छुपा हुआ लेनिन
कभी-कभी स्मारकों के लिए लोगों की नज़रों
में न पड़ना फ़ायदेमन्द होता है, ख़ासकर उस हालत में,
जब ऐतिहासिक उथल-पुथल के
कारण समाज में अमर बना दिए गए व्यक्ति के प्रति समाज में निरंतर एक पूर्वाग्रह स्थापित हो जाये. ऐसी ही दुर्भावना
व्लादीमिर इल्यिच लेनिन ने अनेक लोगों के मन में पैदा कर दी, और लेनिन के स्मारकों को निशाना बनाया जाने लगा...अब उन्हें दुबकना पड़ा और
छुपे-छुपे, कठिन समय का इंतज़ार करना पड़ा. मगर दुबकना कैसे
संभव है, यदि लेनिन के स्मारक, नियमानुसार,
सबके सामने हैं? और वैसे भी स्मारकों को
ज़िंदगी भर अच्छी तरह दिखाई देना ही चाहिए...
एक ख़ास स्मारक के लिए ये
संभव हुआ. एक स्मारक सचमुच में छुप गया. बॉटनिकल गार्डन में लेनिन का स्मारक जिसे
यहाँ तीस के दशक के आरंभ में स्थापित किया गया था. हाथ में किताब लिए – इल्यिच
बैठा है और कोई सपना देख रहा है. ख़ुद कॉन्क्रीट का बना है,
और पैडेस्टल भी कॉन्क्रीट का ही है. अगर महँगे ग्रेनाइट के पैडेस्टल
पर स्थित काँसे के नेता की किस्मत में भी युसूपव गार्डन से लुप्त होना लिखा था,
तो शायद, इस बॉटनिकल गार्डन वाले को, जो सीधे-सादे कॉन्क्रीट का है, सज़ा सुनाना बेहद आसान
था – विचारधारा का हवाला न देते हुए भी, सिर्फ इस वजह से :
अवधि ख़त्म हो गई है, हटाना होगा – पदार्थ अस्थाई है, कॉन्क्रीट तो आख़िर कॉन्क्रीट ही है.
नहीं,
बच गया. वह हरियाली में छुप गया. फ़ेन्सिंग के कारण उसे नहीं देख
सकते. और बॉटनिकल इन्स्टिट्यूट की इमारत में जाने वाली सीढ़ियों से भी नहीं देख
सकते, जिनकी बगल में वह स्थापित है.
दो टूक कहें,
तो ये मौलिक स्मारक नहीं है. ये क्लोन है. और इसीलिए अद्भुत है,
कि क्लोन्स की श्रृंखला का पहला स्मारक है. क्योंकि मूल की तो
मृत्यु हो गई, और मूल की मृत्यु के बाद उसका मानद ओहदा
अनुयायी को दिया गया है.
“मूल” शब्द से मेरा
तात्पर्य कॉन्क्रीट के, बिल्कुल वैसे ही, हाथ में किताब लिए लेनिन के स्मारक से है, जिसे कुछ
पहले, सन् 1932 में पॉलिटेक्निक इन्स्टीट्यूट के पार्क के
मुख्य एवेन्यू पर स्थापित किया गया था. वह सबको नज़र आता था.
स्मारक के रचनाकार सिर्गेइ
द्मित्रियेविच मेर्कूरव – अपने ज़माने के बहुत प्रसिद्ध शिल्पकार,
अत्यंत प्रभावशाली, अत्यंत - अगर इस शब्द को
उसके विशाल परिमाण तक ले जाएँ, तो, सफ़ल
थे. दो बार स्तालिन पुरस्कार प्राप्त कर चुके थे, और दोनों
ही बार स्तालिन के स्मारकों के लिए. नहीं, सही-सही कहेंगे :
पहली बार, असल में, दो स्मारकों के लिए
– लेनिन के और स्तालिन के, दोनों – संगमरमर के (क्रेमलिन में, सोवियत कृषक
प्रदर्शनी में), और दूसरी बार – अकेले स्तालिन के – ढलवाँ
तांबे के (येरेवान में). येरेवान के स्मारक की पैडेस्टल समेत ऊँचाई करीब पचास
मीटर्स थी! मेर्कूरव यादगार स्मारक बनाने के लिए प्रसिद्ध थे. मॉस्को नहर के
किनारे पर भीमकाय-लेनिन और भीमकाय-स्तालिन मेर्कूरव के प्रोजेक्ट के अनुसार कैदियों
के श्रम से बने थे. मेर्कूरव द्वारा बनाया गया मॉडेल अनिर्मित ‘पैलेस ऑफ़ सोवियत्स’ के शिखर पर स्थापित किए जाने
वाले अस्सी मीटर्स के लेनिन की प्रतिकृति था.
इन भीमकायों की तुलना में
हाथ में किताब पकड़े कॉन्क्रीट का लेनिन सिर्फ धूल के कण के बराबर है. बैठे हुए
लेनिन की ऊँचाई सिर्फ दो मीटर्स बीस सेन्टीमीटर्स है. ऊपर से करीब दो मीटर्स का
पैडेस्टल. ऐसा स्मारक छुप सकता है, अगर बगल में पेड़
और झाड़ियाँ हों. मगर यदि वे नहीं हैं, तो उन्हें कहाँ से
लाएँ?
पॉलिटेक्निक इन्स्टीट्यूट
वाले लेनिन की बगल में झाड़ियाँ और पेड़ नहीं थे, ये कोई
बॉटनिकल इन्सटीट्यूट तो नहीं है. किसी को भी पता नहीं चला कि कैसे अपनी किताब के
साथ लेनिन गायब हो गया. वैसा ही येरेवान में भी हुआ – वहाँ मेर्कूरव के स्तालिन को
कई टैन्क्स की सहायता से पैडेस्टल से उखाड़ दिया गया!...
तीस के दशक के
बीच में लेनिनग्राद में एक और क्लोन प्रकट हुआ, कॉन्क्रीट का, हाथ
में किताब पकड़े. उसे अब्वोद्नी-कॅनाल के पीछे भूतपूर्व बूचड़खानों के क्षेत्र में
एक पार्क में स्थापित किया गया था. कुछ ही दिन पहले इस क्षेत्र में
डेयरी-प्रॉडक्ट्स का उत्पादन होता था. वर्तमान समय में “पेटमोल” (पीटर्सबुर्ग
डेयरी से तात्पर्य है) भी संयोगवश वहीं है. और जब मैं स्कूल में पढ़ता था, तो हमें श्रम-शिक्षा के अंतर्गत डेयरी-प्लान्ट में सहायता के लिए ले जाया जाता था – हम
दूध की खाली बोतलें बक्सों में रखते थे. लेनिन को मैंने देखा था, मगर ठीक से याद नहीं है.
वैसे, याद रखने जैसा क्या है? वैसा
ही है, जैसा बॉटनिकल गार्डन में है, सिर्फ पैडेस्टल कुछ नीचा है.
अच्छी
तरह मालूम है,
कि वो अब भी वहीं खड़ा है
(मतलब, बेशक,
बैठा है.)
युद्ध
से ठीक पहले एक और क्लोन स्थापित किया गया था फैक्टरी के क्षेत्र में, जिसे आजकल
आसान शब्दों में “ ‘एस्केलेटर’ प्लान्ट का भूतपूर्व दक्षिणी भाग” कहा जा सकता है. ये
वासिल्येव्स्की द्वीप की अठारहवीं लाइन है. आज यहाँ कई फ़र्म्स ने आश्रय लिया है, स्मारकों के उत्पादन के वर्कशॉप्स भी हैं (ज़ाहिर है, कब्रिस्तान के). कारखानों की बिल्डिंग्स के मध्य में
एक छोटा सा पब्लिक गार्डन है,
- पॉप्लर वृक्ष के नीचे
किताब लिए लेनिन बैठा है,
करीब-करीब ज़मीन पर (
मतलब, लगभग बिना पैडेस्टल के). दुश्मन उस तक पहुँचने का
रास्ता नहीं ढूँढ़ पायेगा,
परेशान होने की ज़रूरत
नहीं है.
मेर्कूरव
की मृत्यु के दो साल बाद – सन् 1954 में, लेनिन
की तीसवीं पुण्यतिथि के अवसर पर,
अबूखोव्स्की डिफेन्स
प्रॉस्पेक्ट के दोनों ओर फ़ौरन दो क्लोन स्थापित किए गए : एक – ई.वी. बाबुश्किन
गार्डन के मुख्य एवेन्यू पर,
और दूसरा – “श्रमजीवी”
फैक्टरी के क्षेत्र में. तो,
“बाबुश्किन वाला” आख़िरकार
लुप्त हो गया,
वह आँखों में काफ़ी खटकता
था, मगर “श्रमजीवी”, हाँलाकि
अच्छी हालत में नहीं है,
मगर अभी भी टिका हुआ है.
कॉन्क्रीट के इस इल्यिच ने पूंजीवाद के काफ़ी नख़रे देख लिए! मालूम है, स्मारक की पचासवीं सालगिरह पर उसे क्या तोहफ़ा दिया गया
(स्मारक भी, लोगों के ही समान, अपनी
सालगिरह के प्रति संवेदनशील होते हैं,
सिर्फ वे उसे अपने आप, चुपचाप मनाते हैं)? स्मारक
की पचासवीं सालगिरह पर (सन् 2004 में) उसकी आँखों के सामने सम्पत्ति के बटवारे का
क्रूर प्रदर्शन हुआ. पिस्तौल और बेसबॉल के बॅट्स के साथ. दरवाज़ों को तोड़ने से.
कानून और व्यवस्था की शक्तियों के हस्तक्षेप से. नौ आदमी घायल हुए. अगर किसी को
उत्सुकता हो,
तो उस समय के अख़बारों का
हवाला दूँगा.
फिर
भी, वस्तुस्थिति ने लेनिन के आदर्शों को कितना ही मज़ाक
क्यों न उड़ाया हो,
फैक्टरी वाला स्मारक अभी
तक खड़ा है – हो सकता है,
कि कॉन्क्रीट ज़्यादा
जल्दी बिखर रहा है,
क्योंकि समय के कारण के
साथ, निःसंदेह,
तनाव का कारण भी जुड़ गया
हो. मगर मैं कह रहा हूँ,
कि ई. वि. बाबुश्किन
पब्लिक-गार्डन से,
जहाँ, लगता था,
कि किताब वाले स्मारक के
लिए बैठना ज़्यादा आरामदेह और ज़्यादा सुरक्षित होता, स्मारक
ग़ायब हो गया. उसी तरह जैसे नये ज़माने में “पॉलिटेक्निक वाला” प्राचीन इल्यिच गायब
हो गया था, जिसकी पुराने ज़माने में ऊपर वर्णित क्लोन्स की
श्रृंखला बनाई गई थी.
और
महत्वपूर्ण बात ये है.
पॉलिटेक्निक
इन्स्टीट्यूट के पार्क से हाथ में किताब लिए उस प्राचीन लेनिन के गायब होने के कारण –
वरीयता और प्राथमिकता के सिद्धांत के अनुसार – मूल स्मारक का दर्जा बॉटनिकल गार्डन
के किताब वाले लेनिन को जाता है. इसे समझना चाहिए और याद रखना चाहिए.
इस
बात को संक्षिप्त करते हुए हम उपरोक्त प्रकार की वस्तुओं के लिए एक नियम बनाने की
कोशिश करेंगे. सीधी बात है: वहाँ,
जहाँ परिचय-पत्र के आधार
पर प्रवेश दिया जाता हो,
और बाहरी लोगों के अंदर
आने पर नियन्त्रण हो,
कॉन्क्रीट के, किताब वाले लेनिन के लिए लगभग कोई ख़तरा नहीं है, मगर जहाँ सब कुछ स्पष्ट हो, वहाँ
इतिहास के तीव्र मोड़ पर,
किताब वाले लेनिन को
धराशायी कर दिया जाएगा. बाद में लोग याद करेंगे : क्या लेनिन था?
ख़ैर, बॉटनिकल गार्डन में लौटते हैं. यहाँ प्रवेश, हालाँकि सशुल्क है, मगर
पूरी तरह सबके लिए खुला है. परिणामस्वरूप, हमारे
नियम के अनुसार,
यहाँ से किताब वाले
लेनिन को हटाना ज़रूरी था. मगर वह बच गया! झाड़ियों में छुप गया – और बच गया! उसने
जैसे वाकई में रहस्यमय ज़िंदगी गुज़ारी हो, और अभी
भी वैसे ही चल रहा है!
स्टालिन
उतना भाग्यवान नहीं था. वो भी यहीं था,
मगर इन्स्टीट्यूट की
बिल्डिंग के रास्ते के दूसरी ओर. लेनिन के साथ संरचना बनाई थी. जब लेनिन के
मानदण्डों को पुनर्स्थापित करने का निर्णय लिया गया (हर क्षेत्र में) तो उसे नष्ट
कर दिया गया. मगर जब लेनिन के लिए भी मुसीबत का समय आया, तब तक झाड़ियाँ और पेड़ काफ़ी बढ़ चुके थे.
कभी, बहुत पहले (और काफ़ी कम समय के लिए) स्तालिन और लेनिन के
सामने एक-एक फ़व्वारा था. कॉन्क्रीट की छोटी-छोटी दीवारें, जो फव्वारों के कुण्ड बनाती थीं, अभी भी देखी जा सकती हैं. सिर्फ दाईं तरफ़ वाला ही हमें स्तालिन की पूर्वस्थिति की याद दिलाता है, और बाईं ओर बने हुए – लेनिनवाले – का ख़ुद लेनिन से कोई
संबंध नहीं है. क्योंकि किताब वाला लेनिन, बगल में
ही होते हुए भी,
काफ़ी पहले ही शिल्पकला के
अतिरिक्त नमूनों में दिलचस्पी खो चुका है. दुर्लभ प्रजाति के पेड़ों और विभिन्न प्रकार
की झाड़ियों के पीछे ज़िंदगी की हलचल से छुप गया है.
यहाँ
ऊँचे-ऊँचे पेड़ों की छाया में उसे अच्छा लगता है. पंछी गाते हैं, ताज़ा कटी हुई घास की खुशबू फैली है. जगह आरामदेह है – कोई
भी तुम्हारी ओर नहीं देखता,
किसी को तुम्हारी ज़रूरत नहीं
है. बर्च के पेड़ पर,
जो उसकी पीठ के पीछे है, कौआ बैठा है. किताब वाला लेनिन यहाँ किसी बॉटनिस्ट जैसा
है. सरकार और क्रांति की अपेक्षा उसे अब वृक्ष-विज्ञान में शंकुधर वृक्षों के महत्व
में ज़्यादा दिलचस्पी है. वेमाउथ चीड़ ( पाइनस स्ट्रोबस) का ऐसा अद्भुत नमूना कहाँ देखने
को मिलेगा, मन को मुग्ध करने वाले शंकु ज़मीन पर पड़े हैं. इल्यिच मुग्ध
होकर उन्हें देख रहा है. मुख पे चमक,
नज़र दयालु. सुखी स्मारक है, सबसे ज़्यादा सुखी स्मारकों में से एक. (अ)स्मारक को भी
उससे ईर्ष्या होगी.
हाँ, चेहरे के बारे में...प्लास्टर ऑफ़ पैरिस का मास्क मृत लेनिन
के चेहरे से उतारा गया था,
वैसे, शिल्पकार था मेर्कूरव. मृत-शरीर के निकट वह पहले पहुँच
गया था. अन्य अनेकानेक लोगों से पहले.
मई 2007


