का क्रूर प्रदर्शन हुआ. पिस्तौल और बेसबॉल के बॅट्स के साथ. दरवाज़ों को तोड़ने से. कानून और व्यवस्था की शक्तियों के हस्तक्षेप से. नौ आदमी घायल हुए. अगर किसी को उत्सुकता हो, तो उस समय के अख़बारों का हवाला दूँगा.             

फिर भी, वस्तुस्थिति ने लेनिन के आदर्शों को कितना ही मज़ाक क्यों न उड़ाया हो, फैक्टरी वाला स्मारक अभी तक खड़ा है – हो सकता है, कि कॉन्क्रीट ज़्यादा जल्दी बिखर रहा है, क्योंकि समय के कारण के साथ, निःसंदेह, तनाव का कारण भी जुड़ गया हो. मगर मैं कह रहा हूँ, कि ई. वि. बाबुश्किन पब्लिक-गार्डन से, जहाँ, लगता था, कि किताब वाले स्मारक के लिए बैठना ज़्यादा आरामदेह और ज़्यादा सुरक्षित होता, स्मारक ग़ायब हो गया. उसी तरह जैसे नये ज़माने में “पॉलिटेक्निक वाला” प्राचीन इल्यिच गायब हो गया था, जिसकी पुराने ज़माने में ऊपर वर्णित क्लोन्स की श्रृंखला बनाई गई थी.

और महत्वपूर्ण बात ये है. पॉलिटेक्निक इन्स्टीट्यूट के पार्क से हाथ में किताब लिए उस प्राचीन लेनिन के  गायब होने के कारण – वरीयता और प्राथमिकता के सिद्धांत के अनुसार – मूल स्मारक का दर्जा बॉटनिकल गार्डन के किताब वाले लेनिन को जाता है. इसे समझना चाहिए और याद रखना चाहिए.

इस बात को संक्षिप्त करते हुए हम उपरोक्त प्रकार की वस्तुओं के लिए एक नियम बनाने की कोशिश करेंगे. सीधी बात है: वहाँ, जहाँ परिचय-पत्र के आधार पर प्रवेश दिया जाता हो, और बाहरी लोगों के अंदर आने पर नियन्त्रण हो, कॉन्क्रीट के, किताब वाले लेनिन के लिए लगभग कोई ख़तरा नहीं है, मगर जहाँ सब कुछ स्पष्ट हो, वहाँ इतिहास के तीव्र मोड़ पर, किताब वाले लेनिन को धराशायी कर दिया जाएगा. बाद में लोग याद करेंगे : क्या लेनिन था?

ख़ैर, बॉटनिकल गार्डन में लौटते हैं. यहाँ प्रवेश, हालाँकि सशुल्क है, मगर पूरी तरह सबके लिए खुला है. परिणामस्वरूप, हमारे नियम के अनुसार, यहाँ से किताब वाले लेनिन को हटाना ज़रूरी था. मगर वह बच गया! झाड़ियों में छुप गया – और बच गया! उसने जैसे वाकई में रहस्यमय ज़िंदगी गुज़ारी हो, और अभी भी वैसे ही चल रहा है!

स्टालिन उतना भाग्यवान नहीं था. वो भी यहीं था, मगर इन्स्टीट्यूट की बिल्डिंग के रास्ते के दूसरी ओर. लेनिन के साथ संरचना बनाई थी. जब लेनिन के मानदण्डों को पुनर्स्थापित करने का निर्णय लिया गया (हर क्षेत्र में) तो उसे नष्ट कर दिया गया. मगर जब लेनिन के लिए भी मुसीबत का समय आया, तब तक झाड़ियाँ और पेड़ काफ़ी बढ़ चुके थे.     

कभी, बहुत पहले (और काफ़ी कम समय के लिए) स्तालिन और लेनिन के सामने एक-एक फ़व्वारा था. कॉन्क्रीट की छोटी-छोटी दीवारें, जो फव्वारों के कुण्ड बनाती थीं, अभी भी देखी जा सकती हैं. सिर्फ दाईं तरफ़ वाला ही हमें स्तालिन की पूर्वस्थिति की याद दिलाता है, और बाईं ओर बने हुए – लेनिनवाले – का ख़ुद लेनिन से कोई संबंध नहीं है. क्योंकि किताब वाला लेनिन, बगल में ही होते हुए भी, काफ़ी पहले ही शिल्पकला के अतिरिक्त नमूनों में दिलचस्पी खो चुका है. दुर्लभ प्रजाति के पेड़ों और विभिन्न प्रकार की झाड़ियों के पीछे ज़िंदगी की हलचल से छुप गया है.

यहाँ ऊँचे-ऊँचे पेड़ों की छाया में उसे अच्छा लगता है. पंछी गाते हैं, ताज़ा कटी हुई घास की खुशबू फैली है. जगह आरामदेह है – कोई भी तुम्हारी ओर नहीं देखता, किसी को तुम्हारी ज़रूरत नहीं है. बर्च के पेड़ पर, जो उसकी पीठ के पीछे है, कौआ बैठा है. किताब वाला लेनिन यहाँ किसी बॉटनिस्ट जैसा है. सरकार और क्रांति की अपेक्षा उसे अब वृक्ष-विज्ञान में शंकुधर वृक्षों के महत्व में ज़्यादा दिलचस्पी है. वेमाउथ चीड़ ( पाइनस स्ट्रोबस) का ऐसा अद्भुत नमूना कहाँ देखने को मिलेगा, मन को मुग्ध करने वाले शंकु ज़मीन पर पड़े हैं. इल्यिच मुग्ध होकर उन्हें देख रहा है. मुख पे चमक, नज़र दयालु. सुखी स्मारक है, सबसे ज़्यादा सुखी स्मारकों में से एक. (अ)स्मारक को भी उससे ईर्ष्या होगी.

हाँ, चेहरे के बारे में...प्लास्टर ऑफ़ पैरिस का मास्क मृत लेनिन के चेहरे से उतारा गया था, वैसे, शिल्पकार था मेर्कूरव. मृत-शरीर के निकट वह पहले पहुँच गया था. अन्य अनेकानेक लोगों से पहले.

मई 2007




गुरुवार, 23 अगस्त 2018

Monuments of Petersburg - 08



किताब वाली दृष्टिहीन लड़की




ख्रुश्चोव के ज़माने के बने ब्लॉक्स की बिल्डिंग्स के बीच, बाकू के 26 कमिसार्स में से एक के नाम से प्रसिद्ध एवेन्यू से थोड़ा सा हटकर, कोरिन्थियन स्तम्भ के साथ ये शिल्प-संरचना अटपटी प्रतीत होती, अगर बगल वाली बिल्डिंग पर ये बोर्ड न लगा होता – “ के. के. गोर्त विशेष (सुधार) बोर्डिंग स्कूल नं, 1”. ये उसी कन्स्तान्तिन कार्लोविच गोर्त का स्मारक है, जो “गार्डियनशिप ऑफ द ब्लाइण्ड” के संस्थापक और इसकी कौन्सिल के प्रथम प्रेसिडेन्ट थे. 

साठ के दशक के आरंभ में नेत्रहीनों और कमज़ोर नज़र वाले बच्चों का बोर्डिंग स्कूल शाउमेन एवेन्यू पर स्थानांतरित हुआ, और उसके साथ ही स्मारक भी चला आया. तब तक स्कूल और स्मारक अप्तेकार्स्की द्वीप पर प्रोफेसर पोपव रोड पर थे, जिसे पहले पिसोच्नाया स्ट्रीट कहा जाता था. बोर्डिंग स्कूल अलेक्सान्द्र-मरीन्स्की संस्थान की ऐतिहासिक इमारत में आ गया. नेत्रहीनों के इस संस्थान की स्थापना ग्रोत ने की थी. ईंटों की बड़ी इमारत (नं. 37) आज तक खड़ी है. कभी इसे जर्मन अनुभव को नज़र में रखते हुए बनाया गया था और नेत्रहीनों के लिए वह अत्यंत उपयुक्त थी. मगर आज इस इमारत का नेत्रहीनों की ज़रूरतों से कोई लेना-देना नहीं है; उसके पूर्व उद्देश्य की याद सिर्फ आश्चर्यजनक रूप से सीढ़ियों पर बच गई रेलिंग्स दिलाती हैं – जो दीवारों के साथ साथ लगाई गई थीं.

स्मारक के उद्घाटन के अवसर पर एक वक्ता ने ग्रोत के लिए - “राजनेता, परोपकारी और नागरिक” – ये शब्द कहे थे. उथल-पुथल भरे सन् 1906 का अक्टूबर था. यदि उस समय ग्रोत कहीं का गवर्नर होता, जैसे वह कभी समारा में था, तो हो सकता है कि उस पर भी बम फेंका जाता. वैसे समारा में आज भी गोर्त को भले आदमी के रूप में याद किया जाता है – इतना कहना काफ़ी है कि शहर की सार्वजनिक लाइब्रेरी को उसने पुस्तकों का अपना अभूतपूर्व संग्रह उपहार में दिया था. पीटर्सबुर्ग में वह ऊँचे पदों पर था, स्टेट कौन्सिल का सदस्य था. जहाँ भी उसने काम किया, हर जगह उसने ठोस काम किया – जैसे, उत्पाद शुल्क का विकास और जेलों का सुधार...उस उम्र में, जिसे अधेड़ कहा जाता है, उसने स्वयम् को नेत्रहीनों की सहायता के विचार को पूरी तरह समर्पित कर दिया. अपनी स्वाभाविक बेचैनी से वह जर्मनी गया, जिससे नेत्रहीनों के लिए स्कूलों के आयोजन के अनुभव को सीख सके – रूस में इस तरह का कुछ भी नहीं था...

पिसोच्नाया स्ट्रीट का विद्यालय – ख़ुद ही ग्रोत का स्मारक है. जहाँ तक स्मारक का सवाल है, तो उसके निर्माण में बहुत लोगों ने हिस्सा लिया. आरंभ में छोटी-मोटी रकम ही थी, जो कब्र पर पुष्पचक्र ख़रीदने के बाद बची थी, उसमें लोग चन्दा देने लगे, चंदा देने वालों में स्कूल के भूतपूर्व विद्यार्थियों के परिवार भी शामिल थे – सदस्यता शुल्क भी वसूल किया गया. मार्क मत्वेयेविच अन्तोकोल्स्की ने, जिसे ग्रोत के कार्य के प्रति सहानुभूति थी, अपने पारिश्रमिक की मूल राशि काफ़ी घटा दी. वह यूरोप का ख्यातिप्राप्त व्यक्ति था. परिस में रहते हुए वह दो शर्तों पर इस काम को करने के लिए तैयार हुआ: पहली, उससे किसी आरंभिक स्केच की मांग नहीं की जाएगी, और, दूसरी, काम के ब्यौरे पर नज़र रखने के लिए कोई कमिटी-वमिटी नहीं बनेगी. ये उचित ही पाया गया. पूरा काम फ्रान्स में करने का प्रस्ताव था. वैसा ही हो भी जाता, अगर सन् 1902 में अन्तोकोल्स्की फेफ़ड़ों की बीमारी से मर न गया होता. वह घुटनों पर किताब पकड़े नेत्रहीन लड़की का शिल्प बना पाया था. ख़ुद ग्रोत की अर्धप्रतिमा के निर्माण की ज़िम्मेदारी शिल्पकार की पत्नी ने पैरिस की कार्यशालाओं में से एक – अन्तोकोल्स्की के शिष्यों को सौंप दी. स्मारक के ग्रेनाइट वाले हिस्से की भी अपनी ही कहानी है. “बोर्ड ऑफ़ ट्रस्टीज़ ने – जैसा कि रिपोर्ट से ज्ञात होता है, एम. एम. अन्तोकोल्स्की के वारिसों को ग्रेनाइट वाले भागों की परेशानियों से मुक्त करने का फ़ैसला किया, और घोषित अनुमानों के अनुसार स्मारक के लिए निर्धारित राशि से ही उनका मूल्य चुकाया”. ऐसा झितोमीर शहर के पत्थर-कटाई फ़ैक्ट्री के मालिक एस. अलेश्केविच की बढ़िया सिफ़ारिशों के कारण किया गया, जिसकी सलाह को मानने का निर्णय किया गया. झितोमीर में काम पैरिस और पीटर्सबुर्ग की तुलना में काफ़ी सस्ते में हो गया.

मगर झीतोमीर सब कुछ इतनी आसानी से नहीं हुआ – काफ़ी दिनों तक मोनोलिथ (पत्थर की अखण्ड शिला) को ढूँढ़ते रहे, और उसके बाद हड़तालें शुरू हो गईं. सन् 1905 की सर्दियों में ग्रेनाइट के हिस्सों को पीटर्सबुर्ग भेजना संभव नहीं हुआ. ये काम, कुल मिलाकर, उतना सस्ता भी नहीं पड़ा. मगर – काम अच्छा था, ख़ुद अर्थ-मन्त्री मे दख़ल दिया, स्टेट-सेक्रेटरी वी. एन. काकोव्त्सेव ने ग्रेनाइट के हिस्सों को झीतोमीर से पीटर्सबुर्ग तक मुफ़्त में पहुँचाने की व्यवस्था की.            

सिविल इंजीनियर्स वी. ए.लूचिन्स्की और वी. ए. शेवेल्येव ने स्मारक के हिस्सों को जोड़ने और उसे स्थापित करने के काम की देख-रेख की. इस विषय में सलाहकार थे प्रसिद्ध अकादेमिशियन ए.एम. अपेकूशिन. एक अन्य अकादेमिशियन, शिल्पकार वी. पी. त्सैद्लेर ने स्थान का नियोजन किया.

इन सुयोग्य व्यक्तियों के “विशेष सहयोग” का उल्लेख “ट्रस्टी-मेम्बर्स की असाधारण आम सभा में किया गया, जिसका आयोजन सम्राज्ञी मारिया अलेक्सान्द्रोव्ना के नेत्रहीनों की गार्डियनशिप के पच्चीस वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में किया गया था”.15 

“नेत्रहीन” नामक पत्रिका ने इस समारोह की रिपोर्ट देते हुए कई पृष्ठ बधाई के टेलिग्रामों को समर्पित किए हैं. अन्य बातों के अलावा “कन्स्तान्तिन कार्लोविच ग्रोत की यादें” शीर्षक से एक कविता भी छपी है, जो इस प्रकार समाप्त होती है:
भविष्य में महान कार्य को तुम्हारे
मिलेगा आशीर्वाद करोड़ों ज़ुबानों का,
और छत्रछाया में तुम्हारी आयेंगे
कई दुखी शरण लेने.
हस्ताक्षर : नेत्रहीन शीलव, कस्त्रोम के नेत्रहीनों के स्कूल का भूतपूर्व छात्र”.

हमें नेत्रहीनों के स्कूल की एक और भूतपूर्व छात्रा – एलेना सूप्से का ज़िक्र भी करना होगा. इसी ने पैरिस में अन्तोकोल्स्की के सामने पोज़दिया था. मतलब, ठण्डे स्तंभ से टिककर जो लड़की बैठी है, वह काल्पनिक नहीं है, बल्कि एलेना सूप्से है – ये उसकी छबि है.

हमें शिक्षाशास्त्री कन्स्तान्तिन द्मित्रियेविच ऊषिन्स्की का भी ज़िक्र करना होगा. लड़की के घुटनों पर उसी की किताब : “बच्चों की दुनिया” रखी है – ये किताब प्रारंभिक पठन के लिए है.

इतिहासकार, कृषकों के सुधार पर चार खण्डॉं के मौलिक ग्रंथ के लेखक और नेत्र-विशेषज्ञ अलेक्सान्द्र इल्यिच स्क्रेबित्स्की का भी नाम लेना पड़ेगा. नेत्रहीनों की गार्डियनशिप की स्थापना ग्रोत ने उसीके साथ मिलकर की थी. ऊषिन्स्की की पुस्तक, जो लड़की के घुटनों पर है – ये सिर्फ “बच्चों की दुनिया” के अनगिनत प्रकाशनों में से एक नहीं है, बल्कि ये नेत्रहीनों के लिए पहली रूसी किताब है, जिसकी 300 प्रतियों की आवृत्ति फरवरी 1882 में प्रकाशित हुई थी. इसका प्रकाशन स्क्रेबित्स्की की ऊर्जा, इच्छा शक्ति, और जुनून की बदौलत ही हुआ था. लिपि का विकास, छपाई का ख़र्च, कई सारी तकनीकी समस्याओं का समाधान – इस सबकी ज़िम्मेदारी उसने अपने ऊपर ली थी. बाद में स्क्रेबित्स्की ब्रैल का समर्थक बनने वाला था, मगर उस समय सरकारी कागज़ को तैयार करने के मिशन के अंतर्गत, जिसके तहत इस किताब को प्रकाश में लाना था (कैसा अद्भुत था ये अंधेरे और प्रकाश का खेल!...) विशेष प्रकार के कागज़ का आविष्कार करना पड़ा, जो उभरी हुई लिपि के लिए अनुकूल हो.

स्क्रेबित्स्की की लिपि विएन्ना में बन रही थी, और बीस वर्ष बाद, पैरिस में, अन्तोकोल्स्की ने अविश्वसनीय सतर्कता से किताब के उन पन्नों के वास्तविक रूप को पुनर्निर्मित कर दिया, जो नेत्रहीन लड़की ने उसके स्टूडियो में खोले थे. स्मारक के पास जाकर देखा जा सकता है, कि किताब के उभरे हुए अक्षरों को दाएँ हाथ की उँगलियों से छूते हुए नेत्रहीन लड़की क्या पढ़ रही है. ये पृष्ठ नं. 95 है – उभरे हुए अक्षर स्पष्ट नज़र आ रहे हैं. बाईं ओर के पृष्ठ नं. 94 के अक्षर भी दिखाई दे रहे हैं, मगर वे दबे हुए हैं और आईने में प्रतिबिम्बित रूप में दिए गए हैं, ये पृष्ठ पढ़ने के लिए नहीं है, ये सिर्फ हमारे लिए बंद किए गए पृष्ठ नं 93 का पढ़ने लायक पिछला भाग है.

पृष्ठ नं 95 के पहले वाक्य का आरंभ पिछले पृष्ठ पर है, उसे, यदि हम आईने वाले अंश से यहाँ लाएँ तो लिखा है:

बहुत, बहुत ज़्यादा
...और आगे पृष्ठ 95 पर:
जानता है और करने के काबिल है किसान और उसे किसी
भी हालत में अनाड़ी नहीं कहा जा सकता, हालाँकि वह पढ़ना भी नहीं जानता था, मगर पढ़ना और कई विज्ञानों को सीखना काफ़ी आसान है, बजाय पूरी
- आगे का अंश उँगलियों से ढँक गया है. अविश्वसनीय स्मारक. ये स्मारक किताब का भी है – मूर्तिमंत किताब का. पीटर्सबुर्ग में कई “पढ़ते हुए” स्मारक हैं, मगर सिर्फ यहाँ – सचमुच में पढ़ा जा रहा है.

जो हम पढ़ते हैं, उसीके बारे में सोचते भी हैं. ये रही इस स्मारक की एक और आश्चर्यजनक विशेषता. हमें पक्का मालूम है, कि इतने एकाग्र चेहरे से लड़की क्या सोच रही है. ये किसी निश्चित विचार का भी स्मारक है.        

पीटर्सबुर्ग का ये सबसे हृदयस्पर्शी स्मारक है. और, हालाँकि यहाँ श्लेष का उपयोग अनुचित है, फिर भी मैं कहूँगा, कि वह छूकर महसूस करने के लिए उकसाता है – उसे स्पर्श करने को जी चाहता है. स्मारक निःसंदेह इसी बात को ध्यान में रखकर बनाया गया था, कि लोग उसे छुएँ, और ख़ासकर – पृष्ठ 95 के शब्दों को. इसके लिए आपको ना तो पंजों पर खड़ा होना, और ना ही झुकना पड़ता है.                   
उँगलियों से अक्षरों में फ़रक महसूस करते हुए, मुझे याद आया कि कैसे मैं एक बार हैम्बर्ग में एक असाधारण संवादात्मक प्रदर्शनी में गया था. हमें ये महसूस करने के लिए कहा गया, कि एक नेत्रहीन की दुनिया कैसी होती है. हरेक को एक-एक छड़ी देकर, हमें ख़ासकर बनाए गए एक अंधेरे स्थान पर छोड़ दिया गया. हम “रास्ते पर जा रहे थे”, गाड़ियों के शोर को सुनते हुए हमने सड़क पार की; बाज़ार में पहुँचने पर, ख़रीदारी करने की कोशिश की, स्पर्श से ही फलों और सब्ज़ियों को चुना...आम चीज़ों से भरे हुए एक घर में गए,  मगर अब ये चीज़ें जानी-पहचानी नहीं लग रही थीं. ऐसा एहसास जिसे प्रकट करना असंभव है. उन्हें मालूम है कि औरों की समस्याओं पर कैसे ध्यान दिया जाता है.

ये मैं इसलिए कह रहा हूँ, कि काँसे के अक्षरों को छूते हुए, स्पष्ट समझ में आ जाता है, कि कितने लोगों को ये स्मारक “अपना” लगता है. और ये है छोटी सी गुप्त जगह जिसमें दो सिक्के समाए हुए हैं...

पेसोच्नाया पर स्थित स्कूल के शताब्दी वर्ष में किसी ने शाउम्यान स्कूल के सामने किताब वाली लड़की की मूर्ति चुराने की कोशिश की. कुछ देर और हो जाती तो फ्रेम पूरी तरह कट जाती... मूर्ति को वहाँ से हटाना पड़ा, कुछ समय तक कन्स्तान्तिन कार्लोविच की अर्धप्रतिमा नितान्त अकेली ही रही. किसी विशेष तरीके से लड़की की प्रतिमा को वेल्ड करके बिठाया गया, कहते हैं, कि हमेशा के लिए - अकादमीशियन अपेकूशिन को ऐसा करामाती इंजीनियरिंग का तरीका बुरे से बुरे सपने में भी नहीं दिखाई देता.

मगर मई 2000 में ग्रोत की अर्धप्रतिमा को चुरा लिया गया. कुछ दिनों के बाद पुलिस ने उसे ढूँढ़ निकाला. ज़ाहिर है, उसे खरीदना पड़ा.

फ़िलहाल स्मारक पूरा है. चौक की लैण्डस्केपिंग की गई है. बोर्डिंग स्कूल की तरफ़ से कॉन्क्रीट की जाली को रंग दिया गया है, उस पर विभिन्न ज्यामितीय आकृतियाँ बनाई गई हैं. रंगबिरंगी. सफ़ाई से. हालाँकि सभी नहीं देखते.

अप्रैल 2008                  
      
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15. “नेत्रहीन”, 1906, नं. 11-12. पृ. 203